वेंटीलेटर की जरूरत, सरकारी खरीद और दान चूसक पीएम केयर्स फंड

Written by Sanjay Kumar Singh | Published on: June 25, 2020
मेड इन इंडिया की राजनीति

- एक अनुमान के अनुसार जून में 75,000 वेंटीलेटर की जरूरत होनी थी
- सरकारी खरीद में 60,000 वेंटीलेटर के ऑर्डर दिए जा चुके हैं
- पीएम केयर्स से 50,000 वेंटीलेटर के ऑर्डर दिए गए हैं (अलग लगते हैं)
- हफ्फिंगटन पोस्ट में 10,000 वेंटीलेटर की विश्वसनीयता पर खबर
- पीएम केयर्स के आपूर्तिकर्ता भी वही हैं पर उसकी खबर नहीं
- जून बीतने को आया नाम मात्र के वेंटीलेटर की डिलीवरी हुई है

सरकार द्वारा नियुक्त दो समितियों ने कम लागत वाले 10,000 वेंटीलेटर की विश्वसनीयता और क्षमता पर चिन्ता जताई है। हफ्फिंगटन पोस्ट डॉट इन ने इस आशय की खबर दी है। एक खबर में कहा गया है कि नरेन्द्र मोदी की सरकार ने कोविड-19 महामारी के मद्देनजर ये ऑर्डर दिए हैं और हफ्फपोस्ट इंडिया ने कुछ ऐसे दस्तावेज देखे हैं जिससे यह जानकारी मिली है। इस खबर के अनुसार एक जून 2020 के एक चिकित्सीय मूल्यांकन रिपोर्ट के अनुसार चिकित्सकों की एक कमेटी ने कहा है कि मोदी सरकार भारतीय स्टार्ट अप एजीवीए हेल्थकेयर द्वारा निर्मित इन वेंटीलेटर्स को खरीद सकती है पर यह भी कहा कि एजीवीए के कोविड मॉडल वेंटीलेटर को उच्च स्तर के वेंटीलेटर, जो आईसीयू में उपयोग किए जाते हैं, का विकल्प या पर्याय नहीं माना जाना चाहिए। विशेषज्ञों ने कहा है कि जहां इन वेंटीलेटर्स का उपयोग किया जाए वहां बैकअप वेंटीलेटर का प्रावधान होना चाहिए।

खबर के अनुसार एक जून की रिपोर्ट सरकारी मूल्यांकन की दूसरी रिपोर्ट है। इससे पहले की रिपोर्ट दो हफ्ते पहले यानी 16 मई की है। इसमें एक अन्य चिकित्सीय मूल्यांकन समिति ने कहा था कि मंजूर किए जाने से पहले एजीवीए के उपकरणों के लिए अतिरिक्त तकनीकी वैलीडेशन (पुष्टिकरण) की आवश्यकता है। हफ्फिंगटन पोस्ट की यह खबर आज की ही है और सुबह 7:25 पर पोस्ट की गई है। समर्थ बंसल और अमन सेठी की बाइलाइन वाली इस खबर में बताया गया है कि 10,000 एजीवीए वेंटीलेटर के लिए 27 मार्च को ऑर्डर दिए गए थे और यह केंद्र सरकार की उस योजना का भाग है जिसके तहत कोविड के मरीजों की संख्या में अनुमानित वृद्धि के मद्देनजर अस्पतालों की जरूरतें पूरी करने के लिए 50,000 वेंटीलेटर खरीदे जाने हैं।

दुनिया भर में वेंटीलेटर की कमी के मद्देनजर भारतीय कंपनियों को आमंत्रित किया गया था कि वे इस शर्त पर निविदा में भाग लें कि सरकार उनके बनाए उपकरण तभी स्वीकार करेगी जब एक्सपर्ट पैनल इन्हें एप्रूव या मंजूर करेगा। इस खबर के अनुसार सरकारी अनुमान था कि कोविड से लड़ने के लिए जून में 75,000 वेंटीलेटर की जरूरत होगी और 60,000 वेंटीलेटर खरीदने की प्रक्रिया शुरू की गई। भारतीय निर्माताओं को 58,500 उपकरणों के लिए ऑर्डर दिए गए। इसका विवरण इस प्रकार है : 1)भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड - 30,000; 2) एजीवीए हेल्थकेयर - 10,000; 3) आंध्रा मेडी टेक जोन (एएमटीजेड) - 13500; 4) ज्योति सीएनसी - 5,000 और 5) अन्य कुल 59948। एजीवीए के मामले में साफ है कि उसके वेंटीलेटर दोयम दर्जे के हैं और इनका उपयोग किया जाए तो बैकअप वेंटीलेटर भी रखा जाए। ऐसे में यह समझना मुश्किल है कि इन्हें खरीदा ही क्यों जा रहा है।

इसे खरीदने का मतलब मोटा मोटी यह लगाया जाए कि 10 के लिए पांच बैक अप मशीनें रखनी होंगी तो सवाल यह है कि जब वेंटीलेतर उपलब्ध ही नहीं हैं, जून का महीना निकल चुका है तो बिना बैक अप के ये किस काम आएंगे या बैक अप कहां मिलेगा? खबर में एजीवीए के वेंटीलेटर पर विस्तार से चर्चा है। कमेंट बॉक्स में लिंक है। आप चाहे तो देख सकते हैं। वेंटीलेटर के सरकारी खरीद की पहली खबर एक मई की है और तब 60884 वेंटीलेटर का ऑर्डर दिए जाने की सूचना थी। देश में वेंटीलेटर की कमी है। दुनिया भर में उपलब्ध नहीं है और इतनी निर्माण क्षमता नहीं है कि समय पर पर्याप्त संख्या में वेंटीलेटर उपलब्ध हो जाए - यह सब पुरानी सूचना है। यह भी कि, कोरोना के मामले बढ़ेंगे तो वेंटीलेटर की जरूरत पड़ेगी। यह जानकारी फरवरी मार्च में सबको थी। पीएम केयर्स ने कल बताया वह अपने धन से देश में बने वेंटीलेटर खरीद रहा है, जो अभी बन रहे हैं, आ रहे हैं। और आज सरकारी खरीद की यह सूचना। दोनों मिलाकर एक लाख दस हजार वेंटीलेटर हो जा रहे हैं जबकि जरूरत 75,000 की ही थी और उसका समय पर निकल चला।

इससे पहले, 13 मई को पीएम केयर्स ने वेंटीलेटर खरीदने के लिए 2100 करोड़ रुपए देने की घोषणा की थी। 16 जून को भाजपा महासचिव (संगठन) बीएल संतोष ने एक वेंटीलेटर की तस्वीर पोस्ट की और दावा किया कि कुल मिलाकर इनकी संख्या इतनी होगी जितनी 65 साल में देश में खरीदे गए हैं। पता नहीं, यह संयोग था या प्रयोग पर तथ्य है कि उसी दिन ट्वीटर पर यूएसएआईडी (यूनाइटेड एजेंसी फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट) इंडिया ने दूसरी तस्वीर पोस्ट की हैं और लिखा है कि यह 100 वेंटीलेटर की पहली खेप है। यानी 100 वेंटीलेटर चुपचाप आ गए और आने पर तस्वीर के साथ सूचना दी गई। एक फोटो से 50,000 ऑर्डर का दावा नहीं किया गया। पीएम केयर्स और यूएसएआईडी के वेंटीलेटर की चर्चा सोशल मीडिया पर एक ही दिन होने का कारण मुझे नहीं मालूम है पर आरोप लगाने वाले ने यह आरोप भी लगा ही दिया है कि यूएसएआईडी के वेंटीलेटर पर पीएम केयर्स का स्टीकर चिपका दिया गया था!

एक मई की खबर के अनुसार सरकारी खरीद के तहत 59884 वेंटीलेटर देसी निर्माताओं द्वारा बनाए जाने थे और 1000 का आयात किया जाना था। यही नहीं, कल (मंगलवार, 23 जून 2020 को) प्रधानमंत्री कार्यालय से एक विज्ञप्ति जारी कर पीएम केयर्स के धन से वेंटीलेटर खरीदने की सूचना दी गई थी। पीआईबी की साइट पर यह विज्ञप्ति हिन्दी में उपलब्ध है। इसका शीर्षक है, कोविड-19 से लड़ाई में पीएम केयर्स फंड के अंतर्गत दिए जाएंगे 50,000 मेड इन इंडिया वेंटिलेटर। इसके मुताबिक, पीएम केयर्स फंड ट्रस्ट ने सभी राज्यों/ संघ शासित क्षेत्रों में सरकार द्वारा चलाए जा रहे कोविड अस्पतालों को 50,000 ‘मेड इन इंडिया’ वेंटिलेटर की आपूर्ति के लिए 2,000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।

इसके अलावा प्रवासी कामगारों के कल्याण के लिए 1,000 करोड़ रुपये की धनराशि आवंटित की गई है। यह पुरानी जानकारी है और कल फिर जारी की गई। कल की ही विज्ञप्ति में बताया गया है कि 50,000 वेंटिलेटर में से 30,000 वेंटिलेटर एम/एस (यह अंग्रेजी के मेसर्स या हिन्दी में सर्वश्री के लिए अंग्रेजी का संक्षिप्त रूप है और प्रधानमंत्री कार्यालय के लिए अनुवाद का स्तर) भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड द्वारा बनाए जा रहे हैं। बाकी 20,000 वेंटिलेटर एग्वा हैल्थकेयर (10,000), एएमटीजेड बेसिक (5,650), एएमटीजेड हाई एंड (4,000) और एलायड मेडिकल (350) द्वारा बनाए जा रहे हैं। विज्ञप्ति में बनाए औऱ सप्लाई किए जा चुके 1340 वेंटीलेटर के विवरण के साथ यह दावा भी किया गया है कि इस महीने के अंत तक 14,000 और वेंटीलेटर की आपूर्ति कर दी जाएगी।

इससे पहले गुजरात के सरकारी अस्पतालों में नकली या दोयम दर्जे के वेंटीलेटर या अंबु-बैग को वेंटिलेटर बताकर लगाने या वेंटीलेटर नहीं बताने जैसे आरोपों के साथ सप्लाई/खरीद/दान की खबर और दावे छपे थे। इससे पहले कि इस मामले में कुछ खुलासा हो पाता और यह पता चलता कि मौत का कारण नकली या दोयम दर्जे के वेंटीलेटर हैं कि नहीं, गुजरात में सरकारी अस्पताल की खराब स्थिति पर सख्त टिप्पणी करने वाली अदालत की बेंच बदल गई और सारी स्थिति अखबारों में या दूर बैठे लोगों के लिए ठीक (अनजान) हो गई। अहमदाबाद के कलेक्टर को बिना सूचना हटाकर एक अनजान से पद पर दिल्ली भेज दिया गया। विजय रुपानी की सरकार पूरी तरह घिर गई लेकिन जैसा हम जानते हैं, भाजपा में इस्तीफे नहीं होते।

बाकी ख़बरें