विवाद बढ़ने पर दिल्ली यूनिवर्सिटी के कुलपति ने कहा: पाठ्यक्रम से मनुस्मृति हटाई गई, भविष्य में नहीं पढ़ाई जाएगी

Written by sabrang india | Published on: June 13, 2025
मनुस्मृति को पाठ्यक्रम में शामिल करने की घोषणा के कुछ ही दिनों बाद वापस लिया जाना इस बात को दर्शाता है कि इसके खिलाफ हुए विरोध-प्रदर्शनों का कितना गहरा प्रभाव पड़ा। पहले इस पाठ्यक्रम का उद्देश्य यह बताया गया था कि “प्राचीन भारतीय समाज को समग्र रूप में और उसके विभिन्न अंगों सहित, संस्कृत में संकलित धर्मशास्त्र नामक ग्रंथों में चित्रित किया गया है।


 फोटो साभार : द हिंदू

नई दिल्ली: दिल्ली यूनिवर्सिटी में धर्मशास्त्र अध्ययन नाम के एक नए पाठ्यक्रम की घोषणा के कुछ दिन बाद, जिसमें मनुस्मृति को एक प्रमुख ग्रंथ के रूप में शामिल किया गया था, विश्वविद्यालय के कुलपति योगेश सिंह ने गुरुवार (12 जून) को कहा कि यह ग्रंथ विश्वविद्यालय में “किसी भी रूप में” नहीं पढ़ाया जाएगा।

टाइम्स ऑफ इंडिया और इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार कुलपति योगेश सिंह ने कहा, "हम दिल्ली यूनिवर्सिटी में मनुस्मृति का कोई भी हिस्सा, किसी भी रूप में नहीं पढ़ाएंगे। यह निर्देश पहले ही कुलपति कार्यालय द्वारा जारी किया जा चुका है और विभागों को इसका पालन करना चाहिए था। विभाग को यह पाठ्यक्रम इन निर्देशों के बावजूद शामिल नहीं करना चाहिए था"। कुछ दिन पहले पाठ्यक्रम के ऑब्जेक्टिव में कहा गया था कि "समग्र रूप में और उसके विभिन्न भागों सहित प्राचीन भारतीय समाज को संस्कृत में संकलित धर्मशास्त्र नामक ग्रंथों में चित्रित किया गया है।"

इस घोषणा से ठीक पहले X (पूर्व में ट्विटर) पर मनुस्मृति को पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने की बड़े पैमाने पर आलोचना हुई थी। आलोचकों का कहना था कि यह ग्रंथ सामाजिक, आर्थिक और लैंगिक असमानताओं का महिमामंडन करता है। विश्वविद्यालय के कुछ फैकल्टी मेंबर ने भी इस फैसले को लेकर चिंता जताई थी और विरोध दर्ज कराया था।

दिलचस्प बात यह है कि रामायण, महाभारत और पुराणों जैसे अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथों को भी इस पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है। यह पाठ्यक्रम इस शैक्षणिक सत्र में एक कोर कोर्स (अनिवार्य पाठ्य) के रूप में शुरू किया गया है और इसमें कुल चार क्रेडिट हैं। यह कोर्स उन स्नातक छात्रों के लिए खुला है जिन्हें संस्कृत का कार्यशील ज्ञान (working knowledge) है।

पाठ्यक्रम में जिन प्रमुख ग्रंथों को प्राथमिक पाठ्य सामग्री (primary readings) के रूप में शामिल किया गया है, उनमें आपस्तंब धर्मसूत्र, बौधायन धर्मसूत्र, वशिष्ठ धर्मसूत्र, मनुस्मृति, यज्ञवल्क्य स्मृति, नारद स्मृति और कौटिल्य का अर्थशास्त्र शामिल हैं।

कुलपति योगेश सिंह ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, "इस ग्रंथ को संस्कृत विभाग के ‘धर्मशास्त्र अध्ययन’ पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है। भविष्य में भी यदि हमारे संज्ञान में आता है कि इस ग्रंथ को अध्ययन के लिए सुझाया गया है, तो प्रशासन उसे हटा देगा।"

दिल्ली विश्वविद्यालय ने संस्कृत पाठ्यक्रम से मनुस्मृति हटाई

जिस दिन टाइम्स ऑफ इंडिया ने रिपोर्ट किया कि दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग ने ‘धर्मशास्त्र अध्ययन’ पाठ्यक्रम के कोर पाठ्यक्रम में मनुस्मृति को शामिल किया है, उसी दिन विश्वविद्यालय ने सोशल मीडिया पर इसकी हटाने की घोषणा कर दी।

टीएनएन ने लिखा, "दिल्ली विश्वविद्यालय में किसी भी पाठ्यक्रम में मनुस्मृति ग्रंथ नहीं पढ़ाया जाएगा। संस्कृत विभाग के ‘धर्मशास्त्र अध्ययन’ (डीएससी) पाठ्यक्रम में जहां मनुस्मृति को ‘रिकमेंडेड रीडिंग’ के रूप में उल्लेख किया गया था, उसे हटा दिया गया है।" इस पोस्ट में कई सरकारी बड़े लोगों को टैग भी किया गया। मनुस्मृति को पाठ्यक्रम में शामिल किए जाने पर बड़े पैमाने पर आलोचना हुई थी।

विश्वविद्यालय द्वारा “नए पाठ्यक्रम” की घोषणा के दो दिन बाद इसके वापस लेने की घोषणा इस बात का संकेत देती है कि यह फैसला बड़े पैमाने पर विरोधों के कारण लिया गया। 12 जून को टाइम्स ऑफ इंडिया ने एक रिपोर्ट में बताया था कि दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों को अब यह पढ़ाया जाएगा कि कैसे वर्ण या जाति प्रणाली समाज को संगठित करती है, कैसे विवाह एक “सभ्य” सामाजिक व्यवस्था बनाने में मदद करता है, और कैसे नैतिकताएं व्यक्तिगत व्यवहार को नियंत्रित करती हैं। ये पाठ धर्मशास्त्र अध्ययन नामक नए संस्कृत पाठ्यक्रम का मुख्य हिस्सा बनने वाले थे, जिसमें मनुस्मृति को प्रमुख ग्रंथ के रूप में शामिल किया गया था।

अखबार ने यह भी लिखा कि “मनुस्मृति, जिसे पहले कानून और इतिहास ऑनर्स पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रस्ताव प्रशासन ने विरोध के चलते रोक दिया था, अब एक बार फिर इस विशिष्ट विषय पाठ्यक्रम में अनिवार्य पठन सामग्री के रूप में शामिल किया गया है। इसके साथ ही, रामायण, महाभारत और पुराणों जैसे अन्य हिंदू धार्मिक ग्रंथ, जिन पर भी इसी तरह आपत्तियां उठी थीं, उन्हें भी इस पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है।”

मौजूदा शैक्षणिक सत्र में डिसिप्लिन के तहत एक कोर कोर्स के रूप में पेश किया गया यह पेपर चार क्रेडिट का है और संस्कृत के कार्यशील ज्ञान वाले स्नातक छात्रों के लिए है। डिसिप्लिन स्पेसिफिक कोर (विशिष्ट विषय का अनिवार्य पाठ्यक्रम) का मतलब छात्र के चुने हुए अध्ययन क्षेत्र के भीतर के पाठ्यक्रमों से है जो उनके कार्यक्रम के लिए अनिवार्य हैं।

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