मुस्लिम शिक्षक को आतंकवादी बताने के आरोप में अदालत ने जी न्यूज, न्यूज18 इंडिया के खिलाफ एफआईआर का आदेश दिया

Written by sabrang india | Published on: June 30, 2025
रिपोर्टिंग में क़ारी इकबाल का पूरा नाम और फोटो शामिल था, जिसे बाद में चैनलों ने स्पष्टीकरण मिलने के बाद हटा लिया। हालांकि, शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि इन प्रसारणों ने शिक्षक के परिवार और उनकी स्थानीय समुदाय में प्रतिष्ठा को भारी नुकसान पहुंचाया।


साभार : द ऑब्जर्वर पोस्ट 

जम्मू-कश्मीर के पुंछ जिले की एक स्थानीय अदालत ने शनिवार को पुलिस को राष्ट्रीय टेलीविज़न चैनलों जी न्यूज और न्यूज18 इंडिया के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया। इन चैनलों पर हाल ही में पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद की सैन्य कार्रवाई 'ऑपरेशन सिंदूर' की रिपोर्टिंग के दौरान एक स्थानीय शिक्षक को गलत तरीके से "पाकिस्तानी आतंकवादी" बताकर बदनाम करने का आरोप है।

द ऑब्जर्वर पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, यह आदेश सब जज और स्पेशल मोबाइल मजिस्ट्रेट शफीक अहमद द्वारा "शेख मोहम्मद सलीम बनाम संघ शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर बजरिए थाना प्रभारी पुंछ" नामक मामले में जारी किया गया। यह सुनवाई अधिवक्ता शेख मोहम्मद सलीम द्वारा दायर की गई शिकायत के आधार पर की गई।

शिकायत में कहा गया है कि मृतक क़ारी मोहम्मद इकबाल पुंछ स्थित जामिया ज़िया-उल-उलूम में धार्मिक शिक्षक थे जिनकी मृत्यु 7 मई को पाकिस्तानी गोलाबारी में हो गई थी। हालांकि, 'ऑपरेशन सिंदूर' की लाइव कवरेज के दौरान दोनों चैनलों ने ऐसे सेगमेंट प्रसारित किए, जिनमें उन्हें झूठे तरीके से एक "कुख्यात आतंकवादी कमांडर" के रूप में दिखाया गया, जिसे "2019 पुलवामा हमले से जुड़ा" और "पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर से संचालित" बताया गया।

रिपोर्टिंग में क़ारी इकबाल का पूरा नाम और फोटो शामिल था, जिसे बाद में चैनलों ने स्पष्टीकरण मिलने के बाद हटा लिया। हालांकि, शिकायतकर्ता ने तर्क दिया कि इन प्रसारणों ने शिक्षक के परिवार और उनकी स्थानीय समुदाय में प्रतिष्ठा को भारी नुकसान पहुंचाया।

सुनवाई के दौरान पुलिस ने तर्क दिया कि चूंकि यह प्रसारण दिल्ली से हुए थे, इसलिए पुंछ अदालत को इस मामले में क्षेत्राधिकार नहीं है। हालांकि, अदालत ने इस तर्क को खारिज कर दिया और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की धारा 199 का हवाला दिया जो उस क्षेत्र में भी न्यायिक अधिकार की अनुमति देती है जहां अपराध -जैसे कि मानहानि- के मामले महसूस किए जाते हैं।

अदालत ने यह स्पष्ट किया कि नुकसान पुंछ में हुआ, जहां पीड़ित रहते थे, काम करते थे और उनकी मृत्यु हुई, जिससे क्षेत्रीय अधिकारिता की पुष्टि होती है।

कड़े शब्दों में अदालत ने चैनलों की कार्रवाइयों की आलोचना करते हुए कहा:

"एक मृत नागरिक शिक्षक को बिना किसी पुष्टि के आतंकवादी करार देना पत्रकारिता की अनुशासनहीनता है, जो अशांति भड़का सकती है और सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचा सकती है।"

अदालत ने माना कि हालांकि मीडिया की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 19(1)(क) के तहत संरक्षित है, लेकिन यह अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंधों के अधीन है, खासकर मानहानि, शिष्टता और सार्वजनिक व्यवस्था से जुड़े मामलों में।

चैनलों द्वारा बाद में मांगी गई माफी के बावजूद, जज ने कहा कि यह पहले से हुए नुकसान की भरपाई के लिए अपर्याप्त है। प्रसारण मानहानि, सार्वजनिक उपद्रव और धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के अपराधों के तहत आता है, जो भारतीय न्‍याय संहिता (BNSS) की धारा 353(2), 356 और 196 के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66 के तहत दंडनीय हैं।

पुंछ के थाना प्रभारी (एसएचओ) को निर्देश दिया गया है कि वह सात दिनों के भीतर प्राथमिकी (FIR) दर्ज करें और एक निष्पक्ष, निष्कलंक व समयबद्ध जांच करें। अदालत को अनुपालन रिपोर्ट सौंपनी होगी, और आदेश की एक प्रति पर्यवेक्षणीय कार्रवाई हेतु वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक (SSP) पुंछ को भी भेजी गई है।

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