अगर अभिव्यक्ति की आजादी की यही कीमत है

Written by Sanjay Kumar Singh | Published on: September 1, 2020
प्रशांत भूषण ने कहा है कि वे जुर्माना भरेंगे। हालांकि कुछ लोग इससे असहमत हैं। लोग गांधी जी का उदाहरण दे रहे हैं पर मुझे मामला थोड़ा अलग लग रहा है। एक मित्र ने राय पूछी तो मैंने लिखा था – जुर्माना देकर खत्म करना चाहिए। प्रशांत भूषण को जो साबित करना था वह हो गया। सुप्रीम कोर्ट इससे बेहतर विकल्प नहीं दे सकता था।



अगर जुर्माने की राशि 500 भी होती तो लगता कि राशि और तीन महीने जेल में कोई तुलना है (हालांकि नहीं है) पर एक रुपया तो प्रतीक के लिहाज से भी कम है। इससे कम हो ही नहीं सकता था। इस हिसाब से देखें तो अवमानना एक रुपए की ही थी (या प्रतीकात्मक थी)। इसे मान लिया गया है।

एक रुपए नहीं देकर तीन महीने सजा काटने का मतलब होगा कि आप उसे प्रतीकात्मक नहीं मानकर तीन महीने की सजा के बराबर मान रहे हैं। इस फैसले को चुनौती देने का प्रावधान हो तो जरूर दी जानी चाहिए, जनता यह मांग कर सकती है कि उन्हें भी तीन महीने की सजा या एक रुपए के जुर्माने का विकल्प दिया जाए। 

पर प्रशांत भूषण एक रुपए की बजाय तीन महीने की जेल काटें इससे कुछ हासिल नहीं होगा। जिन लोगों को मामला अवमानना का लग रहा था उन्हें भी समझ में आ जाना चाहिए कि अवमानना दरअसल क्या है। और आज द टेलीग्राफ ने भी लिखा है, अगर यह बोलने की आजादी की कीमत है तो आइए, अदा कर दें।

एक रुपए की राशि निश्चत रूप से प्रतीकात्मक है और अगर इसे प्रतीकों में ही देखें तो यह तथ्य है कि प्रशांत भूषण खुद एक काबिल वकील हैं और वे कानूनी मामले में कितने गलत हो सकते हैं। उनके पिता भी जाने-माने वकील हैं और देश के कानून मंत्री रह चुके हैं। काम करने वाले, सरकार के किसी भी सही गलत का विरोध करने वाले नहीं और ना ही पिता के नाम से कानून मंत्री बने थे। 

अपने काम से बने थे। आम आदमी पार्टी को उन्होंने एक करोड़ रुपए का चंदा दिया था। और ऐसे व्यक्ति के पुत्र को कानून का उल्लंघन करने के लिए एक रुपए का जुर्माना प्रतीक में कहां ठहरता है आप सोचिए। वह भी तब जब प्रधानमंत्री की तस्वीर का उपयोग करने के लिए 500 रुपए का जुर्माना हुआ था।

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