कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत पेश करने में विफल रहा, जिसके कारण प्रतिवादियों को बरी कर दिया गया।
फोटो साभार : सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म 'एक्स'
एक अहम फैसले में दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने दस मुसलमानों को बरी कर दिया है जिन्हें चार साल पहले 2020 के दिल्ली दंगे में शामिल होने के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार किया था।
कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत पेश करने में विफल रहा, जिसके कारण प्रतिवादियों को बरी कर दिया गया।
ज्ञात हो कि मोहम्मद शाहनवाज, मोहम्मद शोएब, शाहरुख, राशिद, आजाद, अशरफ अली, परवेज, मोहम्मद फैसल, राशिद और मोहम्मद ताहिर पर दिल्ली के शिव विहार इलाके में दंगा, आगजनी, चोरी और तोड़फोड़ से संबंधित आरोप थे।
यह मामला 1 मार्च, 2020 को नरेंद्र कुमार की शिकायत के आधार पर दर्ज किया गया था। गोकलपुरी पुलिस स्टेशन में दर्ज शिकायत के अनुसार, कुमार ने दावा किया कि भीड़ ने शिव विहार तिराहा में उनकी दुकान में तोड़फोड़ की। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि 50-60 दंगाइयों ने उनके घर में घुसकर 15 तोला सोना, आधा किलो चांदी और 2 लाख रुपये लूट लिए और उनके फर्नीचर में आग लगा दी। मामले में कुल 17 गवाहों से पूछताछ की गई, जिनमें से 12 पुलिस अधिकारी थे।
अभियोजन पक्ष उन्हें अपराधों की कड़ी जोड़ने वाले सबूत पेश करने में असमर्थ रहा।
अभियोजन पक्ष द्वारा पूछताछ किए गए एक गवाह ने कहा कि इन दंगों के बाद उसकी दुकान ठीक थी। इस गवाह की दुकान घटनास्थल के पास थी। हालांकि, एक हेड कांस्टेबल और एक एएसआई ने पहले दावा किया था कि इस गवाह की दुकान जला दी गई थी।
कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने कहा, "दोनों ने दावा किया कि दंगाइयों ने दुकान भी जला दी थी। इन दो कथित चश्मदीदों द्वारा लिया गया यह विरोधाभासी रुख उनकी विश्वसनीयता पर धब्बा है।"
न्यायाधीश ने कहा, "मुझे पीडब्लू 6, पीडब्लू 9 और पीडब्लू 13 (ये सभी पुलिस गवाह थे) के साक्ष्य पर भरोसा करना उचित नहीं है, यह मानने के लिए कि सभी आरोपी व्यक्ति उस भीड़ का हिस्सा थे जिसने संपत्ति पर हमला किया था।"
जमीयत उलेमा-ए-हिंद (मौलाना महमूद असद मदनी) के नेतृत्व में सात आरोपियों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता सलीम मलिक और अब्दुल गफ्फार ने कहा कि प्रमुख गवाहों की गवाही अविश्वसनीय थी।
कई गवाहों ने या तो अपने बयान वापस ले लिए या आरोपी की पहचान करने में विफल रहे, जबकि पुलिस के बयानों में देरी और असंगतता ने अभियोजन पक्ष के मामले को और कमजोर कर दिया।
महमूद मदनी ने इस फैसले का स्वागत करते हुए लीगल टीम की कोशिशों की तारीफ की और हाशिए पर पड़े समुदायों की रक्षा के लिए जमीयत उलेमा-ए-हिंद की प्रतिबद्धता को दोहराया। मदनी ने कहा, "न्याय सुनिश्चित करने के लिए निष्पक्ष सुनवाई और मजबूत कानूनी प्रतिनिधित्व महत्वपूर्ण है।"
इस कानूनी लड़ाई में शामिल अधिवक्ता नियाज अहमद फारूकी ने कहा कि जमीयत के कानूनी हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप दिल्ली दंगे से जुड़े लगभग 600 लोगों को जमानत मिली है और 60 से अधिक लोग बरी हुए हैं। कई अन्य मामले अभी भी लंबित हैं।
बता दें कि साल 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में 23 से 25 फरवरी के बीच सीएए और एनआरसी के खिलाफ प्रोटेस्ट किया जा रहा था। तभी कुछ लोगों ने वहां हमला कर दिया। इसके बाद इलाके में दंगा भड़क गया। इस मामले में दयालपुर थाने में केस दर्ज किया गया था। इन दंगों में करीब 50 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी, वहीं बड़ी संख्या में लोग जख्मी हुए थे।
