मणिपुर की राजधानी इंफाल में अरमबाई तेंग्गोल के एक नेता की गिरफ्तारी के बाद हालात हिंसक हो गए। भीड़ ने बैरिकेड्स और वाहनों में आग लगा दी, जिससे स्थिति और बिगड़ गई। इसके मद्देनज़र पांच जिलों में कर्फ्यू लागू कर दिया गया और मोबाइल इंटरनेट सेवाएं भी स्थगित कर दी गईं। इस बीच, कांग्रेस ने राज्य में राष्ट्रपति शासन को पूरी तरह विफल बताया है।

रविवार 8 जून को मणिपुर के इम्फाल ईस्ट जिले में जला हुआ एक बस; फोटो साभार : पीटीआई
मणिपुर की राजधानी इंफाल में शनिवार 7 जून की रात उस वक्त तनाव फैल गया जब पुलिस ने अरमबाई तेंग्गोल के नेता कानन सिंह और संगठन के चार अन्य सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी के बाद पूरे इंफाल में हिंसा भड़क उठी।
फरवरी में भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफ़ा देने के बाद से मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू है।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, गुस्साए लोगों ने सड़कों पर उतरकर कई पुलिस बैरिकेड्स को तोड़ दिया या उनमें आग लगा दी। भीड़ में से कई लोग अरमबाई तेंग्गोल के सदस्य या समर्थक नजर आ रहे थे। इस हिंसा के दौरान कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया, हालांकि अभी तक इसका सटीक आंकड़ा प्रशासन ने नहीं बताया है।
शनिवार रात हुई झड़पों में अरमबाई तेंग्गोल के करीब आठ सदस्य घायल हुए हैं, जिन्हें इंफाल के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
सूत्रों ने द वायर को बताया कि गिरफ्तारी के वक्त अरमबाई तेंग्गोल के समर्थकों ने कानन सिंह को सुरक्षा बलों की हिरासत से जबरन छुड़ाने की भी कोशिश की थी। हालांकि, सुरक्षाबलों ने स्थिति पर नियंत्रण बनाए रखा और गिरफ्तारी की प्रक्रिया पूरी की।
फिलहाल घाटी के पांच जिलों में हिंसा के बाद कर्फ्यू लगा दिया गया है और मोबाइल इंटरनेट सेवाएं पूरी तरह से पांच दिनों के लिए बंद कर दी गई हैं।
जहां इंफाल का मध्य इलाका कड़ी सुरक्षा के घेरे में है, वहीं आस-पास के क्षेत्रों और अन्य घाटी जिलों में अशांति बढ़ती जा रही है। प्रदर्शनकारियों - जिनमें अधिकतर युवा पुरुष शामिल हैं - ने टायर जलाकर सड़कों को जाम कर दिया है और कई इलाकों में सुरक्षा बलों की आवाजाही में भी बाधा पहुंचाई है।
राष्ट्रपति शासन से कोई फर्क नहीं
मणिपुर में हालिया भड़की हिंसा को लेकर कांग्रेस के महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने कहा है कि जहां राष्ट्रपति शासन लगाया गया है, वहां भी स्थिति में कोई फर्क नहीं पड़ा है।
सरकार पर निशाना साधते हुए जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि फरवरी 2022 में भाजपा ने विधानसभा चुनाव में जबरदस्ती बहुमत हासिल कर लिया था। लेकिन इसके महज पंद्रह महीने बाद, 3 मई 2023 की रात से मणिपुर को आग के हवाले कर दिया गया।
उन्होंने कहा, “सैंकड़ों निर्दोष पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की जान गई है। हजारों लोग विस्थापित हुए हैं। पूजा स्थलों को नष्ट कर दिया गया है।”
रमेश ने बताया कि केंद्र सरकार ने 4 जून 2023 को तीन सदस्यीय जांच आयोग गठित किया था, लेकिन उसकी रिपोर्ट अब तक नहीं आई है। आयोग को रिपोर्ट सौंपने की समय-सीमा बार-बार बढ़ाई जा रही है, और अब नई तारीख 20 नवंबर 2025 तय की गई है।
उन्होंने आगे कहा कि 1 अगस्त 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने खुद कहा था कि राज्य में दो महीने से ‘संविधानिक तंत्र पूरी तरह ठप हो गया है।’
रमेश ने कहा, ‘गृह मंत्री ने मणिपुर का औपचारिक दौरा किया, लेकिन प्रधानमंत्री ने अब तक न कुछ कहा, न किसी से मुलाकात की।’ उन्होंने यह भी दावा किया कि कांग्रेस द्वारा मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के खिलाफ 10 फरवरी, 2025 से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा के बाद ही केंद्र ने राष्ट्रपति शासन लगाया।
ज्ञात हो कि बीरेन सिंह ने 9 फरवरी को इस्तीफा दिया और 13 फरवरी, 2025 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया।
रमेश ने कहा, “लेकिन राष्ट्रपति शासन से भी कोई फर्क नहीं पड़ा। खुद राज्यपाल को अब इंफाल एयरपोर्ट से अपने घर तक हेलिकॉप्टर से जाना पड़ रहा है। राज्य के कई हिस्सों में कानून-व्यवस्था की हालत बेहद खराब है।”
उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी पर दोबारा सवाल उठाया, ‘प्रधानमंत्री मणिपुर कब जाएंगे? क्या उनके पास समय और इच्छा है?’
