उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में ज़मीन विवाद को लेकर हुए नरसंहार के बाद सियासत गर्म हो गई है। बुधवार को ट्रैक्टर सवार आए बदमाशों ने दिनदहाड़े ताबड़तोड़ गोलियां चलाई थीं, जिसमें लगभग 10 लोगों की मृत्यु होने के अलावा कई लोग घायल हुए थे। इस घटना ने पुलिस व्यवस्था पर सवाल उठाने के साथ सभी को झकझोर के रख दिया है। खबरों के अनुसार, आज पूर्वी यूपी से काँग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी घटना पीड़ितों से मिलने सोनभद्र जाने वाली थीं, पर उन्हें बीच रास्ते में मिर्ज़ापुर के पास नारायणपुर में पुलिस द्वारा हिरासत में ले लिया गया है।
क्या है पूरा मामला?
गौरतलब है कि 16 जुलाई को आदिवासियों की 112 बीघा ज़मीन पर कब्जा करने के मंशा से 32 ट्रैक्टरों में सवार होकर करीब 300 लोग गाँव में घुस कर आए थे। गाँव पहुँचते ही उन लोगों ने ट्रैक्टरों से खेतों में जुताई शुरू कर दी। जिसका आदिवासियों द्वारा विरोध करने पर आधे घंटे तक अंधा-धून गोलीबारी की गई। इस एक तरफा झड़प में बच्चों व बुज़ुर्गों को भी नहीं बख़्शा गया और 10 लोगों की मौत होने के साथ 23 लोग बुरी तरह घायल हुए हैं।
NDTV की खबर के अनुसार मामले के मुख्य आरोपी गाँव के प्रधान यज्ञ दत्त और उसके भतीजे समेत 25 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि 11 नामजद और 50 अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। बातचीत के दौरान एक प्रत्यक्षदर्शी ने कहा कि “'हम नहीं जानते थे कि वे लोग हथियारों-बंदूकों के साथ आए थे। जब उन्होंने फायरिंग शुरू की, हम खुद को बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे और पुलिस को बुलाना शुरू कर दिया। पुलिस एक घंटे के बाद आई, जबकि फायरिंग करीब आधे घंटे चली।'
सोनभद्र में हुई इस हत्याकांड के बाद सियासत गर्म हो गई है। मुख्यमंत्री योगी के कार्यकाल के दौरान कानून व्यवस्था को इस कदर तार-तार कर देने वाली यह घटना कई सवाल खड़े कर रही है।
विधानसभा में सपा सदस्यों का विरोध
इस घटना पर तीखी प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए सपा के विधानसभा व विधान परिषद के सदस्यों ने परिसर में जमकर नारेबाजी की व चौधरी चरण सिंह की प्रतिमा के पास बैठ कर धरना प्रदर्शन किया। सपा सदस्यों ने सोनभद्र में हुए इस नर-संहार को योगी सरकार की नाकामी के तौर पर बताया है। इस विरोध प्रदर्शन में पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के निर्देश पर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष राम गोविंद चौधरी, विधान परिषद में नेता विपक्ष अहमद हसन समेत व प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम खासतौर पर शामिल हुए। इन लोगों ने हाथ में पोस्टर बैनर ले रखा था, जिस पर लिखा था 'भाजपा सरकार मस्त है, कानून-व्यवस्था ध्वस्त है'। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपने पद से इस्तीफ़ा देने की मांग की गई है। इस घटना को योगी सरकार की बड़ी हार के तौर पर बताया गया है।
प्रियंका गांधी के काफ़िले को पुलिस ने रोका