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एक अहम फैसले में दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने दस मुसलमानों को बरी कर दिया है जिन्हें चार साल पहले 2020 के दिल्ली दंगे में शामिल होने के आरोप में पुलिस ने गिरफ्तार किया था।
कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे आरोपों को साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत पेश करने में विफल रहा, जिसके कारण प्रतिवादियों को बरी कर दिया गया।
ज्ञात हो कि मोहम्मद शाहनवाज, मोहम्मद शोएब, शाहरुख, राशिद, आजाद, अशरफ अली, परवेज, मोहम्मद फैसल, राशिद और मोहम्मद ताहिर पर दिल्ली के शिव विहार इलाके में दंगा, आगजनी, चोरी और तोड़फोड़ से संबंधित आरोप थे।
यह मामला 1 मार्च, 2020 को नरेंद्र कुमार की शिकायत के आधार पर दर्ज किया गया था। गोकलपुरी पुलिस स्टेशन में दर्ज शिकायत के अनुसार, कुमार ने दावा किया कि भीड़ ने शिव विहार तिराहा में उनकी दुकान में तोड़फोड़ की। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि 50-60 दंगाइयों ने उनके घर में घुसकर 15 तोला सोना, आधा किलो चांदी और 2 लाख रुपये लूट लिए और उनके फर्नीचर में आग लगा दी। मामले में कुल 17 गवाहों से पूछताछ की गई, जिनमें से 12 पुलिस अधिकारी थे।
अभियोजन पक्ष उन्हें अपराधों की कड़ी जोड़ने वाले सबूत पेश करने में असमर्थ रहा।
अभियोजन पक्ष द्वारा पूछताछ किए गए एक गवाह ने कहा कि इन दंगों के बाद उसकी दुकान ठीक थी। इस गवाह की दुकान घटनास्थल के पास थी। हालांकि, एक हेड कांस्टेबल और एक एएसआई ने पहले दावा किया था कि इस गवाह की दुकान जला दी गई थी।
कड़कड़डूमा कोर्ट के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने कहा, "दोनों ने दावा किया कि दंगाइयों ने दुकान भी जला दी थी। इन दो कथित चश्मदीदों द्वारा लिया गया यह विरोधाभासी रुख उनकी विश्वसनीयता पर धब्बा है।"
न्यायाधीश ने कहा, "मुझे पीडब्लू 6, पीडब्लू 9 और पीडब्लू 13 (ये सभी पुलिस गवाह थे) के साक्ष्य पर भरोसा करना उचित नहीं है, यह मानने के लिए कि सभी आरोपी व्यक्ति उस भीड़ का हिस्सा थे जिसने संपत्ति पर हमला किया था।"
जमीयत उलेमा-ए-हिंद (मौलाना महमूद असद मदनी) के नेतृत्व में सात आरोपियों का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिवक्ता सलीम मलिक और अब्दुल गफ्फार ने कहा कि प्रमुख गवाहों की गवाही अविश्वसनीय थी।
कई गवाहों ने या तो अपने बयान वापस ले लिए या आरोपी की पहचान करने में विफल रहे, जबकि पुलिस के बयानों में देरी और असंगतता ने अभियोजन पक्ष के मामले को और कमजोर कर दिया।
महमूद मदनी ने इस फैसले का स्वागत करते हुए लीगल टीम की कोशिशों की तारीफ की और हाशिए पर पड़े समुदायों की रक्षा के लिए जमीयत उलेमा-ए-हिंद की प्रतिबद्धता को दोहराया। मदनी ने कहा, "न्याय सुनिश्चित करने के लिए निष्पक्ष सुनवाई और मजबूत कानूनी प्रतिनिधित्व महत्वपूर्ण है।"
इस कानूनी लड़ाई में शामिल अधिवक्ता नियाज अहमद फारूकी ने कहा कि जमीयत के कानूनी हस्तक्षेप के परिणामस्वरूप दिल्ली दंगे से जुड़े लगभग 600 लोगों को जमानत मिली है और 60 से अधिक लोग बरी हुए हैं। कई अन्य मामले अभी भी लंबित हैं।
बता दें कि साल 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में 23 से 25 फरवरी के बीच सीएए और एनआरसी के खिलाफ प्रोटेस्ट किया जा रहा था। तभी कुछ लोगों ने वहां हमला कर दिया। इसके बाद इलाके में दंगा भड़क गया। इस मामले में दयालपुर थाने में केस दर्ज किया गया था। इन दंगों में करीब 50 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी, वहीं बड़ी संख्या में लोग जख्मी हुए थे।