"भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह पर यौन उत्पीड़न के आरोपों को लेकर प्रदर्शन कर रहे ओलंपिक पदक विजेता पहलवानों ने मार्मिक अपील करते हुए पत्र लिखकर, तंत्र के खिलाफ अपनी मायूसी जाहिर की है जिसने हर किसी को झकझोर कर रख दिया है। उनका कहना है कि वे अपने मेडल गंगा में बहा देंगे क्योंकि 'यह तेज़ सफ़ेदी वाला तंत्र इन्हें मुखौटा बनाकर सिर्फ़ अपना प्रचार करता है, और फिर हमारा शोषण करता है। उस शोषण के ख़िलाफ़ बोलें, तो जेल में डालने की तैयारी कर लेता है।' वन और भूमि अधिकारों के मुद्दे पर काम करने वाले प्रमुख राष्ट्रीय संगठन अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन (AIUFWP) ने भी संयुक्त बयान जारी कर, पहलवानों के संघर्ष का समर्थन किया है।"
अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन AIUFWP अध्यक्ष एमेरिटस जारजुम एटे, अध्यक्ष सोकालो गोंड, कार्यकारी अध्यक्ष अशोक चौधरी, उपाध्यक्ष तीस्ता सेतलवाड़ तथा महासचिव रोमा व उप महासचिव मुन्नीलाल ने अपने संयुक्त बयान में कहा है कि महिला पहलवानों का संघर्ष ओलंपिक बॉक्सिंग चैंपियन मोहम्मद अली के संघर्ष की याद दिलाता है। कहा, ''हमारी युवा महिला पहलवानों द्वारा ओलंपिक ने अपने जीते पदक गंगा नदी में विसर्जित करने का निर्णय लिया और सरकार ने बलात्कारी बृजभूषण शरण सिंह, डब्ल्यूएफआई प्रमुख को गिरफ्तार करने की उनकी मांग पर ध्यान नहीं दिया। यह हमें याद दिलाता है कि 1960 में जब ओलंपिक बॉक्सिंग चैंपियन युवा मोहम्मद अली को भी अपनी काली त्वचा के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ा, तो वे भी ओहियो नदी में अपना स्वर्ण पदक फेंकने के लिए मजबूर हुए थे। इसी से एक भारतीय होने के नाते भी आज हम सभी दुखी हैं।
वन और भूमि अधिकारों के मुद्दे पर काम कर रहे राष्ट्रीय संगठन AIUFWP के अनुसार, 28 मई को जंतर-मंतर पर संघर्षरत महिला पहलवानों पर दिल्ली पुलिस द्वारा किए गए अत्याचार और बर्बरता से वो स्तब्ध हैं, जब वे यौन उत्पीड़न के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध में भाग ले रही थी। कहा कि जिस तरह से हमारे राष्ट्रीय गौरव महिला एथलीटों के साथ भारत सरकार द्वारा व्यवहार किया गया, उन्हें बेरहमी से पीटा गया और गैर-जमानती आपराधिक आरोपों के साथ गिरफ्तार किया गया, यह गंभीर चिंता का विषय है। सर्वविदित है कि पहलवानों ने न्याय के सभी दरवाजे खटखटाने के बाद 23 अप्रैल से दिल्ली जंतर मंतर पर शांतिपूर्वक धरने का विकल्प चुना था ताकि डब्ल्यूएफआई प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह को गिरफ्तार किया जा सके जिस पर एक, दो, दस या बीस नहीं बल्कि सैकड़ों महिला एथलीट और कई नाबालिग लड़कियों के यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगे हैं।
कहा कि यह बड़ी चिंता का विषय है कि साक्षी मलिक, विनेश फोगाट, बजरंग पुनिया जैसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति के खिलाड़ियों को न्याय पाने के लिए सड़कों पर संघर्ष करना पड़ रहा है, जो कि भारत के संविधान के अनुसार, उनका अधिकार है और विभिन्न कानूनों के तहत महिला सम्मान की गारंटी करता है। उन्हें गालियां दी गईं, पीटा गया, घसीटा गया और बुरी तरह बेइज्जत किया गया। 28 मई को मीडिया में चौंकाने वाली तस्वीरें प्रसारित होने के बाद हमारे देश और दुनिया भर के लाखों लोगों के दिलों को छू लिया है।
