नदी में लाश फेंके जाने की घटना पर SC का तंज- क्या चैनल के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज हुआ?

Written by Sabrangindia Staff | Published on: June 1, 2021
नई दिल्ली। कोरोना संकट में मीडिया, सोशल मीडिया पर सरकारी अंकुश से नाखुश सुप्रीम कोर्ट ने तंज कसते हुए उस घटना का जिक्र किया जिसमें पीपीई किट पहने दो लोगों को एक शव नदी में फेंकते देखा गया। कोर्ट का कहना था कि खबर देखी है, लेकिन ये नहीं पता कि खबर दिखाने वाले चैनल पर देशद्रोह का केस दर्ज हुआ है या नहीं।



आंध्र प्रदेश के टीवी चैनलों पर दर्ज मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एल नागेश्वर राव की बेंच ने नदी में कोविड मरीज की लाश फेंकने की घटना का जिक्र किया। जस्टिस राव ने कहा कि कल लाश को नदी में फेंके जाने की घटना से जुड़ी तस्वीरें देखीं। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने सरकार का मखौल उड़ाने वाली ये टिप्पणी की। बेंच ने आंध्र प्रदेश के टीवी चैनलों पर दर्ज मामले में रोक लगाते हुए कहा कि अब समय आ गया है जब कोर्ट को ये बताना होगा कि राष्ट्रद्रोह की परिभाषा क्या है?

कोर्ट ने कहा कि आईपीसी की धारा 124ए और 153 को विस्तार से परिभाषित करने की जरूरत है। इसमें पहली धारा राष्ट्रद्रोह के लिए है जबकि दूसरी दंगों से जुड़ी है। इससे पहले मार्च में कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर के सांसद फारुक अब्दुल्ला के मामले में दायर याचिका को निरस्त करते हुए कहा था कि सरकार से इतर अपनी राय रखने को देशद्रोह नहीं माना जा सकता। उस मामले में कोर्ट ने याचिका दाखिल करने वाले पर 50 हजार का जुर्माना भी लगाया था। बीते साल दिसंबर में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मदन बी लोकुर ने भी कहा था कि देशद्रोह की धारा का इस्तेमाल मीडिया और अभिव्यक्ति पर बंदिशें लगाने के लिए किया जा रहा है।

कोरोना संकट के बीच सोशल मीडिया के जरिए मदद मांग रहे लोगों पर कार्रवाई करने पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकारों को सख्त हिदायत दी थी। अप्रैल के आखिरी सप्ताह में अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई नागरिक सोशल मीडिया पर शिकायत दर्ज कराता है तो इसे गलत जानकारी नहीं कहा जा सकता है।

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को यूपी सरकार के हालिया ऐक्शन से जोड़कर देखा जा रहा है, जिसमें सोशल मीडिया ऑक्सिजन की गुहार लगाने वाले एक युवक के खिलाफ केस दर्ज किया गया था। जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा था कि वो स्पष्ट करना चाहते हैं कि यदि नागरिक सोशल मीडिया और इंटरनेट पर अपनी शिकायत दर्ज कराते हैं तो इसे गलत जानकारी नहीं कहा जा सकता है। किसी भी जानकारी पर शिकंजा कसना मूल आचरण के विपरीत है।

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद अब लोग बेरोकटोक अपनी आवाज सरकारी तंत्र के खिलाफ उठा रहे हैं, क्योंकि कोर्ट ने सभी राज्य सरकारों को सख्त हिदायत दी है कि ऐसे किसी भी मामले में अगर कोई कार्रवाई हुई, तो उसे कोर्ट की अवमानना समझा जाएगा। दरअसल, बीते दिनों अमेठी पुलिस ने अपने बीमार नाना की मदद के लिए ट्वीट करने पर शशांक यादव नाम के युवक के खिलाफ महामारी एक्ट के तहत केस दर्ज किया था। उसके बाद ये मामला उठा।

बाकी ख़बरें