उस दौरान पड़े छापों पर क्या कार्रवाई हुई कोई नहीं जानता
PC. Bhaskar.com
नोटबंदी के बाद बरामद नए नोटों का स्रोत नहीं बताने वाली सरकार नए-पुराने मामलों में राजनेताओं के यहां छापे डलवा रही है और गालियां सुन रही है। गोल पोस्ट बदलकर नियम लागू कराने वाले वित्त मंत्री दिवंगंत हो गए तो उनकी मूर्ति लग गई लेकिन नोटबंदी का नफा नुकसान नहीं मालूम हुआ। ऐसा नहीं है कि नोटबंदी से पहले के मामले निपट गए हैं या बाद के ही मामले देखे जा रहे हैं।
नोटबंदी जैसी बड़ी कार्रवाई के बाद मामलों की बाढ़ आनी ही थी और उसकी जांच के लिए अलग व्यवस्था की जानी चाहिए थी। पता नहीं क्या किया गया पर मामले की प्राथमिकता का आधार क्या है यह किसी को पता नहीं है। कभी रेसॉर्ट मालिक के यहां छापा पड़ता है कभी विपक्षी नेता या उनके परिवार के नाम नोटिस जारी होता है। और यह उसी राज्य में होता है जिस राज्य की सरकार को ‘ठीक’ करना होता है।
प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि उनके पास सबकी सूची है। सूची तो पनामा पेपर्स की भी है लेकिन उसपर पूरी शांति है। ना ही सूची के अनुसार कार्रवाई होती लगती है। चुनाव के समय रॉबर्ट वाड्रा से पूछताछ होती है फिर शांति। जिस ढंग से काम हो रहा है उसमें विपक्ष के इस आरोप में दम लगता है कि सरकार बदले की भावना से और डराने के लिए काम कर कर रही है। अर्थव्यवस्था की खराब हालत और जीडीपी घटते जाने के कई कारणों में एक यह भी है कि भारी राशि जांच के नाम पर फंसी हुई है। लोग फंसे हुए हैं। अगर अपराध हुआ है तो बेशक कार्रवाई होनी चाहिए पर कार्रवाई फंसाकर रखना नहीं है। और ना ही पुराने मामले खोदकर निकालना है और जांच के नाम पर फंसाकर रखना है।
आपको याद होगा कि नोटबंदी के तुरंत बाद छापों में नए नोट बरामद होने लगे थे। उसपर आज तक कोई स्पष्टीकरण मेरी जानकारी में तो नहीं है। जबकि निश्चित रूप से वह गंभीर मामला था। एक गलती करने के बाद कोई भी झेंपता है, सुधार करने की कोशिश करता है पर यहां तो विचित्र हालत है। सीबीआई तथा ईडी का इस्तेमाल राजनीतिक मामले निपटाने में बेशर्मी से जारी है। और इस मनमानी का विरोध नहीं होने या मिल रही सफलता का ही कारण है कि अब वकीलों को भी छापों से डराया जाने लगा है। यह अलग बात है कि हिटलर को भी गवाही देने के लिए कोर्ट में बुलाने वाले वकील हुए हैं।
नोटबंदी के तुरंत बाद आयकर छापों से संबंधित मामलों में क्या हुआ किसी को पता नहीं है। पर सरकार नए मामले बनाती जा रही है। कहने की जरूरत नहीं है कि इसका असर देश में कारोबार और अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। शुरुआत नोटबंदी और जीएसटी से हुई थी और वह सही हो या गलत, अब आगे बढ़ने की जरूरत है और मौजूदा जरूरतों के अनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए।
कोविड-19 का संकट अपनी जगह है ही। पर सरकार इससे निपटने में बिल्कुल लाचार लगती है। या फिर उसे इसकी जरूरत ही नहीं समझ में आ रही है।
आयकर छापों के 2016 के ये मामले (एनडीटीवी डॉट कॉम की खबरों के अनुसार) अगर चार साल बीतने पर भी नहीं निपटाए गए हैं तो आप समझ सकते हैं कि अर्थव्यवस्था की खराब हालत से निपटने के लिए सरकार की कोशिशें कितनी गंभीर हैं।
