UCC का मुद्दा CAA और NRC जैसा, नतीजा कुछ नहीं निकला बल्कि लोग उसमें उलझ गए

Written by Navnish Kumar | Published on: July 6, 2023
भारत में समान नागरिक संहिता को लेकर कुछ हफ्तों से तीखी बहस छिड़ी है। लेकिन सवाल अचानक यूसीसी लाने के मकसद को लेकर है। महंगाई और बेरोजगारी आदि समस्याओं से ध्यान बंटाना मकसद है या फिर कुछ और। इस सब के बीच, जानकार इसे महज भ्रम पैदा करने और लोगों को उलझाकर, वोट का उल्लू सीधा करने के तौर पर देख रहे हैं। लोगों का कहना है कि "यूसीसी का मुद्दा वैसा ही जैसा सीएए और एनआरसी का था, उसका नतीजा कुछ नहीं निकला बल्कि लोग उसमें उलझ गए।" 



यूसीसी पर प्रमुख मुस्लिम संगठन और बुद्धिजीवी क्या सोचते है, को लेकर ऑनलाइन न्यूज पोर्टल डीडब्ल्यू ने प्रतिक्रियाएं जानी तो मामले में दिल्ली के एक कारोबारी रियाज खान कहते हैं कि आखिर यूसीसी लाने का मकसद क्या है। वे कहते हैं, "यूसीसी का मुद्दा वैसा ही है जैसा सीएए और एनआरसी का था, उसका नतीजा कुछ नहीं निकला बल्कि लोग उसमें उलझ गए।" इससे भी कुछ नहीं निकलना है। रियाज कहते हैं जैसे सीएए और एनआरसी ने लोगों में भ्रम पैदा किया उसी तरह से यूसीसी भी लोगों में भ्रम पैदा कर रहा है। जानकार कहते हैं कि बीजेपी यूसीसी का मुद्दा उछालकर 2024 के लोकसभा चुनाव और उससे पहले होने विधानसभा चुनावों में राजनीतिक लाभ लेना चाहती है। लेकिन खतरनाक बात यह है कि बीजेपी इसे सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास कर रही है। 

वरिष्ठ पत्रकार यूसुफ अंसारी कहते हैं कि, "महंगाई और बेरोजगारी जैसे बुनियादी मुद्दों से ध्यान हटाने के लिए बीजेपी यूसीसी के मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देकर पेश कर रही है। 2018 में ही विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि यूसीसी की ना तो देश में जरूरत है और ना ही इसे लागू कर पाना संभव है फिर पांच साल में ऐसा क्या हो गया कि बीजेपी को यूसीसी इतना महत्वपूर्ण लगने लगा है।" 21वें विधि आयोग ने साल 2018 में पारिवारिक कानून में सुधार पर एक परामर्श पत्र जारी किया था। जिसमें यह कहा गया था कि "इस स्तर पर एक समान नागरिक संहिता का निर्णय ना तो आवश्यक है और ना ही वांछनीय है।"

हालांकि सत्ताधारी बीजेपी के घोषणापत्र में यूसीसी का मुद्दा हमेशा से रहा है और इस बार वह इस पर बहुत जोर दे रही है। क्योंकि पहले के उसके जम्मू-कश्मीर से विशेष राज्य का दर्जा वापस लेना और अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण जैसे वादे करीब-करीब पूरे हो गए हैं। अंसारी कहते हैं यूसीसी बीजेपी के तीन अहम मुद्दों में से एक है। पहले के वादे पूरे हो चुके हैं और अब यूसीसी की बारी है। उन्होंने कहा, "जैसा कि चर्चा है कि संसद के मानसून सत्र में मोदी सरकार यूसीसी का बिल संसद में पेश कर सकती है, अगर वह इसे संसद में पास भी करा लेती है तो अपने वोटर को संदेश देने में कामयाब रहेगी कि उसने अपने तीनों मुख्य वादे पूरे कर दिए हैं। अगर संसद में पास नहीं भी कराती है सिर्फ पेश भी करती है तो भी वही संदेश देगी कि बीजेपी अपने कोर मुद्दों से बिल्कुल भी पीछे नहीं हटी है बल्कि उन्हें लागू करना चाहती है।"

