UP: सरकार ने गोंडा के जंगलों में बसे वनटांगिया समुदाय को मुख्यधारा से जोड़ने को उठाए कदम

Written by Navnish Kumar | Published on: July 17, 2023
"उत्तर प्रदेश के सबसे पिछड़े आदिवासी समुदायों में से एक 'वनटांगिया' को चरणबद्ध तरीके से, गुलामी से मुक्ति (आजादी) दिलाने के क्रम में, अब गोंडा के वनटांगिया आदिवासी समुदाय को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने की तैयारी है। इसके लिए यूपी सरकार ने एप्रोच रोड और स्कूल निर्माण आदि के लिए कवायद शुरु कर दी है।"



आजादी के 76 वर्षों में पहली बार, सेंट्रल यूपी के गोंडा के घने रामगढ़ वन क्षेत्रों में रहने वाला अत्यंत पिछड़ा समुदाय, सड़कों के ढांचागत विकास के माध्यम से बाहरी दुनिया से जुड़ने को लालायित है। यहां तक ​​कि 35.90 लाख रुपये की लागत से बनने वाले दो सरकारी स्कूलों का प्रस्ताव भी गोंडा जिला प्रशासन ने राज्य सरकार को भेजा है।

2017 में सीएम पद संभालने के तुरंत बाद, योगी आदित्यनाथ ने, चरणबद्ध तरीके से वनटांगिया लोगों की मदद के लिए नीतिगत उपाय शुरू किए। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, यूपी के 13 जिलों लखीमपुर, बलरामपुर, बहराइच, गोरखपुर, मिर्जापुर, सोनभद्र, ललितपुर, महाराजगंज, चित्रकूट, चंदौली, गोंडा, सहारनपुर और बिजनौर में से सात जिलों के 38 टांगिया/वन ग्रामों को राजस्व गांव घोषित किया गया। इनमें महराजगंज में 18, गोंडा, गोरखपुर और बलरामपुर में 5-5, सहारनपुर में 3 और लखीमपुर खीरी और बहराइच जिले में 1-1 टांगिया गांव को राजस्व गांव घोषित किया गया।

वनटांगिया गांवों को जब आधिकारिक तौर पर वन गांवों के रूप में वर्गीकृत किया गया। तभी से वे लोग राजस्व गांव घोषित करने की मांग कर रहे थे। जिसके अभाव में वे बुनियादी विकास से वंचित थे। वहां न स्थायी स्कूल थे, न सड़कें, न बिजली। यहां तक कि आदिवासियों के पास मतदान का अधिकार भी नहीं था।




वन टांगिया गांवों की झलक

चूंकि एक राजस्व गांव की निश्चित सीमाएं होती हैं तथा अलग-अलग ग्राम कोड के साथ प्रत्येक गांव, एक अलग प्रशासनिक इकाई होता है। यही नहीं राज्य सरकार, राजस्व गांवों में स्कूल, अस्पताल, बिजली और पानी जैसी सुविधाएं प्रदान करने के लिए बाध्य होती है। ग्रामवासी भूमि का स्वामित्व पा सकते हैं ताकि जिस भूमि पर वे रहते हैं उस पर उनके दावे की पुष्टि हो सके। यही सब, उन्हें विभिन्न लोक कल्याणकारी योजनाओं के लाभ का पात्र बनाता है। इसी से 2016 में केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों से सभी वन ग्रामों को राजस्व ग्राम में बदलने को कहा था।

2017 में, यूपी सरकार ने 'वनटांगिया' लोगों को विकास की मुख्यधारा में लाने के लिए कदम उठाने शुरू किए। पहले चरण में, 23 वनटांगिया बस्तियों को राजस्व गांवों का दर्जा दिया गया, इसके बाद गोरखपुर जिले में वन अधिकार अधिनियम- 2006 (एफआरए) के तहत अन्य 47 गावों को 'मान्यता' दी गई और वनटांगिया परिवारों को भूमि अधिकार दिये गये।

राजस्व ग्राम की मान्यता मिलने के साथ, वनटांगिया गांव संपर्क मार्गों, पीने योग्य पानी, स्वास्थ्य देखभाल, आजीविका के अवसर, बीपीएल कार्ड, रोजगार गारंटी योजनाएं, शिक्षा, बिजली कनेक्शन, पेंशन, ऋण और स्थायी आवास- यहां तक ​​​​कि मतदान का अधिकार भी पाने के पात्र बन गए।

वास्तव में, वनटांगिया अपना इतिहास 1900 के दशक की शुरुआत में मानते हैं जब उन्हें सरकारी भूमि पर जंगल लगाने के लिए ब्रिटिशर द्वारा पूर्वी यूपी में लाया गया था। उनके नाम में 'वन' का अर्थ 'जंगल' है। 

