दिल्ली में शाहीन बाग़ से सिंघु बॉर्डर तक जनता की दस्तक के मायने

Written by Dr. Amrita Pathak | Published on: December 7, 2020
कृषि बिल, सरकार के साथ 5वें दौर की वार्ता असफ़ल, 8 दिसम्बर 2020 भारत बंद 



कई वर्षों से लगभग हर साल दिल्ली की सर्दी ऐतिहासिक आन्दोलन का गवाह बन रही है. वर्तमान में किसान कानूनों की वापसी को लेकर 10 दिनों से दिल्ली की सड़को पर बैठे किसानों का सरकार के साथ 5 दौर की वार्ता असफ़ल हो चुकी है और अब किसानों द्वारा दिल्ली की घेराबंदी बढ़ती जा रही है. पिछले कुछ वर्षों में देशभर में कई आन्दोलन हुए हैं जिसमें विश्वविद्यालय में पढ़ रहे स्टूडेंट का जो वैचारिक रूप से वर्तमान सरकार के ख़िलाफ़ रहे हैं उनका विश्वविद्यालय प्रशासन सहित देश की सरकार के खिलाफ प्रत्यक्ष विरोध रहा है. फेलोशिप को ख़त्म किए जाने के खिलाफ JNU के स्टूडेंट का 2015 में 90 दिनों का ‘Occupy UGC’ नामक आन्दोलन, CAA_NRC_NPR कानून को जनता पर थोप कर जनता के अधिकारों के साथ खिलवाड़ किए जाने के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग़ में हजारों लोगों द्वारा किए जाने वाला आन्दोलन जो राष्ट्रीय रूप धारण कर चुका था व जिसे धार्मिक रूप देकर और दंगे करवाकर बदनाम करने की कोशिश होती रही और बाद में कोरोना महामारी के प्रभाव ने भी उस समय आन्दोलन को मुकाम तक पहुचने से रोक दिया. अब देश के अन्नदाता किसान सड़कों पर हैं. किसान विरोधी कानून को ख़त्म करवाने की मांग को लेकर इनकी लामबंदी दिल्ली के सिन्घु बॉर्डर पर हुई है जिसकी लपटें तेजी से देश और दुनिया में फ़ैल गयी है हालाँकि देश में आन्दोलन की वजह से बढ़ते देशवासियों की एकता और मजबूत होती भारतीय संस्कृति असल भारत की तस्वीर पेश कर रही है. 

एनडीए सरकार के आने के बाद लगभग हर साल दिल्ली की सड़कों को देश की जनता ने खून से सींचा है जिसका उदाहरण ‘Occupy UGC’  आन्दोलन के दौरान जनकवि ‘रमाशंकर विद्रोही’ की मौत, शाहीन बाग़ में 6 महीने की बच्ची की मौत तथा किसान आन्दोलन में अभी तक 5 किसानों की मौत से समझा जा सकता है. 

मैं किसान हूँ
आसमान में धान बो रहा हूँ
कुछ लोग कह रहे हैं
कि पगले! आसमान में धान नहीं जमा करता
मैं कहता हूँ पगले!
अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है
तो आसमान में धान भी जम सकता है
और अब तो दोनों में से कोई एक होकर रहेगा
या तो ज़मीन से भगवान उखड़ेगा
या आसमान में धान जमेगा।
           ‘रमाशंकर विद्रोही’


सरकार द्वारा जनविरोधी नीतियाँ थोपने का यह सिलसिला देश की जनता के तमाम वर्गों से होते हुए आज अन्नदाता किसान को दिल्ली के सड़क पर लाकर खड़ा कर दिया है. कृषि कानून के ख़िलाफ़ पूरा देश तेजी से लामबंद हो रहा है जिसका उदाहरण 8 दिसम्बर 2020 के भारत बंद को 19 विपक्षी पार्टियों सहित 10 ट्रेड यूनियन के समर्थन से समझ सकते हैं. साल भर पहले दिल्ली के शाहीन बाग़ से आन्दोलन की चिंगारी निकली जो सरकार के जनविरोधी नीति CAA NRC NPR के खिलाफ थी और जिसे सरकार के मंत्री कैलाश विजयवर्गीय बंगाल चुनाव को ध्यान में रखते हुए लागू करने की बात कर रहे हैं. 

किसान आंदोलन के मायने
जन विरोधी कानूनों के ख़िलाफ़ लगातार हो रहे आन्दोलन की जमीन को किसान आन्दोलन की खाद ने फिर से उर्वरा कर दी है. भाजपा सरकार आंदोलन को कुछ खास तवज्जो नहीं देती है इनके भक्त आंदोलनकारियों को देशद्रोही, पाकिस्तानी, टुकड़े-टुकड़े गैंग, खालिस्तानी  और वामपंथी आदि कहकर न सिर्फ सरकार के पक्ष में खड़े होते रहे हैं बल्कि आंदोलनकारियों के हौसले को भी तोड़ते हैं. इस बार किसानों ने जिस सलीके से आंदोलन को उठाया है वह काबिले तारीफ है. देश भर में चल रहे शाहीन बाग़ का आन्दोलन भी अहिंसा की मिसाल थी लेकिन उसमें भाजपा द्वारा धार्मिक धुर्वीकरण कर देश में नफरती माहौल पैदा करने की कोशिश हुई. वर्षों से आन्दोलनकारियों को न सुनने की सरकार के रवैये ने देश के अन्नदाता के साथ भी वही रुख अपनाया और अब जब सरकार के सहयोगी पार्टियों द्वारा ही सवाल उठाए जाने लगे और भाजपा शासित राज्यों की सरकार का वजूद खतरे में आने लगी तो सरकार का रुख बदलना लाज़िमी है. 

