तीस्ता आदि राजनैतिक बंदियों की रिहाई के लिए देशव्यापी अभियान चलाएंगे: जन संगठन

Written by Sabrangindia Staff | Published on: August 13, 2022
जन संगठनों ने तीस्ता सेतलवाड़, आरबी श्रीकुमार, संजीव भट्ट और भीमा कोरेगांव मामले के आरोपियों की रिहाई को लेकर देशव्यापी आंदोलन चलाने का ऐलान किया है



वरिष्ठ पत्रकार व मानवाधिकार रक्षक तीस्ता सेतलवाड़ के समर्थन का दायरा बढ़ता ही जा रहा है। अखिल भारतीय वन-जन श्रमजीवी-यूनियन (AIUFWP), FAN INDIA, AIRSO, दिल्ली समर्थक समूह, दिल्ली साइंस फोरम (DSF), अखिल भारतीय किसान सभा (AIKS), SLM, प्रतिध्वनि आदि संगठनों ने तीस्ता सेतलवाड़ की गिरफ्तारी की निंदा करते हुए सरकार के दमनकारी रवैये की निंदा की है। 

संगठनों द्वारा जारी संयुक्त बयान में कहा गया है कि भाजपा सरकार द्वारा पिछले दिनों तीस्ता सेतलवाड़, आरबी श्रीकुमार और संजीव भट्ट को इसलिए गिरफ्तार कर लिया गया क्योंकि उन्होंने गुजरात दंगों की असलियत समाज के सामने लाने की हिम्मत की। 

इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला दिया है कि इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने 20 साल तक गुजरात दंगों के मामले को एक साजिश के तहत अनावश्यक रूप से गर्म रखा। कोर्ट ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्तासीन रहते हुए दंगा कराने वाले सभी आरोपियों को बाइज्जत बरी कर दिया और फैसला आने के चंद घंटों बाद ही गुजरात सरकार ने तीस्ता को 25 जून को बिना नोटिस के गिरफ्तार कर लिया। जबकि तीस्ता और याचिकाकर्ता जकिया अहसान जाफरी द्वारा अहमदाबाद में 2002 गुजरात नरसंहार पर विशेष जांच दल को फिर से अवलोकन करने की अपील की गई थी, जिसमें पूर्व सांसद अहसान जाफरी और 69 मुसलमानों को उनके ही घर गुलबर्ग सोसाइटी में पुलिस की मौजूदगी में बेरहमी से जिंदा जला दिया गया था और दंगाइयों को छोड़ दिया गया था। 

संगठनों ने जारी बयान में आगे कहा कि अब सुप्रीम कोर्ट में न्याय की गुहार लगाना भी अपराध माना जा रहा है। यह इतिहास में पहली बार है कि जब याचिकाकर्ताओं को ही गिरफ्तार किया जा रहा है। इसी तरह ऑल्ट न्यूज के सह संस्थापक मोहम्मद जुबैर को गिरफ्तार किया गया जिन्होंने सोशल मीडिया पर बतौर पत्रकार फर्जी और सांप्रदायिक खबरों को उजागर करने में अहम भूमिका निभाई है। हालांकि बहुत खींचतान के बाद उन्हें 23 दिनों बाद जमानत दे दी गई। ऐसे सामाजिक और राजनैतिक कार्यकर्ताओं की लंबी लिस्ट है जो राज्य के दमन के शिकार हुए हैं।

दलित वंचिंत के अधिकारों पर काम करने वाले नरेंद्र दाभोलकर, प्रोफेसर कलबुर्गी और पत्रकार गौरी लंकेश की हत्याओं ने देश को झकझोर दिया था जिनमें हिंदू सेना शामिल थी। लेकिन आज तक अपराधियों को पकड़ने के लिए कोई सार्थक कार्रवाई नहीं की गई है। इसके अलावा 16 बुद्धिजीवियों, वकीलों और दलित नेताओं को भीमा कोरेगांव में हिंसा आयोजित करने के झूठे आरोप में गिरफ्तार किया गया। वे अब भी कठोर कानून यूएपीए के तहत पिछले कई साल से जेल में हैं। इनमें आनंद तेलतुंबडे प्रख्यात लेखक, वरवरा राव श्रेष्ठ कवि, शोमा सेन प्रख्यात अध्यापक और गौतम नवलखा प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं। जीएन साईंबाबा जो दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्राध्यापक हैं और पूर्ण रूप से विकलांग हैं व कई वर्षों से बेहद दयनीय हालत में जेल में बंद हैं। यही नहीं, झारखंड के 83 वर्षीय स्टेन स्वामी जिन्होंने ताउम्र आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ी, को जेल के अंदर ही मरने को मजबूर होना पड़ा। 

