कृषि कानूनों से नई ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की जा रही: जल पुरूष राजेन्द्र सिंह

Written by Navnish Kumar | Published on: December 24, 2020
किसानों और राजनीतिक दलों के बाद मैग्सेसे अवार्डी और स्टॉकहोम वाटर प्राइज से सम्मानित जल पुरूष राजेन्द्र सिंह ने भी मोदी सरकार के नए कृषि कानूनों को न केवल लूट की छूट देने वाला बताया है बल्कि कारपोरेट की गुलामी करार दिया हैं। उऩ्होंने कहा कि इससे देश में एक नई ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना की जा रही है। 



किसान कानून साक्षरता यात्रा के दौरान मेरठ में मीडिया से बात करते हुए जल पुरूष ने कहा कि किसान आंदोलन, किसानी बचाने के साथ-साथ गांव का पानी और गांव की जवानी को भी बचाने का आंदोलन है। 

उन्होंने कहा कि उन्हें देश में कोई भी किसान या किसान संगठन ऐसा नहीं मिला जिसने सरकार से इन कानूनों को बनाने के लिए कहा हो। ये कानून सरकार ने नहीं बल्कि अंबानी और अड़ानी के कहने पर बनाए गए हैं।

उन्होंने कहा कि कोविड-19 के चलते जब पूरा देश लॉक था तो जुलाई में इन कानूनों को बनाया गया। लागू होने से पहले अंबानी और अडानी को भंडारण के लिए जमीन दे दी गई। सिंह ने कहा कि अब देश की जनता समझ गई है कि ये कानून गुलामी के रास्ते पर ले जाने वाले हैं। ये कानून हमारी जमीन, खेत, खलिहान और उत्पादन को छीनने वाले हैं। ऐसे कानूनों के बल पर ही ईस्ट इंडिया कंपनी ने देश पर राज किया था।

कहा कि काले कानून बनाकर पीएम मोदी और शाह अब किसानों को बांटने में लगे हैं। इसके बावजूद किसान, अंहिसा और धैर्य के साथ आंदोलन में जुटा है। यह उसकी अब तक की सबसे बड़ी जीत है। कानूनों का समर्थन करने वाले किसानों के बारे में कहा कि सरकारी गाड़ियों और संरक्षण में यात्रा निकालने वाले किसान नहीं हैं। किसान तो दिल्ली बार्डर पर बैठे हैं।

सिंह ने कहा कि ये गांव का पानी, गांव की जवानी और किसानी तीनों बचाने का आंदोलन है। किसान अब तीनों कानून वापस लिये जाने के बाद भी तब तक आंदोलन वापस नहीं लेंगे जब तक एमएसपी को कानूनी रूप नहीं दिया जाएगा। उनके साथ गंगा जल बिरादरी के संयोजक मेजर डॉ. हिमांशु, किसान अधिकार आंदोलन के अध्यक्ष कुलदीप त्यागी, हाजी अरशी, गिरीश शुक्ला, प्रभात राय आदि शामिल रहे। 

राजेंद्र सिंह ने कहा कि कृषि कानून साक्षरता यात्रा का उद्देश्य किसानों को जागरूक करना है। किसानों ने जब ये कानून मांगे ही नहीं तो सरकार क्यों थोप रही है। इससे साफ है कि ये कानून किसानों के लिए नहीं बल्कि दो उद्योगपतियों अंबानी अडानी के लिए लाए गए हैं।

वैसे भी ईस्ट इंडिया कंपनी और कॉरपोरेट यानि अंबानी-अडानी के इतिहास पर थोड़ा नजर डालें तो ईस्ट इंडिया कंपनी के मालिक गोरे अंग्रेज थे तो अंबानी-अडानी हिंदुस्तानी अश्वेत चेहरों वाले हैं। अन्यथा कोई खास फर्क नहीं है। दोनों ही धंधे-मुनाफे के लिए किसी भी सीमा तक जाने वाले हैं। दोनों ने भारत के बादशाहों-नेताओं का हित साधा है। बादशाह-नेताओं को चांदी की जूतियां पहनाई, कृपा पाई और बेइंतहा कमाई का रिकार्ड बनाया है! ईस्ट इंडिया कंपनी के समय में कहावत चलती थी  कि “दुनिया खुदा की, मुल्क बादशाह का और हुक्म कंपनी बहादुर का” उसी का प्रतिरूप आज बनता दिखता है कि “दुनिया अंधभक्तों की, मुल्क मोदी का और हुक्म अंबानी-अडानी का।” 

ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में सड़क, अस्पताल, स्कूल, पुल, रेल, परिवहन सुविधाएं की लेकिन कृषि सुधार के नाम पर, किसानों पर चाबुक चलवा, उनसे नील की खेती करवाई और कपास, रेशम, अफीम, चीनी व मसालों के व्यापार से बेइंतहा पैसा कमाया तो पूरे देश की आबादी को बिना सेना के ही गुलाम बना ‘हुक्म कंपनी बहादुर’ का बना डाला।

प्रख्यात पत्रकार हरी शंकर व्यास के अनुसार, भारत की तासीर को ईस्ट इंडिया कंपनी के गोरे डायरेक्टरों ने जहांगीर के दरबार से ही जान लिया था। इसलिए उन्होंने सोच समझ कर रणनीति बनाई कि हिंदुस्तानियों के बीच में धंधा, मुनाफा, लूट का तरीका होगा ‘दुनिया खुदा की, मुल्क बादशाह का और हुक्म कंपनी बहादुर का’। वही शैली-रणनीति धीरूभाई ने और अंबानी-अडानी ने लोकतंत्र के खांचे की अलग-अलग संस्थाओं को साध कर बनाई है।

बाकी सर्वविदित इतिहास है कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने प्लासी की लड़ाई जीतने के बाद कृषि सुधार का टारगेट बना कर बंगाल में जमींदारी व्यवस्था बदली थी। कृषि पैदावार की व्यवस्था को कमाई, लूट के माफिक बनाया। उन दिनों बंगाल से मुगल शासन के राजस्व को पचास प्रतिशत हिस्सा मिलता था। भारत के सबसे धनी अर्ध-स्वायत्त राज्य बंगाल में 1756 में, नवाब सिराजुद्दौला शासक बना। बंगाल की खेती, मालगुजारी, रेशम, कपड़े आदि पर ईस्ट इंडिया कंपनी को धंधा करना था। पर सिराजुद्दौला बादशाह तुनकमिजाज था तो ईस्ट इंडिया कंपनी ने उसके सेनापति मीर जाफर को राजा बनाने का वादा कर अपने साथ मिलाया। और हिंदुस्तानी सेठों, बनारस, पटना, मुर्शिदाबाद के हिंदू बैंकरों के बैकअप से कंपनी की दो हजार लोगों की सेना ने पचास हजार की भारतीय सेना को हरा दिया। 

मीर जाफर ईस्ट इंडिया कंपनी के नौकर की तरह गद्दी पर बैठा। उससे ईस्ट इंडिया कंपनी का हुक्म चलने लगा। कृषि सुधार के हवाले किसानों के व्यापार का पुराना ढर्रा बदला गया और मालगुजारी वसूली का वह नया वक्त शुरू हुआ, जिसे इतिहास में लूटपाट का युग आरंभ हुआ लिखा जाता है।

तब कहावत प्रचलित थी कि “दुनिया खुदा की, मुल्क बादशाह का और हुक्म कंपनी बहादुर का”। लूट से तंग आकर मीर जाफर ने अंग्रेजों से पीछा छुड़ाना चाहा तो दरबारी नगर सेठों ने अंग्रेजों की दलाली में काम किया। दरअसल मीर जाफर क्योंकि कंपनी के धनवैभव से प्रभावित था तो ईस्ट इंडिया कंपनी ने उसके जरिए पहले बादशाह से काम निकलवाए, फिर तख्त पलटवाया। अंततः 1764 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल का राज सीधे संभाल लिया था।

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