1. चीनी सैनिक भारतीय सीमा में घुस आए, प्रमुख ठिकानों पर कब्जा जमा लिया। किसी को पता नहीं चला, बताया नहीं गया।
2. पांच-छह मई को टकराव हुआ, घुसपैठ की बात सामने आई। पर सरकार ने कुछ नहीं कहा। पूछने पर भी नहीं।
3. 15-16 जून की रात चीनी और भारतीय सैनिकों में संघर्ष हुआ 20 सैनिक शहीद हुए। एएनआई ने यह खबर 16 जून को रात 9:49 पर दी।
4. एएनआई ने ही 16 जून की ही रात 9:54 पर खबर दी कि भारतीय इंटरसेप्ट्स से पता चलता है कि चीन के 43 सैनिक मारे गए हैं। इंटरसेप्ट की खबर एएनआई को इतनी जल्दी मिलना सामान्य नहीं है।
5. चीन के साथ तनाव तो 1962 के बाद या उससे पहले से है। लेकिन सीमा पर मोटा-मोटी शांति रही है। जब तनाव हुआ तो सरकार ने कई दिनों तक ना खबरों का खंडन किया ना कोई कार्रवाई करती नजर आई।
6. कोविड-19 पर सर्वदलीय बैठक से पहले 17 जून को प्रधानमंत्री ने इस विवाद पर पहली बार कुछ कहा, .... लेकिन उकसाने पर हर हाल में हम यथोचित जवाब देने में सक्षम हैं। 20 शहादत के बाद उकसाने पर यथोचित जवाब का मतलब आप समझ सकते हैं। हालांकि इसकी जो विज्ञप्ति जारी हुई उसमें भी हिन्दी का यथोचित शब्द निर्णायक हो गया और अंग्रेजी में तो बदल ही गया। यानी अखबारों में वह छपा जो प्रधानमंत्री ने कहा ही नहीं।
7. इसके बाद प्रधानमंत्री का जो बयान आया वह चीन के पक्ष में ज्यादा भारत के पक्ष में कम था। इसीलिए सोशल मीडिया पर छाया रहा कि चीन ने उसका अनुवाद करके अपने लोगों को दिखाया है। बाद में इसका स्पष्टीकरण जारी हुआ।
8. भारतीय शहीद सैनिकों की टीम के सबसे वरिष्ठ अधिकारी तेलंगाना के थे। दूसरे शहीदों में बंगाल से लेकर पंजाब, उड़ीसा और झारखंड के जवान थे। कुल मिलाकर सेना भारत की है लेकिन बिहार रेजीमेंट नाम होने पर बिहारियों को गर्व होने की बात प्रधानमंत्री ने कही। भाजपा ने इस आशय का ट्वीट किया।
9. किसी खंडन स्पष्टीकरण बजाय यह एएनआई की ओर से यह दावा किया गया कि शहीदों को बिहारी कहना सामान्य है। सेना में ऐसा कहा जाता है। यह सब इस तथ्य के बावजूद कि एएनआई की संपादक ने इसी मई में ट्वीट कर मीडिया को बताया था कि पुलित्जर पुरस्कार पाने वाले कश्मीर के फोटोग्राफर भारतीय हैं, कश्मीरी नहीं। उन्हें कश्मीर वैसे ही नहीं लिखा जाए जैसे किसी तमिल को पुरस्कार मिलने पर उसे तमिल नहीं लिखा जाता। लेकिन बिहार चुनाव से पहले सेना के बिहार रेजीमेंट के जवानों के शहीद होने पर बिहारियों को गर्व होना सामान्य बात हो गई।
10. इसकी तुलना पुलवामा से कीजिए तो लगता है गलतियां छिपाने के लिए इस बार पहले जैसा बड़बोलापन नहीं है।
11. और अब आज की एक प्रमुख खबर है कि पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना से जारी तनाव के बीच सरकार ने तीनों सेनाओं को घातक हथियार और गोला-बारूद की खरीद के लिए 500 करोड़ रुपये के आपात फंड को मंजूरी दी गई है। क्या आपको लगता है कि सेना के पास आवश्यक हथियार नहीं होना सामान्य बात है और तनाव के समय रुपए आवंटित करने की खबर छपवाना सामान्य है। अगर हथियार जरूरी थे तो महीने भर में खरीदे जाने चाहिए थे। उसका ऑर्डर किया जाना चाहिए था न कि वेंटीलेटर खरीदने की तरह प्रचार। दोनों मामलों में सरकार का रवैया एक ही है।
बिहार में इसे भोज के समय कोहड़ा रोपना कहा जाता है।
2. पांच-छह मई को टकराव हुआ, घुसपैठ की बात सामने आई। पर सरकार ने कुछ नहीं कहा। पूछने पर भी नहीं।
3. 15-16 जून की रात चीनी और भारतीय सैनिकों में संघर्ष हुआ 20 सैनिक शहीद हुए। एएनआई ने यह खबर 16 जून को रात 9:49 पर दी।
4. एएनआई ने ही 16 जून की ही रात 9:54 पर खबर दी कि भारतीय इंटरसेप्ट्स से पता चलता है कि चीन के 43 सैनिक मारे गए हैं। इंटरसेप्ट की खबर एएनआई को इतनी जल्दी मिलना सामान्य नहीं है।
5. चीन के साथ तनाव तो 1962 के बाद या उससे पहले से है। लेकिन सीमा पर मोटा-मोटी शांति रही है। जब तनाव हुआ तो सरकार ने कई दिनों तक ना खबरों का खंडन किया ना कोई कार्रवाई करती नजर आई।
6. कोविड-19 पर सर्वदलीय बैठक से पहले 17 जून को प्रधानमंत्री ने इस विवाद पर पहली बार कुछ कहा, .... लेकिन उकसाने पर हर हाल में हम यथोचित जवाब देने में सक्षम हैं। 20 शहादत के बाद उकसाने पर यथोचित जवाब का मतलब आप समझ सकते हैं। हालांकि इसकी जो विज्ञप्ति जारी हुई उसमें भी हिन्दी का यथोचित शब्द निर्णायक हो गया और अंग्रेजी में तो बदल ही गया। यानी अखबारों में वह छपा जो प्रधानमंत्री ने कहा ही नहीं।
7. इसके बाद प्रधानमंत्री का जो बयान आया वह चीन के पक्ष में ज्यादा भारत के पक्ष में कम था। इसीलिए सोशल मीडिया पर छाया रहा कि चीन ने उसका अनुवाद करके अपने लोगों को दिखाया है। बाद में इसका स्पष्टीकरण जारी हुआ।
8. भारतीय शहीद सैनिकों की टीम के सबसे वरिष्ठ अधिकारी तेलंगाना के थे। दूसरे शहीदों में बंगाल से लेकर पंजाब, उड़ीसा और झारखंड के जवान थे। कुल मिलाकर सेना भारत की है लेकिन बिहार रेजीमेंट नाम होने पर बिहारियों को गर्व होने की बात प्रधानमंत्री ने कही। भाजपा ने इस आशय का ट्वीट किया।
9. किसी खंडन स्पष्टीकरण बजाय यह एएनआई की ओर से यह दावा किया गया कि शहीदों को बिहारी कहना सामान्य है। सेना में ऐसा कहा जाता है। यह सब इस तथ्य के बावजूद कि एएनआई की संपादक ने इसी मई में ट्वीट कर मीडिया को बताया था कि पुलित्जर पुरस्कार पाने वाले कश्मीर के फोटोग्राफर भारतीय हैं, कश्मीरी नहीं। उन्हें कश्मीर वैसे ही नहीं लिखा जाए जैसे किसी तमिल को पुरस्कार मिलने पर उसे तमिल नहीं लिखा जाता। लेकिन बिहार चुनाव से पहले सेना के बिहार रेजीमेंट के जवानों के शहीद होने पर बिहारियों को गर्व होना सामान्य बात हो गई।
10. इसकी तुलना पुलवामा से कीजिए तो लगता है गलतियां छिपाने के लिए इस बार पहले जैसा बड़बोलापन नहीं है।
11. और अब आज की एक प्रमुख खबर है कि पूर्वी लद्दाख में चीनी सेना से जारी तनाव के बीच सरकार ने तीनों सेनाओं को घातक हथियार और गोला-बारूद की खरीद के लिए 500 करोड़ रुपये के आपात फंड को मंजूरी दी गई है। क्या आपको लगता है कि सेना के पास आवश्यक हथियार नहीं होना सामान्य बात है और तनाव के समय रुपए आवंटित करने की खबर छपवाना सामान्य है। अगर हथियार जरूरी थे तो महीने भर में खरीदे जाने चाहिए थे। उसका ऑर्डर किया जाना चाहिए था न कि वेंटीलेटर खरीदने की तरह प्रचार। दोनों मामलों में सरकार का रवैया एक ही है।
बिहार में इसे भोज के समय कोहड़ा रोपना कहा जाता है।