सवर्ण आरक्षण लागू करने व संविधान संशोधन के खिलाफ बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, गुजरात व अन्य राज्यों के जन संगठनों ने एक साथ आकर तीन दिवसीय राष्ट्रव्यापी प्रतिवाद का आह्वान किया है. विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों की ओर से जारी अपील में कहा गया है कि आर्थिक आधार पर सवर्ण आरक्षण के जरिये संविधान, सामाजिक न्याय व बहुजनों पर बड़ा हमला बोला गया है. सवर्ण आरक्षण को लागू करने और संविधान संशोधन के जरिए संविधान की मूल संरचना व वैचारिक आधार पर हमला है.
सामाजिक न्याय व आरक्षण की अवधारणा को निशाने पर लिया गया है. यह खतरनाक है. दलितों-आदिवासियों-पिछड़ों के आरक्षण के खात्मे का रास्ता खुल गया है. संविधान व सामाजिक न्याय पर इस दौर के इस बड़े हमले को कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है.
नरेन्द्र मोदी सरकार ने RSS के संविधान बदलने की योजना के एक पैकेज को अमलीजामा पहनाया है.
RSS का संविधान व आरक्षण से नफरत जगजाहिर है.
आरक्षण कोई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है, न ही रोजगार की गारंटी से जुड़ा मामला है. यह तो ऐतिहासिक वंचना के शिकार समाज के दलित-पिछड़े हिस्सों के सत्ता व शासन की संस्थाओं में प्रतिनिधित्व-भागीदारी की गारंटी से जुड़ा हुआ है. आज भी आंकड़े कह रहे हैं कि आबादी के अनुपात में सत्ता व शासन की संस्थाओं-विभिन्न क्षेत्रों में दलितों-आदिवासियों व पिछड़ों का प्रतिनिधित्व काफी कम है.
केन्द्र सरकार की ग्रुप A की नौकरियों में सवर्ण- 74.48%, OBC-8.37%, SC-12.06% हैं. अभी भी शासन-सत्ता की विभिन्न संस्थाओं व विभिन्न क्षेत्रों में सवर्णों की मौजूदगी आबादी के अनुपात में कई गुणा ज्यादा है. होना तो ये चाहिए कि दलितों-आदिवासियों-अतिपिछड़ों व पिछड़ों की संख्यानुपात में प्रतिनिधित्व की गारंटी के लिए आरक्षण की सीमा 50% से बढ़ाई जाती.जिन संस्थाओं व क्षेत्रों में आरक्षण लागू नहीं है,वहां लागू किया जाता.
लेकिन सरकार ने संविधान व सामाजिक न्याय पर हमला बोलते हुए उल्टी दिशा में काम किया है. विभिन्न संस्थाओं व क्षेत्रों में सवर्णों का वर्चस्व कायम रहने व बढ़ने की गारंटी की है. यह लोकतांत्रिक व्यवस्था व राष्ट्र निर्माण के लिए घातक है.
सवर्णों सहित समाज के अन्य हिस्सों से गरीबी दूर करने के लिए आरक्षण समाधान नहीं है.आरक्षण आर्थिक विषमता मिटाने का एजेंडा नहीं है. गरीबी व बेरोजगारी जैसी समस्याओं के समाधान के लिए देशी-विदेशी पूंजी की बढ़ती लूट पर अंकुश लगाना होगा.
बहुसंख्यकों के लिए गरीबी और बेरोजगारी पैदा करने और मुट्ठीभर अमीरों की तिजोरी भरने वाली नयी आर्थिक नीति को बदलना होगा. लेकिन नरेन्द्र मोदी सरकार ने सवर्णों की गरीबी के बहाने संविधान पर हमला किया है और इसके जिम्मेवार लुटेरे देशी-विदेशी पूंजी और उसके पक्ष में चलनेवाली खूंखार नीतियों को बचाने का काम किया है.