ब्रिटिश शासन के दौरान, रेलवे ट्रैक आदि बनाने के लिए बड़े पैमाने पर प्राकृतिक जंगलों को साफ किया (काटा) गया था। उसके स्थान पर, उन्होंने म्यांमार के पहाड़ों में प्रचलित कृषि प्रणाली- टांगिया पद्धति, के आधार पर, एक नया वन क्षेत्र विकसित करने का निर्णय लिया। इस काम के लिए बड़ी संख्या में मजदूरों को जंगल में लाया गया था जिन्हें 'वनटांगिया' कहा जाने लगा। वन का अर्थ है जंगल, जबकि टांगिया शब्द टोंग्या शब्द से बना है, जहां टोंग का अर्थ है पहाड़ और या का अर्थ है कृषि क्षेत्र।

टांगिया पद्धति 1920 और 1923 के बीच उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में शुरू की गई थी। वनटांगिया को उनके काम के लिए, अंग्रेजों द्वारा भुगतान नहीं किया जाता था, बल्कि इसके बजाय, उन्हें आजीविका के लिए जमीन का एक छोटा टुकड़ा आवंटित किया जाता था।

अगले कुछ सालों में जैसे 'साल' के जंगल परिपक्व हुए, वनटांगिया का काम ख़त्म हो गया। नतीजा, वन विभाग ने उन्हें उनकी भूमि से बेदखल करने का प्रयास किया। चूंकि उनके पास भूमि का स्वामित्व नहीं था, इसलिए उन्हें जंगल की भूमि के अतिक्रमणकारियों के रूप में देखा जाता था जिसे उन्होंने इतने लंबे समय तक पाला था।

गौरतलब है कि योगी सरकार ने मई 2018 में गोंडा के वनटागिया गांवों को राजस्व का दर्जा दिया था। अब आदिवासियों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए राज्य सरकार, उनके गांवों को वन विभाग की एप्रोच रोड से जोड़ने के साथ ही उनके लिए लिंक रोड भी बनवा रही है। स्कूल निर्माण का भी प्रस्ताव है।

डीएम ने खुद संभाली कमान

गोण्डा के मनकापुर ब्लॉक के अशरफाबाद, कटहर बुटहनी, मनीपुर ग्रांट तथा तरबगंज के वन ग्राम महेशपुर व रामगढ़ में वनटांगिया समुदाय के लोग रहते हैं। डीएम नेहा शर्मा ने 12 जून 2023 को जिले की कमान संभालने के बाद 16 जून को तहसील तरबगंज विकासखंड नवाबगंज अंतर्गत ग्राम पंचायत हरदवा के वनटांगिया गांव रामगढ़ का निरीक्षण किया था। निरीक्षण के दौरान जिलाधिकारी ने ग्रामवासियों एवं वहां की महिलाओं से वार्ता कर समस्याओं के बारे में जानकारी ली। इस दौरान ग्रामीणों के द्वारा रास्ता एवं स्कूल की समस्या के संबंध में अवगत कराया गया। इस पर जिलाधिकारी द्वारा संबंधित अधिकारियों को त्वरित निस्तारण के निर्देश जारी किए गए।

नतीजा, बीडीओ राघवेन्द्र प्रताप सिंह की देखरेख में तरबगंज तहसील के अन्तर्गत रामगढ़ वनटांगिया गांव को वन विभाग अप्रोच सड़क से जोड़ने की प्रक्रिया मंगलवार को शुरू कर दी गई। ग्रामवासियों ने बताया कि अभी तक यह कच्चा रास्ता था। बरसात के दिनों में गांव से बाहर निकलना मुश्किल होता था। लेकिन, अब मार्ग के निर्माण से समुदाय के लोगों को बड़ी राहत मिलेगी। डीएम नेहा शर्मा ने बताया कि सीएम योगी की मंशा के अनुरूप जिला प्रशासन लोक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ हर समुदाय तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है। वनटांगिया समुदाय के विकास हेतु कवायद शुरू कर दी गई है। जल्द ही इसके नतीजे देखने को मिलेंगे।

यही नहीं, डीएम के आदेश पर जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी के कार्यालय से वनटांगिया गांवों में दो परिषदीय स्कूल खोले जाने का प्रस्ताव शासन को भेज दिया गया है। यह स्कूल मनकापुर के बुटहनी व तरबगंज के महेशपुर गांव में खोले जाने हैं। इन दोनों गांवों में नए स्कूल का निर्माण कराया जाएगा। स्कूल निर्माण की कार्ययोजना व लागत की आगणन रिपोर्ट शासन को भेजी गई है। प्रत्येक स्कूल के निर्माण के लिए 35.90 लाख रुपए का बजट मांगा गया है।

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