बड़े शहरों में पुलिस प्रशासन का ये हाल है तो छोटे इलाकों में क्या-क्या होता होगा?

Written by Mithun Prajapati | Published on: February 11, 2021
उस दिन 26 जनवरी थी। गणतंत्र दिवस की तैयारियां अलग-अलग तरह के लोग अलग -अलग तरह से कर रहे थे। कोई अपने कार्यकाल में झंडा रोहण करना चाहता था कोई उसमें शामिल हो जाना चाहता था। कोई किसी सांस्कृतिक कार्यक्रम में भाग लेना चाहता था तो कोई कहीं का मुख्य अतिथि बनकर जाने को तैयार था। किसान जो तीन महीनें से नए कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए विरोध प्रदर्शन कर रहे थे वे सरकार और देश की जनता तक अपनी बात पहुंचाने के लिए ट्रैक्टर मार्च निकालने की तैयारी कर रहे थे।


 
ऐसे लोग जो सरकार की गलत नीतियों का विरोध करने के कारण, किसी घटना की सही से रिपोर्टिंग करने के कारण, या कुछ ऐसा करने के कारण जो सरकारों को पसंद न आया हो और जेल में डाल दिये गए हों उनके क्या क्रिया कलाप रहे होंगे गणतंत्र दिवस के दिन?  

शायद वे अपने आंदोलन के बारे में सोच रहे होंगे? देश के भविष्य, संविधान, बची हुई डेमोक्रेसी के बारे में सोच रहे होंगे? उन सब ने गांधी, नेहरू, भगतसिंह, आज़ाद और उस समय के आंदोलनों के बारे में तो जरूर सोचा होगा। भारत गणराज्य को संविधान से चलने वाला देश बनने तक तक के संघर्षों को तो जरूर याद किया होगा। 

इन सबसे दूर इसी 26 जनवरी के दिन एक लड़का अपने ठेले पर अंगूर की दो किस्में लादे उन्हें बेचने के उद्देश्य से घूम रहा था। काले और सफेद अंगूरों से लदी हुई ठेलिया पर उसने किसी पेड़ के हरे पत्तों को सजावट के उद्देश्य से बीच-बीच मे लगा दिया था। इन हरे पत्तों की वजह से अंगूर और बढ़िया दिखने लगे थे। अंगूर के बड़े-बड़े दाने इस तरह से उसने सजाकर रखे थे कि देखने वाला या कोई अंगूर प्रेमी पहली ही नजर में भाव की चिंता किए बगैर खाने भर का खरीद ले। 

पर शायद भाव की ही चिंता थी जो सुबह से टहलते हुए अभी तक वह डेढ़ सौ के ही अंगूर बेच पाया था। आते जाते लोग ठेले की खूबसूरती देख रुक जाते और भाव पूछ आगे बढ़ जाते। लोगों के रोजगार चले जाने, काम न शुरू होने का असर हर किस्म के धंधे पर साफ देखा जा सकता है जो उस अंगूर बेचने वाले के धंधे पर भी दिखाई दे रहा था। 

बाजार के अंत के एक सिरे पर वह अपना ठेला साइड में करके कभी मोबाइल में देखता तो कभी सड़क पर चलने वाले लोगों को। लोगों के पहनावे अन्य दिनों से भिन्न थे। कोई तिरंगा वाले कपड़े पहने था तो कोई तिरंगा अपनी जेब पर लगाये था। कुछ लोग ऐसे भी दिखते जो यह सब नहीं किए थे। लड़के ने भी अपने ठेले पर चार तिरंगे लगा दिए थे। ऐसा बाजार के सभी दुकान वालों ने किया था। बीच बीच में कुछ गाड़ियां देशभक्ति के गाने बजाते और बड़ा सा तिरंगा लगाए गुजरतीं तो वह उन्हें देख बड़ा खुश हो जाता। इन्हीं बीच सड़क से एक कार गुजरी जिसमें छत खुली थी। उस खुली छत से दो लड़के जो उसकी ही उम्र के थे बाहर सिर निकाले किसी गाने पर थिरक रहे थे। वह उन्हें थिरकता तब तक देखता रहा जब तक कि वे आंखों से ओझल न हो गए। उसका भी मन हुआ कि वह ऐसी गाड़ी में एक बार घूमे। पर सोचता रहा कि ऐसा नसीब हमारी कहाँ? 

