वन बेल्ट, वन रोड पर बुरी तरह फेल हुई मोदी सरकार की डिप्लोमेसी

Written by सबरंगइंडिया स्टाफ | Published on: May 15, 2017

चीन ओबीओआर प्रोजेक्ट पर 900 अरब डॉलर खर्च करेगा भारत ने चीन की इस महत्वाकांक्षी परियोजना से खुद को अलग कर एक बड़ा आर्थिक मौका गंवाया है यह मोदी सरकार की डिप्लोमेसी की एक बड़ी खामी मानी जा रही है



मोदी सरकार ने चीन की महत्वाकांक्षी वन बेल्ट, वन रोड या बेल्ट रोड इनिशिएटिव में हिस्सा न लेने का ऐलान कर ‘राष्ट्रवादियों’ को खुश कर दिया होगा। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि इस मामले में सरकार की डिप्लोमेसी बुरी तरह फेल रही है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की लिगेसी प्रोजेक्ट मानी जाने वाली वन बेल्ट वन रोड के तहत चीन सड़क और समुद्री मार्ग के जरिये एशिया, यूरोप और अफ्रीका से खुद को जोड़ना चाहता है। इसके तहत वह सड़क,रेलवे, बंदरगाह, हाइवे, पाइपलाइन और ऊर्जा प्रोजेक्ट का एक जाल बिछाना चाहता है ताकि दुनिया भर में अपना माल खपा सके और वहां से माल ला सके।
 
अपनी अर्थव्यवस्था की ओवर कैपिसटी खपाने और वहां धीमी हो रही आर्थिक विकास की दर को रफ्तार देना चीन का एक बड़ा मंसूबा है। यह प्रोजेक्ट उसी का नतीजा है।

इस प्रोजेक्ट का एक अहम हिस्सा है चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कोरिडोर यानी सीपीईसी। इसका एक हिस्सा पीओके से गुजरता है। भारत का मानना है कि इस कोरिडोर का यहां से गुजरना उसकी संप्रभुता को चुनौती है। इसी आधार पर उसने बीजिंग में 14 मई से चल रहे बेल्ट रोड फोरम में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया। लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा करके भारत अपने फायदे का बड़ा मौका गंवा रहा है। दुनिया के ज्यादातर देश ओबीओआर से जुड़ने की इच्छा जता  चुके हैं। यहां तक अमेरिका ने भी बेल्ट रोड फोरम में अपना प्रतिनिधि भेज दिया। रूस को इसका समर्थन मिल रहा है। ऐसे में भारत का इससे दूर रहना कोई समझदारी भरी नीति नहीं कही जा सकती।

विशेषज्ञों का कहना है कि चीन अब अपना मैन्यूफैक्चरिंग बेस बाहर ले जाना चाहता है। भारत में रोजगार की बड़ी जरूरत है। हर साल उसे एक से डेढ़ करोड़ रोजगार पैदा करना है। ऐसे में बेल्ट रोड इनिशिएटिव की परियोजनाओं के तहत भारत चीन में निवेश ला सकता था। इंस्टीट्यूट ऑफ चाइनीज स्टडीज के सीनियर फेलो जबिन टी जेकब का कहना है कि नया निवेश न तो अमेरिका से आएगा और न ही यूरोप से। भारत में यह चीन से ही आ सकता है। साथ ही चीनी टेक्नोलॉजी भी आ सकती है। अमेरिका और यूरोप भारत को हाई एंड क्या लो एंड टेक्नोलॉजी भी देने को तैयार नहीं हैं।

चीन की बड़ी आबादी बुजुर्ग होती जा रही है और वहां इंडस्ट्री की लागतें भी बढ़ती जा रही हैं। ऐसे में वह भारत में बड़े मैन्यूकैक्चरिंग बेस स्थापित कर सकता है। अगले कुछ साल में चीन वन बेल्ट वन रोड प्रोजेक्ट से जुड़ने वाले देशों में 800 अरब डॉलर खर्च करेगा। 14 मई को शी जिनपिंग ने इसमें और 124 अरब डॉलर जोड़ने का ऐलान किया। इतने बड़े निवेश के एक हिस्से को हाथ से जाने देना मोदी सरकार की डिप्लोमेसी की एक खामी मानी जा रही है।
 

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