इतना ही नहीं, घटना के पीड़ितों से मिलने जा रही काँग्रेस पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी को पुलिस द्वारा हिरासत में लेने के बाद विवाद और बढ़ गया है। सूत्रों के अनुसार, प्रियंका गांधी आज वाराणसी में मामले के पीड़ितों से मिलने के बाद सोनभद्र जा रही थीं। परंतु, मिर्ज़ापुर से कुछ ही दूर नारायणपुर चौकी के पास पुलिस ने उनका काफ़िला रोक दिया, जिसके बाद प्रियंका गांधी वहीं सड़क पर धरना देने लगी और अधिकारियों से गिरफ़्तारी के आदेश की कॉपी मांगी। पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने को लेकर सवाल करने पर उन्होंने कहा कि “हां, मुझे हिरासत में लिया गया है, लेकिन मुझे कहां ले जाया जा रहा है यह मुझे पता नहीं है। लेकिन मैं तय कर चुकी हूं कि मैं सोनभद्र में परिवारों से मिले बिना वापस नहीं जाने वाली हूँ।“ प्रियंका गांधी ने सरकार पर सवाल करते हुए कहा कि “क्या ऐसे बनेगा यूपी अपराध मुक्त?” उन्होंने अपना इरादा साफ़ करते हुए कहा कि “राज्य सरकार जो भी कर ले, जहां भी हमें ले जाए, हम जाएंगे पर हम नहीं झुकेंगे।“ फिलहाल प्रियंका गांधी को चुनार गेस्ट हाउस ले जाया गया है।
प्रियंका गांधी को पुलिस द्वारा रोके जाने पर सोशल मीडिया के माध्यम से राहुल गांधी ने कहा- “सोनभद्र, उत्तरप्रदेश में प्रियंका को अवैध ढंग से गिरफ्तार करना परेशान करने वाली बात है। यह तो ताकत का मन-माना इस्तेमाल है। प्रियंका उन आदिवासी किसानों के परिवारों से मिलने जा रही थीं, जिन्होंने अपनी ज़मीन खाली करने से इनकार कर दिया था। ऐसे में उन्हें गोली मार दी गई। भाजपा सरकार के राज में यूपी में असुरक्षा बढ़ रही है।“
बता दें कि सोनभद्र के मूर्तिया गांव में धारा 144 लगी हुई है, जिसके तहत काँग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के काफ़िले को रोका गया है। धारा 144 को लागू करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट अंकित कुमार अग्रवाल के आदेश को यहाँ पढ़ा जा सकता है-
घटना पर सरकार व अधिकारियों की प्रतिक्रिया
राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस घटना को लेकर दुख जताते हुए दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई किए जाने का आश्वासन दिया है। उन्होंने बताया कि सोनभद्र में हुए संघर्ष मामले में उपमंडलीय मजिस्ट्रेट, सर्किल अधिकारी और पुलिस निरीक्षक को निलंबित कर दिया गया है। साथ ही मामले की जांच के लिए अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व) के नेतृत्व में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है और दस दिनों के अंदर रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा है। इसके अलावा मुख्यमंत्री ने सभी पीड़ितों को 5-5 लाख मुआवजा देने की बात कही है।
मामले पर वाराणसी इलाके के ADG ने कहा कि “प्रधान यज्ञ दत्त अपने साथियों के साथ उम्भा गाँव में ट्रैक्टर से पहुंचा और उनके खेतों में जुताई करना शुरू कर दिया। जिसका विरोध किसानों ने किया, और जल्द ही अन्य ग्रामीण भी इसमें शामिल हो गए। मामला गंभीर होने पर दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर पथराव किया। जिसके बाद गोलीबारी शुरू हो गई।“
मुख्यमंत्री को राष्ट्रीय कार्यसमिति का पत्र