हद तब हो गई जब न्याय की मांग के खिलाफ इतने बड़े संघर्ष के बावजूद पहलवानों को ही अपराधी बना दिया गया। खास यह है कि उसी दिन हमारे प्रधानमंत्री द्वारा नई संसद के उद्घाटन में आरोपी बृजभूषण को एक नायक की तरह व्यवहार करते देखा गया। यही नहीं, महिलाओं द्वारा जीते गए पदकों के खिलाफ, उनका बयान, उसकी कथित टिप्पणी जिसमें उसने कहा कि विरोध करने वाले पहलवानों को पदकों के बजाय अपनी पुरस्कार राशि वापस करनी चाहिए क्योंकि "पदक केवल ₹15 के लायक हैं, अपने आप में शर्मनाक है"। यह देश के सम्मान, प्रतिभा और खेल नैतिकता और समाज की सभी बाधाओं के बावजूद पहलवानों द्वारा की गई कड़ी मेहनत की पूरी उपेक्षा को दर्शाता है। भारत जैसे देश में यह बात भली-भांति जानी जाती है कि भारत जैसे देश से अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों में बहुत कम व्यक्तिगत पदक धारक महिलाओं ने किस तरह से पितृसत्तात्मक समाज में इस विशेष खेल के लिए कैसे संघर्ष किया होगा?।
कहा कि लोकतांत्रिक अधिकार और गरिमा के अधिकार के लिए संघर्ष ओलंपिक के इतिहास में नया नहीं है। यह सर्वविदित है कि 16 अक्टूबर, 1968 को, मेक्सिको सिटी के ओलंपिक स्टेडियम में अपने पदक समारोह के दौरान, दो अफ्रीकी अमेरिकी एथलीटों, टॉमी स्मिथ और जॉन कार्लोस, ने अमेरिकी राष्ट्रगान बजाने के दौरान एक काले दस्ताने में मुट्ठी उठाई। जबकि पोडियम पर, स्मिथ और कार्लोस, जिन्होंने 1968 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक की 200 मीटर दौड़ स्पर्धा में क्रमशः स्वर्ण और कांस्य पदक जीते थे, अमेरिकी ध्वज का सामना करने के लिए मुड़े और तब तक अपने हाथों को ऊपर उठाए रहे जब तक कि गान समाप्त नहीं हो गया। यह इशारा "अश्वेत शक्ति" की सलामी नहीं थी, बल्कि "मानवाधिकार" की सलामी थी। यह विरोध आधुनिक ओलंपिक के इतिहास में सबसे अधिक राजनीतिक बयानों में से एक माना जाता है।
भारत में WFI प्रमुख ओलंपिक नियमों और मानदंडों का पालन करने के बजाय शक्ति और धन के साथ, एक तानाशाह की तरह, अपने बाहुबल को दर्शाने की हिमाकत कर रहा है। हालांकि भारत महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (CEDAW) का हस्ताक्षरकर्ता है, जो एक अंतरराष्ट्रीय कानून है जिसके लिए देश को सभी क्षेत्रों में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ भेदभाव को खत्म करने और महिलाओं और लड़कियों के समान अधिकारों को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है। WFI प्रमुख द्वारा ऐसी सभी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नियमो और कानूनों का उल्लंघन किया जा रहा है, फिर भी वर्तमान शासन द्वारा उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। नागरिक अधिकारों और न्याय के लिए प्रचार करने के बजाय WFI प्रमुख पोस्को जैसे अधिनियम को हटाने की बात कह रहे हैं जो बच्चों और किशोरों को यौन शोषण से बचाने के लिए बनाया गया था।
अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन AIUFWP अध्यक्ष एमेरिटस जारजुम एटे, अध्यक्ष सोकालो गोंड, कार्यकारी अध्यक्ष अशोक चौधरी, उपाध्यक्ष तीस्ता सेतलवाड़ तथा महासचिव रोमा व उप महासचिव मुन्नीलाल ने अपने संयुक्त बयान में कहा कि हम सब इस देश के एक जागरूक नागरिक के रूप में संवैधानिक ढांचे में अपनी आवाज उठाने वाली हमारी महिला पहलवानों की आवाज को कुचले जाने पर बेहद दुखी हैं। यह भी बेहद शर्म की बात है कि सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी एनसी अस्थाना ने कथित तौर पर कहा कि प्रदर्शनकारियों को फिलहाल कूड़ेदान की तरह घसीटा गया है, अगर जरूरत पड़ी तो पुलिस के पास सीआरपीसी की धारा 129 के तहत गोली मारने का भी अधिकार है। कानून और हमारे संविधान के खिलाफ बयान देने के लिए उन्हें तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए।
हमारी मांग है... कि पहलवानों की मांगों को तुरंत पूरा किया जाए।
*बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी। इसे तुरंत गिरफ्तार कर जेल में डालना चाहिए।
*पहलवानों पर लगे सभी झूठे मुकदमे बिना शर्त वापस लिए जाएं।
*पहलवानों को उनके अभ्यास के समय के नुकसान के लिए मुआवजा दिया जाना चाहिए और उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आगामी खेल आयोजनों का सामना करने के लिए अतिरिक्त देखभाल और उपचार दिया जाना चाहिए।
*डब्ल्यूएफआई के पद की अध्यक्षता एक खिलाड़ी द्वारा की जानी चाहिए और यह एक राजनीतिक पद नहीं होना चाहिए।
*शिकायत निवारण के लिए महिला खिलाड़ियों के लिए एक अलग निकाय होना चाहिए।
महिला पहलवानों द्वारा मंगलवार (30 मई) को मार्मिक अपील करते हुए जारी किया गया पत्र
28 मई को जो हुआ वह आप सबने देखा। पुलिस ने हम लोगों के साथ क्या व्यवहार किया। हमें कितनी बर्बरता से गिरफ़्तार किया। हम शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे। हमारे आंदोलन की जगह को भी पुलिस ने तहस-नहस कर हमसे छीन लिया और अगले दिन गंभीर मामलों में हमारे ऊपर ही एफ़आईआर दर्ज कर दी गई। क्या महिला पहलवानों ने अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के लिए न्याय मांगकर कोई अपराध कर दिया है?
पुलिस और तंत्र हमारे साथ अपराधियों जैसा व्यवहार कर रहे हैं, जबकि उत्पीड़क खुली सभाओं में हमारे ऊपर फब्तियां कस रहा है। टीवी पर महिला पहलवानों को असहज कर देनी वाली अपनी घटनाओं को क़बूल करके उनको ठहाकों में तब्दील कर दे रहा है। यहां तक कि पॉक्सो एक्ट को बदलवाने की बात सरेआम कह रहा है। हम महिला पहलवान अंदर से ऐसा महसूस कर रही हैं कि इस देश में हमारा कुछ बचा नहीं है। हमें वे पल याद आ रहे हैं जब हमने ओलंपिक, वर्ल्ड चैंपियनशिप में मेडल जीते थे।
अब लग रहा है कि क्यों जीते थे! क्या इसलिए जीते थे कि तंत्र हमारे साथ ऐसा घटिया व्यवहार करे! हमें घसीटे और फिर हमें ही अपराधी बना दे। कल पूरा दिन हमारी कई महिला पहलवान खेतों में छिपती फिरी हैं। तंत्र को उत्पीड़क को पकड़ना चाहिए था, लेकिन वह पीड़ित महिलाओं को उनका धरना ख़त्म करवाने, उन्हें तोड़ने और डराने में लगा हुआ है।
अब लग रहा है कि हमारे गले में सजे इन मेडलों का कोई मतलब नहीं रह गया है। इनको लौटाने की सोचने भर से हमें मौत लग रही थी, लेकिन अपने आत्मसम्मान के साथ समझौता करके भी क्या जीना!
