किसान आन्दोलन की जीत ने भारतीय लोकतंत्र को मजबूत कर ऐतिहासिक कीर्तिमान स्थापित किया है. यह अपने तरह का दुनिया में पहला आन्दोलन है जिसमें लोकतान्त्रिक मूल्यों की समग्रता देखी गयी. एक वर्ष से ज्यादा चले किसान आन्दोलन की विजय ने यह साबित किया है कि लोकतंत्र में जनता का अधिकार सर्वोपरि है.
380 दिन तक चले किसान आन्दोलन ने 708 किसानों की शहादत दे दी, सैकड़ों घरों में अंधेरे कर दिए लेकिन अंततोगत्वा संघर्ष की जीत हुई और तीनों काले कृषि कानून को सरकार द्वारा वापस लिया गया. सामाजिक राजनीतिक टिप्पणीकार का यह भी मानना है कि संघ के फासिस्ट मनसूबे की सरकार ने सत्ता में आने के बाद किसी भी जन आन्दोलन के सामने पहली बार घुटने टेके हैं. किसान आन्दोलन नें लोहिया जी द्वारा कहे शब्द “जब संसद मूक और बधिर हो जाए, संसद पर अहंकारी गैर लोकतान्त्रिक कारपोरेट और हिंदुत्व के गठजोड़ की क्रूर सत्ता काबिज हो जाए तो इतिहास की धारा मोड़ने के लिए सड़क का संघर्ष ही एक मात्र विकल्प बचता है” को चरितार्थ किया है.
मोदी सरकार सत्ता में आने के बाद से ही लोकतंत्र के सभी मजबूत स्तंभों को धाराशायी करने व कॉर्पोरेट की भक्ति में लगी है. ऐसी स्थिति में देश के अन्नदाता द्वारा चलाए गए सफल आन्दोलन ने देश को राजनीतिक ताकत का अहसास करवाया है. कृषि कानून की वापसी के साथ-साथ सरकार द्वारा किसानों की अन्य मांगों को पूरा करने की बात की गयी है.
किसानों की मांग और केंद्र का प्रस्ताव जिस पर बनी है सहमति:
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP):- सरकार द्वारा MSP को लेकर एक किसान समिति बनायी जाएगी जिसमें संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधि भी होंगे. वर्तमान में जिन फसलों पर MSP दी जा रही है वह जारी रहेगा.
केस वापसी:- किसान आन्दोलन के दौरान हरियाणा, उतर प्रदेश, उत्तराखंड सहित देश के कई हिस्सों में किसानों के ख़िलाफ़ मुकदमे दर्ज किए गए जिसकी वापसी पर सरकार सहमत हो गयी है. ऐसे सभी मुकदमों को तत्काल प्रभाव से वापस लिए जाने पर सहमती बनी है.
मुआवजे के रूप में आर्थिक मदद:- केंद्र सरकार द्वारा मुआवजे दिए जाने की जिम्मेदारी नहीं ली गयी है. पंजाब की तर्ज पर हरियाणा और उतर प्रदेश की सरकार के द्वारा किसान आन्दोलन में शहीद हुए लोगों को आर्थिक मदद दिए जाने पर सहमती बनी है.
बिजली विधेयक:- किसानों पर असर डालने वाले प्रावधानों पर पहले सभी पाचों सदस्यों के साथ चर्चा होगी. संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्यों से चर्चा होने के बाद ही विधेयक संसद में पेश किए जाने का आश्वासन दिया गया है.
पराली:- पराली के मुद्दे पर जो कानून केंद्र सरकार द्वारा पारित किया गया उससे धारा 14-15 के तहत किसानों को मुक्ति दे दी गयी है.
पिछले एक सालों से किसानों ने मानसिक, शरीरिक और आर्थिक तकलीफों का सामना करते हुए भी संघर्ष को जारी रखा. सत्ता की क्रूर नियत और किसानों के मजबूत इरादों के बीच यह बड़ी जीत है जो लोकतंत्र में अपने अधिकारों के लिए खड़े होने वाले को हौसला देती है. किसान आन्दोलन के लम्बे सफ़र में तथाकथित राष्ट्र वादियों द्वारा किसानों को लेकर कई बार बेतुकी बातें भी की गयीं, किसानों पर कई लांछन लगाए गए, उन्हें बदनाम करने की कोशिश हुई, लेकिन किसानों की एकजुटता ने आन्दोलन को नई दिशा दी.
