पालघर की घटना बेहद घृणित ओर निंदनीय है इसकी जितनी भी भर्त्सना की जाए उतनी कम है एक 80 साल के बुजुर्ग ओर उनके दो साथियों की जिस तरह निर्मम तरीके से पीट पीटकर हत्या कर दी गयी। यह बता रहा है कि आदिम पशुता अभी भी समाज मे विद्यमान है इसमे राज्य सरकार की भी पूरी गलती है।
इनके दोषियों को भी ठीक वही सजा मिलनी चाहिए जो पिछले दिनों आए मोब लिंचिंग के मामलों के आरोपियों को सजा मिली है'। शायद 'वैसी सजा' से पोस्ट पढ़ रहे कुछ लोग अब सहमत नही होंगे..... ठीक है जाने दीजिए लेकिन इस घृणित घटना के पीछे जो कुत्सित राजनीति का गंदा खेल खेला जा रहा है वो समझ लीजिए।
पालघर जिले के इंटीरियर में स्थित गाँव की यह घटना संभवतः 16 अप्रैल की है 17 अप्रैल को देश के सभी मीडिया चैनल इस घटना को कवर करते हैं ( पिक कमेन्ट बॉक्स में) साफ लिखा होता है कि सुशील गिरी जी और उनके अन्य 2 साथी मोब लिंचिंग के शिकार हुए लेकिन देश मे कोई खास प्रतिक्रिया नही होती, सोशल मीडिया पर भी कोई चर्चा नही है कल शाम योगेश्वर दत्त अपने ट्विटर एकॉउंट से घटना का वीडियो रूपी वायरस पोस्ट करते है और उसके बाद एकदम से हंगामा मच जाता है शाम को आइटी सेल वीडियो का लोकल ट्रांसमिशन शुरू करता है रात होते होते यह घटना कम्युनिटी स्प्रेड की तरह सोशल मीडिया पर छा जाती है। आईटी सेल के निर्देशानुसार घटना को एक अलग ही रँग दे दिया जाता है।
चित्र में पहली तस्वीर जनसत्ता की 18 अप्रैल की खबर है घटना पूरे विस्तार से बताई गई है कैसे हुई? किस वजह से हुई? कौन लोग इन्वॉल्व थे? सब साफ साफ लिखा है। यह भी साफ कर दिया गया है कि 100 से अधिक आरोपियों को उसी वक्त गिरफ्तार कर लिया गया और दूसरी तस्वीर 19 अप्रैल की शाम को जी न्यूज द्वारा डाली गयी खबर की है। दोनों एक ही घटना है लेकिन आप भाषा का फर्क देखिए। जी न्यूज लिखता है 'जेहादी कट्टरपंथी लोगों ने घेर लिया और गाड़ी को तोड़फोड़ दिया और गाड़ी भी पलट दी. इसके बाद कट्टरपंथियों ने निर्ममता और तालिबानियों की तरह निर्दोष संतों को पीट पीट कर मार डाला', यह भी ध्यान दीजिए कि यह जनसत्ता की खबर के एक दिन बाद लिखी गयी रिपोर्ट है पत्रकारिता की दृष्टि से अक्सर ऐसी रिपोर्ट में ओर अधिक विवरण रहते हैं तथ्यात्मक जानकारी रहती है लेकिन तथ्य और जानकारी तो गयी चूल्हे में, सीधे निष्कर्ष परोस दिया गया।
शाम से जो सोशल मीडिया में जो घृणा उत्पन्न करने वाले संदेश भेजे जा रहे थे उसका संज्ञान लेकर महाराष्ट्र के गृहमंत्री को रात को बयान देना पड़ा कि पालघर की घटना में मरने वाले ओर मारने वाले दोनों एक धर्मीय ही है बेवजह सोशल मीडिया ओर अन्य माध्यमों पर विवाद खड़े करने वालो पर महाराष्ट्र पुलिस सख्त कार्यवाही करेगी
आज दिनभर मीडिया पर यह वीडियो चलेगा क्योंकि एक ऐसे राज्य की घटना है जहाँ बीजेपी की सरकार नही है कल उत्तर प्रदेश से यह भी खबर आई कि कोरोना वारियर की मुँह में सेनेटाइजर डाल कर निर्मम हत्या कर दी गयी लेकिन इस घटना पर कोई बात तक करने को तैयार नही होगा।
एक बात और, यह लिंचिंग करने वाली भीड़ को उन्ही लोगो ने बढ़ावा दिया है जो आज इस घटना को अलग एंगल देकर पेश कर रहे है......तो 'जैसा बोएंगे वैसा ही काटेंगे'.......