1. एक दिसंबर 2016 की खबर के मुताबिक बेंगलुरू में आयकर छापे में छह करोड़ रुपए मिले थे। ज्यादातर2000 के नए नोट थे।
2. नौ दिसंबर 2016 की खबर के मुताबिक चेन्नई में छापे में 90 करोड़ की नकदी पकड़ी। आठ करोड़ के नए नोट मिले।
3. नौ दिसंबर 2016 की खबर के मुताबिक एक्सिस बैंक की चांदनी चौक शाखा पर छापा, फर्जी खातों में करोड़ों जमा होने की खबर थी
4. 11 दिसंबर 2016 की खबर के मुताबिक, ग्रेटर कैलाश में लॉ फर्म के दफ्तर पर छापा, जब्त किए गए 10 करोड़ रुपये में ढाई करोड़ के नए नोट थे
5. 14 दिसंबर 2016 की खबर थी, चंडीगढ़ में छापे में2.19 करोड़ जब्त हुए, 69.35 लाख की राशि नए नोट में बरामद हुई थी
6. 15 दिसंबर 2016 की खबर के मुताबिक, दिल्ली में रीयल इस्टेट एजेंट के घर छापे में नए व पुराने नोट में 64 लाख84 हजार रुपए मिले थे।
7. 18 दिसंबर 2016 की खबर के मुताबिक, सूरत में फायनेंसर के यहां छापे में10.50 करोड़ की संपत्ति जब्त की थी। इसमें 1.05 करोड़ रुपए नए नोट में थे।
8. 22 दिसंबर 2016 की खबर के मुताबिक, तमिलनाडु के मुख्य सचिव के यहां छापे में 30 लाख के नए नोट जब्त किए गए
9. 27 दिसंबर 2016 की खबर के मुताबिक, त्र्यंबकेश्वर के तीन बड़े पुरोहितों के घर पर इनकम टैक्स का छापा पड़ा था लेकिन आयकर विभाग ने जांच के दायरे में आए पुरोहितों के नाम और उनसे जब्त संपत्ति के बारे में कोई आधिकारिक ऐलान नहीं किया था
10. आठ जनवरी 2017 की खबर थी, नोटबंदी के बाद आयकर विभाग ने4,807 करोड़ रुपये की अघोषित आय का पता लगाया, 112 करोड़ रुपये के नए नोट जब्त।
आधिकारिक सूत्रों ने तब बताया था कि टैक्स अधिकारियों ने 8 नवंबर 2016 को घोषित नोटबंदी के बाद से आयकर कानून के प्रावधानों के तहत 1,138 तलाशी, सर्वे और जांच कार्रवाई की। इतना ही नहीं विभाग ने टैक्स चोरी तथा हवाला जैसे आरोपों को लेकर 5,184 नोटिस जारी किए।
उल्लेखनीय है कि सरकारी बैंकों ने उस समय आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी देने से मना कर दिया था और बाद में गुजरात के सहकारी बैंकों में करोड़ो रुपए नकद जमा कराने की खबरों का कोई फॉलोअप नहीं है। बिहार-यूपी में नोटबंदी से कुछ ही पहले नकद पैसे देकर सरकारी पार्टी के कार्यालय के लिए जमीन खरीदने की खबर आई थी पर आगे कोई कोई कार्रवाई नहीं हुई।
कुल मिलाकर नोटबंदी से कोई फायदा नहीं हुआ, नुकसान कम रखने की कोशिश भी नहीं हुई और जो मामले पकड़े गए उन्हें भी नहीं निपटाया गया।
जाहिर है, इसका असर कारोबार और अर्थव्यवस्था पर हुआ होगा पर उसे भी ठीक करने की जरूरत नहीं समझी गई है। ना ही इतनी पारदर्शिता है कि नोटबंदी का नफा नुकसान बताया जाए।
भाजपा नेता और पूर्व वित्त मंत्री दिवंगत अरुण जेटली की प्रतिमा का अनावरण फिरोजशाह कोटला मैदान में किया गया। इसका नाम अब अरुण जेटली स्टेडियम है। जेटली की 68 वीं जयंती पर इस अनावरण से पहले मशहूर क्रिकेट खिलाड़ी बिशन सिंह बेदी ने क्रिकेट मैदान में राजनेता की प्रतिमा लगाए जाने का विरोध किया और कहा कि कोटला के स्टैंड से उनका नाम हटा दिया जाए। उनके नाम पर इस स्टेडियम में एक स्टैंड है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह आर्टिकल उनके फेसबुक वॉल से साभार प्रकाशित किया गया है।)