रमेश ने कहा, “मोदी अलग-अलग देशों और राज्यों में उद्घाटन करने तो जाते हैं, लेकिन न तो मणिपुर के किसी राजनीतिक प्रतिनिधि से मिलते हैं, न ही किसी सामाजिक संगठन से। उन्होंने राज्य की पूरी जिम्मेदारी गृहमंत्री पर छोड़ दी है, जो पूरी तरह से नाकाम साबित हुए हैं।”
रमेश ने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, “मणिपुर के लोगों के दुख-दर्द को लेकर प्रधानमंत्री की यह असंवेदनशीलता चौंकाने वाली है और समझ से परे है। मणिपुर की त्रासदी अब केवल एक राज्य की नहीं रही, बल्कि यह पूरे देश की पीड़ा बन चुकी है।”
क्या है अरमबाई तेंग्गोल
"अरमबाई तेंग्गोल नामक इस उग्रवादी संगठन का उल्लेख कई एफआईआर में किया गया है, जिनमें हिंसा, डकैती और हत्या जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं। इन मामलों में से कई की जांच वर्तमान में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा की जा रही है।"
"इस संगठन की शुरुआत एक मैतेई सांस्कृतिक पुनर्जागरण अभियान के रूप में हुई थी, लेकिन समय के साथ यह एक सशस्त्र उग्रवादी मिलिशिया में तब्दील हो गया है, जो अब घाटी में निडर होकर लगातार अपनी गतिविधियां संचालित कर रहा है।"
"अब अरमबाई तेंग्गोल को मणिपुर का तीसरा प्रमुख हथियारबंद संगठन माना जाने लगा है। यह यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF) और पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) जैसे पुराने उग्रवादी संगठनों की श्रेणी में आ खड़ा हुआ है। इन दोनों संगठनों ने वर्षों से मैतेई अलगाववाद के एजेंडे को सशस्त्र संघर्ष और भूमिगत नेटवर्क के माध्यम से आगे बढ़ाया है।"
इंफाल स्थित सूत्रों ने ‘द वायर’ को बताया कि गिरफ्तारी के बाद भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद लेइशेम्बा सनाजाओबा अन्य कई विधायकों के साथ राजभवन पहुंचे। बताया जा रहा है कि भाजपा की मणिपुर इकाई केंद्र सरकार के रुख से नाखुश है और स्थिति को संभालने के तरीके को लेकर अपनी असहमति जता रही है।"
इस कार्रवाई के दौरान सीबीआई ने अरमबाई तेंग्गोल के प्रमुख नेता कानन सिंह को हिरासत में लिया और आगे की जांच के लिए उन्हें इंफाल से गुवाहाटी भेजा गया। सिंह के साथ मौजूद चार अन्य व्यक्तियों को राज्य पुलिस ने गिरफ्तार किया। उल्लेखनीय है कि कानन सिंह पहले हेड कांस्टेबल के पद पर कार्यरत थे, लेकिन बाद में उन्होंने अरमबाई तेंग्गोल से जुड़ने का फैसला किया।"
दो साल से जारी जातीय हिंसा
अरमबाई तेंग्गोल ने मणिपुर में जारी जातीय संघर्ष को एक निर्णायक मोड़ देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अब इस संगठन की तुलना पूर्वोत्तर भारत में सक्रिय पुराने उग्रवादी संगठनों से की जा रही है।
