सुप्रीम कोर्ट का आदेश ताक पर रखकर हुई थी प्रो. आनंद तेलतुंबड़े की गिरफ्तारी, पुणे कोर्ट के आदेश के बाद रिहा

Written by Sabrangindia Staff | Published on: February 2, 2019
मुंबई। दलित बुद्धिजीवी व प्रोफेसर आनंद तेलतुंबडे की गिरफ्तारी को लेकर पुणे पुलिस को सेशन कोर्ट से झटका लगा है। पुणे के सेशन कोर्ट ने प्रो. आनंद तेलतुंबडे को रिहा करने के आदेश दिए हैं। अदालत ने सुप्रीम कोर्ट की समय सीमा का हवाला देते हुए प्रोफेसर तेलतुंबडे की गिरफ्तारी को गलत बताया इसके साथ ही उन्हें रिहा करने का आदेश दे दिया।  

आपको बता दें कि पुणे पुलिस ने शनिवार तड़के मुंबई हवाईअड्डे से प्रो. आनंद तेलतुंबडे को गिरफ्तार किया था। उन्हें तड़के करीब 3.30 बजे छत्रपति शिवाजी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के घरेलू टर्मिनल से गिरफ्तार किया गया था। 

दरअसल भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में पुणे सत्र न्यायलय ने शुक्रवार 1 फरवरी को उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी थी। जमानत य़ाचिका खारिज होते ही तेलतुंबडे को एयरपोर्ट से गिरफ्तार कर लिया गया जबकि सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें चार सप्ताह का समय देते हुए गिरफ्तारी से अंतरिम छूट दी हुई थी। इस छूट की अवधि 11 फरवरी को समाप्त हो रही है। 

अदालत से अंतरिम छूट मिलने के बाद उन्होंने पुणे की सत्र न्ययालय में एक आवेदन किया था, जहां सुनवाई 28 जनवरी को शुरू हुई, और तीन दिनों तक जारी रही। यहां से जमानत याचिका खारिज होने के बाद ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया जबकि अभी सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रदत्त समय बाकी है।

गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में पढ़ाने वाले तेलतुंबडे पर प्रतिबंधित 'कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया' (माओवादी) और साथ ही यलगार परिषद के साथ संबंध रखने का आरोप है जिसे कथित तौर पर पुणे में कोरेगांव-भीमा में एक जनवरी, 2018 हिंसा के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा रहा है।

इस मामले में जून के महीने में पांच मानवाधिकार कार्यकर्ताओं- शोमा सेन, महेश राउत, सुरेंद्र गडलिंग, रोना विल्सन और सुधीर धवले को गिरफ्तार किया गया था। फिर, जुलाई और अगस्त के महीनों में,सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, अरुण फरेरा, वर्नन गोंसाल्वेस और वरवर राव को गिरफ्तार किया गया।

प्रो. आनंद तेलतुम्बडे की गिरफ्तारी की देशभर के बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार कार्यकर्ता और कवि-लेखकों के बीच तीखी प्रतिक्रिया हुई और सभी ने इस गिरफ्तारी की निंदा की। सभी का कहना है कि जब सुप्रीम कोर्ट की तरफ से उनके पास 11 फरवरी तक का समय था तो ऐसी क्या जल्दी थी कि उन्हें तड़के इस तरह चोरी-छिपे गिरफ़्तार किया गया। अदालत ने भी सुप्रीम कोर्ट की मोहलत को संज्ञान में लेते हुए प्रो. आनंद की गिरफ्तारी को अवैध बताया और सत्र न्यायलय ने पुलिस पर सख्त टिप्पणी करते हुए पुलिस कि करवाई को सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उलंघन बताया।

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