लखीमपुर: देश को खल रही मोदी-शाह की चुप्पी, समर्थक भी निराश, प्रदेश भाजपा नेतृत्व नदारद तो अफसरों के भरोसे योगी!

Written by Navnish Kumar | Published on: October 7, 2021
सामाजिक चिंतक लोकेश सलारपुरी अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं कि लखीमपुर में किसकी गलती है किसकी नहीं, ये अलग मुद्दा है पर एक बात खास है कि आज यूपी में मोदी जी ने उस घटना का जिक्र तक नही किया!! जो आदमी कुत्ते के पिल्ले के गाड़ी के नीचे आने पर दुःखी होता था वो किसानों को गाड़ी के नीचे कुचलने के वीडियो आने के बाद भी चुप क्यों है? कोई एक भाजपाई इस बात का जवाब दे दे! वाजपेयी फिर भी शर्मदार थे जो गुजरात नरसंहार के बाद इन्ही मोदी जी को राजधर्म का पालन करने की सलाह तो दे ही गए थे पर महान मोदी जी तो योगी जी से इतना डरने लगे कि जुबान तक नही खोल पाए! आपने सम्भवतः ये बात नोट नहीं की कि योगी ने इतनी बड़ी घटना के बावजूद भी मंत्रिमंडल की बैठक नही बुलाई! बुलाते भी कैसे! कोई साथ हो तो बुलाते भी ...  कुल मिलाकर यूपी सिविल वॉर में जा चुका है और सरकार डिरेल हो चुकी है!!



जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ भाजपा की अंदरूनी राजनीति है!! वरना देश के गृहमन्त्री और गृह राज्यमंत्री कोई और ही होते!! एक तड़ीपार और एक हिस्ट्रीशीटर तो बिल्कुल नही होते!!
और बस, यही देश की समस्या है जिसे देश ही नही समझ पा रहा है ...

मामले में एक यूजर चौधरी नक्षत्र पाल सिंह कमेंट करते हैं कि सत्ता में आने से पहले मोदीजी के भाषण सुनकर तो यही लगता था कि कब ये बंदा देश का प्रधानमंत्री बने। क्या पता था कि ये सबसे बडा ढोंगी साबित होगा लेकिन किसानों की मौत पर तो ढोंग के भी दो आंसू नही बहा रहा। इससे तो यही लगता है कि किसानों के प्रति इनके दिल मे कितनी नफरत है? क्या कोई इतनी भी नफरत करता है? वहीं, एक दूसरे यूजर शाहनवाज मलिक मोदीजी के नूरानी फोटी वाले अमृत महोत्सव के होर्डिंग की फ़ोटो पोस्ट करते हुए लिखते हैं कि लखीमपुर में किसानों की चितायें ठंडी भी नहीं हुई हैं और इधर मोदी जी लखनऊ में जश्न मनाने पहुंचे हैं।

जी हां, लखीमपुर में किसानों को गाड़ियों से कुचलने की घटना पर न प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ बोले है और न केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कोई बयान दिया। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी चुप है। प्रदेश भाजपा नेतृत्व नदारद है तो अफसरों के भरोसे प्रदेश चला रहे, मुख्यमंत्री योगी विपक्ष को पीड़ितों से मिलने जाने से रोककर हाथरस वाली गलती दोहरा चुके हैं। बाकी किसी मंत्री/प्रभारी का बीजेपी में वैसे ही कोई खास मतलब है नहीं। लेकिन देश के साथ, मोदी-शाह की चुप्पी अब उनके समर्थकों को भी खल रही है। लोकेश जी के शब्दों में कहे तो शायद यही समस्या है। मृतक भाजपा कार्यकर्ता शुभम मिश्रा के पिता ने कह भी दिया है कि सांत्वना के दो बोल तक बोलने कोई नहीं आया है। कहा, हम भी तो किसान ही है, सरकार बहुत गलत कर रही है।

