साहेब का पालतू तोता सरकारी पिंजरे से निकलकर अपने उसी शानदार महल में आ गया। जिसके स्टूडियो के डिज़ाइनर ने पैसे ना मिलने के कारण आत्महत्या की थी। तोते जी भारत माता की जय और वंदे मातरम के नारों के साथ बाहर निकले। ऐसा लग रहा था कि जैसे पाकिस्तान से अभिनंदन भारत आ रहे हों। अभिनंदन बहुत सादगी से आए थे उन्होंने तोते जी की तरह कोई ड्रामा नहीं किया था। उनके स्टूडियो, शर्मनाक पत्रकारिता के इस महल में उनके बाहर आने पर के अंदर छोटे-छोटे और भी बहुत सारे तोते खूब जोर-जोर से चीख-पुकार कर रहे थे। देश 8 दिन से गूंगा था अब बोलना शुरु कर देगा।
तथाकथित देशभक्तों की पुकार होने लगी। शेर पिंजरे से बाहर आ गया। एक नजर डालें तो बीजेपी के सांसद, महाराष्ट्र के राज्यपाल और तोते जी की अदालत में उनकी तयशुदा चीख-पुकार करने वाले सहयोगी आदि सभी लोग एक साथ खड़े हुए। चिंता थी कि कहीं महाराष्ट्र पुलिस तोते जी की हरी खाल लाल ना कर दें। एक साहब तो उनके लिए जेड प्लस सुरक्षा की चिट्ठी लेकर राष्ट्रपति के पास पहुंचे थे।
महाराष्ट्र उच्च न्यायालय ने जमानत याचिका नामंजूर की तो तुरंत ही माननीय सुप्रीम कोर्ट ने जमानत की अर्जी पर सुनवाई की और संविधान के मूल्यों की रक्षा के कर्तव्य को याद करते हुए व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर लंबी टिप्पणी दी साथ ही, महाराष्ट्र की सरकार को डांट लगाई। सुनवाई में महाराष्ट्र सरकार पर सवाल उठाए और कहा कि इस तरह से किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत आजादी पर बंदिश लगाया जाना न्याय का मखौल होगा। पीठ ने कहा कि अगर राज्य सरकारें लोगों को निशाना बनाती हैं तो उन्हें इस बात का अहसास होना चाहिए कि नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट है।
साथ ही ताकीद भी कर दी कि आप को ठीक नहीं लगता तो मत देखो। यानी एक प्रकार से तोते जी के चैनल को जो चाहे बोलने की छूट भी दे दी। और तोते जी की जमानत मंजूर हो गई।
उत्तर प्रदेश खासकर के उत्तर प्रदेश में जहां मुख्यमंत्री के ऊपर एक शब्द बोलने पर लोगों को जेल हो रही है। मुजफ्फरनगर-मेरठ में भगवा ब्रिगेड के साथ पुलिस ने लोगों के घर तोड़े, मारपीट की, कत्ल किए। सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को धता बताते हुए राज्य सरकार लगातार एनकाउंटर की लिस्ट लंबी करती जा रही है। नया तरीका बनाया गया है की जो पीड़ित है उसे ही अपराधी करार कर दो। सर्वोच्च न्यायालय ने इन सब पर मौन क्यों रखा हुआ है?
