हाईकोर्ट ने पिछले साल हुए दिल्ली दंगा मामले में लियाकत अली, अरशद, गुलफाम और इरशाद अहमद को बीस-बीस हजार रुपये के निजी मुचलका और इतनी ही रकम के जमानती जमा करने की शर्त पर जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया है।
नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली हिंसा से जुड़े एक मामले में घटना के करीब दो माह बाद दिल्ली पुलिस द्वारा चश्मदीद होने का दावा करने वाले पुलिसकर्मी का बयान दर्ज किए जाने पर हैरानी जताई है। हाईकोर्ट ने कहा है कि हमें यह समझ नहीं आ रहा है कि कानून की समझ होने के बाद भी घटना के चश्मदीद पुलिसकर्मी ने न तो पीसीआर को फोन किया और ना ही इसके बारे में डीडी एंट्री यानी थाने के रोजनामचा में कुछ लिखा।
जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने दिल्ली हिंसा से जुड़े मामले के 4 आरोपियों को साक्ष्यों के अभाव में जमानत देते हुए यह टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा मामले के तीन अन्य चश्मदीद गवाहों (जिनके बयान भी घटना के करीब 15 दिन बाद दर्ज किए गए थे) ने भी पीसीआर कॉल नहीं किया। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि इसके अलावा इन आरोपियों के खिलाफ साक्ष्य के तौर पर दिल्ली पुलिस के पास न तो सीसीटीवी फुटेज है और ना ही कोई वीडियो क्लिप या तस्वीर है, जिससे घटना से इनके संबंध को स्थापित किया जा सका। कोर्ट ने कहा है कि मामले में चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है, ऐसे में अब आरोपियों को लंबे समय तक जेल में बंद नहीं रखा जा सकता है। हाईकोर्ट ने आरोपियों को जमानत पर रिहा करने का आदेश देते हुए कहा है कि उन पर जो आरोप लगे हैं, वह सही हैं या गलत यह मुकदमे के ट्रायल में पता चलेगा।
हिंसा के दौरान 24 फरवरी, 2020 को हिंसा, लूटपाट, डकैती, वाहनों को जलाने सहित विभिन्न आरोपों में इन आरोपियों पर खजूरी खास थाने में मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार किया गया था। घटना के तीन दिन बाद पुलिस ने 27 फरवरी को मुकदमा दर्ज किया था और 14 मार्च 2020 को तीन चश्मदीदों के बयाद दर्ज किया था, जबकि एक पुलिसकर्मी का बयान 24 अप्रैल, 2020 को दर्ज किया गया था। दिल्ली पुलिस ने आरोपियों की जमानत की मांग का विरोध करते हुए कहा था कि यदि इन्हें जमानत रिहा किया गया तो साक्ष्यों को प्रभावित करेंगे और अन्य अपराध को भी अंजाम देंगे। पुलिस ने कोर्ट को बताया कि आरोपियों के पास से लोगों से लूटे गए पैसे भी बरामद किए गए।
नगारिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध को लेकर उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़की हिंसा में 53 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 200 से अधिक घायल हो गए थे। दिल्ली पुलिस ने हाईकोर्ट में आरोपियों की जमानत का विरोध करते हुए कहा कि यह हिंसा अचानक नहीं हुई बल्कि इसके साजिश की जड़ें गहरी हैं। पुलिस ने इन आरोपियों को मामले में मुख्य साजिशकर्ता के रूप में आरोपी बनाए गए निलंबित पार्षद ताहिर हुसैन का करीबी बताया। हाईकोर्ट ने आरोपियों से कहा कि वे किसी तरह से मामले के गवाहों और साक्ष्यों को प्रभावित नहीं करेंगे।
अदालत का आदेश यहां पढ़ सकते हैं:
नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली हिंसा से जुड़े एक मामले में घटना के करीब दो माह बाद दिल्ली पुलिस द्वारा चश्मदीद होने का दावा करने वाले पुलिसकर्मी का बयान दर्ज किए जाने पर हैरानी जताई है। हाईकोर्ट ने कहा है कि हमें यह समझ नहीं आ रहा है कि कानून की समझ होने के बाद भी घटना के चश्मदीद पुलिसकर्मी ने न तो पीसीआर को फोन किया और ना ही इसके बारे में डीडी एंट्री यानी थाने के रोजनामचा में कुछ लिखा।
जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने दिल्ली हिंसा से जुड़े मामले के 4 आरोपियों को साक्ष्यों के अभाव में जमानत देते हुए यह टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा मामले के तीन अन्य चश्मदीद गवाहों (जिनके बयान भी घटना के करीब 15 दिन बाद दर्ज किए गए थे) ने भी पीसीआर कॉल नहीं किया। हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि इसके अलावा इन आरोपियों के खिलाफ साक्ष्य के तौर पर दिल्ली पुलिस के पास न तो सीसीटीवी फुटेज है और ना ही कोई वीडियो क्लिप या तस्वीर है, जिससे घटना से इनके संबंध को स्थापित किया जा सका। कोर्ट ने कहा है कि मामले में चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है, ऐसे में अब आरोपियों को लंबे समय तक जेल में बंद नहीं रखा जा सकता है। हाईकोर्ट ने आरोपियों को जमानत पर रिहा करने का आदेश देते हुए कहा है कि उन पर जो आरोप लगे हैं, वह सही हैं या गलत यह मुकदमे के ट्रायल में पता चलेगा।
हिंसा के दौरान 24 फरवरी, 2020 को हिंसा, लूटपाट, डकैती, वाहनों को जलाने सहित विभिन्न आरोपों में इन आरोपियों पर खजूरी खास थाने में मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार किया गया था। घटना के तीन दिन बाद पुलिस ने 27 फरवरी को मुकदमा दर्ज किया था और 14 मार्च 2020 को तीन चश्मदीदों के बयाद दर्ज किया था, जबकि एक पुलिसकर्मी का बयान 24 अप्रैल, 2020 को दर्ज किया गया था। दिल्ली पुलिस ने आरोपियों की जमानत की मांग का विरोध करते हुए कहा था कि यदि इन्हें जमानत रिहा किया गया तो साक्ष्यों को प्रभावित करेंगे और अन्य अपराध को भी अंजाम देंगे। पुलिस ने कोर्ट को बताया कि आरोपियों के पास से लोगों से लूटे गए पैसे भी बरामद किए गए।
नगारिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध को लेकर उत्तर-पूर्वी दिल्ली में भड़की हिंसा में 53 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि 200 से अधिक घायल हो गए थे। दिल्ली पुलिस ने हाईकोर्ट में आरोपियों की जमानत का विरोध करते हुए कहा कि यह हिंसा अचानक नहीं हुई बल्कि इसके साजिश की जड़ें गहरी हैं। पुलिस ने इन आरोपियों को मामले में मुख्य साजिशकर्ता के रूप में आरोपी बनाए गए निलंबित पार्षद ताहिर हुसैन का करीबी बताया। हाईकोर्ट ने आरोपियों से कहा कि वे किसी तरह से मामले के गवाहों और साक्ष्यों को प्रभावित नहीं करेंगे।
अदालत का आदेश यहां पढ़ सकते हैं: