सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर लगी पाबंदी को हटाया

Written by Sabrangindia Staff | Published on: September 29, 2018
भारत में महिलाओं के अधिकार के लिए शुक्रवार का दिन ऐतिहासिक रहा. केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 साल से 50 साल की उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर रोक के मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए हर उम्र की महिलाओं को प्रवेश करने और पूजा करने की मंजूरी दी है. फैसला सुनाते हुए सीजेआई दीपक मिश्रा ने कहा कि सबरीमाला मंदिर की यह परंपरा असंवैधानिक है.



सीजेआई दीपक मिश्रा ने कहा, धर्म एक है, गरिमा और पहचान भी एक हैं. अय्यप्पा कुछ अलग नहीं हैं, जो नियम जैविक और शारीरिक प्रक्रियाओं के आधार पर बने हैं, वे संवैधानिक परीक्षा में पास नहीं हो सकते. शुक्रवार को भारत में महिलाओं के अधिकार के लिए बड़ा दिन बनाते हुए दीपक मिश्रा ने कहा, सबरीमाला मंदिर की परंपरा असंवैधानिक है.

अपनी और जस्टिस एएम खानविलकर की ओर से सीजेआई दीपक मिश्रा ने फैसला पढ़ते हुए कहा, हमारी संस्कृति में महिला का स्थान आदरणीय और ग्लोरिफाइड है. उन्होंने ये भी कहा, जस्टिस इंदु मल्होत्रा का फैसला शेष न्यायमूर्तियों से अलग है, इसलिए यह बहुमत का फैसला है.

देश के प्रधान न्यायाधीश (CJI) दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंगटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने इस मामले पर अपना फैसला सुनाया. 

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर फैसले में अपना पक्ष सुनाते हुए जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने कहा, इस मुद्दे का असर दूर तक जाएगा. धार्मिक परंपराओं में कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए. अगर किसी को किसी धार्मिक प्रथा में भरोसा है, तो उसका सम्मान होना चाहिए, क्योंकि ये प्रथाएं संविधान से संरक्षित हैं. समानता के अधिकार को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार के साथ ही देखना चाहिए, और कोर्ट का काम प्रथाओं को रद्द करना नहीं है. 

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, महिलाओं को भगवान की कमतर रचना मानकर बर्ताव किया जाना संविधान के साथ आंख-मिचौली जैसा है. उन्होंने कहा, मासिक धर्म की आड़ लेकर लगाई गई पाबंदी महिलाओं की गरिमा के खिलाफ है. अय्यप्पा के श्रद्धालु अलग वर्ग नहीं हैं. महिलाओं को मासिक धर्म के आधार पर सामाजिक तौर पर बाहर करना संविधान के खिलाफ है.

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, संविधान के अनुच्छेद 25 के मुताबिक, सब बराबर हैं. समाज मे बदलाव दिखाना जरूरी है. वैयक्तिक गरिमा अलग चीज है, परंतु समाज में सबकी गरिमा का ख्याल रखना आवश्यक है. पुराने समय में महिलाओं पर पाबंदी उन्हें कमजोर मानकर लगाई गई थी.

उन्होंने कहा, सबरीमाला मामले में ब्रह्मचर्य से डिगने की आड़ में 10 से 50 वर्ष तक की महिलाओं के लिए मंदिर में आने पर पाबंदी लगाई गई थी. यह दावा अब संभव नहीं है. महिलाओं को बाहर रखना अपमानजनक है  तथा पुरुष के ब्रह्मचर्य के आधार पर महिलाओं को रोकने को संविधान अनुमति नहीं देता.

क्या संविधान महिलाओं के लिए अपमानजनक बात को स्वीकार कर सकता है?

जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सवाल किया, क्या संविधान महिलाओं के लिए अपमानजनक बात को स्वीकार कर सकता है? सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, पूजा से इंकार करना महिलाओं की गरिमा से इंकार करना है.

सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस रोहिंगटन नरीमन ने कहा, मंदिर में महिलाओं को भी पूजा का समान अधिकार, यह मौलिक अधिकार है.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दिए जाने पर ट्रावणकोर देवस्वॉम बोर्ड (टीडीबी) के अध्यक्ष ए. पद्मकुमार ने कहा, 'हम अन्य धार्मिक प्रमुखों से समर्थन हासिल करने के बाद पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे'.

इससे पहले चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा का मानना था कि देश में प्राइवेट मंदिर का कोई सिद्धांत नहीं है. यह सार्वजनिक संपत्ति है. इसमें यदि पुरुष को प्रवेश की इजाजत है तो फिर महिला को भी जाने की अनुमति मिलनी चाहिए. संविधान पीठ ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी के खिलाफ याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिस पर अब शुक्रवार को कोर्ट की तरफ से फैसला आना है.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए पूछा था कि क्या महिलाओं को उम्र के हिसाब से प्रवेश देना संविधान के मुताबिक है? सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि अनुच्‍छेद 25 सभी वर्गों के लिए समान है. सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि मंदिर किसी वर्ग विशेष के लिए खास नहीं होता, यह सबके लिए है.

वहीं इस मामले में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने त्रावणकोर देवासम बोर्ड से सवाल किया था कि इस बात को साबित किया जाए कि सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी धार्मिक विश्वास का एक अभिन्न हिस्सा है. मामले की आखिरी सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि महज माहवारी के कारण इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी लगा देना महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों के खिलाफ है.

फिलहाल इस मंदिर में 10 साल से लेकर 50 साल की महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. इस प्रतिबंध पर ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हो रही थी. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अगुवाई में पांच जजों की एक बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी. इस बेंच में जस्टिस आरएफ नरिमन, एएम खानविल्कर, डीवाई चंद्रचूड़ और इंदू मल्होत्रा शामिल हैं.

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