घटना को लेकर राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिख कर मामले के दोषियों को सख्त सज़ा देने की मांग की है। अखिलेन्द्र सिंह ने अपने पत्र में लिखा कि –“मारे गए परिवार के लोगों को महज मुआवजा देकर जमीन के सवाल से जुड़े हुए सवालों को हल नहीं किया जा सकता। उम्भा काण्ड बताता है कि कैसे ढेर सारे फर्जी ट्रस्ट व अन्य अवैध तरीकों से गरीबों की जमीन, गांव सभा की जमीन, को भूमि माफियाओं को दे दिया जाता है। जो गांव सभा की जमीन को कब्जा कर लेते हैं, ट्रस्ट बना लेते हैं और फिर उस जमीन को ऊंचे दामों पर लोगों को बेच देते है।“
वनाधिकार अधिनियम को लेकर अखिलेन्द्र सिंह ने अपने पत्र में लिखा कि “देश भर में लंबे संघर्ष के बाद वनाधिकार कानून आदिवासियों और वन पर आश्रित लोगों के लिए बना। पर उसे ईमानदारी से लागू करने की जगह किस तरह उससे मिलने वाले लाभ से लोगों को वंचित कर दिया जाए, इसके षड्यंत्र में शासन-प्रशासन लगा रहा, जो बेहद दुखद है। माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र जिले में प्रशासन, वनाधिकार कानून के तहत पुश्तैनी बसे हुए आदिवासियों और वन निवासियों को उनका अधिकार देने की जगह उनको जमीनों से बेदखल कर रहा है, और जिन जमीनों पर उनका कब्जा था, उन्हें इस बार के सीजन में खेतीबाड़ी से भी रोका जा रहा है जबकि उनका दावा अभी निरस्त नहीं हुआ है और कानूनी तौर पर वे उन जमीनों के मालिक हैं।“
पत्र में अखिलेन्द्र सिंह ने मुख्यमंत्री से घटना की गंभीरता से जांच करने के साथ उम्भा गाँव के पीड़ितों पर गुंडा एक्ट के तहत लगाए गए झूठे आरोप को तत्काल निरस्त करने की मांग की है। इसके अलावा ज़मीन के मुद्दे के लिए अलग कमिटी का गठन करने और वनाधिकार अधिनियम को ईमानदारी से लागू करने के लिए अनुरोध किया है।
सोनभद्र में हुए इस नर-संहार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आज भी देश में आदिवासियों का अपनी ज़मीन के लिए संघर्ष खत्म नहीं हुआ है। सत्ताधारी ताकतों और प्रशासन द्वारा उनके अधिकारों का आज भी हनन किया जा रहा है। इस घटना को लेकर राजनीतिक स्तर पर मुद्दे उठाए जा रहे हैं, परंतु उन आदिवासियों की कोई सुनने वाला नहीं है, जो आज़ाद भारत में भी सालों से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने पर मजबूर हैं।
क्या है पूरा मामला?
गौरतलब है कि 16 जुलाई को आदिवासियों की 112 बीघा ज़मीन पर कब्जा करने के मंशा से 32 ट्रैक्टरों में सवार होकर करीब 300 लोग गाँव में घुस कर आए थे। गाँव पहुँचते ही उन लोगों ने ट्रैक्टरों से खेतों में जुताई शुरू कर दी। जिसका आदिवासियों द्वारा विरोध करने पर आधे घंटे तक अंधा-धून गोलीबारी की गई। इस एक तरफा झड़प में बच्चों व बुज़ुर्गों को भी नहीं बख़्शा गया और 10 लोगों की मौत होने के साथ 23 लोग बुरी तरह घायल हुए हैं।
NDTV की खबर के अनुसार मामले के मुख्य आरोपी गाँव के प्रधान यज्ञ दत्त और उसके भतीजे समेत 25 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया, जबकि 11 नामजद और 50 अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है। बातचीत के दौरान एक प्रत्यक्षदर्शी ने कहा कि “'हम नहीं जानते थे कि वे लोग हथियारों-बंदूकों के साथ आए थे। जब उन्होंने फायरिंग शुरू की, हम खुद को बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे और पुलिस को बुलाना शुरू कर दिया। पुलिस एक घंटे के बाद आई, जबकि फायरिंग करीब आधे घंटे चली।'
सोनभद्र में हुई इस हत्याकांड के बाद सियासत गर्म हो गई है। मुख्यमंत्री योगी के कार्यकाल के दौरान कानून व्यवस्था को इस कदर तार-तार कर देने वाली यह घटना कई सवाल खड़े कर रही है।