दरअसल लखीमपुर में 4 किसानों सहित 8 लोगों के मारे जाने और कई लोगों के घायल होने की घटना पर समर्थक भी उम्मीद कर रहे थे कि राष्ट्रीय नेतृत्व इसका संज्ञान लेगा और दिशा निर्देश देगा। लेकिन घटना के 4 दिन बाद भी मोदी और शाह किसी का बयान तक नहीं आया। विपक्ष के शासन वाले राज्यों में हिंसा, आगजनी या लोगों के मारे जाने की घटना पर केंद्रीय गृह मंत्रालय तत्काल संज्ञान लेता है और राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब करता है। बड़ी घटना हो तो गृह मंत्रालय की टीम जाती है, हालात मुआयना करने। इस रिपोर्ट या टीम के विजिट करने से कुछ होता नहीं है लेकिन संदेश जाता है कि केंद्र सरकार हालात पर नजर रखे हुए है। कुछ गड़बड़ी होती है तो केंद्रीय टीम संभालेगी। लेकिन खीरी में रिपोर्ट मंगाने या टीम भेजने की औपचारिकता भी नहीं निभाई गई।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हमेशा की तरह अफसरों के साथ बैठक की और अफसर भेजकर किसान नेता राकेश टिकैत के साथ मृतकों के परिजनों को मुआवजे व न्यायिक जांच आदि का ऐलान किया। समझौते से लगा कि सीएम योगी ने राजनैतिक कौशल दिखाते हुए न सिर्फ किसानों के आक्रोश को शांत किया बल्कि हालात बिगड़ने से पहले संभाल लिए। लेकिन हाथरस की तरह जिस तरह विपक्ष के नेताओं को रोकने की कोशिश सरकार ने की या कर रही है, उससे साफ है कि मामला अभी संभला नहीं है। यही नहीं, देंखे तो केंद्र व राज्य सरकार, दोनों स्तर पर जिस संवेदनशीलता की जरूरत थी, वो भी कहीं नहीं दिखलाई दी है। आखिरकार 8 लोग मरे है लेकिन केंद्र व राज्य सरकार दोनों पर आजादी के अमृत महोत्सव का नशा किस कदर सवार है कि शोक की इस घड़ी में भी न सिर्फ उत्सव मनाए जा रहे हैं। बल्कि पीएम मोदी सशरीर लखनऊ पधारे। घर की चाबी बांटने और खुद का गुणगान करते हुए विरोधियों को कोसा लेकिन जिनके घर उजड़ गए, उनके घर जाना तो दूर, पीएम ने यहां भी उनके लिए सांत्वना का एक शब्द तक नहीं बोला। 

गरीबों को घर मिलें अच्छी बात है लेकिन जिनके घर उजड़ गए, उनके हालात समझना भी जरूरी है। शायद मोदी समझ नहीं पाए या जान बूझकर ऐसा माहौल बना रहे कि खुद ब खुद लखीमपुर मामला हाशिए पर चला जाए। शायद इसी सब से निराश मृतक युवा भाजपाई शुभम के पिता ने भी कहा है कि सरकार बहुत गलत कर रही है। आरोप केंद्र सरकार के गृह राज्यमंत्री के बेटे पर है, इसलिए भी केंद्र का हस्तक्षेप आवश्यकीय है। लेकिन मोदी शायद इसे राज्य का मामला मान, सारा दारोमदार योगी सरकार पर ही डाल दिए हैं। 

सवाल है कि क्या उत्तर प्रदेश में इसी कानून व्यवस्था की तारीफ मोदी, योगी करते रहे हैं? किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि उत्तरप्रदेश सरकार के साथ जो समझौता हुआ है उसके तहत 8 दिन में अभियुक्तों की गिरफ़्तारी करनी है। क्या योगीजी समझौते का पालन कर पाएंगे? खास यह भी कि आज जब विपक्ष के नेता व किसान, सभी अपनी अपनी भूमिकाओं का निर्वाह कर रहे हैं तो सवाल जनता को भी अपनी नागरिक जिम्मेदारी उठाने को आगे आने का है, आना चाहिए और आना होगा। दरअसल लखीमपुर में इंसानियत कुचली गई है, जा रही है। मंदिर-मस्जिद, धर्म-जाति से बढ़कर इंसान की गरिमामयी जिंदगी होती है। अगर इस बात को अब भी सरकार को याद नहीं दिलाया गया तो फिर इंसानियत, लोकतंत्र, मानवाधिकार सबके कुचले जाने की बारी एक-एक कर आती जाएगी।