दरअसल, 27 जून को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक भाषण में यूसीसी का समर्थन किया था और कहा कि आज इसके नाम पर लोगों को भड़काया जा रहा है। मोदी ने कहा, "एक घर दो कानून से नहीं चल सकता तो देश कैसे चल पाएगा। भारत के संविधान में सभी नागरिकों को समान अधिकार की बात कही गई है। समान नागरिक संहिता पर बीजेपी भ्रम दूर करेगी।" अंसारी कहते हैं कि जब से बीजेपी अस्तित्व में आई है तब से वह इस मुद्दे पर जनता से वोट मांग रही है इसमें कुछ भी गलत नहीं है। हालांकि वह ये भी कहते हैं कि यूसीसी को लागू करने से पहले जिस राजनीतिक समझ और जिस व्यापक विचार विमर्श की जरूरत थी उसे पूरा नहीं किया जा रहा। उन्होंने कहा, "सांप्रदायिक रंग देकर उसे लागू करने की जो कोशिश हो रही है वह देश के लिए खतरनाक साबित हो सकती है।"

"धार्मिक अल्पसंख्यको को ऐसे कानून के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए।"

उधर, बुधवार को लखनऊ में इस मुद्दे पर ऑल इंडिया मुस्लिम लॉ बोर्ड की बैठक हुई जिसमें फैसला लिया गया कि यूसीसी के विरोध में जनसमर्थन जुटाया जाएगा। बोर्ड ने विधि आयोग की ओर से यूसीसी पर मांगी राय पर ज्यादा से ज्यादा आपत्तियां दर्ज करवाने का अभियान शुरू करने का फैसला किया है। बोर्ड की तरफ से आयोग को बिंदुवार आपत्तियां भेजी गई हैं। बोर्ड के महासचिव मोहम्मद फजलुर्रहीम मुजद्दीदी ने एक बयान में कहा कि देश में यूसीसी को लागू करने का माहौल बनाया जा रहा है। बोर्ड का कहना है कि "सिर्फ आदिवासियों को ही नहीं बल्कि हर धार्मिक अल्पसंख्यक को ऐसे कानून के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए।"

ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के नवनिर्वाचित अध्यक्ष मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने डीडब्ल्यू से बातचीत में कहा कि "समान नागरिक संहिता अनावश्यक, अव्यावहारिक और देश के लिए बेहद हानिकारक है।" उन्होंने कहा कि सरकार इस अनावश्यक कार्य में देश के संसाधनों को बर्बाद करके समाज में अराजकता पैदा ना करें।

सामाजिक कार्यकर्ता और औद्योगिक अनुसंधान संस्थान के पूर्व मुख्य वैज्ञानिक गौहर रजा कहते हैं कि यूसीसी पर देश घबराया हुआ है, अलग-अलग फिरके डरे हुए हैं। रजा ने डीडब्ल्यू से कहा, "भारतीय जनता पार्टी का ट्रैक रिकॉर्ड बताता है कि आठ बजे रात को नोटबंदी कर दी, रात को उन्होंने तालाबंदी की घोषणा कर दी, बिना बहस किए, बिना बातचीत किए जो लोकतंत्र का अहम हिस्सा होता है, जिसके बाद किसी चीज पर सहमति बन जाए तो उसे अमल किया जाता है। तो लोग (यूसीसी पर) डरे हुए हैं। ये एक दिन (यूसीसी पर बिल) संसद में लाएंगे और शाम को वोट करवा लेंगे।"