कुल मिलाकर आर्थिक आधार पर सवर्ण आरक्षण के जरिये नरेन्द्र मोदी सरकार ने मनुविधान थोपने, सवर्ण वर्चस्व को मजबूत करने और लूटेरे पूंजीपतियों की सेवा की है. इस मसले पर सत्ता और विपक्ष की दूरी मिटती हुई नजर आयी. सामाजिक न्याय के नाम पर चलनेवाली रंग-बिरंगी राजनीत भी बेनकाब हो गई. ऐसे शर्मनाक दौर में उम्मीद केवल आम-अवाम व प्रगतिशील नागरिकों-बुद्धिजीवियों से बनती है. संविधान, सामाजिक न्याय व लोकतंत्र को बचाने की ऐतिहासिक जिम्मवारी के साथ हमें सड़कों पर आना ही होगा!
पिछले दिनों 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद में सामने आयी एकजुटता व दावेदारी को फिर से सड़कों पर आकर बुलंद करना होगा. इस ऐतिहासिक समय में कुछ जन संगठनों ने मिलकर संविधान व सामाजिक न्याय पर इस बड़े हमले के खिलाफ जन पहल का आह्वान किया है.
सचमुच में हमारे लिए सड़क पर जुलूस प्रदर्शन में रहने का दिन है.
यह हम सब की साझी लड़ाई है. आइये साथ चलें.
12-13-14 जनवरी 2019 को देश के विभिन्न हिस्सों में नुक्कड़ों-चौक-चौराहों पर उतरकर जोरदार आवाज बुलंद करें!
आइए,जोरदार आवाज में कहें-
*सवर्ण आरक्षण व संविधान संशोधन हमें कबूल नहीं!
*जिसकी जितनी संख्या भारी,उसकी उतनी हिस्सेदारी!
*संख्यानुपात में प्रतिनिधित्व की गारंटी के लिए दलितों-आदिवासियों-अतिपिछड़ों-पिछड़ों के आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से बढ़ाओ!
*न्यायपालिका व अन्य क्षेत्र सहित निजी क्षेत्र में आरक्षण दो!
*जाति जन गणना कराओ!
अपील जारी करने वालों में प्रमुख हैं : राजीव यादव, डॉ. विलक्षण रविदास, ई. हरिकेश्वर राम, रिंकु यादव, वीरेंद्र कुमार, प्रशांत निहाल, दीपक रंजीत, बाल गंगाधर बागी, नीतिशा खलखो, कनकलता यादव, प्रफुल्ल वसावा, राज वसावा, गौतम कुमार प्रीतम, नवीन प्रजापति, अर्जुन शर्मा, अंजनी, रामानंद पासवान, बाल्मिकी प्रसाद,गिरिजाधारी,आजाद कुमार, अशोक कुमार गौतम, सुनील हेम्ब्रम, अनूप महतो, रानी लक्ष्मी पूर्ति, शिवेंदु कुमार, नाहीद अकील, एहसानुल मालिक, अजय कुमार राम, सृजन्योगी आदियोग, अमित अम्बेडकर, शिवकुमार यादव, शामस्तब्रेज, दिनेश चौधरी, सूरज बौद्ध, शकील कुरैशी, जुलैखा ज़बी, विनोद यादव.
प्रतिवाद का आह्वान करने वाले प्रमुख संगठन हैं : रिहाई मंच, सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार), झारखंड जनतांत्रिक महासभा, बिहार फूले-अंबेडकर युवा मंच, इंडिजिनस आर्मी ऑफ इंडिया (गुजरात), बहुजन साहित्य संघ (जेएनयू, दिल्ली), अखिल भारतीय अंबेडकर महासभा, जमीयतुल कुरैशी उत्तर प्रदेश (लखनऊ), भारतीय मूलनिवासी संगठन(इलाहाबाद), जनवादी छात्रसभा (इलाहाबाद),अवध विकास मंच (प्रतापगढ़), इंसानी बिरादरी (लखनऊ), यादव सेना(लखनऊ), आॅल इंडिया पसमांदा मुस्लिम समाज (लखनऊ), पिछड़ा समाज महासभा उम्मीद (लखनऊ), ह्यूमन राइट वाच (लखनऊ), कारवां (आजमगढ़), फातिमा शेख सावित्री फूले काउंसलिंग और ट्रेनिंग (दिल्ली).
