बनारसः विश्वनाथ मंदिर के दो किमी के दायरे में मीट-मछली की बिक्री बंद, किस पर क्या होगा असर?

Written by विजय विनीत | Published on: March 4, 2024
बनारस भले ही भारत की आध्यात्मिक राजधानी हो, लेकिन यह शहर खाने-पीने के शौकीनों को बहुत लुभाता है। प्रशासन ने मांसाहारियों के लिए अब नई मुसीबत खड़ी कर दी है। काशी विश्वनाथ मंदिर से दो किमी की परिधि में मांस और मछली की दुकानों पर बड़ी कार्रवाई करते हुए इनकी बिक्री रुकवा दी है। रेड मीट के अलावा मुर्गा बेचने वाली 26 दुकानों को बंद करवाकर उनमें ताला जड़ दिया गया है। मीट की दुकानों की बंदी के बाबत नगर निगम प्रशासन ने एक नोटिस चस्पा करा दिया है। बगैर किसी नाम, पद और दस्तखत वाले नोटिस में लिखा है, ''ये दुकानें अवैध हैं।''



काशी विश्वनाथ मंदिर के पास घुघरानी गली, दालमंडी, हड़हासराय, शेख सलीम फाटक, बेनियाबाग, सराय गोवर्धन और नई सड़क मुस्लिम बहुल इलाके हैं। इन इलाकों में मांस की दुकानें हैं और मछलियां भी बिकती हैं। इस इलाके के तमाम होटलों में सदियों से मांसाहारी व्यंजन परोसे जाते रहे हैं। 01 मार्च 2024, जुमे के दिन पुलिस फोर्स के साथ नगर निगम के अफसरों जत्था नई सड़क इलाके में पहुंचा। बकरा और मुर्गा बेचने वालों को उनकी दुकानों से बाहर निकाला और उन पर ताला जड़ दिया। हिदायत दी कि विश्वनाथ धाम के दो किलोमीटर के दायरे में कोई मांस-मछली की दुकानें नहीं लगा सकेगा।

08 जनवरी 2024 को बनारस में नगर निगम की बैठक में पार्षद इंद्रेश कुमार सिंह ने नगर निगम अधिनियम-1959 की धारा 91(2) के तहत विश्वनाथ विश्वनाथ धाम के आस-पास मांस-मंदिरा की दुकानें प्रतिबंधित करने का प्रस्ताव रखा था। इस बैठक में धाम के दो किलोमीटर के क्षेत्र में मांस की दुकानों को  प्रतिबंधित करने की मंजूरी दी गई थी। इसी कड़ी में कार्रवाई करते हुए नगर निगम के प्रवर्तन दल ने बेनियाबाग और नई सड़क इलाके में बकरे की 19, मुर्गे की तीन और बड़े जानवरों की चार दुकानें बंद करा दी। दुकानदारों का कहना है कि लंबे साल से वो मांस की दुकान लगा रहे थे। मानक अनुरूप पर्दा लगाकर मांस बेचते थे। ऐसे में दुकानों का बंद करना अनुचित है। अब नए स्थान पर दुकान लगाना भी आसान नहीं होगा।
 
मीट बाजार में सन्नाटा
 
बनारस के जिन इलाकों में मीट की ये दुकानें संचालित की जा रही थीं वहां अब सन्नाटा पसरा हुआ है। मीट के कारोबारियों ने अपनी दुकानें खाली कर दी है। मीट विक्रेता आलिया ट्रेडर्स के प्रोपराइटर सरफराज कहते हैं, ''जुमे के दिन हम नमाज पढ़ने गए थे, तभी नगर निगम के अफसर पुलिस फोर्स के साथ पहुंचे हमारी दुकान में ताला जड़ दिया। इससे पहले हमें कोई नोटिस नहीं दी गई। मीट की दुकानों को बंद करने के लिए पहले से कोई मियाद तय नहीं की गई थी। हमारे दुकान पर दर्जन भर लोग काम करते थे, जिससे उनके परिवार की आजीविका चलती थी। इनमें ज्यादातर गरीब तबके के लोग थे। एक झटके में सभी बेरोजगार हो गए।''

नई सड़क पर अजीज गोश्त वाले की सैकड़ों साल पुरानी दुकान भी नगर निगम की कार्रवाई की भेंट चढ़ गई। अलमजीद चिकन एंड मीट शाप के प्रोपराइटर नौशाद कहते हैं, ''हमारी दुकानों को बंद कराने के पीछे राजनीतिक दलों की साजिश है। बहुसंख्यक तबके को खुश करक वोट बटोरने के लिए हमारे ऊपर एक्शन लिया गया है। मीट की जिन 26 दुकानों को बंद कराया गया है वहां से आधे शहर में मीट की आपूर्ति होती थी। हर दुकान पर आठ-दस लोग काम करते थे। दुकानों की बंदी से करीब दो सौ परिवारों के करीब 1200 लोगों के सामने भुखमरी का संकट पैदा हो गया है।''

