प्रिय नेहरू
अगस्त का महीना चल रहा है और स्वतंत्रता दिवस भी आने को है। आप याद आ गए। मैं आपको देश की स्वतंत्रता में योगदान या प्रथम प्रधानमंत्री होने की वजह से नहीं याद कर रहा हूँ। मैं आपको बच्चों से प्रेम करने की वहज से याद कर रहा हूँ। इस साल मैं अगस्त के महीनें में थोड़ा खुश हूँ, वजह ये की अबतक किसी अस्पताल से या कहीं से भी बच्चों के मरने की खबर नहीं आई है। पिछले साल जब देश को पता चला था कि 'अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं' तो इसलिए इस अगस्त में चिंता खाये जा रही थी। मैं साल भर सोचता रहा की बच्चों के अस्पताल में मरने की खबर सुनकर नेहरू की आत्मा कितनी तड़पी होगी ! इस अगस्त ने मुझे और भयभीत किया लेकिन अभीतक कुछ मोब लिंचिंग की खबर छोड़ दी जाए तो सबकुछ ठीक ही है।
मैं कोई नेता नहीं हूँ, कोई सरकारी न्यूज़ चैनल नहीं हूँ, न कोई विधायक हूँ और न ही कोई सांसद, मंत्री। मैं आम भारतीय हूँ जो आपको याद कर रहा हूँ। मैं वो आम भारतीय हूँ जिसने कितने दंगे देखे, कितनी दलित बस्तियों को जलते देखा, कितने किसानों की आत्महत्याएं देखी, और नोटबंदी जैसी त्रासदी भी झेली। और आपको यह पत्र लिख रहा।
माहौल बड़ा खराब है। आप लोकतंत्र में विश्वास रखते थे, विपक्ष में विश्वास रखते थे पर अब ऐसा नहीं है। सत्तर सालों में बहुत कुछ बदल गया है। सत्ता बदली तो लोकतंत्र की परिभाषा भी बदल चली है। अब सरकार विपक्ष मुक्त संसद का सपना देखती है। उसे साकार करने करने के लिए किसी भी हद तक जा रही है। प्रधानमंत्री बार -बार कहते रहते हैं- मेरा सपना कांग्रेस मुक्त भारत का है। मैं इसे करके रहूंगा। बड़ा विचित्र लगता है ये सब देखकर। मैं आपकी पहली कैबिनेट में आपके धुर विरोधी रहे 'श्यामा प्रसाद मुखर्जी' के मंत्री होने को याद करता हूँ।
किसी चर्चा के दौरान मैंने एक दिन कहा- नेहरू की औद्योगिक नीतियां बहुत अच्छी थीं। उससे देश को बहुत उन्नति हुई। एक साहब भड़क गए। कहने लगे- नेहरू की नीतियों का नतीजा हम भुगत रहे हैं। देश को मोदी जैसा प्रधानमंत्री मिला होता तो आज हम दुनिया पर राज कर रहे होते। मैंने उनसे कहा- नेहरू को आज के जैसा भारत मिला होता तो वे पांच सालों में कहां से कहाँ लेकर चले जाते।
पर लोगों के खुरापाती दिमाग में विकास, तरक्की जैसा कुछ नहीं चल रहा होता है । वे साहब सीधे आपको कहने लगे- मैं साबित कर सकता हूँ नेहरू मुस्लिम था। मैंने कहा- आप कह रहे हैं तो मान लेता हूँ। रहे होंगे मुस्लिम, पर इससे क्या साबित होता है ? आखिर उन्होंने तरक्की तो की न ? जिस हालत में भारत उन्हें मिला था उससे उबरकर देश को दिशा देने से लेकर तरक्की के मार्ग पर लाने का श्रेय तो उन्हें जाता है न ? मेरे इतना कहने पर साहब चुप हो गए।
आप लोकतंत्र की बात करते थे। लोकतंत्र का मूल सवाल पूछने में है, अपनी बात कहने में है।। समय बदल गया है। अब सवाल उठाने वालों को सरकार चुप करा देती है। जनता सरकारी भक्त बन चुकी है। सवाल सरकार से बेरोजगारी को लेकर करो तो जनता में से कोई उठकर पूछता है, " सत्तर सालों तक आप कहाँ थे ?" देश में हो रही किसी घटना पर सरकार की निंदा करो तो कोई कहता है- तब आप क्यों चुप थे?