सामाजिक न्याय व आरक्षण की अवधारणा को निशाने पर लिया गया है. यह खतरनाक है. दलितों-आदिवासियों-पिछड़ों के आरक्षण के खात्मे का रास्ता खुल गया है. संविधान व सामाजिक न्याय पर इस दौर के इस बड़े हमले को कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है.
नरेन्द्र मोदी सरकार ने RSS के संविधान बदलने की योजना के एक पैकेज को अमलीजामा पहनाया है.
RSS का संविधान व आरक्षण से नफरत जगजाहिर है.
आरक्षण कोई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है, न ही रोजगार की गारंटी से जुड़ा मामला है. यह तो ऐतिहासिक वंचना के शिकार समाज के दलित-पिछड़े हिस्सों के सत्ता व शासन की संस्थाओं में प्रतिनिधित्व-भागीदारी की गारंटी से जुड़ा हुआ है. आज भी आंकड़े कह रहे हैं कि आबादी के अनुपात में सत्ता व शासन की संस्थाओं-विभिन्न क्षेत्रों में दलितों-आदिवासियों व पिछड़ों का प्रतिनिधित्व काफी कम है.
केन्द्र सरकार की ग्रुप A की नौकरियों में सवर्ण- 74.48%, OBC-8.37%, SC-12.06% हैं. अभी भी शासन-सत्ता की विभिन्न संस्थाओं व विभिन्न क्षेत्रों में सवर्णों की मौजूदगी आबादी के अनुपात में कई गुणा ज्यादा है. होना तो ये चाहिए कि दलितों-आदिवासियों-अतिपिछड़ों व पिछड़ों की संख्यानुपात में प्रतिनिधित्व की गारंटी के लिए आरक्षण की सीमा 50% से बढ़ाई जाती.जिन संस्थाओं व क्षेत्रों में आरक्षण लागू नहीं है,वहां लागू किया जाता.
लेकिन सरकार ने संविधान व सामाजिक न्याय पर हमला बोलते हुए उल्टी दिशा में काम किया है. विभिन्न संस्थाओं व क्षेत्रों में सवर्णों का वर्चस्व कायम रहने व बढ़ने की गारंटी की है. यह लोकतांत्रिक व्यवस्था व राष्ट्र निर्माण के लिए घातक है.
सवर्णों सहित समाज के अन्य हिस्सों से गरीबी दूर करने के लिए आरक्षण समाधान नहीं है.आरक्षण आर्थिक विषमता मिटाने का एजेंडा नहीं है. गरीबी व बेरोजगारी जैसी समस्याओं के समाधान के लिए देशी-विदेशी पूंजी की बढ़ती लूट पर अंकुश लगाना होगा.
बहुसंख्यकों के लिए गरीबी और बेरोजगारी पैदा करने और मुट्ठीभर अमीरों की तिजोरी भरने वाली नयी आर्थिक नीति को बदलना होगा. लेकिन नरेन्द्र मोदी सरकार ने सवर्णों की गरीबी के बहाने संविधान पर हमला किया है और इसके जिम्मेवार लुटेरे देशी-विदेशी पूंजी और उसके पक्ष में चलनेवाली खूंखार नीतियों को बचाने का काम किया है.
कुल मिलाकर आर्थिक आधार पर सवर्ण आरक्षण के जरिये नरेन्द्र मोदी सरकार ने मनुविधान थोपने, सवर्ण वर्चस्व को मजबूत करने और लूटेरे पूंजीपतियों की सेवा की है. इस मसले पर सत्ता और विपक्ष की दूरी मिटती हुई नजर आयी. सामाजिक न्याय के नाम पर चलनेवाली रंग-बिरंगी राजनीत भी बेनकाब हो गई. ऐसे शर्मनाक दौर में उम्मीद केवल आम-अवाम व प्रगतिशील नागरिकों-बुद्धिजीवियों से बनती है. संविधान, सामाजिक न्याय व लोकतंत्र को बचाने की ऐतिहासिक जिम्मवारी के साथ हमें सड़कों पर आना ही होगा!