6 घंटे की सुनवाई जब एक व्यक्ति की स्वतंत्रता पर हो सकती है। जिसके पास तमाम राजनीतिक, आर्थिक व बड़ा साम्राज्य है। जो गोदी मीडिया का मुख्य सरगना है। जिसने पत्रकारिता की आवरण में देश के उन तमाम सच्चे देशभक्तों को जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज के, गरीबों के, आदिवासियों के, अल्पसंख्यकों के, पिछड़े लोगों के, जिनकी कोई आवाज नहीं आदि के लिए लगा दिया। तोतेजी ने उनको अपनी अदालत के माध्यम से बदनाम करने अपमानित करने जैसे घिनौने काम बखूबी किए हैं।
तोते जी का यह सब करना बीजेपी की राजनीति का हिस्सा है। यह पूरी तरह जाहिर है किस तरह से बीजेपी के एजेंडे को सही सिद्ध करने के लिए दिन रात टर टर की मेहनत तोतेजी करते रहे हैं। मेरा प्रश्न यह है कि तोतेजी ने अपने जीवन में ऐसा कौन सा देशभक्ति का काम किया है। सिवाय बीजेपी के द्वारा आरएसएस के द्वारा लिखी देशभक्ति की परिभाषा को स्थापित करने के? जो देश भक्ति को हिंदू राष्ट्र की संकल्पना के साथ जोड़ते हैं जिनकी देश भक्ति में मात्र मात्र सैनिकों की छद्म पूजा, तिरंगा फहराने और राष्ट्रगीत गाना है। उसके गहरे अर्थ को समझे बिना। उसको वास्तविक जीवन में उतारते भी नहीं।
सैनिकों की वास्तविक समस्याओं, आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक, किसान, मज़दूरों आदि के मुद्दों से कोई मतलब भी नहीं। वास्तव में देशभक्ति के उच्चतम मूल्यों को जिस तरह से इनके वर्तमान चैनल ने और पूर्व के चैनल ने गिराया है वह पूरी तरह निंदनीय है।
क्या कभी किसी आदिवासी के जीवन के निकट गए? छत्तीसगढ़ या झारखंड के उन गहरे जंगलों में पहुंचे? जहां सुधा भारद्वाज जो अपना अमरीकी जीवन छोड़कर लोगों के साथ काम करती रहीं? जहां आज सोनी सोरी व बेला भाटिया जैसे लोग काम करते हैं। तोते जी ने काम किया है तो सुधा भारद्वाज जैसी हस्ती को बदनाम करने का।
सर्वोच्च न्यायालय का सम्मान करते हुए मन में यह भी प्रश्न आता है कि एक कंप्यूटर में लंबे से किसी टाइप्ड चिट्ठी में, जिसमें नीचे कोई नाम नहीं उसमें एक सांकेतिक नाम को सुधा भारद्वाज के नाम से जोड़ते हुए इन्हीं तोते जी ने कितनी गंदगी परोसी थी। मगर सर्वोच्च न्यायालय के पास इस झूठ को पकड़ने का समय नहीं।
यह वही सर्वोच्च न्यायालय है जिसने देश के सर्वोच्च शिक्षण संस्थानों जेएनयू व जामिया मिलिया में आरएसएस की और पुलिस के द्वारा मारे पीटे जा रहे छात्रों की आवाज सुनने से इनकार कर दिया। यह कहकर की पहले हिंसा बंद कीजिए। सर्वोच्च न्यायालय नहीं देख पाया कि हिंसा कौन कर रहा था? सर्वोच्च न्यायालय यह भी नहीं देख पाया कि जिस तरह से नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ चल रहे आंदोलनों का देशभर में, खासकर उत्तर प्रदेश में दमन किया गया। रातों को टेंट उखाड़े गए। सर्दी में बैठी बहनों के पास से बिस्किट के पैकेट और कंबल छीन लिए गए। लाठियां चलाई गई। दिल्ली में शाहीन बाग धरने के कारण दिल्ली के लोगों को आवागमन में परेशानी हुई यह बड़ी बात है। जबकि ज्यादा दिक्कत दिल्ली और उत्तर प्रदेश के प्रशासन द्वारा अन्य सड़कों को भी रोकने के कारण हुई, मगर दुनिया की नजर में शाहीन बाग को बदनाम करना था) गर लॉकडाउन के बाद किस तरह सरकार ने आंदोलनों की वजूद को मिटाने के लिए सड़कों पर लिखे नारों पर को मिटाया? दिल्ली के जंतर मंतर से लेकर देश भर में लोगों को इकट्ठे होने की इजाजत तक नहीं। लोग अपनी बात कैसे कहें?