विधानसभा में सपा सदस्यों का विरोध
इस घटना पर तीखी प्रतिक्रिया प्रकट करते हुए सपा के विधानसभा व विधान परिषद के सदस्यों ने परिसर में जमकर नारेबाजी की व चौधरी चरण सिंह की प्रतिमा के पास बैठ कर धरना प्रदर्शन किया। सपा सदस्यों ने सोनभद्र में हुए इस नर-संहार को योगी सरकार की नाकामी के तौर पर बताया है। इस विरोध प्रदर्शन में पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के निर्देश पर विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष राम गोविंद चौधरी, विधान परिषद में नेता विपक्ष अहमद हसन समेत व प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम खासतौर पर शामिल हुए। इन लोगों ने हाथ में पोस्टर बैनर ले रखा था, जिस पर लिखा था 'भाजपा सरकार मस्त है, कानून-व्यवस्था ध्वस्त है'। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अपने पद से इस्तीफ़ा देने की मांग की गई है। इस घटना को योगी सरकार की बड़ी हार के तौर पर बताया गया है।
प्रियंका गांधी के काफ़िले को पुलिस ने रोका
इतना ही नहीं, घटना के पीड़ितों से मिलने जा रही काँग्रेस पार्टी की महासचिव प्रियंका गांधी को पुलिस द्वारा हिरासत में लेने के बाद विवाद और बढ़ गया है। सूत्रों के अनुसार, प्रियंका गांधी आज वाराणसी में मामले के पीड़ितों से मिलने के बाद सोनभद्र जा रही थीं। परंतु, मिर्ज़ापुर से कुछ ही दूर नारायणपुर चौकी के पास पुलिस ने उनका काफ़िला रोक दिया, जिसके बाद प्रियंका गांधी वहीं सड़क पर धरना देने लगी और अधिकारियों से गिरफ़्तारी के आदेश की कॉपी मांगी। पुलिस द्वारा हिरासत में लिए जाने को लेकर सवाल करने पर उन्होंने कहा कि “हां, मुझे हिरासत में लिया गया है, लेकिन मुझे कहां ले जाया जा रहा है यह मुझे पता नहीं है। लेकिन मैं तय कर चुकी हूं कि मैं सोनभद्र में परिवारों से मिले बिना वापस नहीं जाने वाली हूँ।“ प्रियंका गांधी ने सरकार पर सवाल करते हुए कहा कि “क्या ऐसे बनेगा यूपी अपराध मुक्त?” उन्होंने अपना इरादा साफ़ करते हुए कहा कि “राज्य सरकार जो भी कर ले, जहां भी हमें ले जाए, हम जाएंगे पर हम नहीं झुकेंगे।“ फिलहाल प्रियंका गांधी को चुनार गेस्ट हाउस ले जाया गया है।
प्रियंका गांधी को पुलिस द्वारा रोके जाने पर सोशल मीडिया के माध्यम से राहुल गांधी ने कहा- “सोनभद्र, उत्तरप्रदेश में प्रियंका को अवैध ढंग से गिरफ्तार करना परेशान करने वाली बात है। यह तो ताकत का मन-माना इस्तेमाल है। प्रियंका उन आदिवासी किसानों के परिवारों से मिलने जा रही थीं, जिन्होंने अपनी ज़मीन खाली करने से इनकार कर दिया था। ऐसे में उन्हें गोली मार दी गई। भाजपा सरकार के राज में यूपी में असुरक्षा बढ़ रही है।“
बता दें कि सोनभद्र के मूर्तिया गांव में धारा 144 लगी हुई है, जिसके तहत काँग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी के काफ़िले को रोका गया है। धारा 144 को लागू करने के लिए जिला मजिस्ट्रेट अंकित कुमार अग्रवाल के आदेश को यहाँ पढ़ा जा सकता है-
घटना पर सरकार व अधिकारियों की प्रतिक्रिया
राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने शुक्रवार को हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस घटना को लेकर दुख जताते हुए दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई किए जाने का आश्वासन दिया है। उन्होंने बताया कि सोनभद्र में हुए संघर्ष मामले में उपमंडलीय मजिस्ट्रेट, सर्किल अधिकारी और पुलिस निरीक्षक को निलंबित कर दिया गया है। साथ ही मामले की जांच के लिए अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व) के नेतृत्व में तीन सदस्यीय समिति का गठन किया गया है और दस दिनों के अंदर रिपोर्ट सौंपने के लिए कहा है। इसके अलावा मुख्यमंत्री ने सभी पीड़ितों को 5-5 लाख मुआवजा देने की बात कही है।
मामले पर वाराणसी इलाके के ADG ने कहा कि “प्रधान यज्ञ दत्त अपने साथियों के साथ उम्भा गाँव में ट्रैक्टर से पहुंचा और उनके खेतों में जुताई करना शुरू कर दिया। जिसका विरोध किसानों ने किया, और जल्द ही अन्य ग्रामीण भी इसमें शामिल हो गए। मामला गंभीर होने पर दोनों पक्षों ने एक दूसरे पर पथराव किया। जिसके बाद गोलीबारी शुरू हो गई।“
मुख्यमंत्री को राष्ट्रीय कार्यसमिति का पत्र
घटना को लेकर राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र लिख कर मामले के दोषियों को सख्त सज़ा देने की मांग की है। अखिलेन्द्र सिंह ने अपने पत्र में लिखा कि –“मारे गए परिवार के लोगों को महज मुआवजा देकर जमीन के सवाल से जुड़े हुए सवालों को हल नहीं किया जा सकता। उम्भा काण्ड बताता है कि कैसे ढेर सारे फर्जी ट्रस्ट व अन्य अवैध तरीकों से गरीबों की जमीन, गांव सभा की जमीन, को भूमि माफियाओं को दे दिया जाता है। जो गांव सभा की जमीन को कब्जा कर लेते हैं, ट्रस्ट बना लेते हैं और फिर उस जमीन को ऊंचे दामों पर लोगों को बेच देते है।“
वनाधिकार अधिनियम को लेकर अखिलेन्द्र सिंह ने अपने पत्र में लिखा कि “देश भर में लंबे संघर्ष के बाद वनाधिकार कानून आदिवासियों और वन पर आश्रित लोगों के लिए बना। पर उसे ईमानदारी से लागू करने की जगह किस तरह उससे मिलने वाले लाभ से लोगों को वंचित कर दिया जाए, इसके षड्यंत्र में शासन-प्रशासन लगा रहा, जो बेहद दुखद है। माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद चंदौली, मिर्जापुर, सोनभद्र जिले में प्रशासन, वनाधिकार कानून के तहत पुश्तैनी बसे हुए आदिवासियों और वन निवासियों को उनका अधिकार देने की जगह उनको जमीनों से बेदखल कर रहा है, और जिन जमीनों पर उनका कब्जा था, उन्हें इस बार के सीजन में खेतीबाड़ी से भी रोका जा रहा है जबकि उनका दावा अभी निरस्त नहीं हुआ है और कानूनी तौर पर वे उन जमीनों के मालिक हैं।“
पत्र में अखिलेन्द्र सिंह ने मुख्यमंत्री से घटना की गंभीरता से जांच करने के साथ उम्भा गाँव के पीड़ितों पर गुंडा एक्ट के तहत लगाए गए झूठे आरोप को तत्काल निरस्त करने की मांग की है। इसके अलावा ज़मीन के मुद्दे के लिए अलग कमिटी का गठन करने और वनाधिकार अधिनियम को ईमानदारी से लागू करने के लिए अनुरोध किया है।
सोनभद्र में हुए इस नर-संहार ने यह स्पष्ट कर दिया है कि आज भी देश में आदिवासियों का अपनी ज़मीन के लिए संघर्ष खत्म नहीं हुआ है। सत्ताधारी ताकतों और प्रशासन द्वारा उनके अधिकारों का आज भी हनन किया जा रहा है। इस घटना को लेकर राजनीतिक स्तर पर मुद्दे उठाए जा रहे हैं, परंतु उन आदिवासियों की कोई सुनने वाला नहीं है, जो आज़ाद भारत में भी सालों से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करने पर मजबूर हैं।