एक टेलीविजन चैनल में काम करने वाले मित्र का फोन कल बहुत दिनों बाद आया। सबसे पहले पूछा व्यस्त तो नहीं हो। मैंने कहा, बिल्कुल नहीं। उसने पूछा टेलीविजन तो नहीं देख रहे। मैंने कहा नहीं। तो उसने मजाक में कहा कि खाली बैठे क्या कर रहे हो? जो कर रहा था बता दिया तो उसने लंबी सांस ली और कहा, तब बात हो सकती है। मैंने कहा, बिल्कुल। मैं तो सब से यही कहता हूं कि मई 2014 से खाली बैठा हूं। पहले 18 घंटे काम करता था। अब मोदी जी करते हैं। मेरे पास घंटे दो घंटे से ज्यादा का काम नहीं है। इंतजार में बैठा रहा हूं, कब आए और कब दाना-पानी का जुगाड़ पूरा हो। इसपर उसने बताया कि मोदी जी को सुनो। ऐसा भाषण दे रहे हैं कि चैनलों पर वही छाया हुआ है। दफ्तर में मेरे पास कोई काम नहीं है। लोकसभा मे भाषण पूरा हुआ तो राज्यसभा में शुरू होगा और टेलीविजन पर भी शुरू हो गया। खैर उससे तो इधर-उधर की बातें हुईं। संसद में मोदी जी का भाषण भूल ही गया। अभी टेलीग्राफ खोला तो मिस्टर अर्धसत्य नया नाम मिला।
आइए, आपको बताऊं कि माजरा क्या है। अखबार ने लिखा है कि नेहरू जी तो बड़े हैं। बहुत बड़े। श्रीमान अर्धसत्य इससे निपटिए (कायदे से जवाब दीजिए पर वो तो देते नहीं हैं)। शायद इसीलिए अखबार ने लिखा है कि (अपने) भक्तों से निपटिए कि झूठ काहे बोले। पर यही पूछते तो भक्त होते? इसके बाद अखबार ने लिखा है कि नरेन्द्र मोदी ने कल लोक सभा में 1950 के नेहरू लियाकत अली करार का उल्लेख नागरिकता (संशोधन) कानून में मुसलमानों को अलग रखने का न्यायोचित ठहराने के लिए किया। उन्होंने कहा, नेहरू जैसे बड़े धर्म निरपेक्ष व्यक्ति, इतने बड़े दूरद्रष्टा और आपके लिए सबकुछ, वहां उन्होंने अल्पसंख्यकों की जगह सभी नागरिकों का उपयोग क्यों नहीं किया?
अखबार ने इसके बराबर में नेहरू लियाकत करार का शुरुआती वाक्य छापा है जिसमें कहा गया है कि धर्म का प्रभाव नहीं होगा। इसे हाइलाइट किया गया है और अखबार ने लिखा है कि उसे हमने हाइलाइट किया है (यानी वहां वह सामान्य ढंग से ही लिखा है)। इसके बाद अखबार ने माट्वैन का एक कोट छापा है जो हिन्दी में लिखा जाए तो कुछ इस तरह होगा, अर्धसत्य सबसे कायरता पूर्ण झूठ है। अखबार ने अपनी खबर के बीच में एक बॉक्स में बताया है कि लोकसभा के अपने भाषण के एक हिस्से में मोदी जी ने 23 बार नेहरू का उल्लेख किया। जेपी यादव की खबर में विलियम शेक्सपीयर के नाटक जूलियस सीजर में मार्क एंटनी के भाषण का हवाला है। यह भाषण लोगों को भावनात्मक रूप से प्रभावित करने का मशहूर उदाहरण है और इस भाषण की तुलना इतिहास के कई भाषणों से की जाती रही है जब लोगों को प्रभावित करने के लिए ऐसे उपायों का सहारा लिया जाता है।