इनके दोषियों को भी ठीक वही सजा मिलनी चाहिए जो पिछले दिनों आए मोब लिंचिंग के मामलों के आरोपियों को सजा मिली है'। शायद 'वैसी सजा' से पोस्ट पढ़ रहे कुछ लोग अब सहमत नही होंगे..... ठीक है जाने दीजिए लेकिन इस घृणित घटना के पीछे जो कुत्सित राजनीति का गंदा खेल खेला जा रहा है वो समझ लीजिए।
पालघर जिले के इंटीरियर में स्थित गाँव की यह घटना संभवतः 16 अप्रैल की है 17 अप्रैल को देश के सभी मीडिया चैनल इस घटना को कवर करते हैं ( पिक कमेन्ट बॉक्स में) साफ लिखा होता है कि सुशील गिरी जी और उनके अन्य 2 साथी मोब लिंचिंग के शिकार हुए लेकिन देश मे कोई खास प्रतिक्रिया नही होती, सोशल मीडिया पर भी कोई चर्चा नही है कल शाम योगेश्वर दत्त अपने ट्विटर एकॉउंट से घटना का वीडियो रूपी वायरस पोस्ट करते है और उसके बाद एकदम से हंगामा मच जाता है शाम को आइटी सेल वीडियो का लोकल ट्रांसमिशन शुरू करता है रात होते होते यह घटना कम्युनिटी स्प्रेड की तरह सोशल मीडिया पर छा जाती है। आईटी सेल के निर्देशानुसार घटना को एक अलग ही रँग दे दिया जाता है।
चित्र में पहली तस्वीर जनसत्ता की 18 अप्रैल की खबर है घटना पूरे विस्तार से बताई गई है कैसे हुई? किस वजह से हुई? कौन लोग इन्वॉल्व थे? सब साफ साफ लिखा है। यह भी साफ कर दिया गया है कि 100 से अधिक आरोपियों को उसी वक्त गिरफ्तार कर लिया गया और दूसरी तस्वीर 19 अप्रैल की शाम को जी न्यूज द्वारा डाली गयी खबर की है। दोनों एक ही घटना है लेकिन आप भाषा का फर्क देखिए। जी न्यूज लिखता है 'जेहादी कट्टरपंथी लोगों ने घेर लिया और गाड़ी को तोड़फोड़ दिया और गाड़ी भी पलट दी. इसके बाद कट्टरपंथियों ने निर्ममता और तालिबानियों की तरह निर्दोष संतों को पीट पीट कर मार डाला', यह भी ध्यान दीजिए कि यह जनसत्ता की खबर के एक दिन बाद लिखी गयी रिपोर्ट है पत्रकारिता की दृष्टि से अक्सर ऐसी रिपोर्ट में ओर अधिक विवरण रहते हैं तथ्यात्मक जानकारी रहती है लेकिन तथ्य और जानकारी तो गयी चूल्हे में, सीधे निष्कर्ष परोस दिया गया।
शाम से जो सोशल मीडिया में जो घृणा उत्पन्न करने वाले संदेश भेजे जा रहे थे उसका संज्ञान लेकर महाराष्ट्र के गृहमंत्री को रात को बयान देना पड़ा कि पालघर की घटना में मरने वाले ओर मारने वाले दोनों एक धर्मीय ही है बेवजह सोशल मीडिया ओर अन्य माध्यमों पर विवाद खड़े करने वालो पर महाराष्ट्र पुलिस सख्त कार्यवाही करेगी
आज दिनभर मीडिया पर यह वीडियो चलेगा क्योंकि एक ऐसे राज्य की घटना है जहाँ बीजेपी की सरकार नही है कल उत्तर प्रदेश से यह भी खबर आई कि कोरोना वारियर की मुँह में सेनेटाइजर डाल कर निर्मम हत्या कर दी गयी लेकिन इस घटना पर कोई बात तक करने को तैयार नही होगा।
एक बात और, यह लिंचिंग करने वाली भीड़ को उन्ही लोगो ने बढ़ावा दिया है जो आज इस घटना को अलग एंगल देकर पेश कर रहे है......तो 'जैसा बोएंगे वैसा ही काटेंगे'.......