दोपहर होती गई। करीब एक घण्टे से अंगूर के भाव पूछने कई आए पर लेने वाला कोई नहीं। वह मोबाइल में लगातार खेलता रहा। ग्राहकों का इंतजार करता रहा। सोशल मीडिया स्क्रॉल करता रहा। ऐसे मैसेज आर्टिकल वीडियो जो उसे लगता शेयर करना चाहिए वह कर देता। उसने देश, सेना, पुलिस सरकार पर गर्व करने वाले बहुत से वीडियो इसी बीच शेयर किए जो वह अक्सर करता आया था। वह कई ऐसे ग्रुप में जुड़ा हुआ था जिसमें देश, संस्कृति, धर्म जैसी चीज़ों पर गर्व वाली चीजें अक्सर प्रसारित होती रहती थीं। इसके अलावा कभी कभी कुछ ऐसे मैटेरियल भी आ जाते थे जो पड़ोसी देशों को गाली देने, नीचा दिखाने वाले होते थे। वह इन सब चीजों को बड़े आनंद से लोगों को भेजता था। यह उसे अलग तरह का सुख देता था। 

एक पुलिस की गाड़ी आई। आगे बैठे पुलिस वाले ने उसे पास बुलाया। वह थोड़ा डरा। मोबाइल जेब के हवाले किया। धड़कते दिल से पास गया। पुलिस वाले ने उसे पीछे बैठने का इशारा किया। लड़के ने कुछ न कहा। पीछे पहले से ही दो और लोग बैठे हुए थे। उन बैठे हुए दो लोगों में से एक ने दरवाजा खोला। वह लड़का अंदर गाड़ी में दाखिल हुआ। गाड़ी आगे बढ़ गई। बैठे हुए दो लोगों ने इस लड़के को देखा और लड़का भी दोनों को देखता रहा। शायद सब एक दूसरे को पहचानने की कोशिश कर रहे थे। वह लड़का पहचान गया।

अरे यह तो वही है जो पीछे अमरूद के ठेले लगाए हुए था..... 
लड़का समझ गया कि ये दोनों भी धंधे वाले ही हैं। 
अब तक किसी के बीच कोई वार्तालाप नहीं हुआ था। 
आगे बैठे पुलिस वाले ने मुंह खोला- और घूमना है कि कुछ कर रहे हो तुम लोग। 
उन दो लोगों में से जो पहले से ही गाड़ी में बैठे थे, एक ने  कहा- सर, अभी कुछ बिक्री नहीं हुई है। बस सौ ही हैं जेब में। 
ड्राइवर जो गाड़ी चला रहा था वह बोला- तीनों मिलकर  पांच सौ करो। 
अबकी बार दूसरे वाले व्यक्ति ने कहा- सर, मेरे पास भी सौ ही हैं। 
बगल की सीट पर बैठे पुलिस ने अंगूर बेचने वाले लड़के से कहा- तू सौ दे रहा है कि घुमाऊं तेरे को कुछ देर और? 
उसने हाँ में सिर हिला दिया। 
तीनों ने बड़ी खुशी से सौ सौ रुपये इकट्ठे किये और एक साहेब को पकड़ा दिया। 
गाड़ी साइड में रुकी और तीनों उतरकर अपनी दुकानों की ओर आने लगे। 

तीनों के मन में खुशी और निराशा के भाव साथ-साथ चल रहे थे। निराशा इस बात की कि सौ चले गए। खुशी इस बात की कि सौ ही गए। और रोज तो नहीं आते न साहब लोग। यह तो कभी कभी हो जाता है। 
वे आपस में बतियाते चले आ रहे थे। एक ने कहा- साले 26 जनवरी को भी नहीं छोड़ते। 
एक ने कहा- क्या बोलें अब... मैंने तो नाश्ता भी नहीं किया है।
अंगूर बेचने वाले ने कहा- हां, जैसे मैंने बहुत लड्डू पेड़े खा लिए हैं। 
यह कहकर वह जोर से हँसा और एक को हाथ पर ताली दी। जैसे बहुत दिन का याराना हो। याराना हो न हो पर पीड़ित तीनों थे। यह बात उन तीनों के घुल मिल जाने के लिए पर्याप्त थी। 

हंसी मजाक करते वे अपनी दुकानों तक आ गए। वह अंगूर वाला लड़का भी अपने ठेले पर आ गया। पहुंचते ही उसनें अपने ठेले पर एक नजर घुमाई जैसे किसी हुई छेड़खानी का सुबूत खोज रहा हो। और उसने पाया कि सब सही है। उसने एक कोने के झंडे को सीधा किया जो किसी कारण थोड़ा टेढ़ा हो गया था। यह झंडे के प्रति सम्मान था। 

