संघ प्रमुख मोहन भागवत की सार्वजनिक नसीहत के बाद क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मणिपुर जाएंगे?

Written by Navnish Kumar | Published on: June 12, 2024
"मणिपुर में साल भर से ज्यादा से जारी हिंसा पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) मुखिया मोहन भागवत की सार्वजनिक नसीहत के बाद कम से कम यह उम्मीद की जा सकती है कि प्रधानमंत्री मोदी अब राज्य का दौरा करेंगे। अभी तक केंद्र सरकार या बीजेपी ने मणिपुर हिंसा पर कोई राजनीतिक पहल नहीं की है।"



लोकसभा चुनाव 2024 के बाद आरएसएस मुखिया मोहन भागवत ने अपनी टिप्पणी में मणिपुर हिंसा का ज़िक्र किया है। उन्होंने कहा है कि मणिपुर हिंसा का समाधान फ़िलहाल प्राथमिकता होनी चाहिए। मणिपुर में पिछले एक साल में जिस स्तर पर हिंसा हुई और अभी चल रही है उसकी तुलना में इस हिंसा की मीडिया रिपोर्टिंग ना के बराबर रही है। मणिपुर में पिछले एक साल से गृहयुद्ध के स्थिति बनी हुई है। मैतई और कुकी समुदायों के बीच शुरु हुई हिंसा ने राज्य को इस कदर बांट दिया है कि दोनों ही समुदाय के लोगों को किसी भी सूरत में बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं हैं। केंद्र सरकार के आंकड़ों को ही मानें तो मणिपुर में एक साल के भीतर यानि 3 मई 2023 से ले कर 3 मई 2024 के बीच कम से कम 221 लोगों की हत्या हुई हैं।

आरएसएस के सर संघचालक मोहन भागवत ने चुनाव बाद यानी 10 मई 2024 के दिन को चुना। इस बार के चुनाव में कई बार ऐसा लगा कि नरेंद्र मोदी और आरएसएस के बीच की दूरी घटने के बजाय बढ़ रही है। 10 मई के भाषण में भगवत ने इन अटकलों पर अपनी मुहर लगा दी है। अपने भाषण में भागवत ने हर किसी को मर्यादा में रहने की नसीहत देकर जता दिया है कि आरएसएस को अब पीएम मोदी के कार्यकलापों पर सख्त एतराज है, और वह मानता है कि भाजपा को इस चुनाव में जो झटका लगा है, उसके पीछे भाजपा नेतृत्व की स्वेच्छाचारिता और अमर्यादित आचरण का बड़ा हाथ है। नागपुर में आरएसएस कार्यकर्ता विकास वर्ग प्रशिक्षण शिविर के दौरान जब मोहन भागवत लोकसभा चुनाव को लेकर संघ का मत प्रकट कर रहे थे, तो दिल्ली में एनडीए सरकार भाजपा और सहयोगी दलों के बीच मंत्रालयों के बंटवारे को लेकर व्यस्त थी। नरेंद्र मोदी के 400 पार के उद्घोष का हश्र अभी तक भाजपा समर्थकों को साल रहा है, विशेषकर उत्तर प्रदेश में मिली अप्रत्याशित हार से हिंदुत्ववादी खेमा बुरी तरह से बौखलाया हुआ है। लेकिन संघ जो खुद को एक सांस्कृतिक संगठन बताता रहा है, ने लगता है इस हार से दूर रखने का फैसला ले लिया है।

अपने करीब 35 मिनट के भाषण में भागवत ने पहले दस मिनट तक चुनाव प्रचार में शामिल दलों के शीर्ष नेतृत्व के आचरण को लेकर कुछ तीखे सवाल खड़े किये हैं। मसलन, पूरे चुनाव अभियान के दौरान देश ने देखा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किस प्रकार भाजपा के चुनावी अभियान को चलाया। इसमें भाजपा के दस वर्षों की उपलब्धियों या भविष्य की दशा-दिशा पर एक भी ठोस बात नहीं की गई, सिर्फ कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र को मुस्लिम लीग से प्रेरित हिंदू महिलाओं के मंगलसूत्र पर डाका डालने वाला साबित करने की असफल कोशिश से जो शुरू हुआ वह भैंस छीन लेने के स्तर तक गिरता चला गया। हालांकि, अपने भाषण में मोहन भागवत ने दोनों पक्ष को लेकर अमर्यादित आचरण की बात कही है, लेकिन जिसने भी 2024 का चुनाव अभियान देखा होगा, वह सहज अंदाजा लगा सकता है कि उनका इशारा किसकी तरफ था। एक सच्चे सेवक के बारे में कबीर की एक सूक्ति का उद्धरण देते हुए मोहन भागवत ने जो कहा वह बेहद समीचीन है, “जो वास्तविक सेवक है, जिसे वास्तविक सेवक कहा जा सकता है, वो हमेशा मर्यादा से चलता है। उस मर्यादा का पालन कर वो कर्म करता है लेकिन कर्मों में लिप्त नहीं रहता। उसमें यह अहंकार नहीं आता कि ये सब मैंने किया, और वही एकमात्र सेवक कहलाने का अधिकारी है।”

