विज्ञान को खारिज कर अन्धविश्वास थोपने का राजीतिक कुचक्र

Written by Vidya Bhushan Rawat | Published on: January 22, 2018
डार्विन के सिद्धांतो को माननीय मंत्री जी के ख़ारिज करने के बाद से मानो भूचाल आ गया है. देश के वैज्ञानिको ने कहा के सरकार को ऐसा नहीं करना चाहिए और मंत्री जी के वक्तव्य पर तरह तरह की प्रतिक्रियाये आ रही है लेकिन फिर एक बात कहना चाहता हूँ के क्या मंत्री ने जो कुछ कहा वो अचानक मुंह से निकली कोई बात थी या ये सब बड़ी सोची समझी रणनीति के तहत हो रहा है, इस पर चर्चा करने की जरुरत है. ये बिलकुल तैयार की गयी साजिश के तहत हो रहा है और इसलिए इस युद्ध में सबको उतरना चाहिए क्योंकि ये भारत के भविष्य का प्रश्न भी है क्योंकि संघ और उनके दस्ते भारत को मनुवाद के गर्त में धकेलना चाहते है. शायद जैसे जैसे सत्ता ब्राह्मणवाद के चंगुल से बाहर निकलने के प्रयास करेगी, वापस उस 'स्वर्णिम' अतीत की तरफ हमें धकेलने की कोशिश होगी जो किसी के लिए स्वर्णिम था और बहुसंख्य लोगो के लिए अतातातियो का हिंसक और भेद्जनित राज्य. ये केवल डार्विन का सिद्धांत नहीं है असल में इसको ख़ारिज करने की आड़ में मनुवाद को लादने के प्रयास भी है. मंत्री जी संघ के आदेश के बगैर कुछ बोल भी नहीं सकते और नागपुरी महंतो को ही खुश करने के लिए कह रहे थे. आज कल अपनी निष्ठां दिखाने का समय भी है इसलिए ऐसे पापड़ भी बेलने पड़ते है.

Satyapal Singh
Image: Indian Express
 
मत भूलिए के आप उस दौर में हैं जहा भारत के युवाओं को भविष्य की तैय्यारी नहीं अपितु भूत के आगोश में समेटने की कोशिश है. तीन हज़ार साल पुराणी संस्कृति की बाते हो रही है और रोज रोज कोई न कोई महापुरुष या महिला हमें प्रवचन दिए जा रहे है. अब मुंबई में रिलायंस के बड़े अस्पताल के उद्घाटन अवसर पर ये भाषण किस ने दिया, ' महाभारत का कहना है कर्ण माँ की गोद से पैदा नहीं हुआ था. इसका मतलब ये है के उस समय जेनेटिक साइंस मौजूद था. हम गणेश जी की पूजा करते है कोई तो प्लास्टिक सर्जन होगा उस ज़माने में जिसने मनुष्य के शरीर पर हाथी का शरीर रख कर प्लास्टिक सर्जरी का प्रारंभ किया होगा.' मुझे बताने की जरुरत नहीं है के ये महान वक्तव्य किनका है ये अक्टूबर २०१४ में दिया गया और इसका प्रचार भी हुआ क्योंकि संघियों ने इस पर कहा के हमारे यहाँ तो सब कुछ मौजूद था. वैसे भी संघ की पाठशालाओ में आपको भारत की महान वैज्ञानिक उपलब्धियों के बारे में हमेशा से ही पढाया जाता है.
 
वैसे पिछले तीन चार वर्षो में भारत की महानता का बखान करने की बीमारी लाइलाज हो चुकी है. अपनी संस्कृति और सभ्यता पर हम सभी को गर्व होना चाहिए और ये अभिप्राय भी नहीं होना चाहिए के हमारे पूर्वज सभी गधे थे लेकिन केवल आत्ममुग्धता में अपने भूत की सभी बातो को स्वर्णिम सोचना भी उतना ही बेवकूफी वाला है जितना के सबको ख़ारिज कर देना .
 
अब डार्विन के सिद्धांतो को तो अमेरिका में राष्ट्रपति ट्रम्प की पार्टी के नेताओं और चर्च ने पुर्णतः ख़ारिज कर दिया और टर्की में एंड्रोजन के आने के बाद वह के इस्लामिक कट्टरपंथी 'चिंतको' ने भी ख़ारिज कर दिया तो भारत के हिन्दू कट्टरपंथी क्यों कम हो. वो तो मुस्लिम और ईसाई बड़बोलो से कम्पटीशन कर रहे है . लेकिन जहा अमेरिका में लोग अपने जीवन में विज्ञानं के महत्व को जानते है और बीमार होने पर डाक्टर के ही पास जायेंगे हमारे देश के महान बाबा जो खुद थोडा सा बीमार होने पर अलोपथिक डाक्टर के पास जाते है वे अपने चेलो को संस्कृति के नाम पर झोला छाप डाक्टर की गोद में धकेलते है.
 
खतरा ये नहीं के मोदी या उनके मंत्री क्या कह रहे है. सबसे बड़ा खतरा है के मीडिया क्या कह रहा है. वो राम, रावण,सीता, सुपर्न्खा के घर गुफाये ढूंढ रहा है. साहित्यकार हमारे प्राचीन वैज्ञानिक उपलब्धियों का महिमामंडन कर रहे है और माननीय न्यायमूर्ति लोग मोर के आंसुओ से मोरनी को गर्भवती करेंगे तो हमारे चिंतन का स्तर पता चल जाता है.
 
