मध्यप्रदेश के मुरैना में एक बड़ा घोटाला सामने आया है। देवरी गाँव में सरकारी जमीन पर बनी गौशाला पर एक परिवार सालों से कब्जा किए था और हर महीने लाखों रुपए का सरकारी अनुदान भी ले रहा था। आशंका ये भी है कि प्रदेश में चलने वाली तमाम गौशालाओं में भी इसी तरह के घोटाले हो सकते हैं।
गौशाला पर पूरी तरह से हरिओम पुरी नाम के व्यक्ति का कब्जा था, जो कि संचालन समिति का अध्यक्ष भी है और प्रबंधक भी। इतना ही नहीं, गौशाला में वह अपने ही रिश्तेदारों को नौकरी दिए थे और उनके लिए 1 लाख 12 हजार रुपए नगर निगम से ले रहा था।
नईदुनिया की खबर के मुताबिक, ये घोटाला 2 सालों से चल रहा था। गौशाला के जो 16 कर्मचारी तैनात बताए जाते हैं, उनमें से 8 हरिओम पुरी के ही रिश्तेदार लोग हैं। खुद हरिओम पुरी के साथ-साथ उसके भाई अशोक, रविशंकर, हरिशंकर और अनिल भी नगर निगम से हर माह वेतन लेते आ रहे हैं। इनका वेतन हर माह का सात-सात हजार बैठता है। हरिओम पुरी प्रबंधक के साथ-साथ गौसेवक के तौर पर भी वेतन ले रहा है।
उसके तीन रिश्तेदार भी फ्री का वेतन उठाते आ रहे हैं। गौशाला संचालन समिति के सदस्य संजीव खेमरिया और उनकी पत्नी उमा खेमरिया भी नगर निगम से गौसेवक के तौर पर हर माह सात-सात हजार रुपए उठाते आ रहे हैं।
कर्मचारियों ने भुगतान का पूरा रिकॉर्ड मुरैना के कलेक्टर को सौंप दिया है और कलेक्टर ने तहसीलदार को पूरे घोटाले की जांच के आदेश दिए हैं। अब हरिओम पुरी पूरे मामले को अपने खिलाफ साजिश बता रहा है।
नगर निगम आयुक्त इस घोटाले से खुद को अलग बता रहे हैं। आयुक्त डीएस परिहार का कहना है कि वेतन गौशाला के कर्मचारियों के खाते में जाता है, और वे प्रबंधक के रिश्तेदार हैं या नहीं, इसका उन्हें पता नहीं है।
गौशाला संचालक के खिलाफ परिवार और रिश्तेदारों से अलग बाकी कर्मचारियों के शोषण का भी आरोप है। गौशाला का एक कर्मचारी दीवान सिंह हरिओम पुरी के खिलाफ कलेक्टर को जनसुनवाई में शिकायत कर चुका है। दीवान सिंह ने आरोप लगाया था कि वह 2014 से गौशाला में काम कर रहा है, लेकिन उसके नाम आने वाले 7 हजार के मानदेय में से प्रबंधक हर माह 4 हजार रुपए ले लेता है।
गौशाला पर पूरी तरह से हरिओम पुरी नाम के व्यक्ति का कब्जा था, जो कि संचालन समिति का अध्यक्ष भी है और प्रबंधक भी। इतना ही नहीं, गौशाला में वह अपने ही रिश्तेदारों को नौकरी दिए थे और उनके लिए 1 लाख 12 हजार रुपए नगर निगम से ले रहा था।
नईदुनिया की खबर के मुताबिक, ये घोटाला 2 सालों से चल रहा था। गौशाला के जो 16 कर्मचारी तैनात बताए जाते हैं, उनमें से 8 हरिओम पुरी के ही रिश्तेदार लोग हैं। खुद हरिओम पुरी के साथ-साथ उसके भाई अशोक, रविशंकर, हरिशंकर और अनिल भी नगर निगम से हर माह वेतन लेते आ रहे हैं। इनका वेतन हर माह का सात-सात हजार बैठता है। हरिओम पुरी प्रबंधक के साथ-साथ गौसेवक के तौर पर भी वेतन ले रहा है।
उसके तीन रिश्तेदार भी फ्री का वेतन उठाते आ रहे हैं। गौशाला संचालन समिति के सदस्य संजीव खेमरिया और उनकी पत्नी उमा खेमरिया भी नगर निगम से गौसेवक के तौर पर हर माह सात-सात हजार रुपए उठाते आ रहे हैं।
कर्मचारियों ने भुगतान का पूरा रिकॉर्ड मुरैना के कलेक्टर को सौंप दिया है और कलेक्टर ने तहसीलदार को पूरे घोटाले की जांच के आदेश दिए हैं। अब हरिओम पुरी पूरे मामले को अपने खिलाफ साजिश बता रहा है।
नगर निगम आयुक्त इस घोटाले से खुद को अलग बता रहे हैं। आयुक्त डीएस परिहार का कहना है कि वेतन गौशाला के कर्मचारियों के खाते में जाता है, और वे प्रबंधक के रिश्तेदार हैं या नहीं, इसका उन्हें पता नहीं है।
गौशाला संचालक के खिलाफ परिवार और रिश्तेदारों से अलग बाकी कर्मचारियों के शोषण का भी आरोप है। गौशाला का एक कर्मचारी दीवान सिंह हरिओम पुरी के खिलाफ कलेक्टर को जनसुनवाई में शिकायत कर चुका है। दीवान सिंह ने आरोप लगाया था कि वह 2014 से गौशाला में काम कर रहा है, लेकिन उसके नाम आने वाले 7 हजार के मानदेय में से प्रबंधक हर माह 4 हजार रुपए ले लेता है।