जगजीवन राम: बाबू बीट्स बॉबी

Written by Jayant Jigyasu | Published on: July 7, 2018
14 सदस्य बिहार के चुनाव में जीते। वे अंग्रेज़ों की फूट डालो-राज करो की चाल समझ चुके थे। इसलिए, जब उन्हें मोहम्मद युनूस की कठपुतली सरकार में शामिल होने का लालच दिया गया, तो उन्होंने ठुकरा दिया। गाँधी जी कहते थे – “जगजीवन राम तपे कंचन की भांति खरे व सच्चे हैं। मेरा हृदय इनके प्रति आदरपूर्ण प्रशंसा से आपूरित है”।



1942 के आंदोलन में उन्हें गाँधी जी ने बिहार व उत्तर पूर्वी भारत में प्रचार का जिम्मा सौंपा। पर, 10 दिन बाद ही वे गिरफ्तार हो गये। 43 में रिहाई हुई। वे उन 12 राष्ट्रीय नेताओं में थे, जिन्हें लार्ड वावेल ने अंतरिम सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था।

बाबू जगजीवन राम ने भारत सरकार में सभी महत्वपूर्ण मंत्रालय संभालते हुए न्यूनतम मेहनताना, बोनस, बीमा, भविष्य निधि सहित कई क़ानून बनाये।  देश में डाकघर व रेलवे का जाल बिछा दिया। हरित क्रांति की नींव रखकर देश को अनाज के मामले में आत्मनिर्भर बनाया।

विमान सेवा को देशहित में करने के लिए निजी कंपनियों का राष्ट्रीयकरण करके वायु सेना निगम, एयर इंडिया व इंडियन एअरलाइंस की स्थापना की। रक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने कहा कि "युद्ध भारत के सूई की नोंक के बराबर भूभाग पर भी नहीं लड़ा जायेगा" व 71 में बांग्लादेश के मुक्तिसंग्राम में ऐतिहासिक रोल निभाया। उन्होंने जनवितरण प्रणाली की नींव रखी।

जगजीवन राम, कर्पूरी ठाकुर और रामनरेश यादव पर मनुवादी लोगों द्वारा फब्तियाँ कसी जाती थीं:

दिल्ली से चमरा भेजा संदेश
कर्पूरी केश बनावे भैंस चरावे रामनरेश।

आपातकाल के बाद 1977 के चुनाव से ठीक पहले उन्होंने इंदिरा से  अपनी​ राहें जुदा कर लीं। 5 मंत्रियों के साथ कैबिनेट से बाहर निकलकर उन्होंने कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी बनाई। यह प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लिए ज़बरदस्त झटका था। विपक्षी पार्टियों की रामलीला मैदान में होने वाली विशाल जनसभा में जब उन्होंने जाना तय किया, तो उसे फ्लॉप करने के लिए पब्लिक ब्रॉडकास्टर दूरदर्शन ने उस रोज़ टेलिविज़न पर बॉबी फ़िल्म दिखाई ताकि लोग घर से न निकल कर उस दौर की इस मशहूर ब्लॉकबस्टर मूवी का आनंद लें। पर, लोग निकले और ऐतिहासिक सभा हुई। अगले दिन की हेडलाइन थी - "बाबू बीट्स बॉबी"।

1936 से 1986 तक 50 वर्षों का उनका जनहित को समर्पित सार्वजनिक जीवन कुछ अपवादों को छोड़कर शानदार रहा। इस देश में राष्ट्रपति तो कोई दलित-मुसलमान बन जाता है, पर अफ़सोस कि ख़ुद को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहकर गर्व से भर जाने वाला यह मुल्क आज भी एक दलित या मुसलमान को प्रधानमंत्री बनाने की सदाशयता दिखाने को तैयार नज़र नहीं आता। उम्मीद है, स्थितियां बदलेंगी और जो काम अमेरिका के ह्वाइट हाउस में एक ब्लैक को बिठाकर वहाँ के लोगों ने जम्हूरी विवेक व मूल्यों का परिचय देते हुए किया; वो हिन्दुस्तान में भी निकट भविष्य में दिखेगा।

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