विश्लेषकों का कहना है कि अरमबाई तेंग्गोल का तेजी से उभरना पूर्वोत्तर भारत के उग्रवाद परिदृश्य में एक खतरनाक मोड़ की ओर संकेत करता है। इसकी विचारधारा, संगठनात्मक संरचना और आक्रामक रणनीति एक नई तरह के संघर्ष की आशंका को जन्म देती है।
राज्य की राजधानी इंफाल में यह समूह खुलेआम सक्रिय है। रिपोर्टों के अनुसार, इसे राज्य के शीर्ष राजनीतिक नेताओं से मिलने की भी अनुमति मिली है, जिनमें राज्यपाल अजय भल्ला, पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह और भाजपा सांसद सनाजाओबा शामिल हैं। सांसद सनाजाओबा ने तो सार्वजनिक रूप से इस संगठन के प्रति अपना समर्थन भी व्यक्त किया है।
इसके अलावा, अरमबाई तेंग्गोल पर घाटी क्षेत्र में कुकी समुदाय की संपत्तियों पर कब्जा करने का आरोप भी है, जो सीधे सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन है।
सत्ता संघर्ष
हालांकि भाजपा को बहुमत प्राप्त है और सिविल सोसाइटी संगठनों की ओर से स्थायी सरकार के गठन की मांग लगातार बढ़ रही है, लेकिन पार्टी अब तक मणिपुर में स्थायी सरकार स्थापित नहीं कर सकी है। इसका एक मुख्य कारण अरमबाई तेंग्गोल समूह के कुछ सदस्यों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर जनता में मौजूद असंतोष है। जब तक इस पर ठोस कार्रवाई नहीं होती, तब तक न तो सरकार कुकी समुदाय का विश्वास हासिल कर सकती है और न ही एक समावेशी प्रशासन की दिशा में कोई सार्थक प्रगति हो सकती है।
कुकी समुदाय के सभी 10 विधायक जिनमें 7 भाजपा से हैं, मौजूदा सरकार को अपना समर्थन नहीं दे रहे हैं।
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मणिपुर की राजधानी इंफाल में शनिवार 7 जून की रात उस वक्त तनाव फैल गया जब पुलिस ने अरमबाई तेंग्गोल के नेता कानन सिंह और संगठन के चार अन्य सदस्यों को गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी के बाद पूरे इंफाल में हिंसा भड़क उठी।
फरवरी में भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के इस्तीफ़ा देने के बाद से मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू है।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार, गुस्साए लोगों ने सड़कों पर उतरकर कई पुलिस बैरिकेड्स को तोड़ दिया या उनमें आग लगा दी। भीड़ में से कई लोग अरमबाई तेंग्गोल के सदस्य या समर्थक नजर आ रहे थे। इस हिंसा के दौरान कई गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया, हालांकि अभी तक इसका सटीक आंकड़ा प्रशासन ने नहीं बताया है।
शनिवार रात हुई झड़पों में अरमबाई तेंग्गोल के करीब आठ सदस्य घायल हुए हैं, जिन्हें इंफाल के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
सूत्रों ने द वायर को बताया कि गिरफ्तारी के वक्त अरमबाई तेंग्गोल के समर्थकों ने कानन सिंह को सुरक्षा बलों की हिरासत से जबरन छुड़ाने की भी कोशिश की थी। हालांकि, सुरक्षाबलों ने स्थिति पर नियंत्रण बनाए रखा और गिरफ्तारी की प्रक्रिया पूरी की।