सर्वोच्च न्यायालय व्यक्तिगत स्वतंत्रता का फरमाबरदार होने के बावजूद इन बातों को ना देख कर के 6 घंटे से ज्यादा एक व्यक्ति की स्वतंत्रता पर समय दे पाया?
तो क्या देर आयद दुरुस्त आयद का पालन करते हुए सर्वोच्च न्यायालय अब देश के निवासियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मुद्दे पर गौर करेगा? धारा 370 हटाने के बाद कश्मीर के लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता? कश्मीर के लोगों का मुंह बंद करके जो फैसले लिए जा रहे हैं, लोगों के हक में बोलने वालों पर हमले किए जा रहे हैं क्या सर्वोच्च न्यायालय उसको भी देखेगा?
देश में हो रहे मानव अधिकारों का हनन? देश के अन्य राज्यों में राज्य सरकारों द्वारा की जा रही राजनीतिक गिरफ्तारियों? जीने के अधिकार से वंचित की जा रही अल्पसंख्यक आबादी, आदिवासी, दलितों पर संज्ञान लेगा? नफरत फैलाने वाली मीडिया हाउसों पर कोई कमेटी बिठाकर उसको मॉनिटर करेगा? (जिनके कारण देश दो हिस्सों में बांटा जा रहा है) उसको तुरंत रोकेगा? व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मुद्दा क्या किसी छात्र, पत्रकार, लेखक, बुद्धिजीवी आदि की गिरफ़्तारी से भी जुड़ेगा ?
संविधान व्यक्तिगत स्वतंत्रता की इजाजत देता है और सर्वोच्च न्यायालय उसके लिए सर्वोच्च रूप में जिम्मेदार है। तो क्या वो "कानून सबके लिए समान" व "न्याय में देरी न्याय न होना" सिद्धान्त का सम्मान करेगा?
नोट:-लेखक पक्षी तोते के साथ "तोते जी" की तुलना के लिए हृदय से क्षमाप्रार्थी है। चूंकि तोता अपने बहुत सुंदर और लेखक का प्यारा पक्षी है। वो वोही बोलता है जो सुनता या सिखाया जाता है।
तथाकथित देशभक्तों की पुकार होने लगी। शेर पिंजरे से बाहर आ गया। एक नजर डालें तो बीजेपी के सांसद, महाराष्ट्र के राज्यपाल और तोते जी की अदालत में उनकी तयशुदा चीख-पुकार करने वाले सहयोगी आदि सभी लोग एक साथ खड़े हुए। चिंता थी कि कहीं महाराष्ट्र पुलिस तोते जी की हरी खाल लाल ना कर दें। एक साहब तो उनके लिए जेड प्लस सुरक्षा की चिट्ठी लेकर राष्ट्रपति के पास पहुंचे थे।
महाराष्ट्र उच्च न्यायालय ने जमानत याचिका नामंजूर की तो तुरंत ही माननीय सुप्रीम कोर्ट ने जमानत की अर्जी पर सुनवाई की और संविधान के मूल्यों की रक्षा के कर्तव्य को याद करते हुए व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर लंबी टिप्पणी दी साथ ही, महाराष्ट्र की सरकार को डांट लगाई। सुनवाई में महाराष्ट्र सरकार पर सवाल उठाए और कहा कि इस तरह से किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत आजादी पर बंदिश लगाया जाना न्याय का मखौल होगा। पीठ ने कहा कि अगर राज्य सरकारें लोगों को निशाना बनाती हैं तो उन्हें इस बात का अहसास होना चाहिए कि नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट है।
साथ ही ताकीद भी कर दी कि आप को ठीक नहीं लगता तो मत देखो। यानी एक प्रकार से तोते जी के चैनल को जो चाहे बोलने की छूट भी दे दी। और तोते जी की जमानत मंजूर हो गई।
उत्तर प्रदेश खासकर के उत्तर प्रदेश में जहां मुख्यमंत्री के ऊपर एक शब्द बोलने पर लोगों को जेल हो रही है। मुजफ्फरनगर-मेरठ में भगवा ब्रिगेड के साथ पुलिस ने लोगों के घर तोड़े, मारपीट की, कत्ल किए। सर्वोच्च न्यायालय के आदेशों को धता बताते हुए राज्य सरकार लगातार एनकाउंटर की लिस्ट लंबी करती जा रही है। नया तरीका बनाया गया है की जो पीड़ित है उसे ही अपराधी करार कर दो। सर्वोच्च न्यायालय ने इन सब पर मौन क्यों रखा हुआ है?
