उत्तर प्रदेश के कुशीनगर में विगत कुछ वर्ष पहले हुए एक छात्रा के साथ दुष्कर्म के प्रयास व निर्मम हत्या के खिलाफ आवाज उठाने व न्याय के लिए संघर्ष करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता मनोज सिंह को उस घटना ने इतना झकझोर दिया। जिसके बाद उन्होंने समाज में हो रहे नारियों के शारीरिक व मानसिक शोषण के विरुद्ध संघर्ष करने की सोची। मनोज सिंह ने इसपर अध्ययन किया और पाया कि समाज में ऐसा क्या बदलाव हो कि ऐसी जघन्य घटनाओं की पुनरावृत्ति हो ही नहीं। हमारे समाज की भी बेटियां स्वतंत्र, स्वच्छंद व उन्मुक्त जीवन जी सकें।
मनोज ने सामाजिक नीतियों, सामाजिक व्यवस्था, जन साधारण की नारियों के प्रति नजरिया, भारतीय कानून व सुरक्षा व्यवस्था का ठोस अध्ययन व शोध से पाया कि पुरुष प्रधान देश में नारियों को हमेशा से ही पुरुषो की अधीनता स्वीकार कराने की चेष्टा की गई है। यह सोच कहीं न कहीं पुरुषों के मन में नारियों के प्रति कमजोर, लाचार व भोग की वस्तु के रूप में परिलक्षित करता है। यही सोच मूल कारण है महिलाओं पर हमलावर होने का। यदि इस सोच पर काबू पाया जा सके इस सोच में परिवर्तन लाया जा सके तो निश्चित तौर पर हम समाज को नारी हिंसा से मुक्त करा सकते हैं।
मनोज सिंह का कहना है कि आमतौर पर समाज में यह देखने को मिलता है कि बात-बात में या झगड़े में लोग नारी सूचक अपशब्दों का प्रयोग करते हैं जबकि उस झगड़े में नारी कहीं भी नहीं होती। फिर भी बेवजह अपशब्दों को सुनना पड़ता है, जिसको हम सामान्य सी घटना मानकर आगे बढ़ जाते हैं लेकिन वह अपशब्द उस व्यक्ति के अंदर नारी के प्रति कमजोर नजरिये का प्रतिनिधित्व करता है। जिसका विरोध व परिमार्जन जरूरी है। यदि हम ऐसा कर पाने में सफल होते हैं तो निश्चित तौर पर हम एक बड़ी कामयाबी हासिल कर सकते हैं जिसकी परिकल्पना एक स्वस्थ व स्वच्छ समाज करता है।
*नारी-गाली प्रथा उन्मूलन आंदोलन*
*_‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’ अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहीं देवता निवास करते हैं। शास्त्रों में लिखी इस बात का आज के दौर कोई महत्त्व ही नहीं रह गया है...
भारतीय संस्कृति में नारियों का स्थान ऊंचा है। यही एकमात्र कारण है कि भारत की ऐतिहासिक संस्कृति संपूर्ण विश्व में सबसे समृद्ध थी। लेकिन आज के बदले परिवेश में नारी-गाली प्रथा समाज में कोढ़ के रूप में व्याप्त हो गई है। अकारण ही किसी अन्य की गलती का खामियाजा गाली के रूप में मातृ शक्ति को भुगतना पड़ रहा है। जिसके खिलाफ आज हर व्यक्ति को सजग होने की जरूरत है। खास कर महिलाओं को इसके लिए आगे आना चाहिए।
मेरा मानना है कि गम्भीर बीमारी का आरम्भ हमेशा छोटी बीमारी से ही होता है। अपशब्द को यदि हम हल्के में लेते हैं तो कहीं न कहीं हमसे चूक हो रही है। क्योंकि वह अपशब्द उस व्यक्ति की नारी विरोधी मानसिकता को दर्शाता है। यदि समय से उसके अंदर के अपशब्द रूपी विकार को समाप्त करने का प्रयास नही होगा तो वही आगे चल कर बड़ी घटनाओं को अंजाम भी दे सकता है। क्योंकि आज समाज में एसिड अटैक, बलात्कार, भ्रूण हत्या व नारी हिंसा जैसे जघन्य अपराध जो हो रहे हैं। उसे अंजाम देने वाले भी इसी समाज के लोग हैं। यदि उनके द्वारा घटना को अंजाम देने के बाद कड़ी से कड़ी सजा मिल भी जाए तो क्या फायदा, जब उसने समाज की एक नारी की अस्मिता ही समाप्त कर दी। समय रहते यदि हम उन नारी-गाली जैसे बुनियादी विकारों को पोलियो ड्राप की भांति आंदोलन चला कर समाप्त कर सकें तो तो कालांतर में हम नारी समाज को और अधिक सुरक्षित, समृद्ध और खुशहाल बनाने में सक्षम हो सकेंगे। इस आशय से दो वर्ष पूर्व समाज को अपशब्द मुक्त बनाने के लिए नारी-गाली प्रथा उन्मूलन आंदोलन की शुरुआत हुई जिसमें एक वैचारिक क्रांति रथ रवाना किया गया। ताकि इस यात्रा के माध्यम से नारी सशक्तिकरण हेतु समाज में स्त्रियों का मान-सम्मान बढ़ाने के लिए जन सामान्य को जागरूक किया जा सकें।