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नोटबंदी के बाद बरामद नए नोटों का स्रोत नहीं बताने वाली सरकार नए-पुराने मामलों में राजनेताओं के यहां छापे डलवा रही है और गालियां सुन रही है। गोल पोस्ट बदलकर नियम लागू कराने वाले वित्त मंत्री दिवंगंत हो गए तो उनकी मूर्ति लग गई लेकिन नोटबंदी का नफा नुकसान नहीं मालूम हुआ। ऐसा नहीं है कि नोटबंदी से पहले के मामले निपट गए हैं या बाद के ही मामले देखे जा रहे हैं।
नोटबंदी जैसी बड़ी कार्रवाई के बाद मामलों की बाढ़ आनी ही थी और उसकी जांच के लिए अलग व्यवस्था की जानी चाहिए थी। पता नहीं क्या किया गया पर मामले की प्राथमिकता का आधार क्या है यह किसी को पता नहीं है। कभी रेसॉर्ट मालिक के यहां छापा पड़ता है कभी विपक्षी नेता या उनके परिवार के नाम नोटिस जारी होता है। और यह उसी राज्य में होता है जिस राज्य की सरकार को ‘ठीक’ करना होता है।
प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि उनके पास सबकी सूची है। सूची तो पनामा पेपर्स की भी है लेकिन उसपर पूरी शांति है। ना ही सूची के अनुसार कार्रवाई होती लगती है। चुनाव के समय रॉबर्ट वाड्रा से पूछताछ होती है फिर शांति। जिस ढंग से काम हो रहा है उसमें विपक्ष के इस आरोप में दम लगता है कि सरकार बदले की भावना से और डराने के लिए काम कर कर रही है। अर्थव्यवस्था की खराब हालत और जीडीपी घटते जाने के कई कारणों में एक यह भी है कि भारी राशि जांच के नाम पर फंसी हुई है। लोग फंसे हुए हैं। अगर अपराध हुआ है तो बेशक कार्रवाई होनी चाहिए पर कार्रवाई फंसाकर रखना नहीं है। और ना ही पुराने मामले खोदकर निकालना है और जांच के नाम पर फंसाकर रखना है।
आपको याद होगा कि नोटबंदी के तुरंत बाद छापों में नए नोट बरामद होने लगे थे। उसपर आज तक कोई स्पष्टीकरण मेरी जानकारी में तो नहीं है। जबकि निश्चित रूप से वह गंभीर मामला था। एक गलती करने के बाद कोई भी झेंपता है, सुधार करने की कोशिश करता है पर यहां तो विचित्र हालत है। सीबीआई तथा ईडी का इस्तेमाल राजनीतिक मामले निपटाने में बेशर्मी से जारी है। और इस मनमानी का विरोध नहीं होने या मिल रही सफलता का ही कारण है कि अब वकीलों को भी छापों से डराया जाने लगा है। यह अलग बात है कि हिटलर को भी गवाही देने के लिए कोर्ट में बुलाने वाले वकील हुए हैं।
नोटबंदी के तुरंत बाद आयकर छापों से संबंधित मामलों में क्या हुआ किसी को पता नहीं है। पर सरकार नए मामले बनाती जा रही है। कहने की जरूरत नहीं है कि इसका असर देश में कारोबार और अर्थव्यवस्था पर पड़ रहा है। शुरुआत नोटबंदी और जीएसटी से हुई थी और वह सही हो या गलत, अब आगे बढ़ने की जरूरत है और मौजूदा जरूरतों के अनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए।
कोविड-19 का संकट अपनी जगह है ही। पर सरकार इससे निपटने में बिल्कुल लाचार लगती है। या फिर उसे इसकी जरूरत ही नहीं समझ में आ रही है।
आयकर छापों के 2016 के ये मामले (एनडीटीवी डॉट कॉम की खबरों के अनुसार) अगर चार साल बीतने पर भी नहीं निपटाए गए हैं तो आप समझ सकते हैं कि अर्थव्यवस्था की खराब हालत से निपटने के लिए सरकार की कोशिशें कितनी गंभीर हैं।
