नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट ने देश में फैले जातिगत भेदभाव को लेकर सख्त टिप्पणी की है। शीर्ष अदालत ने हाथ से मैला साफ करने के दौरान सीवर में होने वाली मौतों पर चिंता जताने के साथ ही कहा कि आजादी के 70 साल से ज्यादा का समय बीतने के बाद भी देश में जातिगत भेदभाव कायम है।
भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग और सीवेज सफाई के दौरान मरने वाले लोगों पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दुनिया में कहीं भी लोगों को "मरने के लिए गैस चैंबर" में नहीं भेजा जाता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आजादी के बाद 70 वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बावजूद, जातिगत भेदभाव अभी भी कायम है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से सवाल किया कि मैनुअल स्केवेंजिंग और सीवेज या मैनहोल की सफाई में लगे लोगों को मास्क और ऑक्सीजन सिलेंडर जैसे उचित सुरक्षात्मक उपकरण उपलब्ध क्यों नहीं कराए जा रहे हैं।
पीठ में शामिल जस्टिस एमआर शाह और बीआर गवई ने कहा, "आप उन्हें मास्क और ऑक्सीजन सिलेंडर क्यों नहीं दे रहे हैं? दुनिया के किसी भी देश में, लोगों को मरने के लिए गैस चैंबर्स में नहीं भेजा जाता है। यहां हर महीने चार से पांच लोग इससे मर रहे हैं।"
बता दें कि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 1993 से अब तक इस प्रथा के कारण कुल 620 लोगों की मौत हो चुकी है। अब तक 445 मामलों में मुआवज़ा दिया चुका है, 58 मामलों में आंशिक समझौता किया गया है और 117 मामले लंबित हैं। इस मामले में 15 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने मंत्रालय के साथ जानकारी साझा की है, जिसके अनुसार अकेले तमिलनाडु में ही ऐसे 144 मामले दर्ज़ किए गए हैं।
भारत में मैनुअल स्कैवेंजिंग और सीवेज सफाई के दौरान मरने वाले लोगों पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दुनिया में कहीं भी लोगों को "मरने के लिए गैस चैंबर" में नहीं भेजा जाता है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आजादी के बाद 70 वर्ष से अधिक समय बीत जाने के बावजूद, जातिगत भेदभाव अभी भी कायम है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से सवाल किया कि मैनुअल स्केवेंजिंग और सीवेज या मैनहोल की सफाई में लगे लोगों को मास्क और ऑक्सीजन सिलेंडर जैसे उचित सुरक्षात्मक उपकरण उपलब्ध क्यों नहीं कराए जा रहे हैं।
पीठ में शामिल जस्टिस एमआर शाह और बीआर गवई ने कहा, "आप उन्हें मास्क और ऑक्सीजन सिलेंडर क्यों नहीं दे रहे हैं? दुनिया के किसी भी देश में, लोगों को मरने के लिए गैस चैंबर्स में नहीं भेजा जाता है। यहां हर महीने चार से पांच लोग इससे मर रहे हैं।"
बता दें कि सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, 1993 से अब तक इस प्रथा के कारण कुल 620 लोगों की मौत हो चुकी है। अब तक 445 मामलों में मुआवज़ा दिया चुका है, 58 मामलों में आंशिक समझौता किया गया है और 117 मामले लंबित हैं। इस मामले में 15 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने मंत्रालय के साथ जानकारी साझा की है, जिसके अनुसार अकेले तमिलनाडु में ही ऐसे 144 मामले दर्ज़ किए गए हैं।