हैरानी होनी ही है। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अक्सर ऐसी घटनाओं पर रहस्यमय चुप्पी साध लेता है। लिंचिंग हो या महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडन। किसान आंदोलन और किसानों के मरने तक हर मामले में प्रधानमंत्री चुप रहे। उन्होंने बहुत बाद में अपनी सुविधा से समय चुन कर इस पर बयान दिया। जरूरत यह होती है कि प्रधानमंत्री तत्काल रिपोर्ट मंगाएं और देश के लोगों को भरोसा दिलाएं। अगर केंद्र सरकार और केंद्रीय नेतृत्व अपने शासन वाले राज्यों में भी गड़बड़ी पर संज्ञान ले, निर्देश दे, रिपोर्ट मंगाए तो उसकी साख ही मजबूत होती है। तभी शायद भाजपा समर्थक भी निराश हैं। कइयों ने सोशल मीडिया पर इस बात पर निराशा जताई कि मोदी और शाह क्यों चुप हैं?

लखीमपुर में भी हाथरस जैसी गलती?
लखीमपुर में 9 लोगों की मौत के बाद प्रशासन के नेताओं के जाने पर रोक लगाने व कई बड़े नेताओं की हिरासत व नजरबंदी ने विपक्ष को सियासत के लिए मुफीद ईंधन दे दिया। 3 दिन बाद सरकार को समझ में आया कि इस तरह हिरासत से विपक्ष को ही फायदा हो रहा है और प्रियंका आदि नेता रिहा किए गए लेकिन नुकसान तो हो चुका था। आपको याद होगा कुछ इस तरह के प्रशासनिक फैसले हाथरस केस में भी लिए गए थे। मीडिया को कई दिनों तक पीड़ित के घर जाने से रोका गया। नेताओं को भी रोका गया। बवाल बढा तो 3-4 दिन बाद जाकर सरकार को अहसास हुआ कि उनका फैसला उन्हीं को नुकसान पहुंचा रहा है। यहां भी सरकार के निर्णयों में हाथरस की तरह राजनीतिक सूझबूझ की कमी दिखी।

सरकार अफसरी फार्मूले की बजाय राजनीतिक सोच दिखाती तो 'लोकतंत्र खतरे में' जैसे आरोप सरकार पर ना लगते और ना ही विपक्ष को सियासत करने के लिए ईंधन मिल पाता। लोगों का भी सरकार पर भरोसा बढ़ता। लेकिन हाथरस की तरह, शायद यहां भी सरकार, अफसरी कारगुजारियों के बल पर, घटना को झुठलाने व नैरेटिव को बदलने की लाइन लेना चाहती थी जिसमें एक के बाद एक वीडियो से सब गुड़ गोबर हो गया। सरकार के सलाहकार और प्रशासनिक अफसरों की गलत सलाह और फैसलों ने सरकार को विपक्ष के कटघरे में खड़ा कर दिया। अगर यही मंजूरी जो 3 दिन बाद दी गई, पहले दिन ही दे दी जाती तो शायद सरकार को इतने विपक्षी हमलों का शिकार ना होना पड़ता। पुलिस भी इन 3 दिनों में जांच की तेजी दिखा सकती थी। हत्यारोपी नेताओं और समर्थकों से पूछताछ कर सकती थी। मौके से सबूत इकट्ठा कर सकती थी तो शायद लोगों का भरोसा पुलिस और प्रशासन के पक्ष में होता। लेकिन ऐसा नहीं किया गया बल्कि इंटरनेट बंद करना, जिलों की सीमाओं पर भारी पुलिस बल तैनात कर देना और नेताओं को नजरबंद करने जैसे फैसले लिए जाने लगे। जिससे सरकार और प्रशासन के खिलाफ राजनीतिक माहौल बनने में मदद मिली।सामाजिक चिंतक लोकेश सलारपुरी अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखते हैं कि लखीमपुर में किसकी गलती है किसकी नहीं, ये अलग मुद्दा है पर एक बात खास है कि आज यूपी में मोदी जी ने उस घटना का जिक्र तक नही किया!! जो आदमी कुत्ते के पिल्ले के गाड़ी के नीचे आने पर दुःखी होता था वो किसानों को गाड़ी के नीचे कुचलने के वीडियो आने के बाद भी चुप क्यों है? कोई एक भाजपाई इस बात का जवाब दे दे! वाजपेयी फिर भी शर्मदार थे जो गुजरात नरसंहार के बाद इन्ही मोदी जी को राजधर्म का पालन करने की सलाह तो दे ही गए थे पर महान मोदी जी तो योगी जी से इतना डरने लगे कि जुबान तक नही खोल पाए! आपने सम्भवतः ये बात नोट नहीं की कि योगी ने इतनी बड़ी घटना के बावजूद भी मंत्रिमंडल की बैठक नही बुलाई! बुलाते भी कैसे! कोई साथ हो तो बुलाते भी ...  कुल मिलाकर यूपी सिविल वॉर में जा चुका है और सरकार डिरेल हो चुकी है!!