यह सवाल आया कि किसे लौटाएं। हमारी राष्ट्रपति को, जो ख़ुद एक महिला हैं। मन ने न कहा, क्योंकि वह हमसे सिर्फ़ 2 किलोमीटर बैठीं सिर्फ़ देखती रहीं, लेकिन कुछ भी बोलीं नहीं।
हमारे प्रधानमंत्री को, जो हमें अपने घर की बेटियां बताते थे। मन नहीं माना, क्योंकि उन्होंने एक बार भी अपने घर की बेटियों की सुध-बुध नहीं ली। बल्कि नई संसद के उद्घाटन में हमारे उत्पीड़क को बुलाया और वह तेज सफ़ेदी वाली चमकदार कपड़ों में फ़ोटो खिंचवा रहा था। उसकी सफ़ेदी हमें चुभ रही थी। मानो कह रही हो कि मैं ही तंत्र हूं।
इस चमकदार तंत्र में हमारी जगह कहां हैं, भारत के बेटियों की जगह कहां हैं। क्या हम सिर्फ़ नारे बनकर या सत्ता में आने भर का एजेंडा बनकर रह गई हैं। ये मेडल अब हमें नहीं चाहिए क्योंकि इन्हें पहनाकर हमें मुखौटा बनाकर सिर्फ़ अपना प्रचार करता है। यह तेज सफ़ेदी वाला तंत्र, और फिर हमारा शोषण करता है। हम उस शोषण के ख़िलाफ़ बोलें, तो हमें जेल में डालने की तैयारी कर लेता है।
इन मेडलों को हम गंगा में बहाने जा रहे हैं, क्योंकि वह गंगा मां हैं। जितना पवित्र हम गंगा को मानते हैं उतनी ही पवित्रता से हमने मेहनत कर इन मेडलों को हासिल किया था। ये मेडल सारे देश के लिए ही पवित्र हैं और पवित्र मेडल को रखने की सही जगह पवित्र मां गंगा ही हो सकती है, न कि हमें मुखौटा बना फ़ायदा लेने के बाद हमारे उत्पीड़क के साथ खड़ा हो जाने वाला हमारा अपवित्र तंत्र।
मेडल हमारी जान हैं, हमारी आत्मा हैं। इनके गंगा में बह जाने के बाद हमारे जीने का भी कोई मतलब रह नहीं जाएगा। इसलिए हम इंडिया गेट पर आमरण अनशन पर बैठ जाएंगे। इंडिया गेट हमारे उन शहीदों की जगह है जिन्होंने देश के लिए अपनी देह त्याग दी। हम उनके जितने पवित्र तो नहीं हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलते वक्त हमारी भावना भी उन सैनिकों जैसी ही थी।
अपवित्र तंत्र अपना काम कर रहा है और हम अपना काम कर रहे हैं। अब लोक को सोचना होगा कि वह अपनी इन बेटियों के साथ खड़े हैं या इन बेटियों का उत्पीड़न करने वाले उस तेज सफ़ेदी वाले तंत्र के साथ। … हम हरिद्वार में अपने मेडल गंगा में प्रवाहित कर देंगे। इस महान देश के हम सदा आभारी रहेंगे।
Related:
अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन AIUFWP अध्यक्ष एमेरिटस जारजुम एटे, अध्यक्ष सोकालो गोंड, कार्यकारी अध्यक्ष अशोक चौधरी, उपाध्यक्ष तीस्ता सेतलवाड़ तथा महासचिव रोमा व उप महासचिव मुन्नीलाल ने अपने संयुक्त बयान में कहा है कि महिला पहलवानों का संघर्ष ओलंपिक बॉक्सिंग चैंपियन मोहम्मद अली के संघर्ष की याद दिलाता है। कहा, ''हमारी युवा महिला पहलवानों द्वारा ओलंपिक ने अपने जीते पदक गंगा नदी में विसर्जित करने का निर्णय लिया और सरकार ने बलात्कारी बृजभूषण शरण सिंह, डब्ल्यूएफआई प्रमुख को गिरफ्तार करने की उनकी मांग पर ध्यान नहीं दिया। यह हमें याद दिलाता है कि 1960 में जब ओलंपिक बॉक्सिंग चैंपियन युवा मोहम्मद अली को भी अपनी काली त्वचा के कारण भेदभाव का सामना करना पड़ा, तो वे भी ओहियो नदी में अपना स्वर्ण पदक फेंकने के लिए मजबूर हुए थे। इसी से एक भारतीय होने के नाते भी आज हम सभी दुखी हैं।
