महाराष्ट्र: हिंदी थोपने के विरोध में ठाकरे बंधु वर्षों बाद एकजुट, त्रिभाषा फार्मूले को लेकर नाराजगी

Written by sabrang india | Published on: June 28, 2025
शिवसेना (यूबीटी) के प्रमुख उद्धव ठाकरे और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता राज ठाकरे ने महाराष्ट्र सरकार के हिंदी को तीसरी भाषा बनाने के निर्णय का विरोध किया और इसे राज्य में निरंकुश शासन लाने के लिए भाषा आपातकाल घोषित करने जैसा बताया।


फोटो साभार : ईटी 

राज्य सरकार द्वारा प्राथमिक शिक्षा में हिंदी को डिफ़ॉल्ट तीसरी भाषा बनाए जाने के हालिया फैसले का विरोध महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे ने किया।

इसके साथ ही, उनकी पार्टियां 6 और 7 जुलाई को इस फैसले के खिलाफ अलग-अलग विरोध प्रदर्शन करेगी जिससे यह अटकलें तेज हो गई हैं कि स्थानीय निकाय चुनावों से पहले वे लगभग दो दशक बाद फिर से एकजुट हो सकते हैं।

ज्ञात हो कि प्रदेश सरकार ने पिछले सप्ताह एक संशोधित आदेश जारी किया जिसमें कहा गया कि हिंदी को सामान्य तौर पर पहली कक्षा से पांचवीं कक्षा तक मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में छात्रों को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाएगा। सरकार ने कहा था कि हिंदी अनिवार्य नहीं होगी, लेकिन हिंदी के अलावा किसी भी भारतीय भाषा को पढ़ने के लिए स्कूल में प्रत्येक कक्षा में कम से कम 20 छात्रों की सहमति अनिवार्य है।

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, ठाकरे बंधुओं ने अलग-अलग प्रेस कॉन्फ्रेंस की जिसमें उन्होंने तीन भाषा के फार्मूले और महाराष्ट्र में हिंदी थोपने का विरोध किया।

शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कहा कि महायुति सरकार का यह फैसला राज्य में 'भाषा आपातकाल' घोषित करने जैसा है। पूर्व मुख्यमंत्री ने स्पष्ट किया कि उनकी पार्टी हिंदी भाषा के विरोध में नहीं है, लेकिन महाराष्ट्र में इसे लागू किए जाने का वे विरोध करते हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि महायुति अपनी राजनीति के लिए मराठी और हिंदी भाषी समुदायों के बीच 'सद्भाव में जहर घोलने' का प्रयास कर रही है।

उन्होंने कहा, "हिंदी को थोपना महाराष्ट्र में अपनी निरंकुश सरकार लागू करने के लिए भाषा आपातकाल घोषित करने जैसा है। हालांकि हम हिंदी को एक भाषा के रूप में नहीं नकारते, लेकिन हम इसकी अनिवार्यता का विरोध करेंगे और महाराष्ट्र में इसे स्वीकार नहीं करेंगे।"

शिवसेना (यूबीटी) प्रमुख ने यह टिप्पणी मराठी अभ्यास केंद्र के प्रमुख दीपक पवार की अध्यक्षता में कार्यकर्ताओं की एक समिति द्वारा राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ उनके आंदोलन पर चर्चा करने के बाद की।

ठाकरे ने आंदोलन को अपना समर्थन दिया और कार्यकर्ताओं को आश्वासन दिया कि उनकी पार्टी 7 जुलाई को आजाद मैदान में आयोजित रैली में भाग लेगी। उन्होंने यह भी ऐलान किया कि शिवसेना (यूबीटी) सरकार के फैसले के खिलाफ अपना विरोध तब तक जारी रखेगी जब तक कि वह वापस नहीं लिया जाता।

उद्धव ने कहा कि भारत भाषाई आधार पर बने राज्यों का संघ है इसलिए किसी राज्य में कोई भाषा थोपना बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

उन्होंने यह भी कहा कि जिस राज्य में हिंदी फिल्म उद्योग स्थित है, वहां हिंदी थोपने की कोई जरूरत नहीं है। उन्होंने कहा, "मराठी लोग अच्छी हिंदी समझते और बोलते हैं, तो हिंदी थोपने की क्या जरूरत है? हम त्रिभाषा नीति का समर्थन नहीं करते और इसका विरोध करेंगे।"

पूर्व मुख्यमंत्री ने इस फैसले के समय पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, "सोमवार को राज्य विधानमंडल का सत्र शुरू होगा इसलिए हिंदी भाषा के मुद्दे पर विवाद और तीखी बहस होगी। इससे भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार को अपने भ्रष्टाचार के मामलों को छिपाने में मदद मिलेगी, लेकिन हमारी पार्टी इस सरकार के घोटालों और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाएगी।"

राज ठाकरे ने कहा : महाराष्ट्र में मराठी के महत्व को कम करने की साजिश

वहीं, राज ठाकरे ने कहा कि उनकी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) 6 जुलाई को गिरगांव चौपाटी से आजाद मैदान तक एक रैली आयोजित करेगी। उन्होंने कहा कि वह अन्य राजनीतिक दलों के नेताओं, साहित्यकारों, कलाकारों और अन्य मराठी लोगों से इस विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए बात करेंगे।