जिम्मेदार सिर्फ और सिर्फ भाजपा की अंदरूनी राजनीति है!! वरना देश के गृहमन्त्री और गृह राज्यमंत्री कोई और ही होते!! एक तड़ीपार और एक हिस्ट्रीशीटर तो बिल्कुल नही होते!!
और बस, यही देश की समस्या है जिसे देश ही नही समझ पा रहा है ...

मामले में एक यूजर चौधरी नक्षत्र पाल सिंह कमेंट करते हैं कि सत्ता में आने से पहले मोदीजी के भाषण सुनकर तो यही लगता था कि कब ये बंदा देश का प्रधानमंत्री बने। क्या पता था कि ये सबसे बडा ढोंगी साबित होगा लेकिन किसानों की मौत पर तो ढोंग के भी दो आंसू नही बहा रहा। इससे तो यही लगता है कि किसानों के प्रति इनके दिल मे कितनी नफरत है? क्या कोई इतनी भी नफरत करता है? वहीं, एक दूसरे यूजर शाहनवाज मलिक मोदीजी के नूरानी फोटी वाले अमृत महोत्सव के होर्डिंग की फ़ोटो पोस्ट करते हुए लिखते हैं कि लखीमपुर में किसानों की चितायें ठंडी भी नहीं हुई हैं और इधर मोदी जी लखनऊ में जश्न मनाने पहुंचे हैं।

जी हां, लखीमपुर में किसानों को गाड़ियों से कुचलने की घटना पर न प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कुछ बोले है और न केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कोई बयान दिया। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी चुप है। प्रदेश भाजपा नेतृत्व नदारद है तो अफसरों के भरोसे प्रदेश चला रहे, मुख्यमंत्री योगी विपक्ष को पीड़ितों से मिलने जाने से रोककर हाथरस वाली गलती दोहरा चुके हैं। बाकी किसी मंत्री/प्रभारी का बीजेपी में वैसे ही कोई खास मतलब है नहीं। लेकिन देश के साथ, मोदी-शाह की चुप्पी अब उनके समर्थकों को भी खल रही है। लोकेश जी के शब्दों में कहे तो शायद यही समस्या है। मृतक भाजपा कार्यकर्ता शुभम मिश्रा के पिता ने कह भी दिया है कि सांत्वना के दो बोल तक बोलने कोई नहीं आया है। कहा, हम भी तो किसान ही है, सरकार बहुत गलत कर रही है।