वन और भूमि अधिकारों के मुद्दे पर काम कर रहे राष्ट्रीय संगठन AIUFWP के अनुसार, 28 मई को जंतर-मंतर पर संघर्षरत महिला पहलवानों पर दिल्ली पुलिस द्वारा किए गए अत्याचार और बर्बरता से वो स्तब्ध हैं, जब वे यौन उत्पीड़न के खिलाफ शांतिपूर्ण विरोध में भाग ले रही थी। कहा कि जिस तरह से हमारे राष्ट्रीय गौरव महिला एथलीटों के साथ भारत सरकार द्वारा व्यवहार किया गया, उन्हें बेरहमी से पीटा गया और गैर-जमानती आपराधिक आरोपों के साथ गिरफ्तार किया गया, यह गंभीर चिंता का विषय है। सर्वविदित है कि पहलवानों ने न्याय के सभी दरवाजे खटखटाने के बाद 23 अप्रैल से दिल्ली जंतर मंतर पर शांतिपूर्वक धरने का विकल्प चुना था ताकि डब्ल्यूएफआई प्रमुख बृजभूषण शरण सिंह को गिरफ्तार किया जा सके जिस पर एक, दो, दस या बीस नहीं बल्कि सैकड़ों महिला एथलीट और कई नाबालिग लड़कियों के यौन उत्पीड़न करने का आरोप लगे हैं।
कहा कि यह बड़ी चिंता का विषय है कि साक्षी मलिक, विनेश फोगाट, बजरंग पुनिया जैसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति के खिलाड़ियों को न्याय पाने के लिए सड़कों पर संघर्ष करना पड़ रहा है, जो कि भारत के संविधान के अनुसार, उनका अधिकार है और विभिन्न कानूनों के तहत महिला सम्मान की गारंटी करता है। उन्हें गालियां दी गईं, पीटा गया, घसीटा गया और बुरी तरह बेइज्जत किया गया। 28 मई को मीडिया में चौंकाने वाली तस्वीरें प्रसारित होने के बाद हमारे देश और दुनिया भर के लाखों लोगों के दिलों को छू लिया है।
हद तब हो गई जब न्याय की मांग के खिलाफ इतने बड़े संघर्ष के बावजूद पहलवानों को ही अपराधी बना दिया गया। खास यह है कि उसी दिन हमारे प्रधानमंत्री द्वारा नई संसद के उद्घाटन में आरोपी बृजभूषण को एक नायक की तरह व्यवहार करते देखा गया। यही नहीं, महिलाओं द्वारा जीते गए पदकों के खिलाफ, उनका बयान, उसकी कथित टिप्पणी जिसमें उसने कहा कि विरोध करने वाले पहलवानों को पदकों के बजाय अपनी पुरस्कार राशि वापस करनी चाहिए क्योंकि "पदक केवल ₹15 के लायक हैं, अपने आप में शर्मनाक है"। यह देश के सम्मान, प्रतिभा और खेल नैतिकता और समाज की सभी बाधाओं के बावजूद पहलवानों द्वारा की गई कड़ी मेहनत की पूरी उपेक्षा को दर्शाता है। भारत जैसे देश में यह बात भली-भांति जानी जाती है कि भारत जैसे देश से अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजनों में बहुत कम व्यक्तिगत पदक धारक महिलाओं ने किस तरह से पितृसत्तात्मक समाज में इस विशेष खेल के लिए कैसे संघर्ष किया होगा?।
कहा कि लोकतांत्रिक अधिकार और गरिमा के अधिकार के लिए संघर्ष ओलंपिक के इतिहास में नया नहीं है। यह सर्वविदित है कि 16 अक्टूबर, 1968 को, मेक्सिको सिटी के ओलंपिक स्टेडियम में अपने पदक समारोह के दौरान, दो अफ्रीकी अमेरिकी एथलीटों, टॉमी स्मिथ और जॉन कार्लोस, ने अमेरिकी राष्ट्रगान बजाने के दौरान एक काले दस्ताने में मुट्ठी उठाई। जबकि पोडियम पर, स्मिथ और कार्लोस, जिन्होंने 1968 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक की 200 मीटर दौड़ स्पर्धा में क्रमशः स्वर्ण और कांस्य पदक जीते थे, अमेरिकी ध्वज का सामना करने के लिए मुड़े और तब तक अपने हाथों को ऊपर उठाए रहे जब तक कि गान समाप्त नहीं हो गया। यह इशारा "अश्वेत शक्ति" की सलामी नहीं थी, बल्कि "मानवाधिकार" की सलामी थी। यह विरोध आधुनिक ओलंपिक के इतिहास में सबसे अधिक राजनीतिक बयानों में से एक माना जाता है।