किसान आन्दोलन के एक साल का महत्वपूर्ण घटनाक्रम;
वर्ष 2020
5 जून: तीन कृषि कानूनों के लिए आर्डिनेंस विधेयक संसद में पेश
17 सितम्बर: विधेयक पर लोकसभा में मुहर
20 सितम्बर: राज्य सभा में पारित
24 सितम्बर: पंजाब में किसानों का विरोध शुरू, रेल रोको आन्दोलन का ऐलान.
25 सितम्बर: अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आह्वाहन पर देश भर के किसान समर्थन में जुटे.
27 सितम्बर: कृषि विधेयकों को राष्ट्रपति की मंजूरी.
25 नवम्बर: पंजाब और हरियाणा के किसान संघों का दिल्ली चलो आह्वान, दिल्ली प्रवेश पर रोक.
26 नवम्बर: दिल्ली की तरफ़ बढ़ने वाले किसान कारवां पर अम्बाला में पुलिस कार्यवाई.
28 नवम्बर: गृह मंत्री अमित शाह की सशर्त बातचीत की पेशकश जिसे किसानों ने ठुकराया.
३ दिसम्बर: सरकार और किसानों के बीच बातचीत शुरू, पहले चरण की बैठक बेनतीजा.
5 दिसम्बर: दुसरे चरण की वार्ता बेनतीजा.
8 दिसम्बर: किसानों का भारत बंद का आह्वान.
9 दिसम्बर: किसान नेताओं नें कृषि कानूनों में संसोधन के केंद्र के प्रस्ताव को ठुकराया.
13 दिसम्बर: केन्द्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद का आरोप- किसानों के प्रदर्शन में टुकड़े टुकड़े गैंग का हाथ है.
वर्ष 2021
4 जनवरी: सातवें दौर की वार्ता बेनतीजा.
11 जनवरी: उच्चतम न्यायालय नें केंद्र के किसानों के साथ व्यवहार को लेकर फटकार लगाई.
12 जनवरी: सर्वोच्च न्यायालय नें कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगाई. कानूनों पर सिफारिस देने के लिए 4 सदस्यों की समिति गठित.
26 जनवरी: संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में ट्रेक्टर मार्च. इस मार्च को गुमराह कर पुलिस ने हिंसा को बुलावा दिया. पुलिस का बर्ताव और केंद्र सरकार की बेपरवाह चुप्पी उस दिन किसी प्रायोजित साजिश का हिस्सा लग रहा था जो पूरी तरह से कामयाब नहीं हो सका.
29 जनवरी: सरकार ने डेढ़ साल के लिए कृषि कानूनों को स्थगित करने और कानून पर चर्चा के लिए संयुक्त समिति गठित करने का प्रस्ताव दिया जिसे किसानों ने ख़ारिज किया.
5 फरवरी: दिल्ली पुलिस की साइबर अपराध शाखा नें किसानों के प्रदर्शनों पर टूलकिट बनाने वालों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज की थी जिसे युवा पर्यवारंविद ग्रेट थानबर्ग नें साझा किया था. इस मामले में ही दिशा रवि को देश द्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
6 फरवरी: किसानों नें 3 घंटे के लिए सांकेतिक देश व्यापी चक्का जाम किया था.
8 मार्च: सिंघु बोर्डर प्रदर्शन स्थल के समीप गोलियां चली हालाँकि भरी उलिस बल के होने के वाबजूद भी गोली चलने वाले को गिरफ्तार नहीं किया गया.
27 मई: किसानों नें आन्दोलन के 6 महीने पुरे होने पर काला मनाया.
5 जून: आंदोलनरत किसानों नें कृषि कानून की घोषणा के एक साल पुरे होने पर सम्पूर्ण क्रन्तिकारी दिवस मनाया.
26 जून: किसानों नें दिल्ली की और मार्च किया
22 जुलाई: लगभग 200 प्रदर्शन कारी किसानों नें कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ मानसून सत्र की तरह संसद भवन के समीप किसान संसद शुरू किया.
7 अगस्त: 14 विपक्षी दलों के नेताओं नें जंतर मंतर पर च रहे किसान संसद में शिरकत की.
5 सितम्बर: किसान नेताओं नें मुजफरनगर में किसान महा पंचायत कर किसानों की ताकत दिखाई.
22 अक्टूबर: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्रदर्शन करना किसानों का अधिकार है जिसमें सुप्रीम कोर्ट दखल नहीं करेगा.
19 नवम्बर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टेलीविजन पर अपने एक विशेष संबोधन में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की. साथ ही न्यनतम समर्थन मूल्य समेत किसानों के अन्य मांगों पर विचार करने का आश्वासन दिया. किसानों से आग्रह किया कि आन्दोलन ख़त्म कर अपने घर जाएं.