दरअसल लखीमपुर में 4 किसानों सहित 8 लोगों के मारे जाने और कई लोगों के घायल होने की घटना पर समर्थक भी उम्मीद कर रहे थे कि राष्ट्रीय नेतृत्व इसका संज्ञान लेगा और दिशा निर्देश देगा। लेकिन घटना के 4 दिन बाद भी मोदी और शाह किसी का बयान तक नहीं आया। विपक्ष के शासन वाले राज्यों में हिंसा, आगजनी या लोगों के मारे जाने की घटना पर केंद्रीय गृह मंत्रालय तत्काल संज्ञान लेता है और राज्य सरकार से रिपोर्ट तलब करता है। बड़ी घटना हो तो गृह मंत्रालय की टीम जाती है, हालात मुआयना करने। इस रिपोर्ट या टीम के विजिट करने से कुछ होता नहीं है लेकिन संदेश जाता है कि केंद्र सरकार हालात पर नजर रखे हुए है। कुछ गड़बड़ी होती है तो केंद्रीय टीम संभालेगी। लेकिन खीरी में रिपोर्ट मंगाने या टीम भेजने की औपचारिकता भी नहीं निभाई गई।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हमेशा की तरह अफसरों के साथ बैठक की और अफसर भेजकर किसान नेता राकेश टिकैत के साथ मृतकों के परिजनों को मुआवजे व न्यायिक जांच आदि का ऐलान किया। समझौते से लगा कि सीएम योगी ने राजनैतिक कौशल दिखाते हुए न सिर्फ किसानों के आक्रोश को शांत किया बल्कि हालात बिगड़ने से पहले संभाल लिए। लेकिन हाथरस की तरह जिस तरह विपक्ष के नेताओं को रोकने की कोशिश सरकार ने की या कर रही है, उससे साफ है कि मामला अभी संभला नहीं है। यही नहीं, देंखे तो केंद्र व राज्य सरकार, दोनों स्तर पर जिस संवेदनशीलता की जरूरत थी, वो भी कहीं नहीं दिखलाई दी है। आखिरकार 8 लोग मरे है लेकिन केंद्र व राज्य सरकार दोनों पर आजादी के अमृत महोत्सव का नशा किस कदर सवार है कि शोक की इस घड़ी में भी न सिर्फ उत्सव मनाए जा रहे हैं। बल्कि पीएम मोदी सशरीर लखनऊ पधारे। घर की चाबी बांटने और खुद का गुणगान करते हुए विरोधियों को कोसा लेकिन जिनके घर उजड़ गए, उनके घर जाना तो दूर, पीएम ने यहां भी उनके लिए सांत्वना का एक शब्द तक नहीं बोला। 

गरीबों को घर मिलें अच्छी बात है लेकिन जिनके घर उजड़ गए, उनके हालात समझना भी जरूरी है। शायद मोदी समझ नहीं पाए या जान बूझकर ऐसा माहौल बना रहे कि खुद ब खुद लखीमपुर मामला हाशिए पर चला जाए। शायद इसी सब से निराश मृतक युवा भाजपाई शुभम के पिता ने भी कहा है कि सरकार बहुत गलत कर रही है। आरोप केंद्र सरकार के गृह राज्यमंत्री के बेटे पर है, इसलिए भी केंद्र का हस्तक्षेप आवश्यकीय है। लेकिन मोदी शायद इसे राज्य का मामला मान, सारा दारोमदार योगी सरकार पर ही डाल दिए हैं। 

सवाल है कि क्या उत्तर प्रदेश में इसी कानून व्यवस्था की तारीफ मोदी, योगी करते रहे हैं? किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि उत्तरप्रदेश सरकार के साथ जो समझौता हुआ है उसके तहत 8 दिन में अभियुक्तों की गिरफ़्तारी करनी है। क्या योगीजी समझौते का पालन कर पाएंगे? खास यह भी कि आज जब विपक्ष के नेता व किसान, सभी अपनी अपनी भूमिकाओं का निर्वाह कर रहे हैं तो सवाल जनता को भी अपनी नागरिक जिम्मेदारी उठाने को आगे आने का है, आना चाहिए और आना होगा। दरअसल लखीमपुर में इंसानियत कुचली गई है, जा रही है। मंदिर-मस्जिद, धर्म-जाति से बढ़कर इंसान की गरिमामयी जिंदगी होती है। अगर इस बात को अब भी सरकार को याद नहीं दिलाया गया तो फिर इंसानियत, लोकतंत्र, मानवाधिकार सबके कुचले जाने की बारी एक-एक कर आती जाएगी।

