अदालत ने शाहरूख, आशु, जुबेर और अश्विनी के मामले में कहा कि पुलिस इन आरोपियों के खिलाफ केवल ज़ुबानी जमा ख़र्च करती रही।
फाइल फ़ोटो।
दिल्ली की एक अदालत ने 2020 के दिल्ली दंगे मामले मे सोमवार को चार आरोपियों को बरी करते हुए दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई। जो दिल्ली पुलिस के कार्रवाई पर गंभीर सवाल उठाती है।
एक अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष इस मामले को साबित करने में विफल रहा है। साथ ही अदालत को कहना पड़ा कि पुलिस इन आरोपियों के खिलाफ केवल जुबानी जमा खर्च करती रही। अदालत के समक्ष रखे गए साक्ष्यों में कहीं से भी इन लोगों पर आरोप साबित नहीं होता।
अदालत शाहरूख, आशु, जुबेर और अश्विनी के खिलाफ मामले की सुनवाई कर रही थी। इन चारों के खिलाफ उस दंगाई भीड़ का हिस्सा होने का आरोप है जिसने ट्रैक्टरों और अन्य वाहनों में आग लगा दी तथा स्कूल बसों में तोड़-फोड़ की थी। यह घटना 25 फरवरी 2020 की है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने अपने फैसले में कहा, ‘‘अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ अपने आरोपों को साबित करने में नाकाम रहा है, जो आपराधिक कानून की कसौटी है। इसलिये सभी चारों आरोपियों को सभी आरोपों से बरी किया जाता है ।’’
अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष ने कहा था कि दो गवाहों ने आरोपियों की पहचान की थी ।
अदालत ने रेखांकित किया कि हालांकि, परीक्षण के दौरान उन गवाहों ने अपनी गवाही में कहा कि उन्होंने कभी किसी दंगाई की पहचान नहीं की और न ही जांच अधिकारियों से आरोपियों के परिचय के बारे में कहा था।
अदालत ने कहा कि दोनों गवाहों ने इस बात से इनकार किया कि चारों आरोपी दंगों में शामिल थे और इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वे इन लोगों को नहीं जानते हैं। इसने कहा कि आरोपियों के खिलाफ आपराधिक रिकार्ड में कुछ नहीं आया है।
ज्योतिनगर थाने ने चारों आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड विधान के विभिन्न प्रावधानों के तहत आरोप पत्र दायर किया था। ज्योति नगर पुलिस स्टेशन द्वारा पूर्वी दिल्ली नगर निगम (ईडीएमसी) पार्किंग के मालिक की शिकायत के आधार पर यह मामला दर्ज किया गया था।
दिल्ली दंगे के दौरान और उसके बाद जांच को लेकर लगातार अदालतों मे और उसके बाहर भी सवाल उठते रहें है। हाल ही में सात अक्टूबर, 2022 को पूर्व जजों की एक जांच टीम ने पुलिस की भूमिका और उसकी जांच को लेकर 'अनसर्टेन जस्टिस: ए सिटिज़ेन्स कमेटी रिपोर्ट ऑन द नॉर्थ ईस्ट डेल्ही वॉयलेंस 2020' नाम से एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस के साथ ही केंद्रीय गृहमंत्रालय, दिल्ली सरकार और मीडिया को लेकर भी सवाल उठे थे।
इस जांच दल मे उच्चतम न्यायालय के पूर्व जज जस्टिस मदन लोकुर थे जो इसके दल के अध्यक्ष भी थे । इनके अलावा दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व जस्टिस एपी शाह, दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व जस्टिस आरएस सोढ़ी, पटना उच्च न्यायालय की पूर्व जज जस्टिस अंजना प्रकाश और पूर्व केंद्रीय गृह सचिव जीके पिल्लई भी थे।
इस रिपोर्ट में क़ानून-व्यवस्था बनाए रखने की ज़िम्मेदार दिल्ली पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। इस रिपोर्ट में दंगों के बाद दर्ज हुए केस की जाँच को लेकर दिल्ली पुलिस पर गंभीर सवाल उठाए थे।
सुनवाई के लिए मामले जब अदालत में पहुँचे, उस दौरान ऐसे कई मौक़े आए जब अदालतों ने दिल्ली पुलिस की जांच पर कई तल्ख टिप्पणी की और उनकी जाँच के स्तर को ख़राब क़रार दिया। दिल्ली दंगों के मामलों में पुलिस जांच की कमी के कई उदहारण हैं।
जांच दल ने इन दंगों में दिल्ली पुलिस की भूमिका की जाँच के लिए कोर्ट की निगरानी में एक स्वतंत्र कमेटी बनाए जाने की सिफ़ारिश की थी।
गौरतलब है कि 24 फरवरी 2020 को उत्तर-पूर्व दिल्ली में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा भड़क गई थी, जिसे सांप्रदायिक टकराव का रूप दे दिया गया था। इस हिंसा में कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई थी तथा करीब 200 लोग घायल हो गए थे।
