"राज्यसभा ने बुधवार को उत्तर प्रदेश के गोंड समुदाय को अनुसूचित जाति SC से निकाल कर अनुसूचित जनजाति ST सूची में डालने के प्रावधान वाले विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया। लोकसभा पहले ही इस विधेयक को पारित कर चुकी है। यानी राज्यसभा के साथ विधेयक पर संसद की मुहर लग गई है"
प्रतीकात्मक तस्वीर
उत्तर प्रदेश के चंदौली, कुशीनगर, संतकबीर नगर और संत रविदास नगर के 4 जिलों में रह रहे गोंड समुदाय (Gond community) के लोगों को भी अनुसूचित जनजाति श्रेणी में शामिल करने पर संसद ने मुहर लगा दी है। यूपी के गोंड समुदाय को जनजाति में शामिल करने से संबंधित संविधान (अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति) आदेश (दूसरा संशोधन) विधेयक 2022 को राज्यसभा ने बुधवार को ध्वनिमत से पारित कर दिया। इसके साथ ही इस विधेयक पर संसद की मुहर लग गयी क्योंकि लोकसभा इस विधेयक को एक अप्रैल 2022 को ही पारित कर चुकी है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इसके जरिए संविधान (जनजाति) (उप्र) आदेश 1967 और संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 में बदलाव किया जाएगा। इस विधेयक पर कल 3 घंटे तक चर्चा हुई थी और बुधवार को केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने राज्यसभा में इस पर जबाव दिया। इसके बाद इस विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। मुंडा ने कहा कि इस विधेयक पर चर्चा में 26 सदस्यों ने अपने विचार और सुझाव रखे थे। उन्होंने कांग्रेस पर जनजातियों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाते हुये कहा कि यदि यह पार्टी सच्चे अर्थों में आदिवासी समर्थक होती तो राष्ट्रपति चुनाव में वह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू के विरूद्ध अपना प्रत्याशी नहीं उतारती।
मुंडा ने कहा कि मुर्मू देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनी हैं और इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने आदिवासियों के हितों की न सिर्फ चिंता की है बल्कि देश के सर्वोच्च पद पर इस समुदाय के व्यक्ति को लाये हैं। मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर पूरे देश में 15 नवंबर को आदिवासी स्वाभिमान दिवस पूरे उत्साह से मनाया गया।
उन्होंने कहा कि पीएम मोदी की अगुवाई वाली सरकार पूरे देश के आदिवासियों के हितों की बात ही नहीं करती बल्कि उसके कल्याण के साथ ही सामाजिक आर्थिक विकास को भी महत्व दे रही है। इसके लिए बजटीय प्रावधान भी किये जाते रहे हैं और आश्वयकता अनुरूप धनराशि भी उपलब्ध करायी जा रही है। उन्होंने कहा कि आदिवासियों को वामपंथियों ने गुमराह कर हथियार उठाने के लिए उकसाया और उसे लोकतंत्र विरोधी साबित करने की कोशिश की गयी जबकि जनजाति लोकतंत्र हितैषी और लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले हैं। मुंडा के जबाव के बाद सदन ने इस विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया। कल चर्चा में भी सभी दलों ने इस विधेयक का समर्थन करने की बात कही थी।
जनजातीय कार्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि 1980 में पहली बार एक पत्र मिला था कि उत्तर प्रदेश के एक इलाके में एक विशेष जनजाति के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। उन्होंने कहा कि इस पत्र में मांग की गयी थी कि इस समुदाय के लोगों को संविधान के तहत न्याय मिले। उन्होंने कहा कि यह पत्र तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लिखा गया था और उसके जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा था कि समय आने पर इस बारे में विचार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस समुदाय के लोगों की मांग का समाधान करने में विलंब हुआ और इस विधेयक से ‘‘हमारी इच्छाशक्ति का पता चलता है।’’
मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में इस सरकार ने ऐसी समस्याओं का समाधान करना शुरू कर दिया है और पिछले सत्र में भी ऐसा ही एक विधेयक लाया गया था। उन्होंने आश्वासन दिया कि सरकार इस तरह की मांगों को पूरा करने के मकसद से काम करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सदस्य यह दावा करते रहे हैं कि उनकी पूर्ववर्ती सरकारें आदिवासियों की हितैषी रही हैं। उन्होंने कहा कि किंतु इस मामले की फाइल 1980 से सरकार के पास है जो सारी सच्चाई स्वयं बता रही है। उन्होंने कहा कि औद्योगिकीकरण और नक्सलवाद के नाम पर देश में आदिवासियों की जमीन को छीना गया।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात को लेकर कार्य योजना बनायी है कि 21वीं शताब्दी में कोई भी आदिवासी पुरुष या महिला विकास के मामले में पीछे नहीं रहे। वहीं, जनजातीय कार्यों के लिए सरकार के बजटीय आवंटन को लेकर विपक्ष के सदस्यों द्वारा उठाये गये प्रश्नों के जवाब में मंत्री ने कहा कि 2013-14 में अनुसूचित जनजाति मामलों के लिए कुल बजटीय आवंटन 24 हजार 594 करोड़ रूपये था जो 2021-22 में बढ़कर 85 हजार 930 करोड़ रूपये हो गया है। उन्होंने कहा कि यह 270 प्रतिशत से अधिक वृद्धि है और इससे सरकार की मंशा का पता चलता है।
विधेयक के उद्देश्यों और कारणों में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार की सिफारिश के आधार पर यह प्रस्ताव किया गया है कि संविधान अनुसूचित जातियां आदेश 1950 और संविधान अनुसूचित जनजातियां (उत्तर प्रदेश) आदेश 1967 का संशोधन करके उत्तर प्रदेश राज्य के संबंध में इनकी सूचियों में बदलाव किया जाए। यह विधेयक संविधान अनुसूचित जातियां आदेश 1950 की अनुसूची के भाग 18- उत्तर प्रदेश की प्रविष्टि 36 में संत कबीर नगर, कुशीनगर, चंदौली और संत रविदास नगर जिलों से ‘गोंड’ समुदाय को लोप करने के लिये है।
अभी तक 13 जिलों में ही मिला था ST का दर्जा
अभी तक गोंड और इनसे जुड़ी उपजातियों को सिर्फ 13 जिलों में ही एसटी का दर्जा मिला हुआ था। अब इन जिलों से ही काटकर बनाए गए चार नए जिलों चंदौली, संत रविदासनगर (भदोही), संत कबीरनगर और कुशीनगर में भी यह सुविधा मिलेगी। 2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश में गोंड और उनसे जुड़ी पांच उपजातियों धुरिया, नायक, ओझा, पठारी और राजगोंड की आबादी 5 लाख 69 हजार 35 है। प्रदेश में 13 जिलों में इन्हें पहले से एसटी का दर्जा हासिल है। ये जिले हैं- महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, गोरखपुर, देवरिया, मऊ, आजमगढ़, जौनपुर, बलिया, गाजीपुर, वाराणसी, मिर्जापुर और सोनभद्र। नवसृजित जिलों चंदौली, संत रविदास नगर (भदोही), संत कबीरनगर और कुशीनगर समेत 62 जिलों में इन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा ही हासिल था। अब इन्हें नव सृजित इन चारों जिलों में एसटी की श्रेणी में शामिल कर लिया गया है। यानी प्रदेश के कुल 17 जिलों में अब गोंड और उसकी उपजातियों को एसटी का प्रमाणपत्र जारी हो सकेगा।
कांग्रेस ने किया समर्थन, सरकार पर लगाया आरोप