इस संदर्भ में अखबार ने बताया है कि मार्क एंटनी ने अपने इस भाषण में मित्रों, रोमन्स, देशवासियों (मेरी बात सुनें) का प्रयोग आठ बार किया था पर मोदी जी ने अपने कल के (इसी अंदाज के) भाषण में नेहरू जी के नाम का प्रयोग 23 बार किया। पूरी खबर पढ़िए और देखिए कि आपके हिन्दी अखबार ने क्या बताया है। वाकई मोदी जी बहुत अच्छा बोलते हैं। पर अपने लिए। मेरे और आपके लिए नहीं। टेलीग्राफ जैसे अखबार नहीं हों तो पता ही नहीं चले। और उनका झूठ या आधा सच फैलाने के लिए आईटी सेल तथा व्हाट्सऐप्प है ही।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)
आइए, आपको बताऊं कि माजरा क्या है। अखबार ने लिखा है कि नेहरू जी तो बड़े हैं। बहुत बड़े। श्रीमान अर्धसत्य इससे निपटिए (कायदे से जवाब दीजिए पर वो तो देते नहीं हैं)। शायद इसीलिए अखबार ने लिखा है कि (अपने) भक्तों से निपटिए कि झूठ काहे बोले। पर यही पूछते तो भक्त होते? इसके बाद अखबार ने लिखा है कि नरेन्द्र मोदी ने कल लोक सभा में 1950 के नेहरू लियाकत अली करार का उल्लेख नागरिकता (संशोधन) कानून में मुसलमानों को अलग रखने का न्यायोचित ठहराने के लिए किया। उन्होंने कहा, नेहरू जैसे बड़े धर्म निरपेक्ष व्यक्ति, इतने बड़े दूरद्रष्टा और आपके लिए सबकुछ, वहां उन्होंने अल्पसंख्यकों की जगह सभी नागरिकों का उपयोग क्यों नहीं किया?
अखबार ने इसके बराबर में नेहरू लियाकत करार का शुरुआती वाक्य छापा है जिसमें कहा गया है कि धर्म का प्रभाव नहीं होगा। इसे हाइलाइट किया गया है और अखबार ने लिखा है कि उसे हमने हाइलाइट किया है (यानी वहां वह सामान्य ढंग से ही लिखा है)। इसके बाद अखबार ने माट्वैन का एक कोट छापा है जो हिन्दी में लिखा जाए तो कुछ इस तरह होगा, अर्धसत्य सबसे कायरता पूर्ण झूठ है। अखबार ने अपनी खबर के बीच में एक बॉक्स में बताया है कि लोकसभा के अपने भाषण के एक हिस्से में मोदी जी ने 23 बार नेहरू का उल्लेख किया। जेपी यादव की खबर में विलियम शेक्सपीयर के नाटक जूलियस सीजर में मार्क एंटनी के भाषण का हवाला है। यह भाषण लोगों को भावनात्मक रूप से प्रभावित करने का मशहूर उदाहरण है और इस भाषण की तुलना इतिहास के कई भाषणों से की जाती रही है जब लोगों को प्रभावित करने के लिए ऐसे उपायों का सहारा लिया जाता है।
इस संदर्भ में अखबार ने बताया है कि मार्क एंटनी ने अपने इस भाषण में मित्रों, रोमन्स, देशवासियों (मेरी बात सुनें) का प्रयोग आठ बार किया था पर मोदी जी ने अपने कल के (इसी अंदाज के) भाषण में नेहरू जी के नाम का प्रयोग 23 बार किया। पूरी खबर पढ़िए और देखिए कि आपके हिन्दी अखबार ने क्या बताया है। वाकई मोदी जी बहुत अच्छा बोलते हैं। पर अपने लिए। मेरे और आपके लिए नहीं। टेलीग्राफ जैसे अखबार नहीं हों तो पता ही नहीं चले। और उनका झूठ या आधा सच फैलाने के लिए आईटी सेल तथा व्हाट्सऐप्प है ही।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार, अनुवादक व मीडिया समीक्षक हैं।)