29 नवंबर: तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने वाला बिल संसद में पारित.
4 दिसंबर: संयुक्त किसान सभा नें सरकार से वार्ता के लिए 5 सदस्यीय समिति की घोषणा की.
8 दिसंबर: सरकार नें 5 सदस्यीय समिति से बात की और सरकार की तरफ़ से नया प्रस्ताव दिया जिस पर सहमती बनी.
9 दिसंबर 2021: सरकार द्वारा औपचारिक पत्र जारी. संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा एक सफल लोकतान्त्रिक आन्दोलन को स्थगित करने की घोषणा.
किसान आन्दोलन नें देश की जनता को अनुभव और सबक साथ-साथ दिया है. इस आन्दोलन नें सरकार के विभाजनकारी एजेंडे को पराजित कर जाति-धर्म से ऊपर उठ कर सामाजिक सोहाद्र का परचम लहराया है. सांप्रदायिक उन्माद का जो माहौल देश में कायम किया जा रहा था उसे इस एकताबद्ध संघर्ष ने धराशायी किया है. इस आन्दोलन ने यह साबित किया है कि सदियों से उत्पीडित ग्रामीण जनता में अपार सहनशीलता होती है जो किसी भी क्रूर, सांप्रदायिक ताकतों का डट कर सामना कर सकते हैं. इस संघर्ष में महिलाओं बच्चों ने भी बराबर भागीदारी की. संघर्ष से शहादत तक इस आन्दोलन में शामिल लोगों की आँखों में डर नहीं था केवल सरकार के जन विरोधी मंसूबों को पराजित करने का जज्बा देखा जा सकता था.
अब किसान आन्दोलन स्थगित कर दिया गया है. 11 दिसंबर से दिल्ली की सीमाओं को खाली कर किसान अपने घरों को लौट गए. आने वाली 15 जनवरी को संयुक्त किसान मोर्चे की एक समीक्षा बैठक दिल्ली में होगी जिसमें यह देखा जाएगा कि सरकार ने किस तरह से वादे पूरे किए हैं और अगर ऐसा नहीं हुआ तो किसान आन्दोलन फिर से शुरू हो सकता है. मगर फिलहाल किसान आन्दोलन एक बड़ी जीत के साथ ख़त्म हुआ है जो भारतीय आन्दोलन के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अंकित होगा.
380 दिन तक चले किसान आन्दोलन ने 708 किसानों की शहादत दे दी, सैकड़ों घरों में अंधेरे कर दिए लेकिन अंततोगत्वा संघर्ष की जीत हुई और तीनों काले कृषि कानून को सरकार द्वारा वापस लिया गया. सामाजिक राजनीतिक टिप्पणीकार का यह भी मानना है कि संघ के फासिस्ट मनसूबे की सरकार ने सत्ता में आने के बाद किसी भी जन आन्दोलन के सामने पहली बार घुटने टेके हैं. किसान आन्दोलन नें लोहिया जी द्वारा कहे शब्द “जब संसद मूक और बधिर हो जाए, संसद पर अहंकारी गैर लोकतान्त्रिक कारपोरेट और हिंदुत्व के गठजोड़ की क्रूर सत्ता काबिज हो जाए तो इतिहास की धारा मोड़ने के लिए सड़क का संघर्ष ही एक मात्र विकल्प बचता है” को चरितार्थ किया है.
मोदी सरकार सत्ता में आने के बाद से ही लोकतंत्र के सभी मजबूत स्तंभों को धाराशायी करने व कॉर्पोरेट की भक्ति में लगी है. ऐसी स्थिति में देश के अन्नदाता द्वारा चलाए गए सफल आन्दोलन ने देश को राजनीतिक ताकत का अहसास करवाया है. कृषि कानून की वापसी के साथ-साथ सरकार द्वारा किसानों की अन्य मांगों को पूरा करने की बात की गयी है.
किसानों की मांग और केंद्र का प्रस्ताव जिस पर बनी है सहमति:
न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP):- सरकार द्वारा MSP को लेकर एक किसान समिति बनायी जाएगी जिसमें संयुक्त किसान मोर्चा के प्रतिनिधि भी होंगे. वर्तमान में जिन फसलों पर MSP दी जा रही है वह जारी रहेगा.
केस वापसी:- किसान आन्दोलन के दौरान हरियाणा, उतर प्रदेश, उत्तराखंड सहित देश के कई हिस्सों में किसानों के ख़िलाफ़ मुकदमे दर्ज किए गए जिसकी वापसी पर सरकार सहमत हो गयी है. ऐसे सभी मुकदमों को तत्काल प्रभाव से वापस लिए जाने पर सहमती बनी है.
