लखनऊ: CAA का विरोध करने पर मुनव्वर राणा की बेटियों सहित कई महिलाओं पर दंगा फैलाने का मामला दर्ज

Written by Sabrangindia Staff | Published on: January 21, 2020
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की बीजेपी सरकार नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का विरोध करने वालों को बुरी तरह फंसाने पर उतारू है। सीएए के विरोधी शांतिपूर्ण प्रदर्शनों को सरकार हर हाल में कुचलवाने पर लगी है। लखनऊ के मशहूर घंटाघर पर CAA के विरुद्ध शुक्रवार रात से अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे दर्जनों लोगों की पहचान कर लखनऊ पुलिस ने उनके खिलाफ 'दंगा करने' और 'गैरकानूनी ढंग से एकत्र होने' के तीन केस दर्ज किए हैं। जिन लोगों के खिलाफ केस दर्ज हुए हैं, उनमें ज़्यादातर महिलाएं हैं, जिनमें उर्दू के जाने-माने शायर मुनव्वर राणा की बेटियां सुमैया राणा और फौज़िया राणा भी शामिल हैं।



शुक्रवार रात को लगभग 50 महिलाओं ने घंटाघर पर धरना देना शुरू किया था, लेकिन जल्द ही भीड़ बढ़ती गई और ढेरों महिलाएं और बच्चे उनके साथ आकर बैठते गए। पुलिस की शिकायतों में 100 से ज़्यादा अनाम प्रदर्शनकारियों पर भी 'सरकारी अधिकारी द्वारा उचित तरीके से जारी किए गए आदेश की अवज्ञा करने', 'सरकारी अधिकारी पर हमला कर अथवा बलप्रयोग द्वारा अपने कर्तव्य का पालन करने से रोकने' का आरोप लगाया गया है।

जिस घटना को इन आपराधिक मामलों का आधार माना जा रहा है, वह दरअसल एक महिला कॉन्स्टेबल द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत है, जिसमें उसने आरोप लगाया है कि प्रदर्शनकारियों ने उसके साथ हाथापाई की। जिन प्रदर्शनकारियों ने कथित तौर पर महिला कॉन्स्टेबल को धक्का दिया और उसके साथ दुर्व्यवहार किया, उन पर दंगा करने और गैरकानूनी ढंग से एकत्र होने के आरोप लगाए गए हैं।

पुलिस पर आरोप है कि शनिवार रात को वे घंटाघर पर मौजूद प्रदर्शनकारियों के लिए रखे कम्बल और खाने का सामान उठाकर ले गए। लखनऊ पुलिस ने इन आरोपों का खंडन करते हुए एक बयान में कहा, "अफवाहें न फैलाइए", और कहा कि 'कम्बलों को उचित प्रक्रिया के बाद ज़्बत किया गया' था।

घंटाघर पर जारी प्रदर्शन के दौरान किसी भी तरह की तोड़फोड़ की ख़बरें नहीं मिली हैं।

लखनऊ में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ पिछले माह हुए प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भड़क गई थी, और पुलिस ने सदफ जफर सहित कई जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ताओं के नाम लेकर इसी तरह के आपराधिक मामले दर्ज किए थे। उन लोगों पर अन्य आरोपों के साथ-साथ 'हत्या के प्रयास' का आरोप भी लगाया गया था। हालांकि, बाद में ज़मानत की सुनवाई के दौरान पुलिस ने कहा था कि उनके पास इन सामाजिक कार्यकर्ताओं के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं हैं।

 

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