इनके अलाव दिल्ली में उमर खालिद, गुलफ्शा, शरजील इमाम सहित सीएए आंदोलन के सैकड़ों कार्यकर्ताओं को सांप्रदायिक दंगे भड़काने के झूठे आरोप में गिरफ्तार किया गया है। इससे इतर, सांप्रदायिक जहर फैलाने वाले बीजेपी के नेताओं कपिल मिश्रा, अनुराग ठाकुर और नूपुर शर्मा आदि के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही जो खुलेआम मुसलमानों को मारने और महिलाओं को बलात्कार की धमकी दे रहे हैं। 

संगठनों ने इसके अलावा किसान आंदोलन, कश्मीर, कश्मीरी पंडितों की स्थिति को लेकर भी चिंता जताई। कहा कि कश्मीर घाटी में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 370 को हटाकर घाटी में क्रूर कंपनियों अडानी, अंबानी के हाथ में जमीन और जंगल लूटने की खुली छूट दे दी गई है। इसके अलावा कश्मीर की स्वायत्तता की संघर्ष को लड़ने वाले कई प्रसिद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और आम नागरिकों को या तो मार दिया गया है या फिर जेलों में ठूस दिया गया। हजारों कश्मीरी पंडितों को मोहरा बनाकर राजनीतिक फायदा लेने के चक्कर में उनकी सुरक्षा और जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया और उन्हें फिर से कश्मीर घाटी छोड़कर जाने के लिए मजबूर कर दिया गया।

संगठनों ने आगे कहा कि मुस्लिम समुदाय पर आक्रमण करने के लिए गोहत्या विरोधी अधिनियम लाया जा रहा है जिसके परिणामस्वरूप निर्दोष मुसलमानों की भीषण हत्याएं की जा रही हैं। जबकि सांप्रदायिक हिंदू भीड़ और उनके नेताओं को सत्तारूढ़ भाजपा सरकारों और नेताओं द्वारा संरक्षित और प्रशंसा की जा रही है और मुसलमानों पर हमले के लिए उकसाया जा रहा है। 

ये हिंसक कार्रवाइयां तब हुई हैं जब मोदी सरकार की बेहद हानिकारक आर्थिक नीतियां नोटबंदी, गलत तरीके से लागू जीएसटी, विनाशकारी लॉकडाउन चार चार घंटे में लागू किए गए। जिसके बारे में सोचा नहीं गया कि करोड़ों प्रवासी मजदूरों की आजीविका पर इसके क्या भयानक प्रभाव होंगे। केंद्र और राज्य सरकारों ने आपदा में अवसर बनाने के लिए करोड़ों लोगों को बेबसी की हालत में धकेल दिया। लाखों लोग दम तोड़ गए। मजदूर आंदोलन ने वर्षों तक संघर्ष करके जो श्रमअधिकार कानून हासिल किए थे उन कानूनों को भी रद्द कर दिया गया। पेट्रोल और गैस की बढ़ती कीमतों ने लोगों की आय को सीधे तौर पर नष्ट कर दिया। पिछले 45 साल में रोजगार को अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंचा दिया है और मुद्रास्फीति को दो अंकों के स्तर पर धकेल दिया है। 

संगठनों ने अंत में कहा कि 90 साल पहले शहीद-ए-आजम भगत सिंह और उनके राजनैतिक संगठन 'हिसप्रस' के साथियों ने जेल के अंदर राजनैतिक बन्दी का दर्जा हासिल करने के लिए एक लंबा अनशन आंदोलन किया था। उन्होंने अदालत में कहा था कि उनके संगठन अंग्रेजी शासकों द्वारा थोपी हुई गुलामी के खिलाफ एक राजनैतिक संघर्ष कर रहे हैं और इसलिए अंग्रेजी अदालत और शासन को उन पर मुकदमा चलाने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। इसलिए उन्होंने अपना बचाव पक्ष भी नहीं रखा। 67 दिन तक अनशन करते हुए जतिन दास ने जेल में शहादत दी थी। इसी विरासत को आगे बढ़ाते हुए जन आंदोलनों ने मौजूदा सरकार की जन विरोधी नीतियों को देश और दुनिया के सामने पर्दाफाश करने हेतु और राजनीतिक बंदियों की बिना शर्त रिहाई के लिए एक सशक्त जन अभियान को तेज करने का फैसला लिया है। जब तक उनकी रिहाई नहीं होती, एक देशव्यापी अभियान चलाया जाएगा। 

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