भारत में WFI प्रमुख ओलंपिक नियमों और मानदंडों का पालन करने के बजाय शक्ति और धन के साथ, एक तानाशाह की तरह, अपने बाहुबल को दर्शाने की हिमाकत कर रहा है। हालांकि भारत महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (CEDAW) का हस्ताक्षरकर्ता है, जो एक अंतरराष्ट्रीय कानून है जिसके लिए देश को सभी क्षेत्रों में महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ भेदभाव को खत्म करने और महिलाओं और लड़कियों के समान अधिकारों को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है। WFI प्रमुख द्वारा ऐसी सभी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय नियमो और कानूनों का उल्लंघन किया जा रहा है, फिर भी वर्तमान शासन द्वारा उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। नागरिक अधिकारों और न्याय के लिए प्रचार करने के बजाय WFI प्रमुख पोस्को जैसे अधिनियम को हटाने की बात कह रहे हैं जो बच्चों और किशोरों को यौन शोषण से बचाने के लिए बनाया गया था।
अखिल भारतीय वन जन श्रमजीवी यूनियन AIUFWP अध्यक्ष एमेरिटस जारजुम एटे, अध्यक्ष सोकालो गोंड, कार्यकारी अध्यक्ष अशोक चौधरी, उपाध्यक्ष तीस्ता सेतलवाड़ तथा महासचिव रोमा व उप महासचिव मुन्नीलाल ने अपने संयुक्त बयान में कहा कि हम सब इस देश के एक जागरूक नागरिक के रूप में संवैधानिक ढांचे में अपनी आवाज उठाने वाली हमारी महिला पहलवानों की आवाज को कुचले जाने पर बेहद दुखी हैं। यह भी बेहद शर्म की बात है कि सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी एनसी अस्थाना ने कथित तौर पर कहा कि प्रदर्शनकारियों को फिलहाल कूड़ेदान की तरह घसीटा गया है, अगर जरूरत पड़ी तो पुलिस के पास सीआरपीसी की धारा 129 के तहत गोली मारने का भी अधिकार है। कानून और हमारे संविधान के खिलाफ बयान देने के लिए उन्हें तुरंत गिरफ्तार किया जाना चाहिए।
हमारी मांग है... कि पहलवानों की मांगों को तुरंत पूरा किया जाए।
*बृजभूषण शरण सिंह की गिरफ्तारी। इसे तुरंत गिरफ्तार कर जेल में डालना चाहिए।
*पहलवानों पर लगे सभी झूठे मुकदमे बिना शर्त वापस लिए जाएं।
*पहलवानों को उनके अभ्यास के समय के नुकसान के लिए मुआवजा दिया जाना चाहिए और उन्हें राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आगामी खेल आयोजनों का सामना करने के लिए अतिरिक्त देखभाल और उपचार दिया जाना चाहिए।
*डब्ल्यूएफआई के पद की अध्यक्षता एक खिलाड़ी द्वारा की जानी चाहिए और यह एक राजनीतिक पद नहीं होना चाहिए।
*शिकायत निवारण के लिए महिला खिलाड़ियों के लिए एक अलग निकाय होना चाहिए।
महिला पहलवानों द्वारा मंगलवार (30 मई) को मार्मिक अपील करते हुए जारी किया गया पत्र
28 मई को जो हुआ वह आप सबने देखा। पुलिस ने हम लोगों के साथ क्या व्यवहार किया। हमें कितनी बर्बरता से गिरफ़्तार किया। हम शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे। हमारे आंदोलन की जगह को भी पुलिस ने तहस-नहस कर हमसे छीन लिया और अगले दिन गंभीर मामलों में हमारे ऊपर ही एफ़आईआर दर्ज कर दी गई। क्या महिला पहलवानों ने अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के लिए न्याय मांगकर कोई अपराध कर दिया है?