6 घंटे की सुनवाई जब एक व्यक्ति की स्वतंत्रता पर हो सकती है। जिसके पास तमाम राजनीतिक, आर्थिक व बड़ा साम्राज्य है। जो गोदी मीडिया का मुख्य सरगना है। जिसने पत्रकारिता की आवरण में देश के उन तमाम सच्चे देशभक्तों को जिन्होंने अपना पूरा जीवन समाज के, गरीबों के, आदिवासियों के, अल्पसंख्यकों के, पिछड़े लोगों के, जिनकी कोई आवाज नहीं आदि के लिए लगा दिया। तोतेजी ने उनको अपनी अदालत के माध्यम से बदनाम करने अपमानित करने जैसे घिनौने काम बखूबी किए हैं।
तोते जी का यह सब करना बीजेपी की राजनीति का हिस्सा है। यह पूरी तरह जाहिर है किस तरह से बीजेपी के एजेंडे को सही सिद्ध करने के लिए दिन रात टर टर की मेहनत तोतेजी करते रहे हैं। मेरा प्रश्न यह है कि तोतेजी ने अपने जीवन में ऐसा कौन सा देशभक्ति का काम किया है। सिवाय बीजेपी के द्वारा आरएसएस के द्वारा लिखी देशभक्ति की परिभाषा को स्थापित करने के? जो देश भक्ति को हिंदू राष्ट्र की संकल्पना के साथ जोड़ते हैं जिनकी देश भक्ति में मात्र मात्र सैनिकों की छद्म पूजा, तिरंगा फहराने और राष्ट्रगीत गाना है। उसके गहरे अर्थ को समझे बिना। उसको वास्तविक जीवन में उतारते भी नहीं।
सैनिकों की वास्तविक समस्याओं, आदिवासी, दलित, अल्पसंख्यक, किसान, मज़दूरों आदि के मुद्दों से कोई मतलब भी नहीं। वास्तव में देशभक्ति के उच्चतम मूल्यों को जिस तरह से इनके वर्तमान चैनल ने और पूर्व के चैनल ने गिराया है वह पूरी तरह निंदनीय है।
क्या कभी किसी आदिवासी के जीवन के निकट गए? छत्तीसगढ़ या झारखंड के उन गहरे जंगलों में पहुंचे? जहां सुधा भारद्वाज जो अपना अमरीकी जीवन छोड़कर लोगों के साथ काम करती रहीं? जहां आज सोनी सोरी व बेला भाटिया जैसे लोग काम करते हैं। तोते जी ने काम किया है तो सुधा भारद्वाज जैसी हस्ती को बदनाम करने का।
सर्वोच्च न्यायालय का सम्मान करते हुए मन में यह भी प्रश्न आता है कि एक कंप्यूटर में लंबे से किसी टाइप्ड चिट्ठी में, जिसमें नीचे कोई नाम नहीं उसमें एक सांकेतिक नाम को सुधा भारद्वाज के नाम से जोड़ते हुए इन्हीं तोते जी ने कितनी गंदगी परोसी थी। मगर सर्वोच्च न्यायालय के पास इस झूठ को पकड़ने का समय नहीं।