यह भक्ति का काल है। वह दौर और था जब आपको सिर्फ नेहरू कहके काम चल जाता था। अब प्रधानमंत्री 'नरेंद्र मोदी' को 'मोदी जी' कहना पड़ता है। सिर्फ मोदी कहने से लोगों को लगता है उनका अपमान हो गया।
पिछले कुछ सालों से बदलाव की लहर चल पड़ी है। एक एक दिव्य लाइन आई थी- मेरा देश बदल रहा है। लोगों को लगा अब सबकुछ बदल जायेगा। हां, बदलाव होने लगे। गुड़गांव गुरुग्राम हो गया, अकबर रोड महाराणा प्रताप रोड हो गयी, मुगल सराय जंक्शन बदलकर ' पंडित दीनदयाल उपाध्याय' हो गया। इतने बदलाव की उम्मीद नहीं थी। चर्चाएं तो आपके नाम से बनी चीजों को बदलने को लेकर भी हो रही हैं पर उसके लिए अभी समय है। अभी आपका नाम बदनाम किया जा रहा है। लेकिन एक समस्या है। आपका नाम बदनाम करने के लिए कुछ पॉइंट नहीं मिल रहा। लेकिन बदनाम करने वाले पॉइंट खोज ला रहे। जैसे कि सोशल मीडिया पर कई वीडियो मिल जाते हैं जिनमें आपके कई स्त्रियों से संबंध दिखाए जाते हैं, आपके परिवार का इतिहास मुस्लिमों से जोड़ा जाता है, कश्मीर समस्या की मुख्य जड़ आपको बताया जाता है।
मैं खुश हूँ कि उनकी इन हरकतों के बाद भी आप और प्रासंगिक होते जा रहे हैं। आपकी लोकप्रियता बनी है।
मैंने कई लोगों को सूट में गुलाब खोंसे देखा है। पर गुलाब खोंसने से कोई नेहरू थोड़ी बन जाता है। मैंने कई नेताओं को बच्चों से प्रेम करते देखा है पर आपसा नहीं देखा।
बच्चों के नेहरू, चाचा नेहरू। मेरा यह पत्र 15 अगस्त से पहले आपतक पहुंचे।
अगस्त का महीना चल रहा है और स्वतंत्रता दिवस भी आने को है। आप याद आ गए। मैं आपको देश की स्वतंत्रता में योगदान या प्रथम प्रधानमंत्री होने की वजह से नहीं याद कर रहा हूँ। मैं आपको बच्चों से प्रेम करने की वहज से याद कर रहा हूँ। इस साल मैं अगस्त के महीनें में थोड़ा खुश हूँ, वजह ये की अबतक किसी अस्पताल से या कहीं से भी बच्चों के मरने की खबर नहीं आई है। पिछले साल जब देश को पता चला था कि 'अगस्त में तो बच्चे मरते ही हैं' तो इसलिए इस अगस्त में चिंता खाये जा रही थी। मैं साल भर सोचता रहा की बच्चों के अस्पताल में मरने की खबर सुनकर नेहरू की आत्मा कितनी तड़पी होगी ! इस अगस्त ने मुझे और भयभीत किया लेकिन अभीतक कुछ मोब लिंचिंग की खबर छोड़ दी जाए तो सबकुछ ठीक ही है।
मैं कोई नेता नहीं हूँ, कोई सरकारी न्यूज़ चैनल नहीं हूँ, न कोई विधायक हूँ और न ही कोई सांसद, मंत्री। मैं आम भारतीय हूँ जो आपको याद कर रहा हूँ। मैं वो आम भारतीय हूँ जिसने कितने दंगे देखे, कितनी दलित बस्तियों को जलते देखा, कितने किसानों की आत्महत्याएं देखी, और नोटबंदी जैसी त्रासदी भी झेली। और आपको यह पत्र लिख रहा।
माहौल बड़ा खराब है। आप लोकतंत्र में विश्वास रखते थे, विपक्ष में विश्वास रखते थे पर अब ऐसा नहीं है। सत्तर सालों में बहुत कुछ बदल गया है। सत्ता बदली तो लोकतंत्र की परिभाषा भी बदल चली है। अब सरकार विपक्ष मुक्त संसद का सपना देखती है। उसे साकार करने करने के लिए किसी भी हद तक जा रही है। प्रधानमंत्री बार -बार कहते रहते हैं- मेरा सपना कांग्रेस मुक्त भारत का है। मैं इसे करके रहूंगा। बड़ा विचित्र लगता है ये सब देखकर। मैं आपकी पहली कैबिनेट में आपके धुर विरोधी रहे 'श्यामा प्रसाद मुखर्जी' के मंत्री होने को याद करता हूँ।
