हमारे श्रम बल की भूख और अभाव का योग है पीएम केयर्स

Written by Peri Maheshwer | Published on: May 5, 2020
जब मैं बमुश्किल 18 साल का था तो मेरे पिता का निधन हो गया था। उस समय मेरा भाई 20 साल का था। लालफीताशाही के कारण जिस पेंशन से हमारे परिवार को सहायता मिलनी चाहिए थी वह नहीं दी गई। मेरी माँ को पूरे चार साल बाद पेंशन मिलनी शुरू हुई जब हम दोनों भाई कमाने लगे थे। जब हमें पैसे की सख्त जरूरत थी, तो हमारे पास कोई पैसा नहीं था। हम उन दिनों कैसे रहे वह अपने आप में एक कहानी है, लेकिन वह इस पोस्ट का उद्देश्य नहीं है।



पीएम केयर्स इसी वजह से नाकाम है। इसमें करीब 15000 करोड़ रुपए जुटा लिए गए हैं लेकिन उसे तत्काल उपयोग में नहीं लिया गया। दूसरी ओर, इसने व्यवस्था में मौजूद महत्वपूर्ण संसाधनों को चूस लिया है। यह तब हुआ जब विक्रेंदीत राहत कार्य समय की जरूरत थी। इसकी वजह से लोगों को जरूरत पर तत्काल राहत नहीं मिली। पिछले छह वर्षों में, हमलोगों ने अपने तमाम एनजीओ (गैर सरकारी संगठनों) को धन के बिना मार दिया है जबकि संकट की ऐसी स्थिति में यही लोगों और राज्य के बीच सेतु होते हैं। पीएम केयर्स उसी एजंडा को आगे बढ़ा रहा है। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राज्य सारा श्रेय उदार राजा को देना (या लेने देना) चाहता है। वे सब मिलकर त्रासदी का आनंद लेते हैं और इसे एक ईवेंट बना देते हैं। हर किसी को जरूरतमंद की सेवा करते हुए नहीं बल्कि राजा की सेवा में नजर आना चाहिए । संघवाद और राज्य सरकारों के पास सब कुछ है पर त्याग नहीं है।

ऐसा लगता है कि हमने नोटबंदी की भारी कीमत चुकाकर भी कुछ नहीं सीखा है। पीएम केयर्स में जो पैसे गए हैं उसे कायदे से मुख्यमंत्री राहत कोष और उन एनजीओ के पास होना चाहिए था जो सड़कों पर थे। उस समय, जब केंद्रीय मंत्री रामायण देख रहे थे। इससे तत्काल राहत मिली होती और यह सुनिश्चित होता कि निर्णय लेने की प्रक्रिया विकेंद्रित हो। सहानुभूति की नितांत कमी का पता इस बात से चलता है कि रेलवे 151 करोड़ रुपए दान कर रही है, जबकि गरीब, लाचार, बेरोजगार और 40 दिन बंद करके रखे गए मजदूरों से 50 रुपए अतिरिक्त लिए जा रहे हैं। एल एंड टी भी दान कर रही है जबकि अपने मजदूरों को मजदूरी और भोजन से वंचित रखे हुए है। सीधे तौर पर पीएम केयर्स हमारे श्रम बल की भूख और अभाव, हमारे कामकाजी वर्ग की छंटनी और वेतन कटौती और हमारे किसानों की खोई हुई फसल का कुल योग है ।

बहुत जल्द, हमें एक भव्य घोषणा सुनने को मिलेगी कि राजा जी खजाने को कैसे खर्च करेंगे। श्रमिकों को माला पहनाया जाएगा और उनके बलिदान के लिए तारीफ की जाएगी। थाली पीटने वाला गिरोह अपनी बालकनी में पूरी ताकत से निकलेगा और राजा तथा उसकी दयालुता की जय जयकार करेगा। लेकिन प्रवासी मजदूर को उस शहर में लौटने में बहुत समय लगेगा जिसने उसे दूर कर दिया। जो लोग नौकरी से निकाल दिए गए हैं वे अंधेरे कमरे में चुप चाप भुगतेंगे। देश को खिलाने वाला किसान भूखा रहेगा। हमारी अर्थव्यवस्था के पहिये श्रम बल के अभाव में बहुत धीरे धीरे आगे बढ़ेंगे। और इसी में पीएम तथा उनके केयर के साथ भारत की जनता की असली कहानी है। भारत और उसके लोगों के लिए उनकी देखभाल। यह उस पेंशन की तरह है जो मेरी माँ को तब नहीं मिली जब उन्हें इसकी जरूरत थी! उसने कभी परवाह नहीं की!

अनुवाद : संजय कुमार सिंह

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