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ )
फाइल फ़ोटो।
दिल्ली की एक अदालत ने 2020 के दिल्ली दंगे मामले मे सोमवार को चार आरोपियों को बरी करते हुए दिल्ली पुलिस को फटकार लगाई। जो दिल्ली पुलिस के कार्रवाई पर गंभीर सवाल उठाती है।
एक अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष इस मामले को साबित करने में विफल रहा है। साथ ही अदालत को कहना पड़ा कि पुलिस इन आरोपियों के खिलाफ केवल जुबानी जमा खर्च करती रही। अदालत के समक्ष रखे गए साक्ष्यों में कहीं से भी इन लोगों पर आरोप साबित नहीं होता।
अदालत शाहरूख, आशु, जुबेर और अश्विनी के खिलाफ मामले की सुनवाई कर रही थी। इन चारों के खिलाफ उस दंगाई भीड़ का हिस्सा होने का आरोप है जिसने ट्रैक्टरों और अन्य वाहनों में आग लगा दी तथा स्कूल बसों में तोड़-फोड़ की थी। यह घटना 25 फरवरी 2020 की है।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने अपने फैसले में कहा, ‘‘अभियोजन पक्ष आरोपियों के खिलाफ अपने आरोपों को साबित करने में नाकाम रहा है, जो आपराधिक कानून की कसौटी है। इसलिये सभी चारों आरोपियों को सभी आरोपों से बरी किया जाता है ।’’
अदालत ने यह भी कहा कि अभियोजन पक्ष ने कहा था कि दो गवाहों ने आरोपियों की पहचान की थी ।
अदालत ने रेखांकित किया कि हालांकि, परीक्षण के दौरान उन गवाहों ने अपनी गवाही में कहा कि उन्होंने कभी किसी दंगाई की पहचान नहीं की और न ही जांच अधिकारियों से आरोपियों के परिचय के बारे में कहा था।
अदालत ने कहा कि दोनों गवाहों ने इस बात से इनकार किया कि चारों आरोपी दंगों में शामिल थे और इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वे इन लोगों को नहीं जानते हैं। इसने कहा कि आरोपियों के खिलाफ आपराधिक रिकार्ड में कुछ नहीं आया है।
ज्योतिनगर थाने ने चारों आरोपियों के खिलाफ भारतीय दंड विधान के विभिन्न प्रावधानों के तहत आरोप पत्र दायर किया था। ज्योति नगर पुलिस स्टेशन द्वारा पूर्वी दिल्ली नगर निगम (ईडीएमसी) पार्किंग के मालिक की शिकायत के आधार पर यह मामला दर्ज किया गया था।
दिल्ली दंगे के दौरान और उसके बाद जांच को लेकर लगातार अदालतों मे और उसके बाहर भी सवाल उठते रहें है। हाल ही में सात अक्टूबर, 2022 को पूर्व जजों की एक जांच टीम ने पुलिस की भूमिका और उसकी जांच को लेकर 'अनसर्टेन जस्टिस: ए सिटिज़ेन्स कमेटी रिपोर्ट ऑन द नॉर्थ ईस्ट डेल्ही वॉयलेंस 2020' नाम से एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट में दिल्ली पुलिस के साथ ही केंद्रीय गृहमंत्रालय, दिल्ली सरकार और मीडिया को लेकर भी सवाल उठे थे।
इस जांच दल मे उच्चतम न्यायालय के पूर्व जज जस्टिस मदन लोकुर थे जो इसके दल के अध्यक्ष भी थे । इनके अलावा दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व जस्टिस एपी शाह, दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व जस्टिस आरएस सोढ़ी, पटना उच्च न्यायालय की पूर्व जज जस्टिस अंजना प्रकाश और पूर्व केंद्रीय गृह सचिव जीके पिल्लई भी थे।
इस रिपोर्ट में क़ानून-व्यवस्था बनाए रखने की ज़िम्मेदार दिल्ली पुलिस की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए गए हैं। इस रिपोर्ट में दंगों के बाद दर्ज हुए केस की जाँच को लेकर दिल्ली पुलिस पर गंभीर सवाल उठाए थे।
सुनवाई के लिए मामले जब अदालत में पहुँचे, उस दौरान ऐसे कई मौक़े आए जब अदालतों ने दिल्ली पुलिस की जांच पर कई तल्ख टिप्पणी की और उनकी जाँच के स्तर को ख़राब क़रार दिया। दिल्ली दंगों के मामलों में पुलिस जांच की कमी के कई उदहारण हैं।
जांच दल ने इन दंगों में दिल्ली पुलिस की भूमिका की जाँच के लिए कोर्ट की निगरानी में एक स्वतंत्र कमेटी बनाए जाने की सिफ़ारिश की थी।
गौरतलब है कि 24 फरवरी 2020 को उत्तर-पूर्व दिल्ली में संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के समर्थकों और विरोधियों के बीच हिंसा भड़क गई थी, जिसे सांप्रदायिक टकराव का रूप दे दिया गया था। इस हिंसा में कम से कम 53 लोगों की मौत हो गई थी तथा करीब 200 लोग घायल हो गए थे।
(समाचार एजेंसी भाषा के इनपुट के साथ )