यह उत्तर प्रदेश के चार जिलों चंदौली, कुशीनगर, संत कबीरनगर और संत रविदास नगर में गोंड समुदाय को अनुसूचित जाति के रूप में अनुसूचित जाति के आदेश में संशोधन करने वाला है। कांग्रेस के प्रमोद तिवारी ने बिल का समर्थन किया, लेकिन हैरानी जताई कि प्रस्तावित कानून के दायरे से अन्य समुदायों को क्यों बाहर रखा गया। उन्होंने आरोप लगाया कि जब भी केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार सत्ता में आती है तो देश में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अत्याचार बढ़ जाते हैं।
तृणमूल कांग्रेस ने भी किया समर्थन, उठाए सवाल
तृणमूल कांग्रेस के शांतनु सेन ने कहा, "मैं इस बिल का समर्थन करता हूं, लेकिन मैं इस सरकार द्वारा एससी और एसटी के कल्याण के नाम पर किए जाने वाले प्रतीकवाद का विरोध करता हूं।" उन्होंने सरकार को सुझाव दिया कि "अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए घड़ियाली आंसू बहाने के बजाय वास्तव में देश के पिछड़े समुदायों की भलाई के लिए सकारात्मक सोचने का प्रयास करें।" सेन ने कहा कि सरकार को अलग-अलग बिल लाने के बजाय अलग-अलग राज्यों में कुछ अन्य समुदायों को शामिल करने के लिए व्यापक उपाय करने चाहिए थे।
विपक्ष ने किया समर्थन, सरकार को दिया सुझाव
सदन में विपक्षी सदस्यों ने पार्टी लाइन से हटकर प्रस्तावित कानून का समर्थन किया लेकिन अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की श्रेणियों में अधिक समुदायों को शामिल करने का आह्वान किया। बीजद के निरंजन बिशी, वाईएसआरसीपी के सुभाष चंद्र बोस पिल्ली और सीपीआई (एम) के वी शिवदासन ने विधेयक का समर्थन किया। वहीं बसपा के रामजी ने भी बिल का समर्थन किया लेकिन दावा किया कि देश में आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार बढ़ गए हैं। उन्होंने ऐसी घटनाओं के अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का आह्वान किया।
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प्रतीकात्मक तस्वीर
उत्तर प्रदेश के चंदौली, कुशीनगर, संतकबीर नगर और संत रविदास नगर के 4 जिलों में रह रहे गोंड समुदाय (Gond community) के लोगों को भी अनुसूचित जनजाति श्रेणी में शामिल करने पर संसद ने मुहर लगा दी है। यूपी के गोंड समुदाय को जनजाति में शामिल करने से संबंधित संविधान (अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति) आदेश (दूसरा संशोधन) विधेयक 2022 को राज्यसभा ने बुधवार को ध्वनिमत से पारित कर दिया। इसके साथ ही इस विधेयक पर संसद की मुहर लग गयी क्योंकि लोकसभा इस विधेयक को एक अप्रैल 2022 को ही पारित कर चुकी है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, इसके जरिए संविधान (जनजाति) (उप्र) आदेश 1967 और संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश 1950 में बदलाव किया जाएगा। इस विधेयक पर कल 3 घंटे तक चर्चा हुई थी और बुधवार को केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने राज्यसभा में इस पर जबाव दिया। इसके बाद इस विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। मुंडा ने कहा कि इस विधेयक पर चर्चा में 26 सदस्यों ने अपने विचार और सुझाव रखे थे। उन्होंने कांग्रेस पर जनजातियों के साथ भेदभाव करने का आरोप लगाते हुये कहा कि यदि यह पार्टी सच्चे अर्थों में आदिवासी समर्थक होती तो राष्ट्रपति चुनाव में वह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की प्रत्याशी द्रौपदी मुर्मू के विरूद्ध अपना प्रत्याशी नहीं उतारती।
