अक्तूबर 2018 का साल था। स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद जी का निधन हो गया। प्रधानमंत्री ने उनके निधन पर शोक जताया था। 86 साल के थे।
गंगा प्रदूषित थी। साफ नहीं हो रही थी। स्वामी सानंद ने प्रधानमंत्री को उस वर्ष तीन पत्र लिखे. एक 22 फरवरी को, एक 13 जून को और एक अगस्त में। 22 जून 2018 से उन्होंने गंगा के लिए अनशन शुरू कर दिया। स्वामी सानंद गंगा के लिए कई बार अनशन कर चुके थे। 111 दिनों के अनशन के बाद उनका निधन हो गया।
एक पत्र में प्रधानमंत्री को लिखा था कि गंगा को लेकर आपसे बहुत उम्मीद थी। जब मैंने मनमोहन सिंह की सरकार के समय अनशन किया था तब मनमोहन सिंह जी ने 90 प्रतिशत पूरा हो चुका प्रोजेक्ट रद्द कर दिया और गंगाजी के लिए हज़ारों करोड़ों की परवाह नहीं की। उन्होंने गंगा में निश्चित प्रवाह बनाए रखने के लिए एलान किया और गंगोत्री से लेकर भागीरथी के क्षेत्र को संवेदनशील घोषित कर दिया ताकि वहां होने वाली गतिविधि से गंगाजी जी को नुकसान न हो। जब आप आए तो लगा कि आप मनमोहन सिंह जी से भी दो कदम आगे जाकर निर्णय लेंगे। मैंने साढ़े चार साल इंतज़ार किया और अब अनशन करने जा रहा हूं।
स्वामी सानंद चाहते थे कि प्रधानमंत्री उनकी चार मांगों पर फैसला करें। उनसे पत्रों का जवाब दें। मगर कोई जवाब नहीं आया। अपने पत्र में स्वामी सानंद ने प्रधानमंत्री मोदी के बारे में लिखा कि अभी तक आपने जितने भी फैसले किए हैं वो कारपोरेट और बिजनेस घरानों के हित के हैं।
बेशक उमा भारती ने उनसे मुलाकात की थी और नितिन गडकरी से बात कराई थी। गडकरी ने कहा था कि उनकी सारी मांगे मान ली गई हैं। मगर स्वामी सानंद संतुष्ट नहीं हुए। अनशन पर बैठे रहे। तबीयत बिगड़ी और निधन हो गया।
वे गंगा के प्रति आजीवन समर्पित रहे। कहते थे कि गंगाजी के लिए जान दे सकता हूं और दे भी दी। अपने पूर्वाश्रम में उनका नाम प्रोफेसर जी डी अग्रवाल था। आई आई टी कानपुर में पढ़ाते थे। कई पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनेताओं को गंगा के बारे में जागरूक किया था।
मैंने कई कार्यक्रम किए हैं। रिपोर्ट की शक्ल में। लेकिन उनके निधन पर किसी ने आज तक नहीं पूछा कि तुम गंगाजी के प्रति समर्पित स्वामी सानंद को लेकर चुप क्यों हो। किसी मीडिया ने उनके निधन पर उनके पत्रों को लेकर सवाल नहीं किया। ख़बरें छपीं और दिखी भीं लेकिन इस साधु के सवाल को सब टाल गए।
आप उस चैनल से भी पता कर सकते हैं कि जिस दिन स्वामी सानंद का निधन हुआ था उस दिन या उसके कुछ दिन बाद ही सही उसने साधु और गंगा पुत्र को लेकर क्या कार्यक्रम किया था? यह सवाल आई टी सेल से भी है।
गंगा प्रदूषित थी। साफ नहीं हो रही थी। स्वामी सानंद ने प्रधानमंत्री को उस वर्ष तीन पत्र लिखे. एक 22 फरवरी को, एक 13 जून को और एक अगस्त में। 22 जून 2018 से उन्होंने गंगा के लिए अनशन शुरू कर दिया। स्वामी सानंद गंगा के लिए कई बार अनशन कर चुके थे। 111 दिनों के अनशन के बाद उनका निधन हो गया।
एक पत्र में प्रधानमंत्री को लिखा था कि गंगा को लेकर आपसे बहुत उम्मीद थी। जब मैंने मनमोहन सिंह की सरकार के समय अनशन किया था तब मनमोहन सिंह जी ने 90 प्रतिशत पूरा हो चुका प्रोजेक्ट रद्द कर दिया और गंगाजी के लिए हज़ारों करोड़ों की परवाह नहीं की। उन्होंने गंगा में निश्चित प्रवाह बनाए रखने के लिए एलान किया और गंगोत्री से लेकर भागीरथी के क्षेत्र को संवेदनशील घोषित कर दिया ताकि वहां होने वाली गतिविधि से गंगाजी जी को नुकसान न हो। जब आप आए तो लगा कि आप मनमोहन सिंह जी से भी दो कदम आगे जाकर निर्णय लेंगे। मैंने साढ़े चार साल इंतज़ार किया और अब अनशन करने जा रहा हूं।
स्वामी सानंद चाहते थे कि प्रधानमंत्री उनकी चार मांगों पर फैसला करें। उनसे पत्रों का जवाब दें। मगर कोई जवाब नहीं आया। अपने पत्र में स्वामी सानंद ने प्रधानमंत्री मोदी के बारे में लिखा कि अभी तक आपने जितने भी फैसले किए हैं वो कारपोरेट और बिजनेस घरानों के हित के हैं।
बेशक उमा भारती ने उनसे मुलाकात की थी और नितिन गडकरी से बात कराई थी। गडकरी ने कहा था कि उनकी सारी मांगे मान ली गई हैं। मगर स्वामी सानंद संतुष्ट नहीं हुए। अनशन पर बैठे रहे। तबीयत बिगड़ी और निधन हो गया।
वे गंगा के प्रति आजीवन समर्पित रहे। कहते थे कि गंगाजी के लिए जान दे सकता हूं और दे भी दी। अपने पूर्वाश्रम में उनका नाम प्रोफेसर जी डी अग्रवाल था। आई आई टी कानपुर में पढ़ाते थे। कई पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनेताओं को गंगा के बारे में जागरूक किया था।
मैंने कई कार्यक्रम किए हैं। रिपोर्ट की शक्ल में। लेकिन उनके निधन पर किसी ने आज तक नहीं पूछा कि तुम गंगाजी के प्रति समर्पित स्वामी सानंद को लेकर चुप क्यों हो। किसी मीडिया ने उनके निधन पर उनके पत्रों को लेकर सवाल नहीं किया। ख़बरें छपीं और दिखी भीं लेकिन इस साधु के सवाल को सब टाल गए।
आप उस चैनल से भी पता कर सकते हैं कि जिस दिन स्वामी सानंद का निधन हुआ था उस दिन या उसके कुछ दिन बाद ही सही उसने साधु और गंगा पुत्र को लेकर क्या कार्यक्रम किया था? यह सवाल आई टी सेल से भी है।