मुआवजे के रूप में आर्थिक मदद:- केंद्र सरकार द्वारा मुआवजे दिए जाने की जिम्मेदारी नहीं ली गयी है. पंजाब की तर्ज पर हरियाणा और उतर प्रदेश की सरकार के द्वारा किसान आन्दोलन में शहीद हुए लोगों को आर्थिक मदद दिए जाने पर सहमती बनी है.
बिजली विधेयक:- किसानों पर असर डालने वाले प्रावधानों पर पहले सभी पाचों सदस्यों के साथ चर्चा होगी. संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्यों से चर्चा होने के बाद ही विधेयक संसद में पेश किए जाने का आश्वासन दिया गया है.
पराली:- पराली के मुद्दे पर जो कानून केंद्र सरकार द्वारा पारित किया गया उससे धारा 14-15 के तहत किसानों को मुक्ति दे दी गयी है.
पिछले एक सालों से किसानों ने मानसिक, शरीरिक और आर्थिक तकलीफों का सामना करते हुए भी संघर्ष को जारी रखा. सत्ता की क्रूर नियत और किसानों के मजबूत इरादों के बीच यह बड़ी जीत है जो लोकतंत्र में अपने अधिकारों के लिए खड़े होने वाले को हौसला देती है. किसान आन्दोलन के लम्बे सफ़र में तथाकथित राष्ट्र वादियों द्वारा किसानों को लेकर कई बार बेतुकी बातें भी की गयीं, किसानों पर कई लांछन लगाए गए, उन्हें बदनाम करने की कोशिश हुई, लेकिन किसानों की एकजुटता ने आन्दोलन को नई दिशा दी.
किसान आन्दोलन के एक साल का महत्वपूर्ण घटनाक्रम;
वर्ष 2020
5 जून: तीन कृषि कानूनों के लिए आर्डिनेंस विधेयक संसद में पेश
17 सितम्बर: विधेयक पर लोकसभा में मुहर
20 सितम्बर: राज्य सभा में पारित
24 सितम्बर: पंजाब में किसानों का विरोध शुरू, रेल रोको आन्दोलन का ऐलान.
25 सितम्बर: अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आह्वाहन पर देश भर के किसान समर्थन में जुटे.
27 सितम्बर: कृषि विधेयकों को राष्ट्रपति की मंजूरी.
25 नवम्बर: पंजाब और हरियाणा के किसान संघों का दिल्ली चलो आह्वान, दिल्ली प्रवेश पर रोक.
26 नवम्बर: दिल्ली की तरफ़ बढ़ने वाले किसान कारवां पर अम्बाला में पुलिस कार्यवाई.
28 नवम्बर: गृह मंत्री अमित शाह की सशर्त बातचीत की पेशकश जिसे किसानों ने ठुकराया.
३ दिसम्बर: सरकार और किसानों के बीच बातचीत शुरू, पहले चरण की बैठक बेनतीजा.
5 दिसम्बर: दुसरे चरण की वार्ता बेनतीजा.
8 दिसम्बर: किसानों का भारत बंद का आह्वान.
9 दिसम्बर: किसान नेताओं नें कृषि कानूनों में संसोधन के केंद्र के प्रस्ताव को ठुकराया.
13 दिसम्बर: केन्द्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद का आरोप- किसानों के प्रदर्शन में टुकड़े टुकड़े गैंग का हाथ है.
वर्ष 2021
4 जनवरी: सातवें दौर की वार्ता बेनतीजा.
11 जनवरी: उच्चतम न्यायालय नें केंद्र के किसानों के साथ व्यवहार को लेकर फटकार लगाई.
12 जनवरी: सर्वोच्च न्यायालय नें कृषि कानूनों के क्रियान्वयन पर रोक लगाई. कानूनों पर सिफारिस देने के लिए 4 सदस्यों की समिति गठित.
26 जनवरी: संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में ट्रेक्टर मार्च. इस मार्च को गुमराह कर पुलिस ने हिंसा को बुलावा दिया. पुलिस का बर्ताव और केंद्र सरकार की बेपरवाह चुप्पी उस दिन किसी प्रायोजित साजिश का हिस्सा लग रहा था जो पूरी तरह से कामयाब नहीं हो सका.
29 जनवरी: सरकार ने डेढ़ साल के लिए कृषि कानूनों को स्थगित करने और कानून पर चर्चा के लिए संयुक्त समिति गठित करने का प्रस्ताव दिया जिसे किसानों ने ख़ारिज किया.
