जेके पुलिस ने जारी की 'अनटोल्ड कश्मीर फाइल्स', हर धर्म के लोग कश्मीरी उग्रवाद का शिकार हुए

Written by Navnish Kumar | Published on: April 8, 2022
कहावत है कि सच को बहुत देर तक नहीं झुठलाया जा सकता है। जी हां, ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म पर मचे हो-हल्ले और विवाद के बीच जम्मू कश्मीर पुलिस ने अनटोल्ड कश्मीर फाइल्स (Untold Kashmir Files) जारी की है। 57 सेकेंड की यह वीडियो क्लिप विवेक अग्निहोत्री की 170 मिनट की पूरी फिल्म 'द कश्मीर फाइल्स' पर न सिर्फ भारी पड़ रही है बल्कि सच्चाई के एक झन्नाटेदार तमाचे की तरह है। क्लिप में जेएंडके पुलिस की ओर से दावा किया गया है कि घाटी में हर धर्म के लोग कश्मीरी उग्रवाद के शिकार हुए हैं। कश्मीरी हिंदू (पंडित) ही नहीं, मुसलमान भी बड़ी संख्या में उग्रवाद के शिकार हुए हैं। 



कश्मीरी पंडितों के पलायन और 'द कश्मीर फाइल्स' की सच्चाई की बात करें तो खुद कई कश्मीरी पंडित तक फ़िल्म को मिल रही तवज्जों और ध्यान (अटेंशन) से हैरान हैं। इंडिया टुडे मैगज़ीन में छपी कवर स्टोरी में शिक्षाविद व कश्मीरी विशेषज्ञ अमिताभ मट्टू मानते हैं कि निर्देशक को घटनाओं के अपने काले और सफेद गायन में ग्रे को पेश करने या कहानी को संतुलित करने में कोई दिलचस्पी नहीं थी। कोई भी 'एक तरफ' और 'दूसरी तरफ'। खैर, ‘द कश्मीर फाइल्स’ फिल्म पर मचे हो-हल्ले और विवाद के बीच जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अनटोल्ड कश्मीर फाइल्स (Untold Kashmir Files) जारी की है। पुलिस की तरफ से जारी की गई इस क्लिप का मकसद यह रेखांकित करना है कि कैसे सभी कश्मीरी (आस्था से परे) उग्रवाद के शिकार हुए थे। 

‘इंडियन एक्सप्रेस’ के अनुसार, जम्मू कश्मीर के एक पुलिस अधिकारी ने इस शॉर्ट क्लिप के बारे में बताया, “यह नागरिकों तक पहुंचने का एक प्रयास है कि हम उनके दर्द को समझते हैं और आतंकवाद के खिलाफ हम सभी इस लड़ाई में एक साथ हैं।” यह वीडियो 31 मार्च, 2022 को जम्मू-कश्मीर पुलिस के आधिकारिक ट्विटर अकाउंट पर पोस्ट किया गया। संयोग से (4 अप्रैल को) घाटी में प्रवासियों और कश्मीरी पंडितों पर हमलों में एक नई तेजी देखी गई। अफसर के अनुसार, ‘द कश्मीर फाइल्स’ कश्मीरी पंडितों की दुर्दशा पर केंद्रित है, लेकिन यहां बहुत से लोगों को लगता है कि फिल्म घाटी में आतंकवाद के कारण कश्मीरी मुसलमानों की पीड़ा को पूरी तरह से नजरअंदाज करती है।

पुलिस के टि्वटर हैंडल से शेयर की गई क्लिप उस शॉट के साथ शुरू हुई, जिसमें 27 मार्च को घाटी में एक स्पेशल पुलिस अधिकारी (एसपीओ) और उसके जुड़वां भाई की संदिग्ध आतंकवादियों द्वारा हत्या का जिक्र करते हुए शोक में डूबी महिलाएं दिखाई गई हैं। पीड़ितों की तस्वीरों के साथ फ्रेम में लिख कर आता है कि “आतंकवादियों ने एसपीओ इशफाक अहमद के घर में घुसकर उसे उसके भाई उमर जान के साथ मार डाला। शोक मनाने वालों की तस्वीरों के साथ आगे लिखकर आता है, “कश्मीर में इन निशाना बनाकर की गई हत्याओं में 20,000 लोगों की जान गई है। समय आ गया है कि हम बात करें।” इस दौरान बैकग्राउंड ऑडियो में मशहूर पाकिस्तानी कवि फैज अहमद फैज की कविता “हम देखेंगे” की पक्तियों का इस्तेमाल किया गया है, जिसका उपयोग “द कश्मीर फाइल्स” में भी किया गया था।

विवेक अग्निहोत्री के निर्देशन में बनी “दि कश्मीर फाइल्स” 11 मार्च को रिलीज हुई थी। इस फिल्म को कई केंद्रीय मंत्रियों यहां तक कि प्रधानमंत्री तक का भी समर्थन मिला था और अधिकांश भाजपा शासित राज्यों में इसे टैक्स फ्री भी कर दिया गया था। पीएम नरेंद्र मोदी ने कहा कि इसने “समूचे इकोसिस्टम” को हिलाकर रख दिया था, जो कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पथ प्रदर्शक होने का दावा करता है, लेकिन नहीं चाहता कि सच कहा जाए। फिल्म ने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पर भी चिंता जताई थी। रिलीज के बाद दिल्ली में पुलिस को “मिली-जुली आबादी” वाले इलाकों में पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने के लिए कह दिया गया था।