पुलिस और तंत्र हमारे साथ अपराधियों जैसा व्यवहार कर रहे हैं, जबकि उत्पीड़क खुली सभाओं में हमारे ऊपर फब्तियां कस रहा है। टीवी पर महिला पहलवानों को असहज कर देनी वाली अपनी घटनाओं को क़बूल करके उनको ठहाकों में तब्दील कर दे रहा है। यहां तक कि पॉक्सो एक्ट को बदलवाने की बात सरेआम कह रहा है। हम महिला पहलवान अंदर से ऐसा महसूस कर रही हैं कि इस देश में हमारा कुछ बचा नहीं है। हमें वे पल याद आ रहे हैं जब हमने ओलंपिक, वर्ल्ड चैंपियनशिप में मेडल जीते थे।
अब लग रहा है कि क्यों जीते थे! क्या इसलिए जीते थे कि तंत्र हमारे साथ ऐसा घटिया व्यवहार करे! हमें घसीटे और फिर हमें ही अपराधी बना दे। कल पूरा दिन हमारी कई महिला पहलवान खेतों में छिपती फिरी हैं। तंत्र को उत्पीड़क को पकड़ना चाहिए था, लेकिन वह पीड़ित महिलाओं को उनका धरना ख़त्म करवाने, उन्हें तोड़ने और डराने में लगा हुआ है।
अब लग रहा है कि हमारे गले में सजे इन मेडलों का कोई मतलब नहीं रह गया है। इनको लौटाने की सोचने भर से हमें मौत लग रही थी, लेकिन अपने आत्मसम्मान के साथ समझौता करके भी क्या जीना!
यह सवाल आया कि किसे लौटाएं। हमारी राष्ट्रपति को, जो ख़ुद एक महिला हैं। मन ने न कहा, क्योंकि वह हमसे सिर्फ़ 2 किलोमीटर बैठीं सिर्फ़ देखती रहीं, लेकिन कुछ भी बोलीं नहीं।
हमारे प्रधानमंत्री को, जो हमें अपने घर की बेटियां बताते थे। मन नहीं माना, क्योंकि उन्होंने एक बार भी अपने घर की बेटियों की सुध-बुध नहीं ली। बल्कि नई संसद के उद्घाटन में हमारे उत्पीड़क को बुलाया और वह तेज सफ़ेदी वाली चमकदार कपड़ों में फ़ोटो खिंचवा रहा था। उसकी सफ़ेदी हमें चुभ रही थी। मानो कह रही हो कि मैं ही तंत्र हूं।
इस चमकदार तंत्र में हमारी जगह कहां हैं, भारत के बेटियों की जगह कहां हैं। क्या हम सिर्फ़ नारे बनकर या सत्ता में आने भर का एजेंडा बनकर रह गई हैं। ये मेडल अब हमें नहीं चाहिए क्योंकि इन्हें पहनाकर हमें मुखौटा बनाकर सिर्फ़ अपना प्रचार करता है। यह तेज सफ़ेदी वाला तंत्र, और फिर हमारा शोषण करता है। हम उस शोषण के ख़िलाफ़ बोलें, तो हमें जेल में डालने की तैयारी कर लेता है।
इन मेडलों को हम गंगा में बहाने जा रहे हैं, क्योंकि वह गंगा मां हैं। जितना पवित्र हम गंगा को मानते हैं उतनी ही पवित्रता से हमने मेहनत कर इन मेडलों को हासिल किया था। ये मेडल सारे देश के लिए ही पवित्र हैं और पवित्र मेडल को रखने की सही जगह पवित्र मां गंगा ही हो सकती है, न कि हमें मुखौटा बना फ़ायदा लेने के बाद हमारे उत्पीड़क के साथ खड़ा हो जाने वाला हमारा अपवित्र तंत्र।
मेडल हमारी जान हैं, हमारी आत्मा हैं। इनके गंगा में बह जाने के बाद हमारे जीने का भी कोई मतलब रह नहीं जाएगा। इसलिए हम इंडिया गेट पर आमरण अनशन पर बैठ जाएंगे। इंडिया गेट हमारे उन शहीदों की जगह है जिन्होंने देश के लिए अपनी देह त्याग दी। हम उनके जितने पवित्र तो नहीं हैं लेकिन अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलते वक्त हमारी भावना भी उन सैनिकों जैसी ही थी।
अपवित्र तंत्र अपना काम कर रहा है और हम अपना काम कर रहे हैं। अब लोक को सोचना होगा कि वह अपनी इन बेटियों के साथ खड़े हैं या इन बेटियों का उत्पीड़न करने वाले उस तेज सफ़ेदी वाले तंत्र के साथ। … हम हरिद्वार में अपने मेडल गंगा में प्रवाहित कर देंगे। इस महान देश के हम सदा आभारी रहेंगे।
Related: