राजस्थान में शिक्षा विभाग की लापरवाही का आलम ये है कि राज्य में 50 हजार छात्र-छात्राएं लापता हैं और विभाग को इनका कोई अता-पता तक नही है।
शिक्षा विभाग के आउट ऑफ स्कूल चिल्ड्रेन के आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य में 53 हजार 283 छात्र-छात्राएं बिना टीसी कटाए ही लापता हो गए हैं और उनका रिकॉर्ड किसी स्कूल के पास नहीं है।
माना जा रहा है कि ऐसे सारे छात्र-छात्राएं पढ़ाई छोड़ चुके हैं। वास्तव में शिक्षा विभाग को प्रयास करना चाहिए था कि बीच में ही पढ़ाई करने वाले इन छात्र-छात्राओं को स्कूल आने के लिए प्रेरित करे, लेकिन विभाग ऐसा कुछ नहीं करता है। यह अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का भी उल्लंघन है, लेकिन वसुंधरा राजे की भाजपा सरकार को इसकी परवाह कभी नहीं रही।
राजस्थान शिक्षा विभाग के राज्य भर में 48,703 प्रारंभिक शिक्षा के विद्यालय हैं जिनसे 53 हजार 283 छात्र-छात्राएं स्कूल छोड़ चुके हैं।
पत्रिका में छपी रिपोर्ट के अनुसार, 2017-18 में 85,766 छात्र-छात्राओं की पहचान की गई थी लेकिन इनमें से केवल 32483 को ही स्कूलों में लाया जा सका है।
राजस्थान में स्कूली बच्चों में पढ़ाई बीच में ही छोड़ देने की समस्या काफी विकराल है। इस से निपटने के लिए ड्रॉप आउट बच्चों के दाखिले और सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ाने के लिए सरकार ने प्रवेशोत्सव की आखिरी तारीख 3 जुलाई से बढ़ाकर 31 जुलाई तक कर दी है, लेकिन 50 हजार से
ज्यादा लापता विद्यार्थियों का जब कोई पता ही नहीं है, तो उनके दाखिले भी मुश्किल लग रहे हैं।
बच्चों के पढ़ाई बीच में छोड़ने का कारण गरीबी और पलायन भी है। खेती-किसानी से जुड़े परिवारों में ये समस्या सबसे ज्यादा है, लेकिन इन परिवारों की हालत जिस तरह से खराब है, उसे देखते हुए सुधार की कोई गुंजाइश नहीं दिख रही है।
राज्य में किसानों की आत्महत्याओं की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, और किसान कर्ज में डूबे हैं, लेकिन सरकार किसानों की आत्महत्याओं को गरीबी और कर्ज से जुड़े होने को स्वीकार करने को ही तैयार नहीं होती।
ऐसे में खाने-पीने और कर्ज की समस्या से जूझ रहे परिवारों के बच्चों को स्कूल में पढ़ने के लिए प्रेरित कर पाना बहुत मुश्किल काम हो रहा है। लोग आजीविका की तलाश में बड़े शहरों की ओर पलायन भी कर रहे हैं जिसका असर बच्चों की पढ़ाई पर भी पड़ता है।
शिक्षा विभाग के आउट ऑफ स्कूल चिल्ड्रेन के आंकड़ों से पता चलता है कि राज्य में 53 हजार 283 छात्र-छात्राएं बिना टीसी कटाए ही लापता हो गए हैं और उनका रिकॉर्ड किसी स्कूल के पास नहीं है।
माना जा रहा है कि ऐसे सारे छात्र-छात्राएं पढ़ाई छोड़ चुके हैं। वास्तव में शिक्षा विभाग को प्रयास करना चाहिए था कि बीच में ही पढ़ाई करने वाले इन छात्र-छात्राओं को स्कूल आने के लिए प्रेरित करे, लेकिन विभाग ऐसा कुछ नहीं करता है। यह अनिवार्य शिक्षा के अधिकार का भी उल्लंघन है, लेकिन वसुंधरा राजे की भाजपा सरकार को इसकी परवाह कभी नहीं रही।
राजस्थान शिक्षा विभाग के राज्य भर में 48,703 प्रारंभिक शिक्षा के विद्यालय हैं जिनसे 53 हजार 283 छात्र-छात्राएं स्कूल छोड़ चुके हैं।
पत्रिका में छपी रिपोर्ट के अनुसार, 2017-18 में 85,766 छात्र-छात्राओं की पहचान की गई थी लेकिन इनमें से केवल 32483 को ही स्कूलों में लाया जा सका है।
राजस्थान में स्कूली बच्चों में पढ़ाई बीच में ही छोड़ देने की समस्या काफी विकराल है। इस से निपटने के लिए ड्रॉप आउट बच्चों के दाखिले और सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ाने के लिए सरकार ने प्रवेशोत्सव की आखिरी तारीख 3 जुलाई से बढ़ाकर 31 जुलाई तक कर दी है, लेकिन 50 हजार से
ज्यादा लापता विद्यार्थियों का जब कोई पता ही नहीं है, तो उनके दाखिले भी मुश्किल लग रहे हैं।
बच्चों के पढ़ाई बीच में छोड़ने का कारण गरीबी और पलायन भी है। खेती-किसानी से जुड़े परिवारों में ये समस्या सबसे ज्यादा है, लेकिन इन परिवारों की हालत जिस तरह से खराब है, उसे देखते हुए सुधार की कोई गुंजाइश नहीं दिख रही है।
राज्य में किसानों की आत्महत्याओं की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, और किसान कर्ज में डूबे हैं, लेकिन सरकार किसानों की आत्महत्याओं को गरीबी और कर्ज से जुड़े होने को स्वीकार करने को ही तैयार नहीं होती।
ऐसे में खाने-पीने और कर्ज की समस्या से जूझ रहे परिवारों के बच्चों को स्कूल में पढ़ने के लिए प्रेरित कर पाना बहुत मुश्किल काम हो रहा है। लोग आजीविका की तलाश में बड़े शहरों की ओर पलायन भी कर रहे हैं जिसका असर बच्चों की पढ़ाई पर भी पड़ता है।