यह वही सर्वोच्च न्यायालय है जिसने देश के सर्वोच्च शिक्षण संस्थानों जेएनयू व जामिया मिलिया में आरएसएस की और पुलिस के द्वारा मारे पीटे जा रहे छात्रों की आवाज सुनने से इनकार कर दिया। यह कहकर की पहले हिंसा बंद कीजिए। सर्वोच्च न्यायालय नहीं देख पाया कि हिंसा कौन कर रहा था? सर्वोच्च न्यायालय यह भी नहीं देख पाया कि जिस तरह से नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ चल रहे आंदोलनों का देशभर में, खासकर उत्तर प्रदेश में दमन किया गया। रातों को टेंट उखाड़े गए। सर्दी में बैठी बहनों के पास से बिस्किट के पैकेट और कंबल छीन लिए गए। लाठियां चलाई गई। दिल्ली में शाहीन बाग धरने के कारण दिल्ली के लोगों को आवागमन में परेशानी हुई यह बड़ी बात है। जबकि ज्यादा दिक्कत दिल्ली और उत्तर प्रदेश के प्रशासन द्वारा अन्य सड़कों को भी रोकने के कारण हुई, मगर दुनिया की नजर में शाहीन बाग को बदनाम करना था) गर लॉकडाउन के बाद किस तरह सरकार ने आंदोलनों की वजूद को मिटाने के लिए सड़कों पर लिखे नारों पर को मिटाया? दिल्ली के जंतर मंतर से लेकर देश भर में लोगों को इकट्ठे होने की इजाजत तक नहीं। लोग अपनी बात कैसे कहें?
सर्वोच्च न्यायालय व्यक्तिगत स्वतंत्रता का फरमाबरदार होने के बावजूद इन बातों को ना देख कर के 6 घंटे से ज्यादा एक व्यक्ति की स्वतंत्रता पर समय दे पाया?
तो क्या देर आयद दुरुस्त आयद का पालन करते हुए सर्वोच्च न्यायालय अब देश के निवासियों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मुद्दे पर गौर करेगा? धारा 370 हटाने के बाद कश्मीर के लोगों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता? कश्मीर के लोगों का मुंह बंद करके जो फैसले लिए जा रहे हैं, लोगों के हक में बोलने वालों पर हमले किए जा रहे हैं क्या सर्वोच्च न्यायालय उसको भी देखेगा?
देश में हो रहे मानव अधिकारों का हनन? देश के अन्य राज्यों में राज्य सरकारों द्वारा की जा रही राजनीतिक गिरफ्तारियों? जीने के अधिकार से वंचित की जा रही अल्पसंख्यक आबादी, आदिवासी, दलितों पर संज्ञान लेगा? नफरत फैलाने वाली मीडिया हाउसों पर कोई कमेटी बिठाकर उसको मॉनिटर करेगा? (जिनके कारण देश दो हिस्सों में बांटा जा रहा है) उसको तुरंत रोकेगा? व्यक्तिगत स्वतंत्रता का मुद्दा क्या किसी छात्र, पत्रकार, लेखक, बुद्धिजीवी आदि की गिरफ़्तारी से भी जुड़ेगा ?
संविधान व्यक्तिगत स्वतंत्रता की इजाजत देता है और सर्वोच्च न्यायालय उसके लिए सर्वोच्च रूप में जिम्मेदार है। तो क्या वो "कानून सबके लिए समान" व "न्याय में देरी न्याय न होना" सिद्धान्त का सम्मान करेगा?
नोट:-लेखक पक्षी तोते के साथ "तोते जी" की तुलना के लिए हृदय से क्षमाप्रार्थी है। चूंकि तोता अपने बहुत सुंदर और लेखक का प्यारा पक्षी है। वो वोही बोलता है जो सुनता या सिखाया जाता है।