मुंडा ने कहा कि मुर्मू देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनी हैं और इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी धन्यवाद के पात्र हैं जिन्होंने आदिवासियों के हितों की न सिर्फ चिंता की है बल्कि देश के सर्वोच्च पद पर इस समुदाय के व्यक्ति को लाये हैं। मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान पर पूरे देश में 15 नवंबर को आदिवासी स्वाभिमान दिवस पूरे उत्साह से मनाया गया।
उन्होंने कहा कि पीएम मोदी की अगुवाई वाली सरकार पूरे देश के आदिवासियों के हितों की बात ही नहीं करती बल्कि उसके कल्याण के साथ ही सामाजिक आर्थिक विकास को भी महत्व दे रही है। इसके लिए बजटीय प्रावधान भी किये जाते रहे हैं और आश्वयकता अनुरूप धनराशि भी उपलब्ध करायी जा रही है। उन्होंने कहा कि आदिवासियों को वामपंथियों ने गुमराह कर हथियार उठाने के लिए उकसाया और उसे लोकतंत्र विरोधी साबित करने की कोशिश की गयी जबकि जनजाति लोकतंत्र हितैषी और लोकतंत्र में विश्वास रखने वाले हैं। मुंडा के जबाव के बाद सदन ने इस विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया। कल चर्चा में भी सभी दलों ने इस विधेयक का समर्थन करने की बात कही थी।
जनजातीय कार्यमंत्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि 1980 में पहली बार एक पत्र मिला था कि उत्तर प्रदेश के एक इलाके में एक विशेष जनजाति के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं। उन्होंने कहा कि इस पत्र में मांग की गयी थी कि इस समुदाय के लोगों को संविधान के तहत न्याय मिले। उन्होंने कहा कि यह पत्र तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को लिखा गया था और उसके जवाब में प्रधानमंत्री ने कहा था कि समय आने पर इस बारे में विचार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस समुदाय के लोगों की मांग का समाधान करने में विलंब हुआ और इस विधेयक से ‘‘हमारी इच्छाशक्ति का पता चलता है।’’
मुंडा ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में इस सरकार ने ऐसी समस्याओं का समाधान करना शुरू कर दिया है और पिछले सत्र में भी ऐसा ही एक विधेयक लाया गया था। उन्होंने आश्वासन दिया कि सरकार इस तरह की मांगों को पूरा करने के मकसद से काम करने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सदस्य यह दावा करते रहे हैं कि उनकी पूर्ववर्ती सरकारें आदिवासियों की हितैषी रही हैं। उन्होंने कहा कि किंतु इस मामले की फाइल 1980 से सरकार के पास है जो सारी सच्चाई स्वयं बता रही है। उन्होंने कहा कि औद्योगिकीकरण और नक्सलवाद के नाम पर देश में आदिवासियों की जमीन को छीना गया।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात को लेकर कार्य योजना बनायी है कि 21वीं शताब्दी में कोई भी आदिवासी पुरुष या महिला विकास के मामले में पीछे नहीं रहे। वहीं, जनजातीय कार्यों के लिए सरकार के बजटीय आवंटन को लेकर विपक्ष के सदस्यों द्वारा उठाये गये प्रश्नों के जवाब में मंत्री ने कहा कि 2013-14 में अनुसूचित जनजाति मामलों के लिए कुल बजटीय आवंटन 24 हजार 594 करोड़ रूपये था जो 2021-22 में बढ़कर 85 हजार 930 करोड़ रूपये हो गया है। उन्होंने कहा कि यह 270 प्रतिशत से अधिक वृद्धि है और इससे सरकार की मंशा का पता चलता है।
