राज्यसभा हाई कोर्ट के जज शेखर कुमार यादव पर नफरती बयान के आरोपों की जांच के लिए एक पैनल बना सकती है

Written by sabrang india | Published on: June 10, 2025
छह महीने पहले विपक्षी सांसदों ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज के खिलाफ महाभियोग लाने के लिए राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ को 55 सांसदों के हस्ताक्षरों वाली एक अर्जी दी थी। अब उन हस्ताक्षरों की जांच की जा रही है।



इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग की जो अर्जी दी गई थी, उस पर कार्रवाई करते हुए राज्यसभा के चेयरमैन जगदीप धनखड़ जल्द ही एक जांच कमेटी बना सकते हैं। ये कमेटी देखेगी कि पिछले साल दिसंबर में वीएचपी के एक कार्यक्रम में जज ने जो बात कही थी, वो वाकई नफरत फैलाने वाली थी या नहीं।

द इंडियन एक्सप्रेस को मिली जानकारी के अनुसार, छह महीने पहले विपक्षी सांसदों ने जज के खिलाफ महाभियोग चलाने के लिए 55 हस्ताक्षरों के साथ राज्यसभा के चेयरमैन जगदीप धनखड़ को एक अर्जी दी थी। अब उन हस्ताक्षरों की जांच हो रही है। जजों से जुड़ी जांच के कानून (Judges Inquiry Act) के अनुसार, महाभियोग की प्रक्रिया शुरू करने के लिए राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों या लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों के हस्ताक्षर जरूरी होते हैं।

राज्यसभा में 21 मार्च को बोलते हुए सभापति जगदीप धनखड़ ने बताया था कि सांसदों को उनके हस्ताक्षर की पुष्टि करने के लिए दो बार ईमेल भेजे गए हैं। उन्होंने कहा, “55 सदस्यों में से एक सांसद का हस्ताक्षर दो बार मिला है और उस सांसद ने कहा है कि वो हस्ताक्षर उनका नहीं है। मैं इस मुद्दे को ज्यादा नहीं बढ़ाना चाहता, क्योंकि इससे मामला और गंभीर हो सकता है। अगर हस्ताक्षर करने वाले सांसदों की गिनती 50 से ज्यादा होती है, तो मैं आगे की कार्रवाई करूंगा। ज्यादातर सांसदों ने सहयोग किया है। जो अब तक नहीं कर पाए हैं, उनसे अनुरोध है कि दूसरे मेल का जवाब देकर पुष्टि कर दें।”

विपक्षी नेताओं के सूत्रों ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि हस्ताक्षर दो बार हो जाने की गलती हस्ताक्षर करते समय हुई गलतफहमी की वजह से हुई थी। उन्होंने कहा कि अर्जी जमा कराने के लिए तीन अलग-अलग सेट तैयार किए गए थे। सूत्रों के मुताबिक, अगर एक हस्ताक्षर को अमान्य भी मान लिया जाए, तब भी महाभियोग की कार्रवाई शुरू करने के लिए जरूरी संख्या में सांसदों के दस्तखत मौजूद हैं।

विपक्ष लगातार राज्यसभा पर दबाव बनाता रहा है कि जस्टिस यादव के खिलाफ कार्रवाई की प्रक्रिया शुरू की जाए, क्योंकि उन्होंने एक विवादित बयान दिया था।

दरअसल, पिछले साल 8 दिसंबर को वीएचपी के एक कार्यक्रम में बोलते हुए जस्टिस शेखर कुमार यादव ने कहा था, "मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि यह हिंदुस्तान है… और देश उसी तरीके से चलेगा जैसा यहां की बहुसंख्यक आबादी चाहती है।"

यूनिफॉर्म सिविल कोड का समर्थन करते हुए उन्होंने मुस्लिम समुदाय का संदर्भ देते हुए कहा, “आपकी एक गलतफहमी है कि अगर एक कानून [यूसीसी] लाया गया, तो वह आपकी शरीयत, आपका इस्लाम और आपका कुरान के खिलाफ होगा… लेकिन मैं एक बात और कहना चाहता हूं… चाहे वह आपका पर्सलन लॉ हो, हमारा हिंदू कानून हो, आपका कुरान हो या हमारा गीता हो, जैसा कि मैंने कहा हमने अपनी प्रथाओं में बुराइयों को दूर किया है।” उन्होंने कहा कि छुआछूत, सती, जौहर और महिला भ्रूण हत्या को समाप्त किया गया है। “तो फिर आप क्यों नहीं खत्म कर रहे हैं… कि जबकि आपकी पहली पत्नी मौजूद है… आप तीन पत्नियां रख सकते हैं… बिना उसकी सहमति के… यह स्वीकार्य नहीं है।”

13 दिसंबर को न्यायाधीश यादव पर नफरत भरे भाषण देने का आरोप लगाते हुए, राज्यसभा में विपक्ष के सदस्यों के एक प्रतिनिधिमंडल ने महाभियोग की मांग करते हुए एक नोटिस सौंपा।

13 फरवरी को सदन को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कहा कि उन्हें संविधान के अनुच्छेद 124 (3) के तहत न्यायाधीश यादव को हटाने के लिए एक बिना तारीख वाला नोटिस प्राप्त हुआ है। उन्होंने कहा था, “संविधान के अनुसार इस विषय में जिम्मेदारी राज्यसभा के अध्यक्ष की होती है और अंततः संसद तथा राष्ट्रपति की भी। पब्लिक डोमेन की जानकारी और उपलब्ध इनपुट्स को ध्यान में रखते हुए, यह उचित होगा कि राज्यसभा के महासचिव इस सूचना को सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के महासचिव के साथ साझा करें।”

सूत्रों से पता चला है कि धनखड़ मीडिया रिपोर्ट का संदर्भ दे रहे थे जिनमें कहा गया था कि सुप्रीम कोर्ट ने इस घटना का संज्ञान लिया है और इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली से रिपोर्ट मांगी है।

सूत्रों ने कहा कि राज्यसभा के महासचिव पी. सी. मोदी ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया कि संसद पहले ही इस मामले से अवगत है क्योंकि महाभियोग नोटिस लंबित है। इस संवाद के बाद, ऐसा बताया गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में आगे कोई कार्रवाई न करने का निर्णय लिया है।

25 मार्च को फ्लोर लीडर्स के साथ एक बैठक के दौरान लंबित महाभियोग नोटिस का मामला उठाया गया। सूत्रों ने कहा कि एक बार हस्ताक्षरों की पुष्टि हो जाने के बाद, चाहे सदन सत्र में हो या न हो, कार्रवाई की जा सकती है। संसद का मानसून सत्र 21 जुलाई से शुरू होगा।

संविधान के अनुच्छेद 124 (4) के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश को “प्रुभ्ड मिसबिहैबियर” और “इनकैपेसिटी” के आधार पर संसद द्वारा तय प्रक्रिया का पालन करते हुए हटाया जा सकता है। अनुच्छेद 218 के अनुसार, यही प्रावधान उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों पर भी लागू होता है।

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