1. एक दिसंबर 2016 की खबर के मुताबिक बेंगलुरू में आयकर छापे में छह करोड़ रुपए मिले थे। ज्यादातर2000 के नए नोट थे।
2. नौ दिसंबर 2016 की खबर के मुताबिक चेन्नई में छापे में 90 करोड़ की नकदी पकड़ी। आठ करोड़ के नए नोट मिले।
3. नौ दिसंबर 2016 की खबर के मुताबिक एक्सिस बैंक की चांदनी चौक शाखा पर छापा, फर्जी खातों में करोड़ों जमा होने की खबर थी
4. 11 दिसंबर 2016 की खबर के मुताबिक, ग्रेटर कैलाश में लॉ फर्म के दफ्तर पर छापा, जब्त किए गए 10 करोड़ रुपये में ढाई करोड़ के नए नोट थे
5. 14 दिसंबर 2016 की खबर थी, चंडीगढ़ में छापे में2.19 करोड़ जब्त हुए, 69.35 लाख की राशि नए नोट में बरामद हुई थी
6. 15 दिसंबर 2016 की खबर के मुताबिक, दिल्ली में रीयल इस्टेट एजेंट के घर छापे में नए व पुराने नोट में 64 लाख84 हजार रुपए मिले थे।
7. 18 दिसंबर 2016 की खबर के मुताबिक, सूरत में फायनेंसर के यहां छापे में10.50 करोड़ की संपत्ति जब्त की थी। इसमें 1.05 करोड़ रुपए नए नोट में थे।
8. 22 दिसंबर 2016 की खबर के मुताबिक, तमिलनाडु के मुख्य सचिव के यहां छापे में 30 लाख के नए नोट जब्त किए गए
9. 27 दिसंबर 2016 की खबर के मुताबिक, त्र्यंबकेश्वर के तीन बड़े पुरोहितों के घर पर इनकम टैक्स का छापा पड़ा था लेकिन आयकर विभाग ने जांच के दायरे में आए पुरोहितों के नाम और उनसे जब्त संपत्ति के बारे में कोई आधिकारिक ऐलान नहीं किया था
10. आठ जनवरी 2017 की खबर थी, नोटबंदी के बाद आयकर विभाग ने4,807 करोड़ रुपये की अघोषित आय का पता लगाया, 112 करोड़ रुपये के नए नोट जब्त।
आधिकारिक सूत्रों ने तब बताया था कि टैक्स अधिकारियों ने 8 नवंबर 2016 को घोषित नोटबंदी के बाद से आयकर कानून के प्रावधानों के तहत 1,138 तलाशी, सर्वे और जांच कार्रवाई की। इतना ही नहीं विभाग ने टैक्स चोरी तथा हवाला जैसे आरोपों को लेकर 5,184 नोटिस जारी किए।
उल्लेखनीय है कि सरकारी बैंकों ने उस समय आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी देने से मना कर दिया था और बाद में गुजरात के सहकारी बैंकों में करोड़ो रुपए नकद जमा कराने की खबरों का कोई फॉलोअप नहीं है। बिहार-यूपी में नोटबंदी से कुछ ही पहले नकद पैसे देकर सरकारी पार्टी के कार्यालय के लिए जमीन खरीदने की खबर आई थी पर आगे कोई कोई कार्रवाई नहीं हुई।
कुल मिलाकर नोटबंदी से कोई फायदा नहीं हुआ, नुकसान कम रखने की कोशिश भी नहीं हुई और जो मामले पकड़े गए उन्हें भी नहीं निपटाया गया।
जाहिर है, इसका असर कारोबार और अर्थव्यवस्था पर हुआ होगा पर उसे भी ठीक करने की जरूरत नहीं समझी गई है। ना ही इतनी पारदर्शिता है कि नोटबंदी का नफा नुकसान बताया जाए।
भाजपा नेता और पूर्व वित्त मंत्री दिवंगत अरुण जेटली की प्रतिमा का अनावरण फिरोजशाह कोटला मैदान में किया गया। इसका नाम अब अरुण जेटली स्टेडियम है। जेटली की 68 वीं जयंती पर इस अनावरण से पहले मशहूर क्रिकेट खिलाड़ी बिशन सिंह बेदी ने क्रिकेट मैदान में राजनेता की प्रतिमा लगाए जाने का विरोध किया और कहा कि कोटला के स्टैंड से उनका नाम हटा दिया जाए। उनके नाम पर इस स्टेडियम में एक स्टैंड है।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, यह आर्टिकल उनके फेसबुक वॉल से साभार प्रकाशित किया गया है।)