पिछले दिनों 2 अप्रैल 2018 को भारत बंद में सामने आयी एकजुटता व दावेदारी को फिर से सड़कों पर आकर बुलंद करना होगा. इस ऐतिहासिक समय में कुछ जन संगठनों ने मिलकर संविधान व सामाजिक न्याय पर इस बड़े हमले के खिलाफ जन पहल का आह्वान किया है.
सचमुच में हमारे लिए सड़क पर जुलूस प्रदर्शन में रहने का दिन है.
यह हम सब की साझी लड़ाई है. आइये साथ चलें.
12-13-14 जनवरी 2019 को देश के विभिन्न हिस्सों में नुक्कड़ों-चौक-चौराहों पर उतरकर जोरदार आवाज बुलंद करें!
आइए,जोरदार आवाज में कहें-
*सवर्ण आरक्षण व संविधान संशोधन हमें कबूल नहीं!
*जिसकी जितनी संख्या भारी,उसकी उतनी हिस्सेदारी!
*संख्यानुपात में प्रतिनिधित्व की गारंटी के लिए दलितों-आदिवासियों-अतिपिछड़ों-पिछड़ों के आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से बढ़ाओ!
*न्यायपालिका व अन्य क्षेत्र सहित निजी क्षेत्र में आरक्षण दो!
*जाति जन गणना कराओ!
अपील जारी करने वालों में प्रमुख हैं : राजीव यादव, डॉ. विलक्षण रविदास, ई. हरिकेश्वर राम, रिंकु यादव, वीरेंद्र कुमार, प्रशांत निहाल, दीपक रंजीत, बाल गंगाधर बागी, नीतिशा खलखो, कनकलता यादव, प्रफुल्ल वसावा, राज वसावा, गौतम कुमार प्रीतम, नवीन प्रजापति, अर्जुन शर्मा, अंजनी, रामानंद पासवान, बाल्मिकी प्रसाद,गिरिजाधारी,आजाद कुमार, अशोक कुमार गौतम, सुनील हेम्ब्रम, अनूप महतो, रानी लक्ष्मी पूर्ति, शिवेंदु कुमार, नाहीद अकील, एहसानुल मालिक, अजय कुमार राम, सृजन्योगी आदियोग, अमित अम्बेडकर, शिवकुमार यादव, शामस्तब्रेज, दिनेश चौधरी, सूरज बौद्ध, शकील कुरैशी, जुलैखा ज़बी, विनोद यादव.
प्रतिवाद का आह्वान करने वाले प्रमुख संगठन हैं : रिहाई मंच, सामाजिक न्याय आंदोलन (बिहार), झारखंड जनतांत्रिक महासभा, बिहार फूले-अंबेडकर युवा मंच, इंडिजिनस आर्मी ऑफ इंडिया (गुजरात), बहुजन साहित्य संघ (जेएनयू, दिल्ली), अखिल भारतीय अंबेडकर महासभा, जमीयतुल कुरैशी उत्तर प्रदेश (लखनऊ), भारतीय मूलनिवासी संगठन(इलाहाबाद), जनवादी छात्रसभा (इलाहाबाद),अवध विकास मंच (प्रतापगढ़), इंसानी बिरादरी (लखनऊ), यादव सेना(लखनऊ), आॅल इंडिया पसमांदा मुस्लिम समाज (लखनऊ), पिछड़ा समाज महासभा उम्मीद (लखनऊ), ह्यूमन राइट वाच (लखनऊ), कारवां (आजमगढ़), फातिमा शेख सावित्री फूले काउंसलिंग और ट्रेनिंग (दिल्ली).