कार्टूनिस्ट के परिवार को निशाना बनाने की कोशिश, कहा- 'भक्तों की कारीगरी'

Written by Amir Rizvi | Published on: August 20, 2019
भारत दिन प्रतिदिन फासीवाद की खाई में गिरता चला जा रहा है. लोकतंत्र के स्तंभों में दीमक लग चुकी है. आज सोशल मीडिया पर, सच दिखाने वाले और सरकार की नीतियों की आलोचना करने वाले पत्रकार, समीक्षक, कार्टूनिस्ट और कलाकार सभी के खिलाफ खुल्लम खुल्ला हिंसक और अश्लील पोस्ट किए जा रहे हैं. यहाँ तक कि सत्ता में आसीन ब्लू टिक वाले वेरिफाइड अकॉउंट से भी धमकियाँ दी जा रही हैं और सरकार उनपर कोई कार्यवाही न कर के, डर का वातावरण बनाने में भागीदार होने का प्रदर्शन कर रही है।  

आज इसी हिंसक श्रृंखला को आगे बढ़ाते हुए अंध-भक्तों ने भारत के जाने माने राजनैतिक कार्टूनिस्ट श्री सतीश आचार्य पर घिनौना आक्रमण किया है. उन्होंने सोशल मीडिया पर न केवल सतीश आचार्य जी की तस्वीर पोस्ट की है बल्कि उनकी बच्ची की भी तस्वीर पोस्ट कर के अपशब्द लिखे हैं और लोगों को हिंसा के लिए उकसाया है।  

सतीश आचार्य ने हाल ही में  प्रधान मंत्री के लाल क़िले के भाषण में कहे जनसंख्या नियंत्रण वाली बात पर एक मज़ाहिया कार्टून बनाया था।  गौर करने की बात यह है, कि यह कार्टून  जनसंख्या नियंत्रण की आलोचना तो दूर, मोदीजी की कही बात पर व्यंग तक नहीं कस रहा था।



ऐसे ही उनके हाल ही के कार्टून में कश्मीर मसले के जटिल होने की बात दिखाई गयी थी।  



सतीश आचार्य के अनेक कार्टून पाकिस्तान, कांग्रेस एवं रोज़मर्रा की चीज़ों पर भी तंज कसते हैं।



सतीश आचार्य ने तंग आकर आज अपने फेसबुक पर लिखा है कि "भक्त मेरी छोटी बेटी के साथ मेरी तस्वीर पोस्ट करके मुझे निशाना बनाने के लिए नीचता के नए स्तर तक गिर गए हैं और व्यंग में बनाए कार्टून के लिए मुझे गालियां दे रहे हैं। वैसे तो कई अच्छे दोस्त हैं, जो नरेंद्र मोदी के प्रशंसक भी हैं। यदि वे मुझसे असहमत होते हैं, तो मुझसे बहस कर लेते हैं, लेकिन वे कभी भी हटधर्मी बन कर इस प्रकार की नीचता के स्तर पर नहीं उतारते हैं।

ये भक्त हिन्दू संस्कृती के बारे में बात करते हुए स्वयं ही हर दिन हिन्दू संस्कृति को नष्ट कर रहे हैं। उम्मीद है कि लोगों को जल्द ही इस बात का एहसास होगा।
अंत में, आप अपनी धमकियों और गंदी चाल से मुझे कार्टून बनाने से नहीं रोक सकते। ऐसी हरकतें सिर्फ मेरे कार्टून को सही ठहराएंगी। भगवान आपका भला करे!"

भारत में सोशल मीडिया पर धमकियां केवल सोशल मीडिया तक ही सीमित नहीं रही हैं, लगातार बुद्धिजीवियों, कलाकारों, लेखकों और आलोचकों पर आक्रमण हो रहे हैं। भक्तों की इसी मानसिकता के कारण कलबुर्गी, पानसरे और लंकेश हत्याकांड हुए हैं। आज आलम ऐसा है कि भाजपा के अंध भक्त छोटी से छोटी बात पर भी अपनी संकरी मानसिकता दिखाने से नहीं चूकते।  उग्र राष्ट्रवाद के ज़माने के सोशल मीडिया पर कोई भी कुछ भी कर सकता है और कह सकता है, कि देश हित में कर रहा है।   

गौरतलब है कि 'रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स' की ओर से जारी विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 180 देशों में से 140वें स्थान पर  गिर चुका है. 2018 में भारत में काम करने वाले कम से कम छह पत्रकारों की मौत हो चुकी हैं! https://rsf.org/en/india 

चितांजनक बात तो यह है कि ऐसी स्थितिओं में पुलिस की कार्यवाही न के बराबर होती है।  ऐसे में कलाकार, कार्टूनिस्ट, बुद्धिजीवी आसानी से 'भक्तों' का निशाना बन जाते है।  किसी ने सतीश आचार्य के ट्विटर पर सच ही लिखा है - 'एक समय पर इन्हे भक्त कहा जाता था, अब इन्हे साइबर टेर्रोरिस्ट कहा जाता है' .  

असल में इस प्रकार के हिंसक तत्वों से लोकतंत्र को बचाने के लिए पुलिस को या न्यायलय को स्वयं ही सुओ मोटो कार्यवाही करनी चाहिए, खासकर के प्रभावशील लोगों के विरुद्ध जो लगातार द्वेष और हिंसा को भड़का कर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंट रहे हैं.

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