यही नहीं, ‘द कश्मीर फाइल्स’ पर मचा घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है। फिल्म को लेकर अक्सर कोई ना कोई विवाद छिड़ ही जाता है। फ़िल्म के पक्ष विपक्ष को लेकर ताजा विवाद 'द कश्मीर फाइल्स - एक अर्धसत्य’ नाम के कार्यक्रम को लेकर सामने आया है। पुणे में आयोजित ‘द कश्मीर फाइल्स- एक अर्धसत्य’ कार्यक्रम को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। विवेक अग्निहोत्री ने पुणे में रह रहे कश्मीरी पंडितों से कार्यक्रम में शामिल होकर सच्चाई बताने की अपील की थी। 



इंडिया 4 कश्मीर के राष्ट्रीय समन्वयक रोहित काचरू ने कहा कि कार्यक्रम ‘द कश्मीर फाइल्स-एक अर्धसत्य’ का आयोजन पुणे स्थित संगठन युवा क्रांति दल द्वारा किया गया था। मुख्य भाषण इतिहासकार अशोक कुमार पांडेय को देना था लेकिन पुलिस ने हमें भाग नहीं लेने दिया। दरअसल लेखक, इतिहासकार अशोक कुमार पाण्डेय ने एक पोस्टर शेयर किया था, जो 7 अप्रैल को 'द कश्मीर फाइल्स’ एक अर्धसत्य” विषय पर चर्चा के लिए आयोजित किए गए कार्यक्रम का था। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, पोस्टर शेयर करते हुए अशोक कुमार पाण्डेय ने लिखा कि ‘कल शाम पुणे के गांधी भवन में मिल सकते हैं, वहां के साथी।’ इस पर जवाब देते हुए फिल्म द कश्मीर फाइल्स के डायरेक्टर विवेक अग्निहोत्री ने लिखा कि “मैं पुणे के कश्मीरी पंडितों से निवेदन करता हूं कि वो इस कार्यक्रम में जाकर माननीय पांडेय जी को पूर्ण सत्य बताएं।” 

विवेक अग्निहोत्री के इस ट्वीट पर अशोक कुमार पाण्डेय ने पलटवार करते हुए लिखा कि “इतना डर क्यों लगता है इन्हें? आपने फिल्म बनाई। अपनी बात कही। जो मेरी समझ है वह मैं कहूंगा। फिर इतनी परेशानी क्यों? मैं तो कहूंगा सारे पंडित आएं, सुनें और तय करें कि जो मैं कह रहा हूं वह कितना सही है, कितना गलत।” अशोक कुमार पाण्डेय के ट्वीट और 'द कश्मीर फाइल्स' पर आयोजित चर्चा पर प्रतिक्रिया में फिल्ममेकर अशोक पंडित ने लिखा कि “पुणे में कश्मीरी पंडितों ने कार्यक्रम को रद्द करने के लिए डी कोथरुड पुलिस स्टेशन से संपर्क किया, जिसमें मांग की गई थी कि ‘द कश्मीर फाइल्स–एक अर्धसत्य’ शीर्षक से गांधी भवन में आयोजित होने वाले कार्यक्रम को रद्द कर दिया जाए या सभी लोग भाग लेने की आज्ञा दी जाए। हालांकि सभी लोगों को पुलिस ने हिरासत में ले लिया है।”

सोशल मीडिया पर भी लोग इसे लेकर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। अमरदीप जैसवाल ने अशोक कुमार पाण्डेय को जवाब देते हुए लिखा कि “पाण्डेय जी, कश्मीर विषय पर बहुत फिल्में बनी, तब तो कभी सत्य बताने नहीं आये थे? आप लोगों का दर्द है कि किताबों में भर-भर के जो प्रोपगेंडा लिखा ना उसकी पोल खुल गई। चलिए, मान लिया कि फिल्म ने अर्धसत्य दिखा के 250 करोड़ कमाए, आपके सत्य में दम है तो दिखा कर 500 करोड़ कमा लीजिये।” आलोक सिंह नाम के यूजर ने लिखा कि “विवेक अग्निहोत्री तुम खुद क्यों नहीं बैठ जाते डिबेट में, इतिहास के सवालों का जबाब भी देना और सवाल भी करना। अभी तो तुमने भोपालियों को बदनाम किया था भविष्य में तुम खुद बदनाम होगे।”

संजय नाम के यूजर ने लिखा कि “पाण्डेय जी! पूर्ण सत्य बताइयेगा कश्मीर घाटी (पाक अधिकृत सहित) में हिन्दू कभी थे भी या नहीं और यदि नहीं तो हिन्दुओं के धर्म स्थलों का  निर्माण क्या मुस्लिमों द्वारा अपनी उत्पत्ति के पूर्व ही करा दिया था? और यदि थे तो कहां गायब हो गये?” प्रभात नाम के यूजर ने लिखा “विवेक अग्निहोत्री जी, आप इतना चिढ़ क्यों रहे हैं। आपको झूठा नहीं कहा है, बल्कि आधा सच बताने वाला कहा है। इनकी भी सुन लेते हैं।” प्रमोद पाण्डेय नाम के यूजर ने लिखा कि “आपको स्वयं जाकर अशोक जी से डिबेट करनी चाहिए फिर पता चल जायेगा कि किसकी रिसर्च कितनी कमजोर है और किसकी कितनी तथ्यात्मक।”

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