अवॉर्ड वापसी का दौर
किसी भी इंसान की व्यक्तिगत व् वैचारिक रूप से सहमति और असहमति होना उनका संवैधानिक अधिकार है जिसे कुछ वर्षों में अपराध की तरह देखा जाने लगा है. इसी कड़ी में सरकारी नीतियों से असहमति के खिलाफ विरोध स्वरुप सम्मान की वापसी भारत में नयी बात नहीं है लेकिन यह नया जुर्म जरुर माना जाने लगा है. वर्तमान में किसान आन्दोलन और उनकी मांग के समर्थन में देश के बुद्धिजीवी, पत्रकार, लेखक, कलाकार, खिलाड़ी, सामाजिक कार्यकर्ता सामने आए और कई लोगों ने सरकार द्वारा मिले सम्मान को वापस करने की घोषणा की है. सरकार किसानों की मांग को बिना शर्त मान ले यह इनकी एकमात्र मांग है. इस सरकार द्वारा आंदोलन के समर्थन में आए तरक्की पसंद लोगों को कभी अवार्ड वापस करने पर अपराधी तक बताया गया हालाँकि आज देश और दुनिया भर से अवार्ड वापस करने वाले लोगों के होसले को बढाने और उन्हें सराहने वाले लोगों की तादाद अधिक है.  

किसान इस काले कानून को ख़त्म करवाने को लेकर कितना गंभीर है इससे पता चलता है कि महीनों का राशन किसान अपने साथ लेकर चले हैं जिसे भाजपा सरकार खालिस्तानी तक की संज्ञा दे चुके हैं. जब मोदी सरकार बनारस में लेज़र शो देखने में व्यस्त थे तब देश की शान बढ़ाने वाले लोग अपने सम्मान को वापस करने में लगे हुए थे और सरकार के गैरजिम्मेदाराना व्यवहार के ख़िलाफ़ और किसानों के समर्थन में पूरा देश लामबंद हो रहा था जिसका इल्म सरकार को नहीं था. शर्मनाक यह है कि जय जवान जय किसान का नारा देने वाले भारत में आज किसानों पर बलप्रयोग करने के लिए जवानों को सामने खड़ा कर दिया गया है और यह बिलकुल संभव है कि समय आने पर देश के जवान किसानों पर बलप्रयोग करने से मना कर दे ऐसे आन्दोलन की कल्पना अभी इस संघ समर्थित सरकार के सोच से परे है. 

दुनिया भर में बसने वाले पंजाबियों ने अपने अपने देशों में किसान आन्दोलन के समर्थन में एकजुट होकर प्रदर्शन करने शुरू कर दिए हैं. फ़्रांस, इटली जर्मनी, कनाडा, अमेरिका, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड सहित कई मुल्कों में लगातार भारत के किसान आन्दोलन के समर्थन में और कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किए जा रहे हैं.

इस आंदोलन ने यह सिद्ध किया है कि वे सरकार की समझ को दुरुस्त करेगा यह भी कि जिस बिल की चर्चा संसद में नही होने दी जाएगी और चोरी छिपे पारित करवा लिया जाएगा उसकी चर्चा सड़क पर होगी. जन आन्दोलनों ने यह साबित किया है बहुमत से वोट देकर सरकार बनाने वाली जनता की जन भावनाओं के आगे बहुमत की कोई बिसात नहीं होती.

पिछले 6 सालों से देश की हवाओं में सांप्रदायिक जहर फैलाया जा रहा है जिसे योजनाबद्ध तरीके से मीडिया और सोशल मीडिया द्वारा घर-घर तक पहुँचाने और समाज में माहौल को ख़राब करने का काम किया जा रहा है. शाहीन बाग़ और सिन्धु बॉर्डर के आंदोलन ने मुल्क के आसमान पर छाए सांप्रदायिक कचरे को हटाने व भाईचारा को बढाने की मिसाल कायम किया है. किसान आन्दोलन में सभी धर्म के लोगों द्वारा समान रूप से सहयोग और उनकी एकजुटता देश में जहर और नफ़रत फ़ैलाने वाले मीडिया सहित तमाम लोगों को करार जबाव है. ग़ौरतलब बात यह है कि ऐसे आन्दोलन से नई पीढ़ी को विरोध की ताकत, आन्दोलन की अहमियत व् अधिकार का ज्ञान हो रहा है जो आज के दौर में और लोकतंत्र के हित में जरुरी है. यह आन्दोलन देश को नयी उर्जा और दिशा प्रदान करेगा जो वर्षों तक लोकतंत्र को आगे बढ़ने में मदद करेगा. 

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