केरल के बाढ़ में मरे लोगों के लिए जिनका दिल नहीं पिघलता वो PM का भाषण सुनकर रोने लगते हैं

Written by Mithun Prajapati | Published on: August 20, 2018
आज फिर मजबूरन उनके घर मुझे सब्जी छोड़ने जाना पड़ा। मैंने दरवाजे पर पहुँचकर बेल बजाई। सफेद कुर्ता और पायजामा पहने एक राहुल गांधी से दिखने वाले व्यक्ति ने दरवाजा खोला। उसके चेहरे के हावभाव से लगता था कि दरवाजा खोलने का काम उसका नहीं है, लेकिन उसने दरवाजा खोलकर मुझपर एहसान किया है। मैं धन्य हो गया।


उसके कुछ पूछने से पहले ही मैंने सब्जियों की थैलियां ऊपर उठा दी। उसनें कहा- जी, आप मिथुन ?
मैंने हां में सिर हिला दिया। उन्होंने कहा- अंदर आ जाइए, फादर टॉयलेट में हैं। 

मैं घर के अंदर दाखिल हुआ। सब्जियां बगल में रखी और वहीं सोफे पर बैठ गया। वह मेरे सामने बैठे थे। मैं समय पास करने के लिए घर का मुआयना करने लगा। सजावट बेहतरीन थी। मसलन गुलदस्ते, किताबें, फ्रेम से बंधी टंगी हुई फोटुएं इतने करीने से सजाई गई थीं कि तारीफ की जाती तो जाया नहीं जाती। एक चीज ने सोचने पर मजबूर कर दिया, हनुमान के बगल में भगतसिंह की फोटो क्या उद्देश्य था ? 

हनुमान को लगाई गई अगरबत्तियां का धुंवा भगतसिंह को भरपूर मिल रहा था। उनके घर में भगतसिंह पूज्यनीय थे। भारतीय संस्कृति की यही खास बात है, वह महान विभूतियों के विचारों को ग्रहण नहीं करता बस  उस विभूति की पूजा करता है।

मुझे बैठे अबतक करीब तीन मिनट हो चुके थे। फादर अब भी टॉयलेट में ही थे। मेरे सामने बैठे राहुल गांधी जैसे दिखने वाले व्यक्ति ने मेरे समय को काटने की प्रक्रिया में मदद के उद्देश्य से पूछा- टमाटर तो बहुत महंगे हो गए हैं न जी !!

अकसर लोग समय काटने के लिए राजनीति की चर्चा करते हैं। जैसे एलीट क्लास कहता है... यू नो , मोदी जी इज डूइंग वेल... आफ्टर नोटबंदी ,GST आवर कंट्री इज बीइंग मोर पावरफुल ... एक्चुली मोदी जी इज अगेंस्ट करप्शन एंड ही इज डूइंग वेल।

आम आदमी कहता है- पाँच साल में बेचारा कितना करी... कांग्रेस के सत्तर साल दिहल गइल मोदी के कम से दस साल त बनता है।

मैं चाहता हूँ कि कोई मुझसे पॉलिटिक्स की बात करे, लेकिन लोग मुझसे टमाटर का भाव पूछने लगते हैं। मैं कहना चाहता हूँ कि सर किसी और मुद्दे पर बात करते हैं न, लेकिन वे जैसे घाघ नेताओं की तरह मन भाप लेते हैं और कहते हैं- अब तो प्याज भी ऊपर चढ़ रही है , है न जी ?

मैं बस न चाहते हुए भी नोटबंदी के समर्थन की तरह हां में सिर हिला देता हूँ।

एक साहब एक बार मुझपर मेहरबान हुए थे और फ़िल्म की चर्चा करने लगे। उन्होंने मुझे 'ग़दर एक प्रेम कथा' देखने की सलाह दी। मैंने उन्हें सैराट देखने के लिए कहा। उन्होंने बताया कि वे देख चुके हैं पर फ़िल्म से आहत हुए हैं। उनके आहत होने का कारण फ़िल्म का क्लीमेक्स था। वे कहने लगे- अब  ऐसा कहाँ होता है ? अब ऑनर किलिंग कहाँ देखने को मिलती ! और कहां है अब जातिवाद ?

चर्चा में मैं निराश हुआ। मैंने उनके मुताबिक बात करते हुए कहा- आप ' आप टाइगर ज़िंदा है' देखिए, बढ़िया फ़िल्म है। 
वे खुश हुए।

समय काटने जैसा गैर जरूरी काम करते हुए मेरी निगाह सामने रखे अखबार पर पड़ी। लाल किले से मोदी जी के भाषण का जिक्र पहले पृष्ठ पर था। वो मेरी तरफ देखते हैं और कहते हैं- कल मोदी जी ने बहुत ही शानदार स्पीच दी। आपने सुना कि नहीं ?

मैंने ना में सिर हिला दिया। वे फिर बोले- फादर तो TV देखते- देखते इमोशनल हो गए और रोने लगे। 
मैंने पूछा - मगर क्यों ?

वे बोले- मोदी जी का भाषण के बाद जाते वक्त अपनी गाड़ी से निकलकर बच्चों के बीच जाना, कितना भाउक क्षण था। पहली बार देश को ऐसा PM मिला है। मेरी भी आंखें नम थीं। मैं भी उनके उस भावुकता में शामिल होने का प्रयास करने लगा मगर हो नहीं पाया। 

फादर आ चुके थे। हाथ मे उनके चाय का कप था। वहीँ टेबल पर कटोरी थी जिसके ऊपर अखबार का एक टुकड़ा था और उसपर कुछ नमकीन रखी थी। अखबार में छपी खबर बस थोड़ी ही दिख रही थी- केरल के बाढ़ में मरने वाले  की संख्या 250 सौ के पार पहुँची। 

फादर ने कटोरी से नमकीन उठाई और खबर पर ध्यान चला गया था इसलिए विश्लेषण करते हुए कहा- इतना बड़ा देश है, सरकार कहाँ- कहाँ ध्यान दे ! 
मैं बस फादर का मुंह ताक रहा था की कितने संवेदनशील हैं वे जो PM का भाषण सुनकर रोने लगते हैं।

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