मुख्य चुनाव आयुक्त ने चुनाव आयोग के लिए मांगी 'पूरी आजादी'

Written by sabrang india | Published on: February 16, 2019
नई दिल्ली: लंबित पड़े चुनावी सुधारों को लागू कराने की दिशा में एक और कदम बढ़ाते हुए चुनाव आयोग ने पिछले महीने विधि सचिव के साथ हुई बैठक में सरकार के नियंत्रण से पूरी आज़ादी की मांग की है।

इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर के मुताबिक, 21 जनवरी को विधि सचिव सुरेश चंद्र के साथ हुई बैठक में मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा ने चुनाव आयोग के तीनों सदस्यों के लिए संवैधानिक संरक्षण की आयोग की मांग को दोहराया। फिलहाल, केवल मुख्य चुनाव आयुक्त को ही महाभियोग के माध्यम से हटाया जा सकता है। जबकि उनके दो अन्य सहयोगियों को मुख्य चुनाव आयुक्त की सिफारिश पर सरकार द्वारा हटाया जा सकता है।

इसके साथ ही चुनाव समिति ने आयोग के लिए पूर्ण वित्तीय स्वतंत्रता की भी मांग की है। चुनाव आयोग चाहता है कि नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) और संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की तरह उसका बजट भी भारत के समेकित कोष से जारी हो। इस दौरान उसने संसद में वोटिंग कराकर उसके बजट को मंजूरी देने की मौजूदा व्यवस्था का विरोध किया।

इस तरह से चुनाव आयोग पूरी तरह से स्वायत्त नहीं है क्योंकि अपरोक्ष तौर पर अभी भी उसे अपने कोष और तीन में से दो आयुक्तों के भविष्य को लेकर केंद्र पर निर्भर रहना पड़ता है।

लंबित पड़े चुनावी सुधारों पर चर्चा के लिए पिछले एक साल में पहली बार चुनाव आयोग ने विधि सचिव के साथ बैठक की। अरोड़ा के पहले के मुख्य चुनाव आयुक्तों ओ।पी। रावत और ए।के। ज्योति के पद पर रहते हुए कोई बैठक नहीं हुई थी।

दो चुनाव आयुक्तों के संवैधानिक संरक्षण और वित्तीय स्वंतत्रता के साथ अरोड़ा ने फेक न्यूज को चुनावी अपराध घोषित करने, चुनावी हलफनामे में झूठ बोलने पर मौजूदा जुर्माने को छह महीने से बढ़ाकर दो साल करने, विधान परिषद के चुनावों में प्रत्याशियों द्वारा खर्च की जाने वाली रकम की सीमा तय करने और उपचुनाव में स्टार प्रचारकों की संख्या को राष्ट्रीय पार्टियों के लिए 40 और क्षेत्रीय पार्टियों के लिए 20 करने की मांग की।

फिलहाल, विधान परिषद चुनाव लड़ने में खर्च की जाने वाली रकम की सीमा तय नहीं है। बता दें कि केवल जम्मू कश्मीर, आंध्र प्रदेश, बिहार, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तेलंगाना में ही विधान परिषद हैं।

बता दें कि पिछले दो दशकों से चुनाव सुधार सरकारों के पास लंबित पड़े हैं। इन सुधारों में अधिकतर चुनावी राजनीति में भ्रष्टाचार को खत्म करने के उद्देश्य से सुझाए गए हैं। अरोड़ा ने उनमें से कुछ ही मांगों को पिछले महीने दोहराया है। हालांकि लोकसभा चुनावों से पहले उसने बहुत कम ही हासिल हो पाएगा क्योंकि चुनाव आयोग के अधिकतर सुझावों को लागू करने के लिए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम में बदलाव की आवश्यकता होगी।

Courtesy- The wire

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