मीट के एक अन्य कारोबारी नौशाद अली कहते हैं, ''बनारस में गरीबों की शामत आ गई है। बड़े-बड़े रेस्त्रा और होटलों में धड़ल्ले से मीट-मुर्गा परोसा जा रहा है। शराब भी बेची जा रही है और अंडे भी। इन पर कोई रोक नहीं है। सिर्फ हमें ही निशाना बनाया गया। बनारस में बकरों की सबसे बड़ी मंडी कुरैशाबाद में लगती है जो काशी विश्वनाथ धाम से दो किमी के दायरे में है। सुबह छह बजे से 10 तक लगने वाली इस मंडी में हर रोज सैकड़ों बकरे बिका जाया करते हैं। कानपुर, इटावा, फतेहपुरी, गोरखपुर, आजमगढ़ आदि जिलों के अलावा बिहार के व्‍यापारी देसी, राजस्‍थानी, तोतापरी, बरबरी, जमुनापारी, सिरोह आदि नस्‍ल के बकरे लेकर पहुंचते हैं। नगर निगम का चाबुक इस मंडी पर नहीं चला, क्योंकि अफसरों को इस मंडी से मोटी कमाई होती है। यह तो वैसी ही बात है कि गुड़ खाएं और गुलगुला से परहेज करें। रेस्टोरेंट में मीट परोसने पर पाबंदी नहीं है, लेकिन मीट बेचने पर रोक है।''

प्रशासन की नीयत पर सवाल खड़ा करते हुए नौशाद कहते हैं, ''रमजान का त्योहार नजदीक है। ऐसे में एक झटके में मीट की दुकानों को बंद करा दिया जाना ठीक नहीं है। मीट विक्रेताओं को उजाड़े जाने से पहले दूसरे स्थान पर इसकी बिक्री शुरू कराने की व्यवस्था करनी चाहिए थी। एक सोची-समझी साजिश के तहत हमें निशाना बनाया गया। ऐसा नहीं है कि इस धंधे में सिर्फ मुसलमान ही हैं, हिन्दू भी इस कारोबार से जुड़े हैं। जिन बड़े रेस्टोरेंटों में मीट परोसे जाते हैं वो ज्यादातर हिन्दुओं के ही हैं। इन्हें जानबूझकर बंद नहीं  कराया गया है। अंडों की बिक्री भी नहीं रोकी गई है।''

''हमरा होलसेल का कारोबार है। हमारे पास मीट बेचने के लिए फुड लाइसेंस है। हम नगर निगम को नियमित रूप से तहबाजारी भी अदा कर रहे थे। हमें जो भी आदेश दिया जाता था, उसका पालन करते थे। पशु चिकित्साधिकारी डा.अजय प्रताप सिंह रोजाना हमारी दुकानों की चेकिंग कराया करते थे। सैकड़ों साल पुरानी हमारी दुकानों को कैसे अवैध घोषित किया जा सकता है? ''

नई सड़क इलाके में नावेज से बने व्यंजन काफी लोकप्रिय है। लेकिन नगर निगम के नए निर्णय से मांस बेचने वालों की परेशानियां बढ़ गई हैं। बड़े कारोबारियों के दुकानों पर ताला बंद किए जाने से आम जनता की मुश्किलें भी बढ़ गई हैं। दुकानदारों का कहना है कि जिनके पास लाइसेंस हैं उन्हें बंद कराने का कोई मतलब नहीं। बेहतर हो कि दूसरे महानगरों की तरह बनारस में भी सरकार मीट की बिक्री की एक जगह से कराए।

मीट की दुकानों पर काम करने वाले कर्मचारियों की हालत सबसे ज्यादा खराब है। हमारी मुलाकात शमशाद, नेयाज, वसीम और नेयाज से हुई तो उनकी आंखों छलछला गईं। शमशाद ने कहा, ''हुजूर, हमारा गुनाह क्या था, जो एक झटके में हमें सड़क पर ला दिया। हमारे परिवार को कौन पालेगा? हम मीट की दुकान पर काम करते थे तभी हमारे परिवार को दो वक्त की रोटी मिल पाती थी। अब हम कहां जाएंगे। मीट की दुकानों की अचानक बंदी से हमारे सामने भुखमरी का संकट पैदा हो गया है।''
 