विधेयक के उद्देश्यों और कारणों में कहा गया है कि उत्तर प्रदेश सरकार की सिफारिश के आधार पर यह प्रस्ताव किया गया है कि संविधान अनुसूचित जातियां आदेश 1950 और संविधान अनुसूचित जनजातियां (उत्तर प्रदेश) आदेश 1967 का संशोधन करके उत्तर प्रदेश राज्य के संबंध में इनकी सूचियों में बदलाव किया जाए। यह विधेयक संविधान अनुसूचित जातियां आदेश 1950 की अनुसूची के भाग 18- उत्तर प्रदेश की प्रविष्टि 36 में संत कबीर नगर, कुशीनगर, चंदौली और संत रविदास नगर जिलों से ‘गोंड’ समुदाय को लोप करने के लिये है।
अभी तक 13 जिलों में ही मिला था ST का दर्जा
अभी तक गोंड और इनसे जुड़ी उपजातियों को सिर्फ 13 जिलों में ही एसटी का दर्जा मिला हुआ था। अब इन जिलों से ही काटकर बनाए गए चार नए जिलों चंदौली, संत रविदासनगर (भदोही), संत कबीरनगर और कुशीनगर में भी यह सुविधा मिलेगी। 2011 की जनगणना के अनुसार, उत्तर प्रदेश में गोंड और उनसे जुड़ी पांच उपजातियों धुरिया, नायक, ओझा, पठारी और राजगोंड की आबादी 5 लाख 69 हजार 35 है। प्रदेश में 13 जिलों में इन्हें पहले से एसटी का दर्जा हासिल है। ये जिले हैं- महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, बस्ती, गोरखपुर, देवरिया, मऊ, आजमगढ़, जौनपुर, बलिया, गाजीपुर, वाराणसी, मिर्जापुर और सोनभद्र। नवसृजित जिलों चंदौली, संत रविदास नगर (भदोही), संत कबीरनगर और कुशीनगर समेत 62 जिलों में इन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा ही हासिल था। अब इन्हें नव सृजित इन चारों जिलों में एसटी की श्रेणी में शामिल कर लिया गया है। यानी प्रदेश के कुल 17 जिलों में अब गोंड और उसकी उपजातियों को एसटी का प्रमाणपत्र जारी हो सकेगा।
कांग्रेस ने किया समर्थन, सरकार पर लगाया आरोप
यह उत्तर प्रदेश के चार जिलों चंदौली, कुशीनगर, संत कबीरनगर और संत रविदास नगर में गोंड समुदाय को अनुसूचित जाति के रूप में अनुसूचित जाति के आदेश में संशोधन करने वाला है। कांग्रेस के प्रमोद तिवारी ने बिल का समर्थन किया, लेकिन हैरानी जताई कि प्रस्तावित कानून के दायरे से अन्य समुदायों को क्यों बाहर रखा गया। उन्होंने आरोप लगाया कि जब भी केंद्र में भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार सत्ता में आती है तो देश में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के खिलाफ अत्याचार बढ़ जाते हैं।
तृणमूल कांग्रेस ने भी किया समर्थन, उठाए सवाल
तृणमूल कांग्रेस के शांतनु सेन ने कहा, "मैं इस बिल का समर्थन करता हूं, लेकिन मैं इस सरकार द्वारा एससी और एसटी के कल्याण के नाम पर किए जाने वाले प्रतीकवाद का विरोध करता हूं।" उन्होंने सरकार को सुझाव दिया कि "अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए घड़ियाली आंसू बहाने के बजाय वास्तव में देश के पिछड़े समुदायों की भलाई के लिए सकारात्मक सोचने का प्रयास करें।" सेन ने कहा कि सरकार को अलग-अलग बिल लाने के बजाय अलग-अलग राज्यों में कुछ अन्य समुदायों को शामिल करने के लिए व्यापक उपाय करने चाहिए थे।
विपक्ष ने किया समर्थन, सरकार को दिया सुझाव
सदन में विपक्षी सदस्यों ने पार्टी लाइन से हटकर प्रस्तावित कानून का समर्थन किया लेकिन अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों की श्रेणियों में अधिक समुदायों को शामिल करने का आह्वान किया। बीजद के निरंजन बिशी, वाईएसआरसीपी के सुभाष चंद्र बोस पिल्ली और सीपीआई (एम) के वी शिवदासन ने विधेयक का समर्थन किया। वहीं बसपा के रामजी ने भी बिल का समर्थन किया लेकिन दावा किया कि देश में आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार बढ़ गए हैं। उन्होंने ऐसी घटनाओं के अपराधियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का आह्वान किया।
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