मनोज ने सामाजिक नीतियों, सामाजिक व्यवस्था, जन साधारण की नारियों के प्रति नजरिया, भारतीय कानून व सुरक्षा व्यवस्था का ठोस अध्ययन व शोध से पाया कि पुरुष प्रधान देश में नारियों को हमेशा से ही पुरुषो की अधीनता स्वीकार कराने की चेष्टा की गई है। यह सोच कहीं न कहीं पुरुषों के मन में नारियों के प्रति कमजोर, लाचार व भोग की वस्तु के रूप में परिलक्षित करता है। यही सोच मूल कारण है महिलाओं पर हमलावर होने का। यदि इस सोच पर काबू पाया जा सके इस सोच में परिवर्तन लाया जा सके तो निश्चित तौर पर हम समाज को नारी हिंसा से मुक्त करा सकते हैं।
मनोज सिंह का कहना है कि आमतौर पर समाज में यह देखने को मिलता है कि बात-बात में या झगड़े में लोग नारी सूचक अपशब्दों का प्रयोग करते हैं जबकि उस झगड़े में नारी कहीं भी नहीं होती। फिर भी बेवजह अपशब्दों को सुनना पड़ता है, जिसको हम सामान्य सी घटना मानकर आगे बढ़ जाते हैं लेकिन वह अपशब्द उस व्यक्ति के अंदर नारी के प्रति कमजोर नजरिये का प्रतिनिधित्व करता है। जिसका विरोध व परिमार्जन जरूरी है। यदि हम ऐसा कर पाने में सफल होते हैं तो निश्चित तौर पर हम एक बड़ी कामयाबी हासिल कर सकते हैं जिसकी परिकल्पना एक स्वस्थ व स्वच्छ समाज करता है।
*नारी-गाली प्रथा उन्मूलन आंदोलन*
*_‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’ अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहीं देवता निवास करते हैं। शास्त्रों में लिखी इस बात का आज के दौर कोई महत्त्व ही नहीं रह गया है...
भारतीय संस्कृति में नारियों का स्थान ऊंचा है। यही एकमात्र कारण है कि भारत की ऐतिहासिक संस्कृति संपूर्ण विश्व में सबसे समृद्ध थी। लेकिन आज के बदले परिवेश में नारी-गाली प्रथा समाज में कोढ़ के रूप में व्याप्त हो गई है। अकारण ही किसी अन्य की गलती का खामियाजा गाली के रूप में मातृ शक्ति को भुगतना पड़ रहा है। जिसके खिलाफ आज हर व्यक्ति को सजग होने की जरूरत है। खास कर महिलाओं को इसके लिए आगे आना चाहिए।
मेरा मानना है कि गम्भीर बीमारी का आरम्भ हमेशा छोटी बीमारी से ही होता है। अपशब्द को यदि हम हल्के में लेते हैं तो कहीं न कहीं हमसे चूक हो रही है। क्योंकि वह अपशब्द उस व्यक्ति की नारी विरोधी मानसिकता को दर्शाता है। यदि समय से उसके अंदर के अपशब्द रूपी विकार को समाप्त करने का प्रयास नही होगा तो वही आगे चल कर बड़ी घटनाओं को अंजाम भी दे सकता है। क्योंकि आज समाज में एसिड अटैक, बलात्कार, भ्रूण हत्या व नारी हिंसा जैसे जघन्य अपराध जो हो रहे हैं। उसे अंजाम देने वाले भी इसी समाज के लोग हैं। यदि उनके द्वारा घटना को अंजाम देने के बाद कड़ी से कड़ी सजा मिल भी जाए तो क्या फायदा, जब उसने समाज की एक नारी की अस्मिता ही समाप्त कर दी। समय रहते यदि हम उन नारी-गाली जैसे बुनियादी विकारों को पोलियो ड्राप की भांति आंदोलन चला कर समाप्त कर सकें तो तो कालांतर में हम नारी समाज को और अधिक सुरक्षित, समृद्ध और खुशहाल बनाने में सक्षम हो सकेंगे। इस आशय से दो वर्ष पूर्व समाज को अपशब्द मुक्त बनाने के लिए नारी-गाली प्रथा उन्मूलन आंदोलन की शुरुआत हुई जिसमें एक वैचारिक क्रांति रथ रवाना किया गया। ताकि इस यात्रा के माध्यम से नारी सशक्तिकरण हेतु समाज में स्त्रियों का मान-सम्मान बढ़ाने के लिए जन सामान्य को जागरूक किया जा सकें।