फिलहाल घाटी के पांच जिलों में हिंसा के बाद कर्फ्यू लगा दिया गया है और मोबाइल इंटरनेट सेवाएं पूरी तरह से पांच दिनों के लिए बंद कर दी गई हैं।
जहां इंफाल का मध्य इलाका कड़ी सुरक्षा के घेरे में है, वहीं आस-पास के क्षेत्रों और अन्य घाटी जिलों में अशांति बढ़ती जा रही है। प्रदर्शनकारियों - जिनमें अधिकतर युवा पुरुष शामिल हैं - ने टायर जलाकर सड़कों को जाम कर दिया है और कई इलाकों में सुरक्षा बलों की आवाजाही में भी बाधा पहुंचाई है।
राष्ट्रपति शासन से कोई फर्क नहीं
मणिपुर में हालिया भड़की हिंसा को लेकर कांग्रेस के महासचिव (संचार) जयराम रमेश ने कहा है कि जहां राष्ट्रपति शासन लगाया गया है, वहां भी स्थिति में कोई फर्क नहीं पड़ा है।
सरकार पर निशाना साधते हुए जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि फरवरी 2022 में भाजपा ने विधानसभा चुनाव में जबरदस्ती बहुमत हासिल कर लिया था। लेकिन इसके महज पंद्रह महीने बाद, 3 मई 2023 की रात से मणिपुर को आग के हवाले कर दिया गया।
उन्होंने कहा, “सैंकड़ों निर्दोष पुरुषों, महिलाओं और बच्चों की जान गई है। हजारों लोग विस्थापित हुए हैं। पूजा स्थलों को नष्ट कर दिया गया है।”
रमेश ने बताया कि केंद्र सरकार ने 4 जून 2023 को तीन सदस्यीय जांच आयोग गठित किया था, लेकिन उसकी रिपोर्ट अब तक नहीं आई है। आयोग को रिपोर्ट सौंपने की समय-सीमा बार-बार बढ़ाई जा रही है, और अब नई तारीख 20 नवंबर 2025 तय की गई है।
उन्होंने आगे कहा कि 1 अगस्त 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने खुद कहा था कि राज्य में दो महीने से ‘संविधानिक तंत्र पूरी तरह ठप हो गया है।’
रमेश ने कहा, ‘गृह मंत्री ने मणिपुर का औपचारिक दौरा किया, लेकिन प्रधानमंत्री ने अब तक न कुछ कहा, न किसी से मुलाकात की।’ उन्होंने यह भी दावा किया कि कांग्रेस द्वारा मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के खिलाफ 10 फरवरी, 2025 से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र में अविश्वास प्रस्ताव लाने की घोषणा के बाद ही केंद्र ने राष्ट्रपति शासन लगाया।
ज्ञात हो कि बीरेन सिंह ने 9 फरवरी को इस्तीफा दिया और 13 फरवरी, 2025 को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया।
रमेश ने कहा, “लेकिन राष्ट्रपति शासन से भी कोई फर्क नहीं पड़ा। खुद राज्यपाल को अब इंफाल एयरपोर्ट से अपने घर तक हेलिकॉप्टर से जाना पड़ रहा है। राज्य के कई हिस्सों में कानून-व्यवस्था की हालत बेहद खराब है।”
उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी पर दोबारा सवाल उठाया, ‘प्रधानमंत्री मणिपुर कब जाएंगे? क्या उनके पास समय और इच्छा है?’