किसी चर्चा के दौरान मैंने एक दिन कहा- नेहरू की औद्योगिक नीतियां बहुत अच्छी थीं। उससे देश को बहुत उन्नति हुई। एक साहब भड़क गए। कहने लगे- नेहरू की नीतियों का नतीजा हम भुगत रहे हैं। देश को मोदी जैसा प्रधानमंत्री मिला होता तो आज हम दुनिया पर राज कर रहे होते। मैंने उनसे कहा- नेहरू को आज के जैसा भारत मिला होता तो वे पांच सालों में कहां से कहाँ लेकर चले जाते।
पर लोगों के खुरापाती दिमाग में विकास, तरक्की जैसा कुछ नहीं चल रहा होता है । वे साहब सीधे आपको कहने लगे- मैं साबित कर सकता हूँ नेहरू मुस्लिम था। मैंने कहा- आप कह रहे हैं तो मान लेता हूँ। रहे होंगे मुस्लिम, पर इससे क्या साबित होता है ? आखिर उन्होंने तरक्की तो की न ? जिस हालत में भारत उन्हें मिला था उससे उबरकर देश को दिशा देने से लेकर तरक्की के मार्ग पर लाने का श्रेय तो उन्हें जाता है न ? मेरे इतना कहने पर साहब चुप हो गए।
आप लोकतंत्र की बात करते थे। लोकतंत्र का मूल सवाल पूछने में है, अपनी बात कहने में है।। समय बदल गया है। अब सवाल उठाने वालों को सरकार चुप करा देती है। जनता सरकारी भक्त बन चुकी है। सवाल सरकार से बेरोजगारी को लेकर करो तो जनता में से कोई उठकर पूछता है, " सत्तर सालों तक आप कहाँ थे ?" देश में हो रही किसी घटना पर सरकार की निंदा करो तो कोई कहता है- तब आप क्यों चुप थे?
यह भक्ति का काल है। वह दौर और था जब आपको सिर्फ नेहरू कहके काम चल जाता था। अब प्रधानमंत्री 'नरेंद्र मोदी' को 'मोदी जी' कहना पड़ता है। सिर्फ मोदी कहने से लोगों को लगता है उनका अपमान हो गया।
पिछले कुछ सालों से बदलाव की लहर चल पड़ी है। एक एक दिव्य लाइन आई थी- मेरा देश बदल रहा है। लोगों को लगा अब सबकुछ बदल जायेगा। हां, बदलाव होने लगे। गुड़गांव गुरुग्राम हो गया, अकबर रोड महाराणा प्रताप रोड हो गयी, मुगल सराय जंक्शन बदलकर ' पंडित दीनदयाल उपाध्याय' हो गया। इतने बदलाव की उम्मीद नहीं थी। चर्चाएं तो आपके नाम से बनी चीजों को बदलने को लेकर भी हो रही हैं पर उसके लिए अभी समय है। अभी आपका नाम बदनाम किया जा रहा है। लेकिन एक समस्या है। आपका नाम बदनाम करने के लिए कुछ पॉइंट नहीं मिल रहा। लेकिन बदनाम करने वाले पॉइंट खोज ला रहे। जैसे कि सोशल मीडिया पर कई वीडियो मिल जाते हैं जिनमें आपके कई स्त्रियों से संबंध दिखाए जाते हैं, आपके परिवार का इतिहास मुस्लिमों से जोड़ा जाता है, कश्मीर समस्या की मुख्य जड़ आपको बताया जाता है।
मैं खुश हूँ कि उनकी इन हरकतों के बाद भी आप और प्रासंगिक होते जा रहे हैं। आपकी लोकप्रियता बनी है।
मैंने कई लोगों को सूट में गुलाब खोंसे देखा है। पर गुलाब खोंसने से कोई नेहरू थोड़ी बन जाता है। मैंने कई नेताओं को बच्चों से प्रेम करते देखा है पर आपसा नहीं देखा।
बच्चों के नेहरू, चाचा नेहरू। मेरा यह पत्र 15 अगस्त से पहले आपतक पहुंचे।