हैरानी होनी ही है। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अक्सर ऐसी घटनाओं पर रहस्यमय चुप्पी साध लेता है। लिंचिंग हो या महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे का महिमामंडन। किसान आंदोलन और किसानों के मरने तक हर मामले में प्रधानमंत्री चुप रहे। उन्होंने बहुत बाद में अपनी सुविधा से समय चुन कर इस पर बयान दिया। जरूरत यह होती है कि प्रधानमंत्री तत्काल रिपोर्ट मंगाएं और देश के लोगों को भरोसा दिलाएं। अगर केंद्र सरकार और केंद्रीय नेतृत्व अपने शासन वाले राज्यों में भी गड़बड़ी पर संज्ञान ले, निर्देश दे, रिपोर्ट मंगाए तो उसकी साख ही मजबूत होती है। तभी शायद भाजपा समर्थक भी निराश हैं। कइयों ने सोशल मीडिया पर इस बात पर निराशा जताई कि मोदी और शाह क्यों चुप हैं?

लखीमपुर में भी हाथरस जैसी गलती?
लखीमपुर में 9 लोगों की मौत के बाद प्रशासन के नेताओं के जाने पर रोक लगाने व कई बड़े नेताओं की हिरासत व नजरबंदी ने विपक्ष को सियासत के लिए मुफीद ईंधन दे दिया। 3 दिन बाद सरकार को समझ में आया कि इस तरह हिरासत से विपक्ष को ही फायदा हो रहा है और प्रियंका आदि नेता रिहा किए गए लेकिन नुकसान तो हो चुका था। आपको याद होगा कुछ इस तरह के प्रशासनिक फैसले हाथरस केस में भी लिए गए थे। मीडिया को कई दिनों तक पीड़ित के घर जाने से रोका गया। नेताओं को भी रोका गया। बवाल बढा तो 3-4 दिन बाद जाकर सरकार को अहसास हुआ कि उनका फैसला उन्हीं को नुकसान पहुंचा रहा है। यहां भी सरकार के निर्णयों में हाथरस की तरह राजनीतिक सूझबूझ की कमी दिखी।

सरकार अफसरी फार्मूले की बजाय राजनीतिक सोच दिखाती तो 'लोकतंत्र खतरे में' जैसे आरोप सरकार पर ना लगते और ना ही विपक्ष को सियासत करने के लिए ईंधन मिल पाता। लोगों का भी सरकार पर भरोसा बढ़ता। लेकिन हाथरस की तरह, शायद यहां भी सरकार, अफसरी कारगुजारियों के बल पर, घटना को झुठलाने व नैरेटिव को बदलने की लाइन लेना चाहती थी जिसमें एक के बाद एक वीडियो से सब गुड़ गोबर हो गया। सरकार के सलाहकार और प्रशासनिक अफसरों की गलत सलाह और फैसलों ने सरकार को विपक्ष के कटघरे में खड़ा कर दिया। अगर यही मंजूरी जो 3 दिन बाद दी गई, पहले दिन ही दे दी जाती तो शायद सरकार को इतने विपक्षी हमलों का शिकार ना होना पड़ता। पुलिस भी इन 3 दिनों में जांच की तेजी दिखा सकती थी। हत्यारोपी नेताओं और समर्थकों से पूछताछ कर सकती थी। मौके से सबूत इकट्ठा कर सकती थी तो शायद लोगों का भरोसा पुलिस और प्रशासन के पक्ष में होता। लेकिन ऐसा नहीं किया गया बल्कि इंटरनेट बंद करना, जिलों की सीमाओं पर भारी पुलिस बल तैनात कर देना और नेताओं को नजरबंद करने जैसे फैसले लिए जाने लगे। जिससे सरकार और प्रशासन के खिलाफ राजनीतिक माहौल बनने में मदद मिली।

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