5 फरवरी: दिल्ली पुलिस की साइबर अपराध शाखा नें किसानों के प्रदर्शनों पर टूलकिट बनाने वालों के ख़िलाफ़ प्राथमिकी दर्ज की थी जिसे युवा पर्यवारंविद ग्रेट थानबर्ग नें साझा किया था. इस मामले में ही दिशा रवि को देश द्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया था.
6 फरवरी: किसानों नें 3 घंटे के लिए सांकेतिक देश व्यापी चक्का जाम किया था.
8 मार्च: सिंघु बोर्डर प्रदर्शन स्थल के समीप गोलियां चली हालाँकि भरी उलिस बल के होने के वाबजूद भी गोली चलने वाले को गिरफ्तार नहीं किया गया.
27 मई: किसानों नें आन्दोलन के 6 महीने पुरे होने पर काला मनाया.
5 जून: आंदोलनरत किसानों नें कृषि कानून की घोषणा के एक साल पुरे होने पर सम्पूर्ण क्रन्तिकारी दिवस मनाया.
26 जून: किसानों नें दिल्ली की और मार्च किया
22 जुलाई: लगभग 200 प्रदर्शन कारी किसानों नें कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ मानसून सत्र की तरह संसद भवन के समीप किसान संसद शुरू किया.
7 अगस्त: 14 विपक्षी दलों के नेताओं नें जंतर मंतर पर च रहे किसान संसद में शिरकत की.
5 सितम्बर: किसान नेताओं नें मुजफरनगर में किसान महा पंचायत कर किसानों की ताकत दिखाई.
22 अक्टूबर: उच्चतम न्यायालय ने कहा कि प्रदर्शन करना किसानों का अधिकार है जिसमें सुप्रीम कोर्ट दखल नहीं करेगा.
19 नवम्बर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने टेलीविजन पर अपने एक विशेष संबोधन में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की. साथ ही न्यनतम समर्थन मूल्य समेत किसानों के अन्य मांगों पर विचार करने का आश्वासन दिया. किसानों से आग्रह किया कि आन्दोलन ख़त्म कर अपने घर जाएं.
29 नवंबर: तीनों कृषि कानूनों को निरस्त करने वाला बिल संसद में पारित.
4 दिसंबर: संयुक्त किसान सभा नें सरकार से वार्ता के लिए 5 सदस्यीय समिति की घोषणा की.
8 दिसंबर: सरकार नें 5 सदस्यीय समिति से बात की और सरकार की तरफ़ से नया प्रस्ताव दिया जिस पर सहमती बनी.
9 दिसंबर 2021: सरकार द्वारा औपचारिक पत्र जारी. संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा एक सफल लोकतान्त्रिक आन्दोलन को स्थगित करने की घोषणा.
किसान आन्दोलन नें देश की जनता को अनुभव और सबक साथ-साथ दिया है. इस आन्दोलन नें सरकार के विभाजनकारी एजेंडे को पराजित कर जाति-धर्म से ऊपर उठ कर सामाजिक सोहाद्र का परचम लहराया है. सांप्रदायिक उन्माद का जो माहौल देश में कायम किया जा रहा था उसे इस एकताबद्ध संघर्ष ने धराशायी किया है. इस आन्दोलन ने यह साबित किया है कि सदियों से उत्पीडित ग्रामीण जनता में अपार सहनशीलता होती है जो किसी भी क्रूर, सांप्रदायिक ताकतों का डट कर सामना कर सकते हैं. इस संघर्ष में महिलाओं बच्चों ने भी बराबर भागीदारी की. संघर्ष से शहादत तक इस आन्दोलन में शामिल लोगों की आँखों में डर नहीं था केवल सरकार के जन विरोधी मंसूबों को पराजित करने का जज्बा देखा जा सकता था.
अब किसान आन्दोलन स्थगित कर दिया गया है. 11 दिसंबर से दिल्ली की सीमाओं को खाली कर किसान अपने घरों को लौट गए. आने वाली 15 जनवरी को संयुक्त किसान मोर्चे की एक समीक्षा बैठक दिल्ली में होगी जिसमें यह देखा जाएगा कि सरकार ने किस तरह से वादे पूरे किए हैं और अगर ऐसा नहीं हुआ तो किसान आन्दोलन फिर से शुरू हो सकता है. मगर फिलहाल किसान आन्दोलन एक बड़ी जीत के साथ ख़त्म हुआ है जो भारतीय आन्दोलन के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अंकित होगा.