2021 की जनगणना में 'आदिवासियों' को 'हिंदू धर्म' दर्ज कराने की मुहिम में जुटेगा RSS

Written by Sabrangindia Staff | Published on: February 7, 2020
बीते वर्ष, 25 फरवरी 2019 को नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर देश भर के आदिवासी समाज के लोग जुटे थे। वे नारा लगा रहे थे। वे मांग कर रहे थे कि “हम हिंदू नहीं, 2021 में होने वाले जनगणना में हमारे आदिवासी धर्म का अलग कोड और कॉलम हो।” इससे इतर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) उन्हें हिंदू बनाने की कोशिश में जुट गया है।



दैनिक भास्कर की रिपोर्ट के मुताबिक, नागरिकता संशोधन कानून के साथ-साथ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने एजेंडे में 2021 में होने जा रही जनगणना को भी रखा है। संघ को ऐसी जानकारियां मिली हैं कि आदिवासियों के बीच कुछ ऐसे संगठन काम कर रहे हैं, जो जनगणना के समय उनसे हिंदू की जगह अन्य जाति व धर्म (अदर कास्ट रिलीजन) लिखवाना चाहते हैं।

ऐसे में हिंदू की संख्या घट जाएगी। भोपाल में चल रही समन्वय बैठक अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार (जम्मू कश्मीर के प्रांत प्रचारक रह चुके हैं) ने इस विषय की जानकारी दी। बैठक में बताया गया कि 1991 की जनगणना में हिंदुओं की संख्या 84% थी, जो 2011 में घटकर 69% हो गई। यह आदिवासियों खास तौर पर भील व गौंड के हिंदू की जगह अन्य धर्म लिखवाने के कारण हुआ।

संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि सभी स्वयंसेवक व संगठन आदिवासियों के बीच जाकर उन्हें तमाम परिस्थितियों की जानकारी दें और उन लोगों के बारे में बताएं जो भ्रम फैला रहे हैं। क्षेत्रीय समन्वय बैठक के आखिरी दिन दो सत्र हुए। पहले सत्र को अरुण कुमार और अंतिम सत्र को भागवत ने संबोधित किया। 

3 फरवरी को भोपाल के दौरे पर आए मोहन भागवत ने कहा कि जिन लोगों ने खुद को बुद्धिजीवी माना है उन्हें संगठन में लाया जाना चाहिए और उन्हें 'अनुशासित' होना चाहिए। न्यूज 18 की रिपोर्ट के अनुसार, भोपाल में आरएसएस की बैठक और भागवत के दौरे को गैर भाजपा शासित राज्यों में पैठ बनाने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। 

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ सरकारों ने सीएए और एनआरसी का विरोध किया है। नेशनल हेराल्ड की खबर के मुताबिक, मध्य प्रदेश के जबलपुर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 700 कार्यकर्ताओं ने सीएए-एनपीआर-एनआरसी के खिलाफ अपनी नाराजगी दर्ज कराते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया था। छत्तीसगढ़ देश का पांचवा राज्य बन गया जिसने कैबिनेट में सीएए के खिलाफ एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें केंद्र से इस अधिनियम को रद्द करने के लिए कहा गया है।

छत्तीसगढ़ में अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लोगों की एक बड़ी आबादी है और सीएए और एनआरसी के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए हैं। अगर इसे लागू किया जाता है, तो राज्य की आबादी का एक बड़ा हिस्सा गरीबी से नीचे है जो निरक्षर और भूमिहीन है वह न केवल औपचारिकताओं को पूरा करने में कठिनाइयों का सामना करेंगे, बल्कि नागरिकों की सूची से बाहर रहने के लिए संभावित रूप से निर्धारित होंगे।

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