रमेश ने कहा, “मोदी अलग-अलग देशों और राज्यों में उद्घाटन करने तो जाते हैं, लेकिन न तो मणिपुर के किसी राजनीतिक प्रतिनिधि से मिलते हैं, न ही किसी सामाजिक संगठन से। उन्होंने राज्य की पूरी जिम्मेदारी गृहमंत्री पर छोड़ दी है, जो पूरी तरह से नाकाम साबित हुए हैं।”
रमेश ने सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, “मणिपुर के लोगों के दुख-दर्द को लेकर प्रधानमंत्री की यह असंवेदनशीलता चौंकाने वाली है और समझ से परे है। मणिपुर की त्रासदी अब केवल एक राज्य की नहीं रही, बल्कि यह पूरे देश की पीड़ा बन चुकी है।”
क्या है अरमबाई तेंग्गोल
"अरमबाई तेंग्गोल नामक इस उग्रवादी संगठन का उल्लेख कई एफआईआर में किया गया है, जिनमें हिंसा, डकैती और हत्या जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं। इन मामलों में से कई की जांच वर्तमान में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा की जा रही है।"
"इस संगठन की शुरुआत एक मैतेई सांस्कृतिक पुनर्जागरण अभियान के रूप में हुई थी, लेकिन समय के साथ यह एक सशस्त्र उग्रवादी मिलिशिया में तब्दील हो गया है, जो अब घाटी में निडर होकर लगातार अपनी गतिविधियां संचालित कर रहा है।"
"अब अरमबाई तेंग्गोल को मणिपुर का तीसरा प्रमुख हथियारबंद संगठन माना जाने लगा है। यह यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF) और पीपल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) जैसे पुराने उग्रवादी संगठनों की श्रेणी में आ खड़ा हुआ है। इन दोनों संगठनों ने वर्षों से मैतेई अलगाववाद के एजेंडे को सशस्त्र संघर्ष और भूमिगत नेटवर्क के माध्यम से आगे बढ़ाया है।"
इंफाल स्थित सूत्रों ने ‘द वायर’ को बताया कि गिरफ्तारी के बाद भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद लेइशेम्बा सनाजाओबा अन्य कई विधायकों के साथ राजभवन पहुंचे। बताया जा रहा है कि भाजपा की मणिपुर इकाई केंद्र सरकार के रुख से नाखुश है और स्थिति को संभालने के तरीके को लेकर अपनी असहमति जता रही है।"
इस कार्रवाई के दौरान सीबीआई ने अरमबाई तेंग्गोल के प्रमुख नेता कानन सिंह को हिरासत में लिया और आगे की जांच के लिए उन्हें इंफाल से गुवाहाटी भेजा गया। सिंह के साथ मौजूद चार अन्य व्यक्तियों को राज्य पुलिस ने गिरफ्तार किया। उल्लेखनीय है कि कानन सिंह पहले हेड कांस्टेबल के पद पर कार्यरत थे, लेकिन बाद में उन्होंने अरमबाई तेंग्गोल से जुड़ने का फैसला किया।"
दो साल से जारी जातीय हिंसा
अरमबाई तेंग्गोल ने मणिपुर में जारी जातीय संघर्ष को एक निर्णायक मोड़ देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। अब इस संगठन की तुलना पूर्वोत्तर भारत में सक्रिय पुराने उग्रवादी संगठनों से की जा रही है।
विश्लेषकों का कहना है कि अरमबाई तेंग्गोल का तेजी से उभरना पूर्वोत्तर भारत के उग्रवाद परिदृश्य में एक खतरनाक मोड़ की ओर संकेत करता है। इसकी विचारधारा, संगठनात्मक संरचना और आक्रामक रणनीति एक नई तरह के संघर्ष की आशंका को जन्म देती है।
राज्य की राजधानी इंफाल में यह समूह खुलेआम सक्रिय है। रिपोर्टों के अनुसार, इसे राज्य के शीर्ष राजनीतिक नेताओं से मिलने की भी अनुमति मिली है, जिनमें राज्यपाल अजय भल्ला, पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह और भाजपा सांसद सनाजाओबा शामिल हैं। सांसद सनाजाओबा ने तो सार्वजनिक रूप से इस संगठन के प्रति अपना समर्थन भी व्यक्त किया है।
इसके अलावा, अरमबाई तेंग्गोल पर घाटी क्षेत्र में कुकी समुदाय की संपत्तियों पर कब्जा करने का आरोप भी है, जो सीधे सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन है।
सत्ता संघर्ष
हालांकि भाजपा को बहुमत प्राप्त है और सिविल सोसाइटी संगठनों की ओर से स्थायी सरकार के गठन की मांग लगातार बढ़ रही है, लेकिन पार्टी अब तक मणिपुर में स्थायी सरकार स्थापित नहीं कर सकी है। इसका एक मुख्य कारण अरमबाई तेंग्गोल समूह के कुछ सदस्यों की गिरफ्तारी की मांग को लेकर जनता में मौजूद असंतोष है। जब तक इस पर ठोस कार्रवाई नहीं होती, तब तक न तो सरकार कुकी समुदाय का विश्वास हासिल कर सकती है और न ही एक समावेशी प्रशासन की दिशा में कोई सार्थक प्रगति हो सकती है।
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