मोदी के गुजरात में नियमों की अनदेखी कर सड़क तथा भवन विभाग के अधिकारियों ने तीन सफाई कर्चारियों से जबरन नाले को साफ करवाया। इस दौरान उन्हें सुरक्षा के संसाधन भी नहीं दिए गए।

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक नाले की सफाई के लिए 51 वर्षीय कानू पोरबिया को कपड़ा उतार कर 6 फीट गहरे नाले में मजबूरन जाना पड़ा। नाला मनुष्य के मलमूत्र, प्लास्टिक और अन्य वस्तुओं से भरा हुआ था। पोरबिया सिर्फ एक बांस के सहारे गहरे नाले में गया और उसकी सफाई की। पोरबिया का कहना है कि ‘वे लोग पिछले पांच साल से गंदे नाले को साफ कर रहे हैं। बड़ी इमारत यहां गिरा दी गई जिसके कचरे से नाला बंद हो गया। इसलिए अधिकारियों ने हमलोगों को नाला साफ करने को कहा।’ पोरबिया और अन्य सफाई कर्मचारियों ने इस नाले को 21 जुलाई से साफ करना शुरू किया लेकिन बारिश ने काम में बाधा डाल दिया। उनलोगों ने फिर से सफाई का काम 27 जुलाई से शुरू किया। पोरबिया ने आगे कहा कि ये हमारा काम नहीं है। हमलोग अधिकारियों के आदेश का पालन कर रहे हैं। पोरबिया पिछले 32 वर्षों से सड़क एवं भवन विभाग में काम कर रहा है और ये पहला मौका नहीं है जब अधिकारियों ने नाले की सफाई करने को कहा है।
हमलोग अधिकारियों से भयभीत हैं
नाले से गंदगी निकालने के लिए पोरबिया बाल्टी का इस्तेमाल करते है। पोरबिया बाल्टी में गंदगी को भरते है और 57 वर्षीय मनू गोहेल और 48 वर्षीय प्रभात वाघेला बाहर इसे एक तरफ फेंकने का काम करते हैं। गोहेल बताते हैं कि ‘अधिकारियों ने हमलोगों को एक बांस दिया और कहा कि नाले की सफाई करो। अधिकारियों का आदेश मानने के अलावा हमारे पास कोई दूसरा चारा नहीं था। छोटे नाले की सफाई करना ठीक है लेकिन इस तरह बड़े नाले की सफाई करना काफी मुश्किल है। हमलोग बेहद ही गरीब हैं इसलिए डर रहता है कि अगर अधिकारियों का आदेश नहीं मानेंगे तो वे हमारे साथ क्या करेंगे।’ वाघेला ने आगे बताया कि ‘हमलोग नाले की सफाई करना नहीं चाहते हैं लेकिन इसके अलावा कोई दूसरा विकल्प है ही नहीं। मेरी कमाई पर पूरा परिवार आश्रित है। हम किस तरह जीवनयापन करेंगे अगर हमारी नौकरी चली जाएगी?’ इन सफाई कर्मचारियों से मरी हुई बिल्ली और कबूतर भी हटवाए गए। इन सबके अलावा मजदूरी के रूप में विभाग इनको सिर्फ 14 हजार रुपए महीना देती है। इन्हें स्वास्थ्य तथा अन्य सुविधाएं भी नहीं दी जाती हैं।
अधिकारियों को SC का आदेश नहीं मालूम
मामला सामने आने के बाद सड़क तथा भवन विभाग के अतिरिक्त सहायक इंजीनियर एसजे मच्चर ने कहा कि विभाग के सफाई कर्मचारियों से ही अक्सर नाले की सफाई करवाई जाती है, मुझे पता नहीं था कि इस तरह का काम लेना बंद कर दिया गया है। मानव गरिमा एनजीओ के संस्थापक परसोत्तम वाघेला ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2014 में ही सभी राज्यों को आदेश दिया था कि मनुष्यों से नाले की सफाई करवाना बंद किया जाए और ऐसे कर्मचारियों के पुनर्वास के लिए कदम उठाए। शीर्ष अदालत के आदेश के बावजूद मनुष्यों से नाले की सफाई करवाए जा रहे हैं। परसोत्तम वाघेला ने कहा कि वे लोग भी इंसान हैं और उनकी जिंदगी को खतरे में नहीं डाला जा सकता है। उन्होंने कहा कि अधिकारियों को इसके बारे में जानकारी होनी चाहिए।
नौकरी जाने का डर
उधर पुलिस को घटना की जानकारी दी गई लेकिन तीनों सफाई कर्मचारियों ने नौकरी जाने के डर से मामला दर्ज करने से मना कर दिया। ज्ञात हो कि अगर कोई अधिकारी नियमों का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ ‘अट्रोसिटी एक्ट-2015’ की धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज किया जा सकता है।
This article was first publishe in the Ahmedabad Mirror.