वैसे मोदी जी ने जो प्लास्टिक सर्जरी की बात की वो तो वाकई में सच है. आखिर हमारे सभी देवी देवता तो साधारण मनुष्यों की तरह नहीं दीखते. विचार में चाहे वे बिलकुल साधारण हो लेकिन चाल ढाल रंग रूप में तो वे असाधारण ही है. आखिर अभी तो पसीने से गर्भवती होने के कही वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है लेकिन हमारे ग्रंथो में तो है. आदमी के सर पर हाथी का सर ही एकमात्र सर्जरी नहीं है. गाय के शरीर पर औरत का सर भी है. दस सर किसी के नहीं हो सकते है क्योंकि एक ही संभालना मुश्किल है तो दस कैसे संभलेंगे लेकिन हमारे यहाँ तो है. भारी भरकम देव भी पतले से चूहे को अपना वहां बनता है और उल्लू भी वाहन है. तो जो दुनिया में कही नहीं हो सकता वो भारत में हुआ है और आगे भी होता रहेगा . आखिर धर्म का इतना बड़ा फलता फूलता धंधा भला दुसरे किसी देश में मिलेगा. इस्लामिक मुल्ले आग उगलते है हेयर और जन्नत में हूरो के इन्तेजार में लोगो को धर्म के नाम पर आग उगलवाते है लेकिन हमारे बाबाओं ने तो अपने विशाल साम्राज्यों को ही 'जन्नत' बना दिया है. लोग लुटते है, पिटते है लेकिन फिर भी उनके साम्राज्यों पर असर नहीं. एक अगर किसी आरोप में बहुत मुश्किल से जेल भी जाता है तो दर्जनों नए पैदा हो रहे है और अब तो महिलाए भी इस 'क्षेत्र' में आगे आ रही है.
 
भाइयो और बहिनों, डार्विन के सिद्धांतो को मंत्री महोदय के ख़ारिज करने से परेशान मत होइए क्योंकि आपके कहने से वे रुकने वाले नहीं. देश में मानववाद ख़त्म करके मनुवादी व्यवस्था लाने के लिए तो वो सब करना पड़ेगा जिससे आदमी के सोचने समझने की शक्ति ख़त्म हो जाए. आखिर जब इतनी बड़ी संख्या में सोचने वाले लोग हैं तो सवासौ करोड़ लोगो को सोचने की जरुरत क्या है. अगर वो सोचना शुरू कर देंगे तो बॉलीवुड, मीडिया, क्रिकेट सब का धंधा चौपट हो जाएगा. इसलिए सोचना नहीं है. सोचोगे तो फिल्म, क्रिकेट, बाबा, टीवी, अख़बार सबसे छुट्टी लेनी पड़ेगी और ये तो बहुत दुखदायी है न. माँ, बाप, दोस्त, किताबे, विचार सब छोड़ देना पर टीवी, सिनेमा, क्रिकेट न छोड़ना, कही ज्यादा सोच लेगे तो मानवीय सोच आ जायेगी. मनुवादी येही चाहते है के आप सोचे नहीं बस व्यस्त रहे और उनकी सूचनाओं के तंत्र पर चर्चाये करते रहे. वो फेंकते रहेंगे और हम हांकते रहेंगे. उनकी क्रियाओं पर प्रतिक्रियाये देते रहेंगे . ये ही सनातन है. आप उलझे रहो और जब बहुत उलझन बढ़ जाए तो अपने हाथ की रेखाओं को दिखवा लीजिये या कोई ताबीज पहन लीजिये. डार्विन वार्विन हमारे बाबाओं के आगे कहा है. वो अब बाबागिरी से आगे बढ़ चुके है अब तो खुली दादागिरी कर रहे है. टीवी उनका, न्यूज़ उनकी, सरकार उनकी, जमीन उनकी, आपका क्या..
 
बहुत बड़ा संकट है और जब तक लोग समझेंगे नहीं हम इन बातो को केवल उतने तक ही सीमित करेंगे के एक मंत्री ने कुछ कह दिया. ये मंत्री जी ने न गलती में कुछ बोला और न ही अचानक. पूरा प्लान है आपको धर्म और अन्धविश्वास के जाल में फंसाने का ताके बुद्धा,आंबेडकर, फुले, पेरियार, भगत सिंह, राहुल संकृत्यायन आदि की जो परम्परा है उससे आपको भटका दे क्योंकि इन्होने तो सवाल किये और न केवल सवाल किये बल्कि अपना विकल्प भी दे दिया..मनुवादी चालबाजी यही है के आपकी समस्याओं का समाधान भी वो स्वयं ही देना चाहता है इसलिए वैज्ञानिक चिंतन और तर्कपूर्ण संस्कृति विकसित करने की जिम्मेवारी हमारी है ताकि हमारे भावी पीढ़ी संस्कृति के नाम पर जातिवादी कूपमंडूकता में न फंसी रहे. याद रहे धार्मिक अन्ध्विशास केवल मात्र अन्ध्विशास नहीं ये राजनीती और कूटनीति है जो लोगो को उनके साथ हुए अन्याय को भाग्य मानकर चुप रहने को मजबूर करती है, उनको व्यस्था से सवाल करने से रोकती है. हमें उम्मीद है भारत की महान तार्किक विरासत के वारिश हम लोग न केवल शिक्षा व्यवस्था अपितु सामाजिक और सार्वजानिक जीवन में अंधविश्वास के जरिये देश के वंचित तबको को और शोषित करने की चालो को समझेंगे और उनका जवाब केवल और केवल बुद्धा बाबा साहेब और अन्य लोगो की तार्किक विरासत पर चल कर और उसे आगे बढ़ाकर ही दिया जा सकता है.

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