उन्होंने कहा, "कोई झंडा नहीं होगा। यह मराठी लोगों की रैली होगी और वे इसका नेतृत्व करेंगे। मैं साहित्यकारों, अभिभावकों और छात्रों से बात करूंगा और उन्हें इसमें शामिल होने के लिए कहूंगा। सरकार को पता होना चाहिए कि महाराष्ट्र क्या चाहता है। महाराष्ट्र को अपनी पूरी ताकत दिखानी चाहिए। मैं अन्य राजनीतिक दलों से भी बात करूंगा। यह महाराष्ट्र में मराठी के महत्व को कम करने की साजिश है।"

जब उनसे पूछा गया कि क्या वे शिवसेना (यूबीटी) के नेताओं को भी विरोध प्रदर्शन में शामिल होने के लिए आमंत्रित करेंगे, तो ठाकरे ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों से संपर्क किया जाएगा। साथ ही उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र किसी भी लड़ाई से बड़ा है।

हालांकि उद्धव ठाकरे ने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की कि वह मनसे की रैली में शामिल होंगे या नहीं, लेकिन उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र में गठबंधन सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा ने देश में एक पार्टी, एक विचारधारा का शासन लाने के गुप्त इरादे से हिंदी लागू करने का फैसला किया है।

उन्होंने कहा, "भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा था कि देश में केवल एक ही राजनीतिक पार्टी होगी। उनकी विचारधारा एक राष्ट्र, एक नेता की है। हिंदी थोपना महाराष्ट्र में निरंकुश शासन लाने के उस छिपे हुए एजेंडे का हिस्सा है। महाराष्ट्र के लोग अब समझेंगे कि उन्होंने शिवसेना को क्यों तोड़ा, जिसका गठन मराठी लोगों के अधिकारों की रक्षा के लिए किया गया था।"

मंत्री उदय सामंत ने किया पलटवार

महाराष्ट्र के मराठी भाषा मंत्री और शिवसेना नेता उदय सामंत ने इस आलोचना पर पलटवार करते हुए दावा किया कि जब उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री थे तब महाराष्ट्र के स्कूलों में हिंदी को अनिवार्य बनाने की नीति को जनवरी 2022 में महाविकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के कार्यकाल के दौरान मंजूरी दी गई थी।

एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए सामंत ने कहा कि एमवीए सरकार ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को लागू करने के लिए अक्टूबर 2020 में एक टास्क फोर्स का गठन किया था, जिसने तीन भाषा के फॉर्मूले की सिफारिश की थी।

उन्होंने कहा, "डॉ. रघुनाथ माशेलकर समिति ने पहली से बारहवीं कक्षा तक तीन भाषाओं - मराठी, अंग्रेजी और हिंदी- को अनिवार्य रूप से पढ़ाने की सिफारिश की थी। इस प्रस्ताव को ठाकरे के नेतृत्व वाली राज्य कैबिनेट ने मंजूरी दी थी। अगर ठाकरे गुट ने वास्तव में एनईपी 2020 के तहत अनिवार्य-हिंदी प्रावधान का विरोध किया था, तो उन्होंने उस समय इस पर आपत्ति क्यों नहीं जताई?"

सामंत ने कहा कि महायुति सरकार की स्थिति इस मामले पर स्पष्ट है। उन्होंने कहा, "हिंदी थोपने या अनिवार्य करने की कोई योजना नहीं है। लेकिन नगर निगम चुनाव नजदीक आने के साथ ही कुछ लोग राजनीतिक फायदे के लिए जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं।"

जून 2021 में प्रस्तुत टास्क फोर्स की रिपोर्ट में कहा गया है, "स्कूल में दूसरी भाषा के रूप में अंग्रेजी और हिंदी को पहली कक्षा से ही शुरू किया जाना चाहिए… पहली कक्षा से 12वीं कक्षा (या समकक्ष) तक दूसरी भाषा के रूप में अंग्रेजी और हिंदी पढ़ाना अनिवार्य किया जाना चाहिए और यदि आवश्यक हो तो कॉलेज की तीन-चार साल की शिक्षा के दौरान भी।"

ज्ञात हो कि सरकार के नया आदेश जारी करने पर मराठी भाषा समर्थकों और नेताओं ने काफी आलोचना की है। मराठी भाषा समर्थकों ने सरकार पर शुरू में पीछे हटने के बाद ‘पिछले दरवाजे’ से नीति को फिर से लागू करने का आरोप लगाया, वहीं विपक्ष ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर मराठी लोगों की ‘छुरा घोंपने’ का आरोप लगाया।

बता दें कि इस साल अप्रैल में मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में पहली कक्षा से पांचवीं कक्षा तक हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य बनाने के अपने निर्णय पर भारी आलोचना के बाद महाराष्ट्र सरकार ने अपना फैसला वापस ले लिया था।

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