हिम्मत है तो चुनाव राम मन्दिर पर ही लड़ कर दिखाइए...

Written by Shashi Shekhar | Published on: October 20, 2018
मैं मोहन भागवत जी की बात को गंभीरता से नहीं ले रहा हूं. इसलिए कि वो भारत के किसी भी कानून (सिवाए नागरिक होने के) के तहत पंजीकृत व प्रतिबद्ध संस्था (जो भारत के कानून और संविधान के प्रति उत्तरदायी हो) के मुखिया के नाते ये बात नहीं बोल रहे हैं कि सरकार राम मन्दिर के लिए कानून बनाए. एक इंडिविजुअल के तौर पर वो कुछ भी कहने को स्वतंत्र है, जैसे मैं उनकी बात गंभीरता से न लेने के लिए स्वतंत्र हूं.



रह गई बात मन्दिर बनाने की तो जब जमीन के विवाद में सरकार कोई पक्ष ही नहीं है तो फिर बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना बनने की जरूरत न सरकार को है, न मुझे और न ही भागवत जी को. अदालत फैसला दे. जो फैसला आए, सब माने. बात खत्म.

लेकिन, दिक्कत अलग है. सबरीमाला प्रकरण में अदालत के फैसले के बाद जो हो रहा है, उसके संकेत को समझिए. अव्वल तो ये कि इस तरह के मामले में अदालत को न्यूनतम हस्तक्षेप करना चाहिए. समाज ये सारी बातें तय करें कि कौन मन्दिर जाएगा, कौन नहीं? समाज का प्रभावित हिस्सा खुद ये तय कर ले कि उसे किस मन्दिर में जाना है, किस में नहीं. मतलब, जब आपके जाने से धर्म की पवित्रता को आंच आ जाती है तो या तो आप उस धर्म से विमुक्त हो जाए या फिर उस धर्म का आजीवन बिना सवल किए, पालन करे.

लेकिन, जिस तरह से अदालती फैसले के बाद भी समर्थन-विरोध चल रहा है, उसका दूरगामी प्रभाव यही होने वाला है कि अदलातों की सर्वोच्चता/पवित्रता/अखंडता और अदालतों पर आम आदमी का विश्वास कमजोर होता चला जाएगा. और ये स्थिति इतनी ही खराब नहीं होगी. हम तब भारत के सबसे बडे धर्म “संविधान” को भी कमतर बनाते जाएंगे. सोचिए, जब संविधान/कानून का इकबाल कमजोर होगा तब भला देश कितना मजबूत रह पाएगा.

ये हालात निश्चित ही देश को किसी अराजक अफ्रीकन कंट्री की राह पर ले जाने के लिए पर्याप्त होगा. मुझे आश्चर्य हो रहा है कि सुप्रीम कोर्ट क्या कर रहा है?

खैर. भागवत जी, आप विद्वान होंगे. लेकिन, जनता की नब्ज भी पकड लेते है, ऐसा मैं नहीँ कह सकता. क्योंकि, बिहार चुनाव मेँ आपने “आरक्षण” वाला थर्मामीटर सटाने की कोशिश की थी और बुरी तरह फेल साबित हुए थे. तो, चलिए इस बार मन्दिर वाला थर्मामीटर ही लगा कर देख लीजिए. कहिए मोदी जी से कि 2019 का लोकसभा चुनाव राम मन्दिर पर ही लड के दिखाए...

(ये लेखक के निजी विचार हैं। शशि शेखर वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये आलेख पूर्व में उनके आधिकारिक फेसबुक पोस्ट में प्रकाशित किया जा चुका है।)

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