मीट की दुकानों का सर्वे जारी
 
नगर निगम के पशु चिकित्साधिकारी डा.अजय प्रताप सिंह कहते हैं, ''मिनी सदन में पारित प्रस्ताव के अनुपालन में मांस की दुकानें बंद कराई गई हैं। काशी विश्वनाथ धाम के दो किलोमीटर की परिधि में मांस की दुकानें के सर्वे का कार्य अब भी जारी है। वाराणसी के जिन इलाकों में प्रतिबंध लागू होगा उनमें बेनियाबाग, दालमंडी, लक्सा के कुछ हिस्से, रामापुरा, दशाश्वमेध, मैदागिन, दारानगर के कुछ हिस्से, विश्वेश्वरगंज, हरतीरथ आदि शामिल हैं।  इन इलाकों की सभी दुकानों को बंद कराया जाएगा। फिलहाल नई सड़क, शेख सलीम फाटक, बेनिया, सराय गोवर्धन इलाकों में मीट की दुकानों की बंद करा दिया गया है। उन्हें सील भी कर दिया है। अगर अब कोई इस कार्रवाई का उल्लंघन करता है तो उसके खिलाफ प्रशासनिक कार्रवाई की जाएगी।''

बनारस का एक बड़ा तबका मानता है कि मीट और अंडे की बिक्री पर रोक नहीं लगनी चाहिए। बाबा विश्वनाथ को जब भांग-धतूरा और कालभैरव को शराब चढ़ाई जाती है तो दो किमी के दायरे में सिर्फ मीट की दुकानों को प्रतिबंधित क्यों किया गया है? सबसे बड़ी बात यह है कि मीट-मछली के साथ अंडे पर रोक रहेगी, इस बारे में अभी तक स्थिति स्पष्ट नहीं है। किराना की दुकानों पर अंडे बेचने वाले भी समझ नहीं पा रहे हैं कि उन पर नगर निगम का कानून लागू होगा अथवा नहीं?

बनारस के जाने-माने व्यापारी नेता बदरुद्दीन अहमद कहते हैं, ''मीट की दुकानों के खिलाफ एक्शन ज्वलंत मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए है। नगर निगम के ऊल-जलूल निर्णय से लोगों को बहुत परेशानी होगी। खासतौर पर छोटे दुकानदारों को ज़्यादा नुक़सान उठाना पड़ेगा। यह आस्था का नहीं, वोटबैंक का खेल है। एक खास तबके को खुश करने का खेल है। मीट की बिक्री के धंधे से जुड़े लोग समाज में सबसे निचले आर्थिक पायदान पर हैं। वे इन्हीं चीजों की बिक्री से अपना लालन पोषण करते हैं। नगर निगम के एक्शन से मीट विक्रेताओं की आर्थिक स्थिति बदतर हो गई है। मांस की ज्यादातर दुकानें मुसलमानों के स्वामित्व में हैं। लगता है कि नगर निगमों ने इनका जीवन नर्क बनाने की ठान ली है।"

बदरुद्दीन यह भी कहते हैं, ''केंद्र सरकार के 2014 के सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम बेसलाइन सर्वे के मुताबिक बनारस शाकाहारी बहुसंख्यक शहर नहीं है। एक सर्वे में पाया गया है कि राज्य की 30 से 40 फीसदी आबादी मांस खाती है। पूर्वांचल के दूसरे शहरों की तुलना में यहां ज्यादा मांसाहारी लोग रहते हैं। नगर निगम की यह कार्रवाई आजीविका के उस अधिकार पर प्रतिबंध लगती है जो संविधान के अनुच्छेद 21 में वर्णित है। भारत में हर किसी को अपनी पसंद का खाना खाने की छूट है। अगर लोग किसी वेंडर से मीट खरीद रहे हैं तो उन्हें हटाना सही नहीं है। कानून में भी ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। जो भी चीज प्रतिबंधित नहीं है, वेंडर उसे बेचने के लिए स्वतंत्र हैं।''
 
‘मांस-मदिरा मुक्त हो बनारस’
 
बनारस को मांस-मदिरा मुक्त क्षेत्र घोषित करने की मांग को लेकर बनारस में जागरूकता अभियान शुरू किया गया है। बनारस के तीन नामचीन जादूगर मारुति, रामकृष्णा और जितेंद्र ने आंख पर पट्टी बांधकर काशी से अयोध्या तक बाइक यात्रा की। यह यात्रा सामाजिक संस्था आगमन और ब्रह्म सेना के बैनर तले निकाली गई। यात्रा के दौरान यह तीनों जादूगरों ने जौनपुर, सुल्तानपुर और फैजाबाद में पंपलेट और पोस्टर भी बांटे। अभियान के संयोजक डॉ संतोष ओझा कहते हैं, ''योगी सरकार ने अयोध्या के 84 कोशी क्षेत्र में शराब और मांस के बिक्री पर प्रतिबंध लगाया है तो बनारस के पंचकोशी क्षेत्र में भी इसकी बिक्री और सेवन पर रोक लगनी चाहिए।''