वरिष्ठ पत्रकार रविंद्र पटवाल के अनुसार, याद करिए, संसद के भीतर नरेंद्र मोदी ने कुछ माह पहले ही खुद को “एक अकेला, सबपे भारी” घोषित किया था। भाजपा सांसदों ने मेजें थपथपाकर सिर्फ पालकी ढोने वाला काम किया था। सभी जानते हैं कि पिछले दस वर्षों के दौरान सरकार और भाजपा के सांगठनिक ढांचे को पूरी तरह से एक व्यक्ति और एक चेहरे के पीछे खड़ा कर दिया गया है। आज के दिन भले ही भारतीय जनता पार्टी दावा करे कि वह विश्व की सबसे बड़ी पार्टी है, लेकिन सच तो यह है कि मोदी के चेहरे ने पूरे संगठन को अंधेरे में डाल दिया है। 543 लोकसभा सीटों पर एनडीए के उम्मीदवारों के लिए अपने व्यक्तित्व या काम का मोल नरेंद्र मोदी के चेहरे से बड़ा शायद एक-आध लोकसभा को छोड़कर कहीं नहीं था।

विरोधी पक्ष को प्रतिपक्ष की संज्ञा देते हुए मोहन भागवत असल में नरेंद्र मोदी की शैली की आलोचना करते दिखते हैं। चुनावी रण में अपने पक्ष की जीत को सुनिश्चित बनाने के लिए प्रतिस्पर्धा को भागवत यथोचित मानते हुए, मर्यादा का ध्यान रखने की हिदायत देते हैं। आरएसएस चीफ ने अपने भाषण में मणिपुर का उल्लेख किया। मोहन भागवत ने साफ़ कहा है कि पिछले एक वर्ष से मणिपुर अशांत है। देश में कहीं भी सामाजिक वैमनस्यता है तो वह सही नहीं है। पिछले दस वर्ष से मणिपुर पूरी तरह शांत था। लेकिन हाल के दिनों में वहां बंदूक की संस्कृति देखने को मिली है। यह कैसे फैली या यह स्थिति पैदा की गई? लेकिन तथ्य यह है कि मणिपुर आज भी जल रहा है। मणिपुर की समस्या के तत्काल समाधान के लिए पहल कौन करेगा? इसके बाद भागवत कहते हैं कि तत्काल प्राथमिकता से इस स्थिति से निपटना होगा।

खास है कि मणिपुर हिंसा को रोकने के लिए केंद्र सरकार ने भारी संख्या में सुरक्षा बल तैनात किये हैं। लेकिन इस हिंसा को रोकने के लिए कोई राजनीतिक पहल कदमी नहीं की गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अभी तक मणिपुर का दौरा तक नहीं किया है। विपक्षी दल संसद, संसद के बाहर और चुनाव प्रचार के दौरान लगातार नरेन्द्र मोदी से यह सवाल पूछते रहे हैं कि वे कब मणिपुर जाएंगे। लेकिन प्रधानमंत्री मणिपुर के मुद्दे पर चुप और निष्क्रिय नज़र आते हैं। वरिष्ठ पत्रकार चित्रा सान्याल के एक लेख के अनुसार, राज्य में हिंसा के दौरान दो आदिवासी महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने और सताने के वायरल वीडियो के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह का बयान दिया था उसकी भी काफ़ी आलोचना हुई थी। उन्होंने इस आपराधिक घटना को उस समय कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान की घटनाओं से जोड़ दिया था। जाहिर सी बात है, जिस मणिपुर राज्य को इस चुनाव में भाजपा ने झांककर भी नहीं देखा, उसके दोनों लोकसभा क्षेत्रों से कांग्रेस को जीत हासिल हुई थी। सभी चुनावी पर्यवेक्षक मानकर चल रहे थे कि इनर मणिपुर तो कांग्रेस किसी भी सूरत में नहीं जीतने जा रही है, लेकिन चमत्कार देखिये एक वर्ष तक भयानक जातीय हिंसा में विभाजित मणिपुर के मैतेई और कुकी दोनों समुदाय के लोग आज नफरत की बजाय शांति चाहते हैं। लेकिन नफरत की आग इस कदर दोनों समुदायों के बीच में सुलगा दी गई है, कि उन्हें एक-दूसरे के साए पर भी भरोसा नहीं रहा। ये हालात भाजपा की डबल इंजन सरकार की देन है, जिसे देख आरएसएस मुखिया भी अपना पाला बदलते दिख रहे हैं।

संघ की नजर में विचारधारा से भाजपा नेतृत्व की दूरी बढ़ी है। लेकिन यह सिर्फ संघ प्रमुख की धारणा है, ऐसा कत्तई नहीं है। भाजपा की ओर से भी ऐसे संकेत दिए जा चुके हैं। ऐन चुनाव प्रचार के बीच भाजपा अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा ने एक समाचार पत्र को दिए इंटरव्यू में साफ़-साफ़ कहा था कि आज के दिन भारतीय जनता पार्टी इतनी सक्षम हो चुकी है कि उसे आरएसएस की मदद की जरूरत नहीं रही। लगातार पूर्ण बहुमत वाले दो कार्यकाल सफलतापूर्वक निकाल देने वाली भारतीय जनता पार्टी तब नरेंद्र मोदी के चेहरे पर 400 पार का दावा कर रही थी, और तीसरी बार और भी भारी जीत को लेकर आश्वस्त थी।