कुछ देर वह खड़े हो जाते जाते लोगों को देखता रहा। इस बीच मोबाइल भी उसने कई बार देखा। कई ऐसी चीजें मोबाइल पर दिखी जो वह अक्सर शेयर कर देता था। पर अब मन न हो रहा था। यह थोड़ी देर पहले हुए अनुभव के कारण था। 
अनुभव बड़ी चीज है। यह बहुत सी चीजों से गर्व, सम्मान,इज्जत का भाव हटा या बढ़ा देती है। 

इन्हीं बीच वह लड़का सोचता रहा कि क्या जाकर कुछ खा लें? 
"अभी नहीं, थोड़ी देर और देख लेते हैं, शायद कोई ग्राहक आ जाये... कब से तो देख ही रहा हूँ, कोई तो नहीं आया... ग्राहकों का कोई भरोसा है कब आ जाएं" 

यही सब सोचता रहा कि एक दूसरी पुलिस की गाड़ी सामने आकर रुकी। यह थोड़ी बड़ी थी। एक पुलिस वाला उतरा और उसे गाड़ी में ले गया। गाड़ी आगे बढ़ गई। करीब दस मिनट बाजार की गलियों में टहलाने के बाद एक पुलिस वाले ने कहा- दो सौ दे और जा।
 
उसका मुंह जो पहले से ही उतरा था और उतर गया। वह कुछ न बोला।
एक दूसरे पुलिस वाले ने कहा- सुना नहीं सर ने क्या कहा?
वह धीमी आवाज में बोला- अभी एक साहब को दिया पैसे। 
"तो हमको नहीं देगा" यह बात शांत से दिखने वाले पुलिस ने कही। 

वह बोला- ऐसा नहीं है साहब। ज्यादा बिक्री न हुई है सुबह से। जो था दे दिया पहले वाले साहब को। अभी कुछ भी नहीं है। 
गाड़ी लगातार चलती रही। उसके इतना कहने के बाद कुछ देर शांति रही। 
एक पुलिस वाला फिर बोला- ए तू देता है कुछ कि चौकी ले चलूँ।
वह थोड़ा रुआंसे स्वर में बोला- सर सच में एक भी पैसा नहीं है। नाश्ता करने भी न गया अब तक। 

एक पुलिस वाला बोला- जेब चेक कर रे इसकी। 
एक उठा और लड़के की जेब चेक करने लगा। उसका हाथ मोबाइल पर गया। मोबाइल निकालकर पुलिस वाला बोला- इतना महंगा  मोबाइल इस्तेमाल करता है और कहता है पैसे नहीं हैं? 

वह बोला- पुराना खरीदा था साहब। 
पुलिस वाला बोला- खरीदा था या चोरी किया? 
वह बोला- चोरी नहीं किया साहब। 
पुलिस वाला जो जेब चेक कर रहा था उसने दूसरी जेब में हाथ डाला। पचास का नोट बाहर निकल आया। 
उसने ड्राइवर को कहा गाड़ी साइड में ले। 

गाड़ी साइड में रुकी। जेब चेक कर रहे पुलिस वाले ने एक जोरदार थप्पड़ लड़के के नाक, होठ, आंख के सीध में देते हुए कहा- भो... के... जेब मे पैसा पड़ा है और ना बोलता है। 

ऐसा कहते हुए उसने लड़के को गाड़ी से बाहर जाने को कहा। मोबाइल उसने उसके हाथ में वापस दे दी थी। 

वह लड़का चेहरा घिसते, बाल संवारते। अपने ठेले की तरफ वापस लौट पड़ा। दिल धड़क रहा था। बाजार सड़क का माहौल वैसे ही था। गाने अब भी देश भक्ति वाले बज रहे थे जो उसके कानों तक पहुंच भी रहे थे। पर सुनाई नहीं दे रहे थे। उसे बस एक खुरदरा से हाथ मुंह पर पड़ता बार बार दिखाई दे रहा था। वह गर्व, देश भक्ति न जाने कहाँ की चीज हो गई थी उसके लिए। 

मन में उसके सवाल बार बार उठता- तो क्या बस्तर, कश्मीर, सोनभद्र, दंतेवाड़ा में प्रशासनिकों द्वारा शोषण की जो खबरें कभी कभी मोबाइल पर मिलती हैं। जिसे मैं फेक कहते हुए लोगों को शेयर कर देता हूँ वे सही होती हैं? 
जब बड़े शहरों में शोषण है तो छोटी जगहों पर क्या होता होगा? 

थप्पड़ की गूंज के बीच वह यह सब सोचते जा रहा था और उसे अपने द्वारा शेयर किए गए बहुत से तमाम मटेरियल याद आते रहे।
 

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