डॉ ओझा कहते हैं, "मांस, मछली, अंडे के सार्वजनिक प्रदर्शन से धार्मिक भावनाएं आहत होती है। इसे दिखाई नहीं देना चाहिए। मांसाहारी भोजन बेचने वाले वेंडरों या रेस्त्रां को इनपर पर्देदारी करनी चाहिए। इसके सार्वजानिक प्रदर्शन की प्रथा कई दशकों से जारी रही होगी, लेकिन अब इसे बंद करना होगा। स्कूल, कॉलेज, बगीचों, धार्मिक जगहों और शहर की मुख्य जगहों पर मांसाहार बेचने पर प्रतिबंध लगाया जाना जरूरी है। मांसाहारी स्टॉल से जो धुआं और बदबू आती है, वो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।"

''बनारस दुनिया का ऐसा शहर है जो 1800 ईसा पूर्व बसा था। यह दुनिया के सबसे पुराने जीवित शहरों में से एक है। साथ ही ये शहर विश्व के अनुमानित 1.2 अरब हिंदुओं के लिए सबसे पवित्र शहरों में से एक है। मंदिर के बजते घंटों के बीच यहां हर रोज़ हज़ारों लोग पवित्र गंगा नदी में डुबकी लगाते हैं। हरिश्चंद्र और मणिकर्णिका घाटों पर चौबीसों घंटे चिताएं जलती रहती हैं। मान्यता है कि यहां जिन लोगों का अंतिम संस्कार होता है, उनके कानों में भगवान शिव खुद फुसफुसाते हैं, जिससे उन्हें तत्काल मोक्ष मिलता है। बनारस के लगभग हर हिंदू घर में शिव को समर्पित एक वेदी है।''

पत्रकार डॉ संतोष ओझा यह भी कहते हैं, ''भगवान शिव शाकाहारी देवता हैं। घर में मीट खाना सोच से भी परे है। ऐसे में विश्वनाथ धाम के आसपास की पवित्रता पर ध्यान रखा जाना चाहिए। अभी तो मीट की दुकानें बंद हुई हैं। रेस्त्रा और ठेलों पर इसकी बिक्री भी प्रतिबंधित करने की जरूरत है। मोक्ष चाहने वालों के लिए सात्त्विक बने रहना एक प्राथमिकता है। बनारस में 40 से 200 के बीच सात्त्विक रेस्त्रां हैं। बनारस के स्ट्रीट फूड की दुनिया भी बैंकॉक या इस्तांबुल की तरह जीवंत और रोमांचक है। लेकिन ये मीडिया के प्रचार से बहुत दूर हैं। यहां बिकने वाले कई शाकाहरी व्यंजनों में भारत में कहीं और मिलने वाले स्नैक्स से ज्यादा विविधताएं हैं, पर इन्हें दिल्ली के चाट अथवा मुंबई के वड़ा पाव जैसा प्रचार नहीं मिल सका है।''

वरिष्ठ पत्रकार राजीव मौर्य डॉ संतोष ओझा के सोच से इत्तिफाक नहीं रखते। वह कहते हैं, ''इतिहास बताता है कि प्राचीन भारत से लेकर सिंधु घाटी सभ्यता तक में गोमांस और जंगली सूअर का व्यापक रूप से सेवन किया जाता था। 1500 और 500 ईसा पूर्व के बीच वैदिक युग में पशु और गाय की बलि आम थी। मांस देवताओं को चढ़ाया जाता था और फिर दावतों में खाया जाता था। इसलिए, यह मुस्लिम राजा या हमलावर सेनाएं नहीं थीं जो भारत में मांस-भक्षण लेकर आईं, जैसा कि दक्षिणपंथी अक्सर सुझाव देते हैं। शोध से पता चलता है कि दक्षिणी भारत में ब्राह्मण कम से कम 16वीं शताब्दी तक मांस खाते थे। ब्राह्मण समुदाय के कई लोग आज भी भी मांस खाते हैं।

राजीव यह भी कहते हैं, ''बनारस के तमाम बंगाली ब्राह्मण घरों में कई तरह की ताज़ी मछलियां खाई जाती हैं। पिछले साल भारतीय फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म स्विगी पर सबसे ज्यादा ऑर्डर किया जाने वाला व्यंजन चिकन बिरयानी था। भारतीयों ने हर सेकंड दो प्लेट का ऑर्डर दिया। भारत की शाकाहारी परंपराओं का जश्न मनाया जाना चाहिए, लेकिन खाने-पीने पर किसी तरह पाबंदी थोपी नहीं जानी चाहिए। तमाम देसी-विदेशी कंपनियां खुलेआम ऑनलाइन पके और कच्चे मीट का कारोबार कर रही हैं। सवाल यह उठता है कि मोटा मुनाफा कूटने वाली इन कंपनियों पर रोक कौन लगाएगा?"

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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