आरएसएस के अंग्रेजी मुखपत्र आर्गनाइजर में भी भाजपा कार्यकर्ताओं के अति-आत्मविश्वास को लेकर संघ के पूर्णकालिक कार्यकर्ता रतन शारदा ने कुछ चुभते सवाल खड़े किये हैं। वैसे यदि ध्यान दें तो आरएसएस ने पिछले वर्ष भी अपनी पत्रिका में इस बात की ओर इशारा किया था कि सिर्फ मोदी के चेहरे को आगे रख चुनाव में जीत की गारंटी नहीं की जा सकती है। लेकिन ताजे लेख में तो भाजपा-संघ के बीच की दूरियां खुलकर आमने आ गई हैं।

राहुल गांधी की राजनीतिक पहल 

कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने भारत जोड़ा न्याय यात्रा की शुरुआत मणिपुर से की थी। लोकसभा चुनाव परिणाम में भी यह दिखाई दिया है कि लोग कांग्रेस पार्टी पर भरोसा कर रहे हैं। क्योंकि यहां पर दोनों ही सीटें कांग्रेस पार्टी ने जीत ली हैं। इस बात में कोई शक नहीं है कि कांग्रेस के इन दो सांसदों पर यह दबाव रहेगा कि वे संसद में कुकी और मैतई दोनों ही समुदायों के पक्ष को मजबूती से रखें। लेकिन राज्य में शांति बहाल करने की ज़िम्मेदारी कांग्रेस पार्टी पर नहीं छोड़ी जा सकती है। क्योंकि केंद्र और राज्य दोनों ही सरकारें बीजेपी की हैं। 

मणिपुर के मुख्यमंत्री का क्या होगा

मणिपुर संकट के बारे में यह कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह खुद एक समस्या बने हुए हैं। इसलिए कम से कम उनसे यह उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वे मणिपुर हिंसा का कोई सटीक समाधान निकाल सकते हैं। लेकिन भारतीय जनता पार्टी ने अभी तक कोई ऐसा संकेत नहीं दिया है कि उन्हें पद से हटाया जा सकता है। जबकि यह सच सभी जानते हैं कि राज्य में हिंसा से पहले और हिंसा के दौरान यानि पिछले एक साल में उनका रवैया पक्षपाती रहा है। 2022 के विधानसभा में बेशक एन बिरेन सिंह के नेतृत्व में बीजेपी को मणिपुर में भारी सफलता मिली थी। शायद यह भी एक वजह है कि बीजेपी राज्य में नेतृत्व बदलाव से कतरा रही है। लेकिन यह बात तो तय है कि जब तक वे अपने पद पर कायम हैं मणिपुर को शात करना आसान नहीं होगा। क्योंकि राज्य के आदिवासी संगठन ही नहीं आम कुकी नागरिक भी उन पर भरोसा करने को तैयार नहीं है।

दो दिन पहले ही यह ख़बर आई है कि एक बार फिर से हज़ारों लोग पलायन करने को मजबूर हुए हैं। ये लोग मणिपुर छोड़ कर असम में आ गए हैं। इसके अलावा जिरीबाम नाम की जगह पर पिछले सप्ताह हिंसा की घटनाएं हुई हैं। यह वो इलाका है जो अभी तक हिंसा से अछूता था।

नई मोदी सरकार से उम्मीद

केंद्र में एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी है। इस सरकार में नया सिर्फ ये है कि यह गठबंधन की सरकार है। मणिपुर के संदर्भ में इस सरकार से उम्मीद की जानी चाहिए कि गृहमंत्री अमित शाह ज़मीन पर क़ानून व्यवस्था का जायज़ा लेकर प्रधानमंत्री को ब्रीफ़ करें। साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अब कम से कम मणिपुर का दौरा करना चाहिए। इससे लोगों में यह संदेश जाएगा कि केंद्र सरकार मणिपुर के हालात पर संजीदा हो रही है। इसके अलावा केंद्र में उत्तर-पूर्व के राज्यों के मंत्री को भी स्थिति को समझ कर प्रधानमंत्री को ब्रीफ़ करना चाहिए। मणिपुर के सीएम मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह पर बीजेपी को बोल्ड फैसला लेते हुए उन्हें पद से हटाना चाहिए। 

अब जबकि बीजेपी के मातृ संगठन आरएसएस ने मणिपुर पर चिंता प्रकट की है तो यह उम्मीद की जानी चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बीजेपी इस मामले को गंभीरता से लेगी लेकिन बड़ा सवाल यही कि क्या पीएम मोदी अब मणिपुर जाएंगे? 

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