यूसीसी देश की एकता के लिए बड़ा खतरा : जमीयत

यूनिफार्म सिविल कोड (UCC) को लेकर जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने अपनी राय में कहा है कि यूनिफार्म सिविल कोड मजहब से टकराता है। ऐसे में लॉ कमीशन को चाहिए कि वो सभी धर्मों के जिम्मेदार लोगों से बुलाकर बात करे और समन्वय स्थापित करे। एनडीटीवी के अनुसार, मौलाना अरशद मदनी की अध्यक्षता में जमीयत उलेमा ए हिंद की तय राय के मुताबिक- कोई भी ऐसा कानून जो शरीयत के खिलाफ हो, मुसलमान उसे मंजूर नहीं करेंगे। मुसलमान सब कुछ बर्दाश्त कर सकता है, लेकिन अपनी शरीयत के खिलाफ़ नहीं जा सकता। यूनिफॉर्म सिविल कोड देश की एकता के लिए खतरा है। 

जमीयत उलेमा हिंद ने कहा कि यूनिफॉर्म सिविल कोड संविधान में मिली धर्म के पालन की आजादी के खिलाफ है, क्योंकि यह संविधान में नागरिकों को धारा 25 में दी गई धार्मिक आजादी और बुनियादी अधिकारों को छीनता है। जमीयत की तरफ से कहा गया कि हमारा पर्सनल लॉ कुरान और सुन्नत से बना है, उसमें कयामत तक कोई भी संशोधन नहीं हो सकता। हमें संविधान मजहबी आजादी का पूरा मौका देता है।

पीएम के बयान के बाद लॉ कमीशन के मायने: मदनी

हालांकि इससे पहले मौलाना मदनी ने मुसलमानों से यूसीसी के खिलाफ सड़क पर न उतरने की अपील की थी। एनडीटीवी से बातचीत में जमीयत उलेमा ए हिंद के प्रमुख मौलाना अरशद मदनी ने कहा था कि प्रधानमंत्री के बयान के बाद लॉ कमीशन का क्या मतलब रह जाता है। हमें लॉ कमीशन पर यकीन नहीं है। हम तो हमेशा कहते हैं। मुसलमान सड़कों पर न उतरें, हम जो करेंगे कानून के दायरे में रहकर करेंगे।" अगर समान नागरिक संहिता वास्तव में लागू हो जाती है, तो मुसलमान क्या रास्ता अपनाएंगे? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि हम वैसे भी क्या कर सकते हैं? हम और क्या खो सकते हैं?" अयोध्या में कार सेवकों द्वारा गिराई गई बाबरी मस्जिद का जिक्र करते हुए मदनी ने कहा कि हमारी मस्जिद चली गई है। हम क्या कर सकते हैं? हम केवल अपने दैनिक जीवन में इबादत को जीवित रख सकते हैं, अगर अल्लाह चाहेगा।"

"सभी धर्म होंगे प्रभावित"

जानकार कहते हैं कि उत्तर भारत में हिंदू समाज में सात फेरे लगाकर शादी हो जाती है जबकि दक्षिण भारत में गले में हार डालकर शादी होती है। यहां तक कि कई प्रांतों में गोत्र देखकर शादी होती है। वहीं दक्षिण में मामा से भांजी की शादी हो सकती है। ये सारी बहस ऐसी हैं जो हिंदुओं को भी उतना ही परेशान कर रही हैं। वहीं, जामिया मिल्लिया इस्लामिया में इस्लामिक स्टडीज के प्रोफेसर और पद्म श्री अख्तरुल वासे ने डीडब्ल्यू से कहा समान नागरिक संहिता किसी एक धर्म की समस्या नहीं है बल्कि इसका संबंध सभी धर्मों से है। इसलिए मुसलमानों को इस पर गैर जरूरी प्रतिक्रिया देने से बचना चाहिए। प्रोफेसर वासे ने कहा कि 2018 में विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था और कहा था कि भारत में विविधता का जश्न मनाया जाना चाहिए और उसका सम्मान किया जाना चाहिए।

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